मुंबई: शिवसेना को एक ऐसी पार्टी के तौर पर देखा जाता है जिसका मूल आधार महाराष्ट्र के शहरी तबकों में है. लेकिन हाल ही में महाराष्ट्र के करीब 50 प्रतिशत ग्राम पंचायत में हुए चुनावों ने इस धारणा को बदला है.
पिछले हफ्ते हुए चुनावों में जो 14,234 ग्राम पंचायत में हुए, शिवसेना विजेता के तौर पर उभरी है. पार्टी ने करीब 20 प्रतिशत पंचायतों में जीत हासिल की है.
5,721 ग्राम पंचायत के साथ भाजपा ने सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा किया.
हालांकि, भाजपा की जीत के बावजूद, शिवसेना ने महाराष्ट्र की ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पहुंच बनाई है. इससे पार्टी की छवि में बदली है जिसे केवल शहरी क्षेत्र की पार्टी कहा जाता था.
इस जीत ने पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के हौसले को भी बढ़ाया है, जिनपर लगातार आरोप लगाए जा रहे थे कि बतौर मुख्यमंत्री, पहले साल में उनका लोगों से जुड़ाव नहीं रहा.
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शिवसेना के लिए सबसे बड़ी ग्राम पंचायत जीत
महाराष्ट्र में 27,920 ग्राम पंचायत है जिनमें से पिछले हफ्ते करीब 50 प्रतिशत में चुनाव कराए गए. 12,712 ग्राम पंचायत में वोटिंग हुई जबकि एकल उम्मीदवार होने के नाते 1,523 लोगों को निर्विरोध चुन लिया गया.
पार्टी के चिन्ह पर ग्राम पंचायतों के चुनाव नहीं लड़े जाते. हालांकि, हर पार्टी एक सूची रखती है जिसमें ये ब्यौरा रखा जाता है कि उसने कितनी पंचायतों पर जीत हासिल की.
शिवसेना के अनुमान के अनुसार, पार्टी ने 3,113 ग्राम पंचायतों पर जीत हासिल की है जबकि भाजपा ने 2,632, एनसीपी ने 2,400 और कांग्रेस ने 1,823 सीट जीती हैं.
कांग्रेस के आंकड़ें इससे थोड़े अलग हैं. हालांकि शिवसेना के सबसे ज्यादा ग्राम पंचायत जीतने के दावों को उसने भी सही माना. कांग्रेस के मुताबिक शिवसेना 3,108, कांग्रेस 2,513, एनसीपी 2,399 सीटें जीती हैं जबकि भाजपा को 2,263 ग्राम पंचायत मिली है.
इस बीच एनसीपी और भाजपा ने दावा किया कि वो इन चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. एनसीपी ने दावा किया कि उसने 3,276 ग्राम पंचायत और भाजपा ने कहा कि उसे 5,721 ग्राम पंचायत पर जीत मिली है.
पार्टियों के दावों के इतर एक बात जो स्पष्ट है वो ये है कि इन चुनावों में शिवसेना को अब तक की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत जीत मिली है.
शिवसेना की एमएलसी मनीषा कयांदे कहती हैं, ‘स्पष्ट तौर पर ग्राम पंचायत स्तर पर ये शिवसेना की अब तक की सबसे बड़ी जीत है और इसने पार्टी की शहरी छवि वाले होने की धारणा बदली है. हमने कोंकण और मराठवाड़ा में अपने को मजबूत किया है और पश्चिम महाराष्ट्र सहित विदर्भ के क्षेत्रों में पहुंच बनाई है.’
शिवसेना को हालांकि सिंधुदुर्ग जिले के कुछ हलकों में हार का सामना करना पड़ा जहां पार्टी के पूर्व नेता और वर्तमान भाजपा सांसद नारायण राणे ने भाजपा को मजबूती दिलाई. कोंकण क्षेत्र के सिंधुदुर्ग को शिवसेना का मजबूत गढ़ माना जाता है.
लेकिन कुछ महत्वपूर्ण जीत ने इस हार की भरपाई कर दी है. जैसे कि, कोल्हापुर का खानापुर गांव जहां से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल आते हैं, वहां सेना ने अपने विधायक प्रकाश अबिटकर के नेतृत्व में नौ सीटों में से छह पर जीत हासिल की है.
इसी तरह, पार्टी के नेताओं ने कहा, हालांकि शिवसेना ने विदर्भ के नागपुर जिले में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया, जो भाजपा का गढ़ रहा है. पार्टी का दावा है कि नागपुर जिले के ग्रामीण इलाकों में कम से कम उसने दस ग्राम पंचायतें जीती हैं.
