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Friday, 22 November, 2024
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पंजाब में अपना रुतबा बनाए रखने के लिए कैसे कट्टरपंथ के रास्ते पर चल रहे है SGPC और अकाल तख्त

शिरोमणि अकाली दल करीब एक दशक से राज्य की सत्ता से बाहर है. जानकारों का कहना है कि बढ़ता सिख कट्टरवाद एसजीपीसी और अकाल तख्त के लिए अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए मुद्दे उठाने की मजबूरी का नतीजा है.

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चंडीगढ़: पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में पिछले हफ्ते तीन दिवसीय शहीदी जोर मेले के आखिरी दिन सिखों की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अपने उग्र भाषण से हर किसी को हैरत में डाल दिया.

शहीदी जोर मेला हर साल बाबा जोरावर सिंह और सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह के चार साहिबजादों में सबसे छोटे बाबा फतेह सिंह की शहादत की याद में आयोजित किया जाता है.

आमतौर पर जत्थेदार का भाषण धार्मिक प्रवचन तक सीमित रहता है. लेकिन इस बार यह कुछ अलग ही अंदाज में नजर आया.

अपने भाषण में, जत्थेदार ने बाहरी लोगों के पंजाब में जमीन खरीदने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया, राज्य में चर्च की बढ़ती संख्या की निंदा की और सिख युवाओं से विदेश न जाने का आह्वान किया.

उन्होंने कहा, ‘आप विदेशों में काम करने के लिए अपना घर-बार और जमीन छोड़ देते हैं. यूपी और बिहार के लोग आएंगे और आपकी जमीनों पर कब्जा करेंगे. पंजाब तंबाकू और बीड़ी वाला राज्य बन जाएगा. बाहरी लोगों को पंजाब में जमीन खरीदने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. सरकार को इस दिशा में काम करने की जरूरत है.’

उन्होंने वहां मौजूद भीड़ को पंजाब में पेंटेकोस्टल मूवमेंट के बढ़ते प्रभाव के बारे में आगाह करते हुए कहा, ‘पूरे राज्य में ही मशरूम की तरह चर्च बढ़ते जा रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘यदि आप सभी विदेश चले जाएंगे तो यहां जोर मेला देखने के लिए कौन बचेगा? आप सभी को इस बारे में सोचने की जरूरत है.’

असामान्य रूप से ऐसा आक्रामक और तीखा भाषण उन्होंने ऐसे समय पर दिया है जब राज्य में न केवल शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) का प्रभाव काफी घट चुका है, बल्कि सिखों के एक वर्ग के बीच कट्टरवाद भी बढ़ता जा रहा है.

विशेषज्ञों का मानना है कि यह सब अकाल तख्त और क्षेत्र में गुरुद्वारों का प्रबंधन संभालने वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की अपनी खोई धार्मिक और राजनीतिक जमीन फिर से हासिल करने की कोशिश का हिस्सा है.

पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला में सिख स्टडीज के पूर्व प्रोफेसर और सिख इनसाइक्लोपीडिया के प्रधान संपादक धरम सिंह ने कहा, ‘एसजीपीसी और अकाल तख्त का एजेंडा स्पष्ट तौर पर राजनीतिक है—अकाली दल को सियासी परिदृश्य में फिर कैसे लाया जाए.’

उन्होंने कहा कि ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा.

उन्होंने कहा, ‘पहले भी ऐसा हो चुका है कि जब ये सिख धार्मिक संस्थान, जिन्हें आम तौर पर स्वतंत्र रूप से काम करने वाला माना जाता है, शिरोमणि अकाली दल की राजनीतिक मदद के लिए आगे आईं.’


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खोई जमीन फिर पाने का प्रयास

एसजीपीसी और अकाल तख्त दोनों, सैद्धांतिक तौर पर स्वायत्त निकाय हैं. इसमें से अकाल तख्त सिखों का सर्वोच्च धार्मिक तख्त है जबकि एसजीपीसी पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ में ऐतिहासिक गुरुद्वारों के प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालती है.

हालांकि, 1920 में एसजीपीसी की राजनीतिक शाखा के तौर पर बनाई गई पार्टी शिरोमणि अकाली दल तमाम आलोचना के बावजूद ऐतिहासिक रूप से दोनों के कामकाज को नियंत्रित करती है.’

पिछले कुछ सालों में राज्य में शिरोमणि अकाली दल के राजनीतिक प्रभाव में कमी आई है—पार्टी पिछले करीब एक दशक से सत्ता से बाहर है और 2022 के विधानसभा चुनावों में यह तीन सीटों पर सिमट गई थी.

इसके अलावा, पार्टी ने 2021 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की तरफ से अब निरस्त किए जा चुके तीन विवादास्पद कृषि विधेयकों के विरोध में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ अपने दशकों पुराने गठबंधन को तोड़ दिया था.

