मुंबई: मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की टीम में विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) मंगेश चिवटे ने बुधवार को फेसबुक पर शिंदे के एक समर्थक की एक पोस्ट शेयर की. यह दो तस्वीरों का कोलाज था.
एक में शिंदे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रफुल्ल पटेल और सुनील तटकरे एक गोल मेज पर खड़े होकर गहन चर्चा कर रहे थे.
दूसरे पोस्ट में शिंदे को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की बैठक में दिखाया गया है, जो एन. चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के बाद मोदी से तीन स्थान दूर बैठे हैं. मोदी के बाईं ओर भाजपा के पदाधिकारी और मंत्री थे और उनमें से केंद्रीय मंत्री अमित शाह भी पीएम से तीन स्थान दूर बैठे थे.
पोस्ट में सीएम शिंदे को “किंगमेकर” बताया गया है.
उसी दिन, शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की अध्यक्षता में विपक्षी गठबंधन इंडिया की बैठक में भाग नहीं लिया और अपनी जगह पार्टी नेताओं — संजय राउत और नवनिर्वाचित सांसद अरविंद सावंत को भेज दिया.
दोनों घटनाओं से यह पता चलता है कि लोकसभा चुनावों के बाद महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधन के भीतर तराजू का संतुलन कैसे झुक गया है और इसका चार महीने दूर राज्य विधानसभा चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ सकता है.
महाराष्ट्र में भाजपा की सीटों से केवल दो सीटें कम होने के कारण, शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना एक ऐसी खिलाड़ी के रूप में उभरी है जिसे भाजपा न तो कम आंक सकती है और न ही सत्तारूढ़ महायुति के भीतर एक बिंदु से आगे हावी हो सकती है. दूसरी ओर, महाराष्ट्र में कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे अधिक सीटों (13) के साथ उभरकर आया है, जो अब विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के भीतर अपनी सौदेबाजी की शक्ति की सीमाओं को आगे बढ़ाएगा, जिसमें शिवसेना (यूबीटी) के साथ संभावित अहंकार की लड़ाई भी शामिल है.
महायुति ने महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें जीतीं. इसके घटकों में भाजपा ने 28 सीटों में से 9 पर जीत हासिल की, शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने 15 में से 7 सीटें जीतीं, जबकि अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने 4 में से केवल 1 सीट जीती.
एमवीए ने 30 सीटें जीतीं, जिसमें कांग्रेस ने 17 सीटों में से 13 सीटें जीतीं, शिवसेना (यूबीटी) ने 21 सीटों में से 9 सीटें जीतीं और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) ने गठबंधन के सीट-बंटवारे के फार्मूले के तहत अपनी झोली में आई 10 सीटों में से 8 सीटें जीतकर राज्य में सबसे अच्छा स्ट्राइक रेट हासिल किया.
राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई ने दिप्रिंट से कहा, “यह मानते हुए कि प्रत्येक लोकसभा सीट पर लगभग छह विधानसभा क्षेत्र हैं, अगर एमवीए विधानसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीति पर ठीक से काम करती है, तो 30 लोकसभा सीटों की वर्तमान जीत को लगभग 180 विधानसभा सीटों तक बढ़ाया जा सकता है.”
उन्होंने कहा, “महायुति के भीतर, एकनाथ शिंदे का महत्व काफी बढ़ जाएगा, जिससे वे अपनी पार्टी के लिए गठबंधन से अधिक लाभ उठा सकेंगे. दूसरी ओर, एमवीए में कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के बीच सत्ता संघर्ष होने जा रहा है, क्योंकि शिवसेना (यूबीटी) को मुसलमानों से अच्छी संख्या में वोट मिले हैं, जो कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक है.”
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शिवसेना (यूबीटी) बनाम कांग्रेस
दिप्रिंट से बात करने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने कहा कि जब शिवसेना (यूबीटी) ने एमवीए के भीतर सीट बंटवारे पर दबदबा बनाया और कांग्रेस को कुछ सीटें नहीं दीं, जो वह वास्तव में चाहती थी, तो पार्टी ने इसे सहजता से लिया, लेकिन कांग्रेस ने राजनीतिक पर्यवेक्षकों की उम्मीदों को पार करते हुए महाराष्ट्र में अपनी सीटों की संख्या को 1 (चंद्रपुर) से बढ़ाकर 13 कर लिया, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और पूर्व सांसद मिलिंद देवड़ा जैसे प्रमुख नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी.