कायंदे ने कहा, ‘शिवसेना का मुंबई और ठाणे जैसे शहरों में हमेशा से ही मजबूत प्रदर्शन रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच होने से पार्टी का विस्तार होगा, नए लोगों जुडेंगे जिससे निचले स्तर पर काडर मजबूत होगा.’
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उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के लिए बड़ी जीत
1966 में शिवसेना को लांच किया गया, इस मुद्दे पर कि प्रवासी लोग महाराष्ट्र के शहरों में नौकरियों के अवसर छीन रहे हैं. हालांकि इस एजेंडे ने मुंबई के बाहर वोटरों को ज्यादा नहीं लुभाया. मुंबई से सटे ठाणे और कोंकण में जरूर इसका थोड़ा असर पड़ा.
पार्टी का पहला आधिकारिक अधिवेशन 1984 में मुंबई में हुआ जिसमें फैसला लिया गया कि मुंबई और ठाणे से इतर पूरे राज्य में काम करने की जरूरत है. इसके अगले साल, पार्टी ने कोंकण क्षेत्र के महाड़ में वार्षिक अधिवेशन किया जहां इसने महाराष्ट्र में पार्टी के विस्तार के अपने एजेंडा को एक बार फिर से दोहराया और इसके लिए हिंदुत्व को चुना.
पार्टी के नेता और राजनीतिक पर्यवेक्षक कहते हैं कि शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने भावुक तरीके से ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच बनाने की कोशिश की जबकि उद्धव ठाकरे ने 2000 में इस अप्रोच को बदलने की कोशिश की जिसमें वो बिजली की कमी और गन्ना किसानों के पैसों के भुगतान को मुद्दा बनाया.
बीते वर्षों में, उन्होंने कृषि ऋण माफी और किसानों को फसल बीमा नहीं मिलने जैसे गंभीर मुद्दों पर ग्रामीण महाराष्ट्र में अभियान चलाया- जो अब पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है.
राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई कहते हैं, ‘उद्धव ठाकरे ने ग्रामीण क्षेत्रों में शिवसेना को बढ़त दिलाई है. चूंकि शिवसेना विपक्ष में थी, इसलिए ठाकरे ने गन्ना किसानों के लिए गांवों में अत्यधिक लोड शेडिंग, और फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) जैसे मुद्दों को उठाया, जिससे वास्तव में पार्टी को पश्चिमी महाराष्ट्र के जिलों जैसे सतारा, सांगली और कोल्हापुर में अपना आधार बढ़ाने में मदद मिली.’
इसलिए, ग्राम पंचायत स्तर पर पार्टी की जीत, उद्धव के सीएम के रूप में ‘जनादेश’ के तौर पर देखी जा रही है, विशेष रूप से भाजपा की आलोचनाओं के बीच.
कोविड-19 महामारी के कारण, पिछले साल भर में सीएम ठाकरे ने फील्ड का दौरा नहीं किया, इसके बजाय उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक की.
देसाई ने कहा, ‘उद्धव ठाकरे ने रणनीतिक तौर पर चयन किया कि उन्हें कहा जाना है और कहा नहीं. वो निसर्ग चक्रवात के बाद रायगढ़ गए, फिर सांगली और सतारा गए जहां बाढ़ के कारण खेती प्रभावित हुई. ग्राम पंचायत चुनाव के नतीजे उद्धव ठाकरे के लिए बड़ी जीत है.’
एक शिवसेना नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि कांग्रेस और एनसीपी, जो आम तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों पर हावी थे- अब राज्य में कमजोर हो रही है क्योंकि सहकारी संस्थानों की अवधारणा की पकड़ अब राज्य में ढीली पड़ रही है.
नेता ने कहा, ‘चीनी के कोपरेटिव के बोर्ड्स पर कांग्रेस और एनसीपी का कब्जा था. इनमें से अब ज्यादातर अच्छा नहीं कर रहे हैं और इस क्षेत्र में निजीकरण लगातार बढ़ रहा है. इस कारण शिवसेना और भाजपा के लिए जगह बनी है.’
पिछले साल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कपास की रिकॉर्ड मात्रा खरीदने के लिए एमवीए सरकार के निर्णय, बाजार आधारित मूल्य श्रृंखला बनाने की योजना, 5 रुपये में खाना देने के लिए शिव भोजन योजना– इन सभी ने शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस के मुकाबले फायदा पहुंचाया है.
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