नई दिल्ली: दिल्ली में पिछले कुछ दिन भीषण गर्मी वाले रहे हैं, दोपहर तक पॉश इलाकों में पेड़ों से भरी सड़कें खाली हो गईं, लेकिन पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद में सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा है.
अनियंत्रित यातायात संकरी गलियों में दुकानदारों के शोर-शराबे से बाधित होता है, जहां घरों और दुकानों के बीच न के बराबर जगह खाली है — भारत का सबसे घनी आबादी वाला यह जिला हमेशा की तरह व्यस्त था.
चार साल पहले, ये वही सड़कें थीं जिन्हें हिंसक भीड़ के समूहों ने तबाह कर दिया था, जब नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के विरोध में प्रदर्शनों के कारण सांप्रदायिक हिंसाएं हुईं, जिसमें कम से कम 53 लोगों की जान चली गई और सैकड़ों घायल हो गए थे.
जैसा कि दिल्ली 25 मई को मतदान करने की तैयारी कर रही है, फरवरी 2020 के दंगों का प्रभाव पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में परिणाम निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण कारक होगा, जहां आम आदमी पार्टी (आप) द्वारा समर्थित कांग्रेस के उम्मीदवार कन्हैया कुमार का मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मनोज तिवारी से है, जिन्होंने 2014 और 2019 दोनों बार जीत हासिल की थी.
चांद बाग, जिस इलाके ने 2020 के दंगों में हिंदू-मुस्लिम के बीच भयंकर हिंसा देखी थी, वहां के एक निवासी संजय ने कहा, “बस हमें पता है कि हम किस दौर से गुज़रे हैं और आज भी वो सब कुछ अनुभव कर रहे हैं. वो धीरे-धीरे हमारे पड़ोस पर कब्ज़ा कर रहे हैं क्योंकि हिंदू परिवार एक-एक करके यहां से जा रहे हैं.”
मुसलमानों के स्वामित्व वाले घरों के बगल में स्थित अपनी छोटी सी किराने की दुकान में बैठे, संजय ने दिप्रिंट से शांत स्वर में बात की, जिससे कॉलोनी में दो समुदायों के बीच चिंता और अविश्वास की भावना का पता चलता है, जिसमें दोनों धर्मों के लोग रहते हैं.
सड़क के उस पार, यमुना विहार में लगभग ऐसी ही भावनाएं हैं. श्रमिक वर्ग के मिश्रित आस्था वाले इलाके से अधिक समृद्ध, यमुना विहार मुख्य रूप से हिंदू परिवारों का घर है, जिनमें से कई ने अपने घरों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए छात्रों की तैयारी कराने वाले कोचिंग सेंटरों को किराए पर दे दिया है.
नाम न छापने की शर्त पर एक वकील ने कहा कि भाजपा को यमुना विहार में स्थानीय लोगों से सबसे अधिक वोट मिलने की संभावना है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों को दोहराते हुए आप-कांग्रेस पर दंगे भड़काने का आरोप लगाया, जिन्होंने पिछले शनिवार को शास्त्री पार्क में एक रैली को संबोधित करते हुए हिंसा का आह्वान किया था.
मोदी ने आप के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार पर “वोट जिहाद” करने का आरोप लगाते हुए कहा, “जब सीएए पेश किया गया, तो उन्होंने पहले शहर को दो महीने तक बंधक बनाकर रखा और फिर दंगे कराए.” सांप्रदायिक तनाव फैलाने की ये कोशिशें उस क्षेत्र में व्यापक रूप से गूंजती हैं, जहां दंगों के घाव आज भी ताज़ा हैं.
उदाहरण के लिए 2020 में हिंसा के स्थलों में से एक, निर्वाचन क्षेत्र के करावल नगर में एक सुनार राजेश वर्मा स्पष्ट थे कि “बाज़ार में मंदी और बढ़ती कीमतों के बावजूद, जिसने उनके जैसे निम्न मध्यम वर्ग के लोगों की ज़िंदगी को दयनीय बना दिया है” उनके परिवार का वोट मोदी को होगा.
