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Friday, 15 November, 2024
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सिंगर, आर्टिस्ट, कवयित्री- पहाड़ों की यात्रा पर ममता ने दिखाए कई टैलेंट, बनाए पुचके और मोमोज़

यात्रा पर निकली ममता अचानक से लोगों के घरों में जाकर उनसे मिलने और उनके साथ चाय बनाने या पकौड़े तलने लग जाती हैं. राजनीति से इतर ममता को उनके इस रूप के लिए भी जाना जाता है. टीएमसी इसे उनके जमीनी नेता होने का संकेत बताती है.

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कोलकाता: सार्वजनिक रैलियों में गाना गाने, पेंटिंग और कविता से लेकर अलीपुरद्वार जिले में एक सामूहिक विवाह के दौरान आदिवासियों के साथ नृत्य करने तक, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आम जनता के बीच अपनी जगह बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं.

लोगों को लुभाने के उनके नए प्रयास पिछले हफ्ते उत्तर बंगाल की पहाड़ियों की उनकी चार दिनों की यात्रा के दौरान नज़र आए जब उन्हें बच्चों के लिए पुचका बनाते हुए देखा गया. पूर्वी भारत में यह लोगों का पसंदीदा स्नैक है जिसे आमतौर पर देश के बाकी हिस्सों में पानीपूरी या गोलगप्पे भी कहा जाता है.

पिछले गुरुवार को ममता बनर्जी दार्जिलिंग में मॉर्निंग वॉक पर निकलीं और सड़क के किनारे एक स्टॉल पर रुक गईं. वहां उन्होंने एक बुजुर्ग महिला के साथ मोमोज़ बनाते हुए देखा गया था.

दार्जिलिंग में ममता सब्जी की दुकानों पर भी गईं और महिला स्वयं सहायता समूह के स्टाल से पौधे खरीदे.

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख अपने दौरों के दौरान अचानक से लोगों के घरों में जाकर उनसे मिलने के लिए जानी जाती हैं. अब चाहे वो जनता के लिए चाय बनाना हो या पकौड़े तलना या फिर बच्चों के बीच चॉकलेट बांटना, उन्हें कुछ भी करने से परहेज नहीं होता.

टीवी समाचार के कैमरों ने ममता बनर्जी को अपने प्रशासनिक अधिकारियों सहित शीर्ष पुलिस अधिकारियों को अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले इलाकों का ‘आश्चर्यजनक दौरा’ करने का निर्देश देते हुए रिकॉर्ड किया है. उन्होंने इन सभी को ग्रामीणों से जुड़ने, उनसे चाय खरीदने और उनके साथ बैठकर चाय पीने की सलाह दी है.

कोलकाता के जोगेश चंद्र कॉलेज से कानून में स्नातक ममता को एक जमीनी नेता के रूप में जाना जाता है. सचिवालय से लौटते समय वह कभी-कभार रुक कर सब्जियां भी खरीद लेती हैं.

टीएमसी पार्षद कजरी बनर्जी ने कहा कि ममता ‘आप और मेरी तरह जीवन जीती हैं. वह जमीन से जुड़ी हुई हैं और एक आम आदमी की तरह जिंदगी जीती हैं.’

उन्होंने आगे बताया, ‘एक दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी और दीदी कहीं जा रही थीं. तभी उन्होंने एक महिला को अपने बच्चे के साथ बारिश में फंसे हुए देखा. महिला स्कूल से बच्चे को लेकर घर लौट रही थी. ममता ने अपने काफिले को रोका, पुलिस अधिकारियों को अपने गाड़ी से हटाया और उनके लिए जगह बनाई, और सुनिश्चित किया कि उन्हें सुरक्षित घर पहुंचाया जाए.

पिछले साल के विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी को उनकी पार्टी ने ‘बंगाल की अपनी बेटी’ के रूप में ब्रांड किया था. जनवरी में उन्होंने कोलकाता में कोविड मरीजों को ‘गेट वेल सून ‘ संदेश के साथ फलों की टोकरियां भेजीं थीं, इन मरीजों में कई भाजपा नेता भी शामिल थे.

