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Thursday, 25 July, 2024
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एसजीपीसी अध्यक्ष पद चुनाव—अब अकालियों के आखिरी गढ़ को एक बागी उम्मीदवार से मिल रही चुनौती

वरिष्ठ अकाली नेता बीबी जागीर कौर, जिन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है, बुधवार को एसजीपीसी के अध्यक्ष पद चुनाव में शिअद के आधिकारिक उम्मीदवार हरजिंदर सिंह धामी से भिड़ेंगी.

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चंडीगढ़: विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के कुछ ही महीनों बाद पार्टी में अंदरूनी लड़ाई चरम पर पहुंच गई है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष पद के लिए बुधवार को होने जा रहे चुनाव से पहले ही वरिष्ठ अकाली नेता बीबी जागीर कौर पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार हरजिंदर सिंह धामी के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी हैं.

शिरोमणि अकाली दल की अनुशासन समिति ने सोमवार को ऐलान किया कि उसने तीन बार एसजीपीसी की प्रमुख रह चुकीं बीबी जागीर कौर को ‘एसजीपीसी तोड़ने की साजिश का हिस्सा होने’ जैसी कुछ ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के कारण निष्कासित कर दिया है. उन्हें व्यक्तिगत तौर पर अनुशासन समिति के समक्ष हाजिर न होने पर निष्कासित किया गया है.

एसएडी अनुशासन समिति के अध्यक्ष सिकंदर सिंह मलूका ने एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि यह अनुशासनात्मक कार्रवाई सभी विकल्प समाप्त होने के बाद ही की गई है.

उन्होंने कहा, ‘एसएडी ने हमेशा ही इस चुनाव को एसजीपीसी अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी से आगे पंथिक एकता के तौर पर पेश करने की कोशिश की है जिसके लिए पार्टी अध्यक्ष अलग-अलग सभी सदस्यों की राय जानते हैं. हमें समझ नहीं आ रहा कि बीबी जागीर कौर ये व्यवस्था बदलकर सिख समुदाय में भ्रम क्यों पैदा करना चाहती हैं जबकि इससे केवल पंथ-विरोधी ताकतों को ही मजबूती मिलेगी.’

गौरलतब है कि कुछ दिनों पहले बीबी जागीर कौर ने घोषणा की थी कि वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ेंगी. वहीं, पार्टी ने शनिवार को अपनी तरफ से एक बार फिर मौजूदा एसजीपीसी अध्यक्ष धामी को मैदान में उतारने की घोषणा की.

जागीर कौर की यह खुली बगावत पहले से ही मुश्किलों का सामना कर रही एसएडी की चुनौतियां और बढ़ा सकती है, जिसे इस साल की शुरुआत में पंजाब विधानसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा था.

अकाली दल अपने अध्यक्ष के माध्यम से एसजीपीसी पर पूरी पकड़ बनाए रखता है. ऐसे में यदि एसएडी के आधिकारिक उम्मीदवार की हार हुई तो इसका सीधा मतलब होगा कि पार्टी ने अपने अंतिम गढ़ सिख निकाय पर भी अपना नियंत्रण खो दिया है.

सिखों की मिनी संसद कही जाने वाली एसजीपीसी पंजाब और अन्य राज्यों में 83 गुरुद्वारों की कमान संभालती है. अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के तेजा सिंह समुंदरी हॉल में बुधवार को एसजीपीसी की वार्षिक आम सभा के दौरान अध्यक्ष पद के अलावा 11 सदस्यीय कार्यकारी समिति और अन्य पदाधिकारियों के लिए भी चुनाव होना है.


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जागीर कौर की खुली बगावत

वर्ष 2000 में एसजीपीसी की पहली महिला अध्यक्ष बनने वाली जागीर कौर को उम्मीद थी कि पार्टी इस बार उम्मीदवार के तौर पर उनके नाम की घोषणा करेगी, लेकिन जब यह स्पष्ट हो गया कि अकाली दल उनके बजाये धामी के पक्ष में हैं तो उन्होंने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरने की घोषणा कर दी.

एसजीपीसी एक 191 सदस्यीय निकाय है जिसका चुनाव देशभर के सिखों के बीच मतदान के जरिये होता है. इस निकाय के लिए चुनाव आम तौर पर हर पांच साल में होते हैं लेकिन अध्यक्ष हर साल चुना जाता है.

एसजीपीसी अध्यक्ष अमूमन सर्वसम्मति से चुना जाता है—यानी यह कोई ऐसा व्यक्ति होता है जिसे व्यापक तौर पर शीर्ष अकाली नेतृत्व की स्वीकृति हासिल होती है.

जब कोई आम सहमति नहीं बनती, तब एसजीपीसी सदस्य अध्यक्ष के लिए मतदान करते हैं. चूंकि अधिकांश एसजीपीसी सदस्य अपनी निष्ठा एसएडी के प्रति ही रखते हैं, इसलिए आमतौर पर पार्टी उम्मीदवार को ही चुना जाता है.