तबसे, भाजपा और अकालियों के बीच रिश्ते और बिगड़े ही हैं. शहीदी जोर मेले से ठीक पहले एसजीपीसी ने ‘वीर बाल दिवस’ का नाम बदलकर ‘साहिबजादे शहादत दिवस’ की उसकी मांग न मानने को लेकर मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया.

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल जनवरी में घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को चार साहिबजादों के बलिदान को याद करने के लिए वीर बाल दिवस के तौर पर मनाया जाएगा.

एसजीपीसी की तरफ से तबसे ही इस नाम पर आपत्ति जताई जा रही है. सिख निकाय के मुताबिक, ‘वीर बाल दिवस’ नाम सामान्य रूप से बच्चों की बहादुरी का प्रतीक है, जिससे इस दिन का वास्तविक महत्व कम हो जाता है.

यह एकमात्र ऐसा मुद्दा नहीं है जिस पर पूर्व सहयोगी दलों में मतभेद रहा है – एसजीपीसी भी भाजपा और आरएसएस पर सिख मामलों में दखल देने का आरोप लगाती रही है.

पिछले नवंबर में, जब हरियाणा के स्पीकर ने हरियाणा और पंजाब की साझा राजधानी चंडीगढ़ में एक अलग विधानसभा के लिए जमीन की मांग की, तो एसजीपीसी ने एसएडी के रुख को दोहराते हुए आपत्ति जताई थी कि यह शहर पंजाब का है.

सिखों से जुड़े प्रमुख मुद्दों पर एसजीपीसी के तीखे तेवरों को सिखों के एक वर्ग के बीच बढ़ती कट्टरपंथी भावना की प्रतिक्रिया के तौर पर भी देखा जा रहा है, खासकर स्वयंभू सिख उपदेशक अमृतपाल सिंह संधू के उभरने के बीच.

दुबई में अपने परिवार का ट्रांसपोर्ट बिजनेस छोड़कर पंजाब आ गए संधू अक्टूबर से एक सशस्त्र बैंड के साथ राज्य भर में घूम रहे हैं.

अपने भाषणों में, वह सिख युवाओं से ड्रग्स छोड़ने, कटार धारण करने, ‘अमृत छककर’ एकदम रुढ़िवादी ढंग से सिख धर्म का पालन करने और एक स्वायत्त राज्य खालिस्तान के निर्माण की दिशा में काम करने का आह्वान कर रहे हैं.

संधू ने अपने खालसा वाहीर (मार्च) के पहले चरण की शुरुआत पिछले महीने अमृतसर में अकाल तख्त से ही की थी.

10 दिन पहले आनंदपुर साहिब में सम्पन्न मार्च के दौरान संधू और उनके सहयोगियों ने कपूरथला और जालंधर में दो गुरुद्वारों में तोड़फोड़ की, और गुरुद्वारों के अंदर से कुर्सियां और बेंच खींचकर उनमें आग लगा दी. उन्होंने इन कृत्यों को यह कहते हुए जायज ठहराया कि किसी गुरुद्वारे के अंदर गुरु ग्रंथ साहिब के बराबर बैठना सिखों के नैतिक आचरण के खिलाफ है.

एसजीपीसी ने हालांकि इस तोड़फोड़ की निंदा की लेकिन सिख मर्यादा, या नैतिक संहिता का पालन करने की जरूरत पर जोर दिया.

एसजीपीसी ने 16 दिसंबर को अपनी धर्म प्रचार समिति की बैठक के बाद जारी बयान में कहा, ‘सिख समुदाय के भीतर इस तरह के विवाद बेहद चिंताजनक हैं और मर्यादा से जुड़े मुद्दों को साथ बैठकर बातचीत के जरिये हल किया जाना चाहिए.’

बयान में कहा गया, ‘अकाल तख्त ने समय-समय पर गुरुद्वारे के भीतर संगत के मर्यादा मामलों को सुलझाने में मार्गदर्शन दिया है. हालांकि, जालंधर की घटना ने सिख समुदाय की भावनाओं को गंभीर रूप से आहत किया है, और उन्हें आगे मंथन के लिए भी मजबूर किया है.

नवंबर में, संधू ने एक आगामी पंजाबी फिल्म दास्तान-ए-सरहिंद के खिलाफ आवाज उठाई थी, जो चार साहिबजादों के जीवन पर केंद्रित एक हाइब्रिड—सिनेमैटिक और एनिमेटेड—फिल्म है. उन्होंने कहा कि धर्म किसी भी रूप में फिल्मों में सिख गुरुओं या उनके परिवारों के चित्रण की अनुमति नहीं देता है.

30 नवंबर को विवाद बढ़ने पर एसजीपीसी ने पंजाब सरकार से फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने को कहा. यही नहीं, एक पखवाड़े से भी कम समय में सिख निकाय ने फिल्मों सहित किसी भी तरह के मीडिया में सिख गुरुओं और उनके परिवार के सदस्यों के चित्रण पर पाबंदी लगा दी.