चव्हाण भाजपा में शामिल हो गए, जबकि देवड़ा शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हो गए. दोनों ही राज्यसभा सांसद हैं. चव्हाण के गढ़ नांदेड़ में कांग्रेस ने 59,442 वोटों से जीत हासिल की, जबकि देवड़ा के पूर्व निर्वाचन क्षेत्र मुंबई दक्षिण में शिवसेना (यूबीटी) के एमवीए उम्मीदवार अरविंद सावंत विजयी हुए.
चंद्रपुर में, जो 2019 में कांग्रेस की एकमात्र सीट थी, दिवंगत कांग्रेस सांसद सुरेश धनोरकर की पत्नी प्रतिभा धनोरकर ने राज्य भाजपा मंत्री सुधीर मुनगंटीवार के खिलाफ शानदार जीत दर्ज की, जो 2.6 लाख वोटों से हार गए.
नाम न बताने की शर्त पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “इस परिणाम ने हमारे आत्मविश्वास और शक्ति को काफी हद तक बढ़ा दिया है. हम निश्चित रूप से विधानसभा चुनावों में सीटों का अधिक हिस्सा मांगेंगे.”
कांग्रेस ने जिन सीटों को छोड़ा, उनमें से एक सांगली थी, जो एक पारंपरिक गढ़ था, जहां से उसने शिवसेना (यूबीटी) को चुनाव लड़ने की अनुमति दी. कांग्रेस के पूर्व सीएम वसंतदादा पाटिल के पोते और कांग्रेस के बागी विशाल पाटिल ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और एक लाख से अधिक वोटों से सीट जीतकर शिवसेना (यूबीटी) को तीसरे स्थान पर धकेल दिया. कांग्रेस नेता विश्वजीत कदम ने पाटिल को उनके अभियान में सक्रिय रूप से मदद की.
कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, “सांगली को छोड़ना एक गलती थी. इसने पड़ोसी हातकणंगले में एमवीए की संभावनाओं को भी प्रभावित किया, जिसका एक हिस्सा सांगली जिले में है. इसी तरह, शिवसेना (यूबीटी) ने मुंबई दक्षिण मध्य सीट पर चुनाव लड़ने पर जोर दिया, जबकि वर्षा गायकवाड़ उस सीट से चुनाव लड़ने के लिए बेहतर थीं. उन्हें बिल्कुल नए क्षेत्र से चुनाव लड़ना था और सौभाग्य से वे जीत भी गईं, लेकिन एक समय ऐसा आया जब उन्हें लगा कि वे लगभग हार ही गई हैं.”
धारावी से विधायक गायकवाड़ मुंबई दक्षिण मध्य के पूर्व सांसद एकनाथ गायकवाड़ की बेटी हैं और अपने पिता की पुरानी सीट से चुनाव लड़ना चाहती थीं. शिवसेना (यूबीटी) के अनिल देसाई ने इस सीट से चुनाव लड़ा, जिसमें पार्टी के मराठी गढ़ दादर और माहिम शामिल हैं और उन्होंने 53,384 के अंतर से जीत हासिल की.
26/11 के आरोपी अजमल कसाब को फांसी पर चढ़ाने के लिए मशहूर पूर्व सरकारी वकील भाजपा के उज्ज्वल निकम के खिलाफ गायकवाड़ की जीत का अंतर 16,514 से बहुत कम था.
कांग्रेस के उक्त नेता ने कहा, “विधानसभा चुनावों में हम यह सुनिश्चित करने की बेहतर स्थिति में होंगे कि हम ऐसी गलतियां न दोहराएं.”
शिवसेना (यूबीटी) के कुछ नेता स्वीकार करते हैं कि उनकी पार्टी सांगली सीट की मांग करने में अनावश्यक रूप से जिद्दी थी. हालांकि, पार्टी सूत्रों का कहना है कि यहां एमवीए की हार ने शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस के बीच कुछ तनाव पैदा कर दिया है, जहां ठाकरे अपने उम्मीदवार की हार के लिए अपने गठबंधन सहयोगी को दोषी ठहरा रहे हैं.
शिवसेना (यूबीटी) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हमने सुनिश्चित किया कि हमने अपने सभी सहयोगियों को अपने वोट हस्तांतरित किए, लेकिन हर जगह इसका उल्टा नहीं हुआ. हम विधानसभा क्षेत्रवार नतीजों का विश्लेषण करेंगे और हमें पता चलेगा कि गठबंधन में कहां कमी रह गई.”
मुंबई विश्वविद्यालय के राजनीति और नागरिक शास्त्र विभाग के शोधकर्ता डॉ. संजय पाटिल ने कहा कि उद्धव ठाकरे का हमेशा एमवीए के भीतर हाथ ऊपर ही रहा है और बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि नतीजों के बाद गठबंधन में उन्हें किस तरह की स्थिति मिलती है.