जहां विपक्ष ममता के आउटरीच प्रयासों को नौटंकी के रूप में खारिज करते हैं, वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उनके व्यक्तित्व के इस पहलू को मतदाता अपनी नजर में रखते हैं.


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विरोध प्रदर्शनों में भाग लेना और काली पूजा का प्रसाद बनाना

जनता के साथ घुलने-मिलने के अलावा ममता को अक्सर विरोध प्रदर्शनों में भाग लेते हुए भी देखा गया है- ईंधन की बढ़ती कीमतों के विरोध में विद्यासागर सेतु पर मंत्री फिरहाद हाकिम के साथ ई-स्कूटर की सवारी करने से लेकर सब्जियों की बढ़ती कीमतों के बारे में जानने के लिए बाजारों का दौरा करने तक और पिछले साल नागरिकता अधिनियम में संशोधन के खिलाफ सड़कों पर उतरने तक.

काली पूजा के दौरान मुख्यमंत्री अक्सर कोलकाता में अपने कालीघाट स्थित निवास पर अपनी भाभी के साथ खाना तैयार करते हुए, देवी को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद या भोग को पकाती हैं. दीवाली की छुट्टी के बाद जब वह विधानसभा में लौटती हैं, तो वह दो बड़े कंटेनरों में विधानसभा में मीडियाकर्मियों के साथ-साथ कर्मचारियों के लिए घर के बने नारियल के लड्डू लाती हैं.

उनके नक्शे कदम पर उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी भी चलते हुए नजर आए हैं. पिछले हफ्ते, जलपाईगुड़ी में टीएमसी सांसद को एक ग्रामीण के घर चाय पीते और एक बच्चे को गले लगाते देखा गया था.

पश्चिम बंगाल की मंत्री और टीएमसी नेता चंद्रिमा भट्टाचार्य ने कहा, ‘इस तरह चीजें सिखाई नहीं जाती हैं, यह सब अंदर से आता है.’

वह आगे कहती हैं, ‘ममता दीदी एक ज़मीन से जुड़ी नेता हैं. वह लोगों के बीच जाती हैं और उनके साथ खड़ी होती हैं और उन्हें यह करना अच्छा लगता है. उनके ये कार्य हमें मानवता की राजनीति के लिए प्रेरित करते हैं, जिसका वह पालन करती हैं. लोगों के आशीर्वाद के बिना कोई राजनीति सफल नहीं हो सकती. ममता का दिल काफी बड़ा है.’

कोलकाता के बंगबाशी कॉलेज में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर उदयन बंधोपाध्याय ने कहा, ‘ममता का नेतृत्व पैटर्न शुरू से ही काफी अलग रहा है.’

उन्होंने बताया, ‘1984 की बात करें, जब उन्होंने पहली बार राजनीति की चुनावी लड़ाई लड़ी तो ममता के इस जन नेता पर लोगों का ध्यान गया और तब से लेकर अब तक यह जारी है. वह लोगों के साथ आसानी से घुलमिल जाती हैं.’

उन्होंने कहा, ‘अगर आप इसकी तुलना तत्कालीन सीपीआई (एम) शासन से करते हैं, तो मुख्यमंत्रियों ने सख्त प्रोटोकॉल का पालन किया और पार्टी के कार्यक्रमों में वही किया जो पार्टी सचिव उन्हें करने के लिए कहेंगे.’

हालांकि भाजपा नेता प्रियंका टिबरेवाल, जिन्होंने पिछले साल ममता के खिलाफ भवानीपुर उपचुनाव लड़ा था, ने कहा कि उनकी ‘नौटंकी केवल एक ही बात साबित करती है, कि उनके शासन काल में पश्चिम बंगाल मोमो, पुचका और चॉप से आगे नहीं बढ़ सकता है.’

वह आगे कहती हैं, ‘वह राज्य के बेरोजगार युवाओं के लिए एक उदाहरण स्थापित करने की कोशिश कर रही है क्योंकि यहां कोई उद्योग नहीं है, इसलिए ऐसे काम करके वे अपने आपको जिंदा बनाए रख सकते हैं. ममता बड़ी-बड़ी बातें करती हैं. वह बहुत सारे काम करना तो जानती हैं लेकिन एक काम में भी एक्सपर्ट नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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