वर्मा ने कहा, “आप देखिए, लोकसभा चुनाव में मतदान करते समय लोग बड़ी चीज़ों पर विचार करते हैं. किसी भी प्रधानमंत्री ने देश का कद मोदी जितना नहीं बढ़ाया. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कराकर लाखों लोगों का सपना पूरा किया है. टूटी सड़कें, गंदा नल का पानी, महंगाई ऐसे मुद्दे हैं जिनका वो समाधान नहीं कर सकें हैं, लेकिन इनकी सुनवाई वैसे भी स्थानीय नेताओं द्वारा की जानी हैं ना कि उनके (मोदी).”
बातचीत में भाजपा के उम्मीदवार तिवारी का नाम, एक लोकप्रिय भोजपुरी गायक और अभिनेता, जिन्होंने 2019 का चुनाव कांग्रेस की शीला दीक्षित को तीन लाख से अधिक वोटों से हराकर जीता, का नाम शायद ही कभी आता है. कुछ लोग कहते हैं कि वे मिलनसार व्यक्ति हैं, जबकि कई लोग उनके प्रदर्शन के बारे में शिकायत करते हैं, साथ ही यह भी कहते हैं कि उनका वोट “तिवारी, या यहां तक कि भाजपा के लिए नहीं, बल्कि मोदीजी के लिए होगा”.
इनमें से कई मतदाताओं ने विधानसभा चुनावों में आप का समर्थन किया, जैसा कि पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी के प्रदर्शन से पता चलता है. दंगों से कुछ हफ्ते पहले हुए 2020 के विधानसभा चुनावों में पूर्वी दिल्ली के 10 विधानसभा क्षेत्रों में से, AAP ने सात जीते, जबकि भाजपा ने बाकी सीटें हासिल कीं.
आप की संगठनात्मक उपस्थिति से सहायता पाने वाला कन्हैया खेमा इस तरह के मतदान व्यवहार से उत्पन्न होने वाली चुनौती से भली-भांति परिचित है. दिनेश चौधरी, जो नगरपालिका वार्ड झारोदा के आप पार्षद गगन चौधरी के कार्यालय प्रभारी हैं, ने कहा कि चुनौती इस तथ्य से बढ़ गई है कि कई आप मतदाता, जो साक्षर नहीं हैं, पार्टी को उसके चुनाव चिन्ह — झाड़ू से पहचानते हैं.
दिनेश ने कहा, “प्रत्येक नुक्कड़ सभा या घर-घर जाकर, हम पर्चे बांट रहे हैं जिसमें स्पष्ट रूप से बताया गया है कि हाथ (कांग्रेस चिह्न) को दिया गया वोट झाड़ू को दिया गया वोट होगा. हम उनसे कह रहे हैं कि मतदान केंद्र में हमारे चुनाव चिन्ह को देखकर भ्रमित न हों.”
मुसलमानों के लिए विकल्प सरल दिखाई पड़ता है, समुदाय की भारी संख्या में आवाज़ें, आयु समूहों से परे, जवाहरलाल नेहरू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया के पक्ष में हैं, जिन्होंने बिहार के बेगुसराय जिले से केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह के खिलाफ 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन 4.2 लाख वोटों से हार गए थे.
जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास मटके वाली गली में, जिसके नीचे सीएए विरोधी प्रदर्शनों ने जड़ें जमा लीं, जिसके बाद दंगे भड़क उठे, युवा कपड़ा व्यापारी मोहम्मद अज़हर को लगता है कि इस सीट पर किसी पार्टी द्वारा मैदान में उतारे जाने के लिए कन्हैया सबसे योग्य उम्मीदवार हैं.
