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Monday, 17 June, 2024
होमराजनीतिरमन सिंह का रिकॉर्ड तोड़ते हुए सबसे लंबे समय तक कुर्सी पर बैठे रहने वाले भाजपाई CM बने शिवराज चौहान

रमन सिंह का रिकॉर्ड तोड़ते हुए सबसे लंबे समय तक कुर्सी पर बैठे रहने वाले भाजपाई CM बने शिवराज चौहान

गुरुवार को शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री के पद पर अपने 15 साल 11 दिन पूरे किए. वह पहली बार 2005 में मुख्यमंत्री बने थे और 2020 में सत्ता में वापस आने से पहले वे 2018 तक लगातार इस पद पर बने रहे थे.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गुरुवार को मुख्यमंत्री कार्यालय में बिताए कुल समय के मामले में सबसे लंबे समय तक पद पर बने रहने वाले भाजपा के मुख्यमंत्री बन गए. गुरुवार को उन्होंने इस कुर्सी पर 15 साल और 11 दिन का समय पूरा किया, जो छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह द्वारा बनाये गए 15 साल और 10 दिनों के कीर्तिमान (रिकॉर्ड) को तोड़ता हैं.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘रमन सिंह – जिन्होंने 7 दिसंबर 2003 और 17 दिसंबर 2018 के बीच छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया था – 15 साल और 10 दिनों तक इस पद पर रहे. चौहान ने 17 मार्च को रमन सिंह का यह रिकॉर्ड तोड़ दिया.’

इस दिन चौहान को संबोधित करते हुए कई भाजपा नेताओं, जिनमें मध्य प्रदेश भाजपा के मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर और गोविंद मालू शामिल थे, ने बधाई वाले ट्वीट जारी किए.

चौहान चार बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपने सेवा प्रदान करने वाले भाजपा के पहले राजनेता हैं. वह एकमात्र ऐसे नेता भी हैं जो भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी- एलके आडवाणी युग में मुख्यमंत्री बने और अभी भी सत्ता में हैं.

हालांकि, मुख्यमंत्री के रूप में बिताये गए दिनों के संदर्भ में चौहान की संख्या कुछ मौजूदा मुख्यमंत्रियों से काफी कम है. ओडिशा के नवीन पटनायक पिछले 22 वर्षों (लगातार) से मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं, जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 15 साल से अधिक (गैर-लगातार) और नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने लगभग 15 साल (गैर-लगातार) पूरे कर लिए हैं.

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भारत के इतिहास में सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले मुख्यमंत्रियों की सूची में सिक्किम के पवन कुमार चामलिंग (24 वर्ष से अधिक), पश्चिम बंगाल के ज्योति बसु (23 वर्ष से अधिक) और अरुणाचल प्रदेश के गेगोंग अपांग (22 वर्ष, गैर-लगातार) शामिल हैं.


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भाजपा में चौहान का उदय

भाजपा संसदीय बोर्ड द्वारा पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुने जाने के बाद, चौहान ने नवंबर 2005 में पहली बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. तब चौहान ने भाजपा के अपने साथी राजनेता बाबूलाल गौर की जगह ली थी.

मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चौहान के चयन ने पार्टी की वरिष्ठ नेत्री उमा भारती को नाराज कर दिया था और उन्होंने इस चयन के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता आडवाणी पर कड़ा हमला भी किया था. इसी वजह से उन्हें छह साल की अवधि के लिए भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था. मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री रहीं उमा भारती स्वयं इस पद के लिए महत्वाकांक्षा पाल रखी थी और 2008 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने भाजपा छोड़ दिया था. वह 2011 में वापस भाजपा में लौट आईं.

एक वरिष्ठ नेता, जो अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते थे, ने कहा, ‘भारती के पार्टी से बाहर जाने के कदम से राज्य के भाजपा नेतृत्व में एक शून्य पैदा हुआ और इसने चौहान के पक्ष में काम किया, क्योंकि उन्होंने इस अवसर का उपयोग एक बड़े नेता के रूप में उभरने के लिए किया. तब से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.‘

मामा वाली छवि

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, चौहान को उनकी सरकार द्वारा शुरू की गई कई महिला-केंद्रित कल्याणकारी योजनाओं के कारण अक्सर उनके लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ‘मामा’ उपनाम मिला. इनमें लाडली लक्ष्मी योजना (लड़कियों के लाभ के लिए जारी की गई एक वित्तीय योजना), लड़कियों के बीच साइकिल का वितरण और कन्या विवाह योजना आदि शामिल हैं.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को मुख्यमंत्री मेधावी विद्यार्थी योजना (मेधावी छात्रों के लिए), दीन दयाल रसोई योजना (वंचित लोगों के लिए रियायती भोजन हेतु) मुख्यमंत्री आवास योजना सहित छात्रों, युवा उद्यमियों, किसानों और विधवाओं के लिए कई सारी कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत करने का भी श्रेय दिया जाता है.

साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के कांग्रेस से हार जाने के बाद चौहान को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. मगर, ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस पार्टी छोड़ने और इसके 22 विधायकों को अपने साथ भाजपा में लाने के बाद, चौहान मार्च 2020 में फिर से सीएम कार्यालय लौट आए थे.

मध्य प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और पिछले साल तक यह चर्चा जोरो पर थी कि चौहान के लंबे कार्यकाल की वजह से पार्टी को इस चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का कोई वैकल्पिक चेहरा खोजने की जरूरत है.

लेकिन चौहान ने पिछले साल हुए उपचुनावों में शानदार जीत हासिल की, जिससे पार्टी में उनकी स्थिति और मजबूत हो गई है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘नवंबर 2020 में जब चौहान ने प्रचंड जीत के साथ उपचुनावों में विजय प्राप्त की तो उन्होंने अपने विरोधियों को एकदम से चुप करा दिया और राज्य की राजनीति में भी एक नई जान फूंक दी. तब उनकी जगह पर किसी और को लाने की बातें चल रही थी, जो अब तो नामुमकिन लगती है. जो लोग उनकी जगह लेना चाहते हैं वे हमेशा ऐसी अफवाहें फैलाते रहते हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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