एसजीपीसी ने कहा कि यह निर्णय कई सिख एवं छात्र निकायों द्वारा विरोध प्रदर्शन करने और एसजीपीसी को अपनी लिखित आपत्तियों को प्रस्तुत करने के बाद लिया गया. जिसके बाद एसजीपीसी की धर्म प्रचार कमेटी में मामले पर चर्चा की गई.

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि एसजीपीसी का इस तरह कट्टरपंथी लाइन लेना सिख धर्म के लिए अच्छा नहीं है.

ऊपर उद्धृत प्रोफेसर धरम सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘एसजीपीसी और अकाल तख्त जो कुछ भी कर रहे हैं, अंतत: उसका नतीजा यही होगा कि किसी के लिए उस तरह से सिख धर्म का पालन करना लगभग असंभव हो जाएगा जिस तरह वे करना चाहते हैं. बहुत सारी ऐसी चीजें हो जाएंगी कि क्या करना है, क्या नहीं करना है.’

इसी तरह, अकाल तख्त द्वारा सिख धर्म के पांच तख्तों में से एक पटना साहिब गुरुद्वारे में वर्चस्व की लड़ाई में हस्तक्षेप करना अपनी मौजदूगी का एहसास कराने की एक कोशिश का ही हिस्सा था.

तख्तश्री पटना साहिब के प्रबंधन बोर्ड के चुनाव में दो समूहों के बीच वर्चस्व को लेकर टकराव हुआ था, जिसमें अकाल तख्त को हस्तक्षेप करना पड़ा.

अपने सर्वोच्च अधिकार पर जोर देते हुए जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कई फैसले लिए थे, जिसमें एक पूर्व जत्थेदार को ‘तनखैया’ घोषित करना और गुरुद्वारे के कर्मचारियों के लिए डोप टेस्ट का आदेश देना शामिल है.

एसजीपीसी ने ‘बंदी सिंह’ यानी सिख कैदियों की रिहाई की मांग के साथ भी एक अभियान चला रखा है, जो लोग अपनी सजा पूरी करने के बाद भी पिछले करीब तीन दशकों से देशभर की विभिन्न जेलों में बंद हैं.

अमृतसर स्थित गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी में गुरु नानक स्टडीज के प्रमुख अमरजीत सिंह ने कहा कि एसएडी, एसजीपीसी और अकाल तख्त ये सब अपनी खोई साख फिर हासिल करने की कोशिश में जुटे हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हालांकि, ये सभी सक्रिय तौर पर विभिन्न सिख मुद्दों को उठा रहे हैं लेकिन उनकी विश्वसनीयता अभी भी बहुत कम है. वे केवल हवा-हवाई बातें करते और जहां-तहां बयान देते नजर न आ रहे हैं लेकिन कोई ठोस कार्रवाई करते नहीं दिख रहे.’

‘कट्टरपंथियों’ के साथ जुगलबंदी

इस तरह के मुद्दों की वकालत करने के अलावा, दोनों सिख निकाय, और अकाली दल भी पंजाब के उग्रवाद में भूमिका निभाने वाले कट्टरपंथियों के साथ जुगलबंदी करते नजर आ रहे हैं.

जून में, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे दिलावर सिंह का फोटो अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के अंदर केंद्रीय सिख संग्रहालय में लगाया गया था. एसजीपीसी के लिए दिलावर सिंह कौमी शहीद हैं. अकाल तख्त की तरफ से सिख उग्रवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले को भी इसी तरह का ‘सम्मान’ दिया गया है.

इस साल जून में, अकालियों ने पंजाब के दिवंगत मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआणा की बहन कमलदीप कौर राजोआणा को संगरूर लोकसभा उपचुनाव के लिए मैदान में उतारा था.

नवंबर की शुरुआत में अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने भिंडरावाले के पोते की शादी में शिरकत की थी.

इसके बाद, सोमवार को बादल ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों में से एक सतवंत सिंह के परिवार से मुलाकात की.

सिख स्कॉलर गुरतेज सिंह ने राज्य में बढ़ते कट्टरवाद के लिए अकाली दल के घटते प्रभाव को जिम्मेदार ठहराया.

गुरतेज से दिप्रिंट को बताया, ‘यह तो जाहिर है कि एसजीपीसी नहीं चाहेगी कि कट्टरपंथियों का एक बैंड उसके वर्चस्व को खत्म कर दे. लेकिन यह खालीपन उपजने के लिए कोई और नहीं बल्कि खुद वही जिम्मेदार है जिसकी वजह से ही तथाकथित कट्टरवाद बढ़ रहा है. अब एसजीपीसी उस जगह को भरने में जुटी है लेकिन एक स्पष्ट राजनीतिक मकसद के साथ—वो यह कि राजनीतिक परिदृश्य में बादल परिवार एक बार फिर स्थापित किया जा सके.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी / संपादन: अलमिना खातून)


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