उन्होंने कहा, “विधानसभा चुनाव में सिर्फ चार महीने बचे हैं, इसलिए शरद पवार और कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा कि मौजूदा व्यवस्था को एक सीमा से आगे न छेड़ा जाए, ताकि किसी भी तरह की उथल-पुथल से बचा जा सके.”
इस बीच, राजनीतिक टिप्पणीकार देसाई ने कहा कि दो एनसीपी — अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी, जिसका राज्य में सबसे खराब स्ट्राइक रेट है और शरद पवार के नेतृत्व वाले गुट का राज्य में सबसे अच्छा स्ट्राइक रेट है — के प्रदर्शन से पता चलता है कि चाचा पवार अभी भी पार्टी में फैसले लेते हैं. हालांकि, भतीजे के समर्थकों का तर्क है कि अजित पवार की ताकत विधानसभा चुनाव लड़ना है और वे शायद चार महीने बाद भी अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं.
‘किंगमेकर’ शिंदे
महायुति के भीतर, लोकसभा के नतीजों ने काफी हद तक इस विचार को दूर कर दिया है कि भाजपा गठबंधन का बड़ा भाई है, जो हावी है.
राजनीतिक टिप्पणीकार अभय देशपांडे ने कहा, “गठबंधन की सीट-बंटवारे की बातचीत के दौरान, भाजपा ने अपने गठबंधन सहयोगियों के सर्वेक्षणों का हवाला देते हुए उनकी सीटों और उम्मीदवारों में भी खुद को शामिल करने की कोशिश की.”
शिंदे ने शुरू में अपनी पार्टी के लिए सीटों का अधिकतम लाभ उठाने के लिए भाजपा के साथ कड़ी सौदेबाज़ी की. आखिरकार उन्होंने राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 15 पर चुनाव लड़ा. हालांकि, पूरी प्रक्रिया ने कुछ सीटों के लिए अंतिम समय तक सीट-बंटवारे को पटरी से उतार दिया. शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से इसे महायुति की हार के कारणों में से एक बताया है.
मुंबई में बुधवार को पत्रकारों से बात करते हुए शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के राज्य मंत्री दीपक केसरकर ने कहा, “सीटों की घोषणा समय पर होनी चाहिए. निर्वाचन क्षेत्र काफी बड़े हैं. हमारे उम्मीदवारों को निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार करने का समय नहीं मिला. इसकी वजह से हमें नुकसान उठाना पड़ा. अगली बार हम अपनी सीटें पहले ही तय कर लेंगे और अच्छी योजना बनाएंगे.”
महाराष्ट्र में भाजपा से सिर्फ दो सीटें कम पाकर और एनडीए के तीसरे सबसे बड़े सहयोगी बनकर शिंदे की सौदेबाजी की ताकत में अब और इजाफा हुआ है. लोकसभा के नतीजों ने यह भी संकेत दिया है कि मराठवाड़ा की आठ सीटों के नतीजों को देखते हुए महायुति को नाराज़ मराठियों को मनाने के लिए प्रयास करने होंगे, जिनमें से महायुति सिर्फ एक सीट जीत पाई — छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) जहां से शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने जीत हासिल की क्योंकि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और वंचित बहुजन अघाड़ी दोनों की मौजूदगी ने विपक्षी एमवीए के वोटों में सेंध लगाई.
मराठवाड़ा में मराठा कोटे के मुद्दे पर महायुति सरकार के खिलाफ काफी गुस्सा था. फरवरी में शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठाओं के लिए 10 प्रतिशत कोटा तय करने के लिए एक विधेयक पारित किया था. हालांकि, पहले भी अलग-अलग कोटे कानूनी परीक्षणों पर खरे नहीं उतरे हैं और मराठा, खासकर मराठवाड़ा के लोग, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के माध्यम से कुनबी के रूप में आरक्षण की मांग कर रहे हैं.
ज़मीनी स्तर पर लोगों के मूड को भांपते हुए, शिंदे के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने पिछले हफ्ते मीडिया योजना के लिए 25.98 करोड़ रुपये आवंटित किए, ताकि मराठा समुदाय के लाभ के लिए उठाए गए सभी कदमों का प्रचार किया जा सके. दिप्रिंट ने एक सरकारी प्रस्ताव में भी देखा है.
नाम न बताने की शर्त पर एक भाजपा नेता ने कहा, “पार्टी को मराठी-मुस्लिम-दलित वोट बैंक के शक्तिशाली संयोजन को तोड़ने का भी रास्ता खोजना होगा, जिसे शिवसेना (यूबीटी) ने अपने लिए बनाया है, खासकर मुंबई में.”
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