बतौर उदाहरण, 2020 में जब जागीर कौर अध्यक्ष चुनी गईं, तो उन्होंने कुल पड़े 143 वोटों में से 122 वोट हासिल करके गोबिंद सिंह लोंगोवाल की जगह ली. वह लगातार तीन सालों से एसजीपीसी प्रमुख थे.

पिछले साल अकाली दल के आधिकारिक उम्मीदवार धामी को एक अन्य सदस्य मिठू सिंह कहनेके ने चुनौती दी. लेकिन धामी ने कुल पड़े मतों में से 122 मत हासिल कर जबर्दस्त जीत हासिल की.

पिछले दो दशकों के दौरान एसजीपीसी चुनावों पर अकाली दल का एकाधिकार रहा है. इससे पहले, 1990 के दशक के अंत में एक बार और ऐसी स्थिति आई थी जब पूर्व अकाली नेता गुरचरण सिंह तोहड़ा की तरफ से एसएडी को चुनौती मिली. तोहड़ा उस समय 25 सालों तक एसजीपीसी के प्रमुख रह चुके थे.

1999 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री और एसएडी के अध्यक्ष प्रकाश बादल ने तोहड़ा को एसजीपीसी प्रमुख के पद से हटा दिया था और फिर उनकी जगह बीबी जागीर कौर को मिली.

यद्यपि जागीर कौर को पंथिक राजनीति में तोहड़ा का जैसा कद हासिल नहीं है, लेकिन खुले तौर पर अकाली दल के खिलाफ उनकी बगावत और खुद को एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पेश करने से पहले से ही मुश्किलों में घिरी पार्टी के लिए चुनौतियां और बढ़ सकती हैं.

2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में एसएडी की हार के बाद तमाम पुराने नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी. उन्होंने पार्टी की चुनावी नाकामी के लिए प्रकाश सिंह बादल के बेटे और एसएडी के कार्यकारी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और उनके बहनोई बिक्रम सिंह मजीठिया को जिम्मेदार ठहराया.

अब, इस साल के शुरू में हुए विधानसभा चुनावों में एसएडी की सीटों की संख्या 15 से घटकर मात्र 3 रह गई थी.

पार्टी पर राजनीतिक लाभ के लिए एसजीपीसी के दुरुपयोग के आरोप भी लगते रहे हैं.

‘हार अकाली ताबूत में आखिरी कील होगी’

कभी बादल की करीबी मानी जाने वाली बीबी जागीर कौर पंजाब में कपूरथला के भोलाथ से विधायक रह चुकी हैं और प्रभावशाली लोबाना समुदाय से आती हैं.

वह 1995 में अकाली दल का हिस्सा बनीं और एक साल बाद एसजीपीसी सदस्य चुनी गईं. 1997 में उन्हें विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी टिकट मिला और वह भोलाथ निर्वाचन क्षेत्र से जीतीं. पहली बार विधायक चुनने के साथ ही वह प्रकाश सिंह बादल सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं.

उनकी बेटी हरप्रीत की रहस्यमयी मौत से जुड़े मामले के 18 साल तक चले मुकदमे के दौरान भी उन्हें बादल वरदहस्त हासिल रहा.

यह मामला अप्रैल 2000 में देशभर में सुर्खियों में रहा जब हरप्रीत उर्फ रोजी की कथित तौर पर फगवाड़ा में एक पारिवारिक मित्र के आवास से लुधियाना के एक अस्पताल ले जाते समय मौत हो गई थी.

जागीर कौर पर हरप्रीत को अवैध रूप से बंधक बनाने और गर्भपात के लिए मजबूर करने का आरोप लगा था. उन्हें 2018 में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया.

बीबी जागीर कौर ने रविवार की एक प्रेस कांफ्रेंस में अपना चुनावी घोषणापत्र पेश किया, जिसमें कहा गया है कि यह सुनिश्चित किया जाएगा कि एसजीपीसी स्वायत्त हो और किसी राजनीतिक दल द्वारा नियंत्रित न हो. उन्होंने ‘लिफाफा संस्कृति’ को लेकर अकाली दल की आलोचना भी की, जिस शब्द का इस्तेमाल पंजाब में आमतौर पर चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने के संदर्भ में किया जाता है.

एसजीपीसी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि जागीर कौर को हरियाणा के सदस्यों के साथ-साथ एसजीपीसी पर अकाली दल के नियंत्रण का विरोध करने वाले लोगों का भी समर्थन हासिल है. अब, बुधवार को होने वाली आम सभा की बैठक एक तरह से एसएडी की अग्निपरीक्षा है.

एसजीपीसी के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘एसजीपीसी अकाली दल का आखिरी गढ़ है, जिसके जरिए उन्हें कुछ पॉवर मिली हुई है. अगर उनका उम्मीदवार हार जाता है, तो एसजीपीसी पर अपना नियंत्रण खो देंगे और यह उनके ताबूत में आखिरी कील जैसा होगा.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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