अज़हर ने कहा, “क्या कन्हैया मुसलमान है? हम उनका समर्थन कर रहे हैं क्योंकि वे एक विचारशील, तर्कसंगत व्यक्ति हैं जो महत्वपूर्ण मुद्दे उठाते हैं. बस उनके भाषण और इंटरव्यू को सुनिए. वो पढ़ा-लिखा है. यहां तक कि पढ़े-लिखे हिंदू भी कन्हैया को वोट देंगे. मैंने आज सुबह पास के पार्क में लोगों को उनके बारे में बात करते हुए सुना.”
जबकि कई लोगों को कन्हैया की शानदार वक्तृत्व कला आकर्षक लगती है, शमशुद्दीन जैसे कुछ लोग, जो अज़हर से कई साल बड़े हैं, का मानना है कि कांग्रेस को जिताकर “हिंदू-मुस्लिम सद्भाव में आई दरार” को ठीक किया जा सकता है.
शमशुद्दीन ने कहा, “मुसलमानों को राक्षस बताने वाले भाषणों से मैं बहुत निराश हूं. हमने अपनी पूरी ज़िंदगी इस देश में मेहनत करते हुए परिवारों का पालन-पोषण करते हुए बिताई है. यह हमारा भी देश है.”
बातचीत में, जो बात प्रमुखता से सामने आती है वो यह है कि दंगे होने के बाद से समुदाय में आम आदमी पार्टी के प्रति नाराज़गी है.
जाफराबाद से सटे चौहान बांगर में एक स्थानीय बेकरी में काम करने वाले उमर ने कहा, “वे (आप) दूर रहे, दंगों के दौरान मूकदर्शक की भूमिका निभाई. अगर वो अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन में नहीं हैं, तो इस क्षेत्र से AAP उम्मीदवार हार जाएगा.”
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जनसांख्यिकीय गणना
चौहान बांगर उन छह नागरिक वार्डों में से एक है, जहां 2022 के दिल्ली नगर निगम चुनावों में कांग्रेस द्वारा उतारे गए मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी. दरअसल, यहां कांग्रेस उम्मीदवार ने AAP उम्मीदवार को 15,000 से अधिक वोटों से हराया था, जो चुनाव में जीत का दूसरा सबसे बड़ा अंतर था. जीत का सबसे बड़ा अंतर मुस्लिम बहुल चांदनी महल वार्ड में था, जहां कांग्रेस ने आप को 17,000 से अधिक वोटों से हराया था.
दिल्ली के लगभग 30.5 प्रतिशत मुसलमान पूर्वी दिल्ली जिले में रहते हैं, जिनमें से अधिकांश इसी नाम के निर्वाचन क्षेत्र से मेल खाते हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, जिले में मुस्लिम आबादी 29.34 प्रतिशत है, जो मध्य दिल्ली से थोड़ी कम है, जहां समुदाय की आबादी 33.4 प्रतिशत है, लेकिन पूर्ण संख्या में (1.94 लाख) केंद्रीय पूर्वी (6.58 लाख) से नीचे है.
निर्वाचन क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में सड़कें गड्ढों से भरी हैं और कूड़ा-करकट से अटी पड़ी हैं, जो प्रशासनिक उपेक्षा को दर्शाता है. लोग — विशेष रूप से अनधिकृत कॉलोनियों में, जो उत्तर प्रदेश (विशेष रूप से जिसे पूर्वांचल इलाके के तौर पर जाना जाता है) और बिहार से प्रवासियों की आमद के कारण पूरे क्षेत्र में बस गए हैं — नल के गंदे पानी और नागरिक उदासीनता की शिकायत करते हैं.
जनसंख्या के विस्फोट के साथ — 1991 की जनगणना में 10.85 लाख जो 2011 में बढ़कर 22.42 लाख हो गई, जब आखिरी जनगणना की गई थी — जिले ने अपनी जनसांख्यिकी में भी एक बड़ा बदलाव देखा है.
जबकि ज़मीन के मालिक त्यागी, जिन्हें भूमिहार श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है, अतीत में इस क्षेत्र पर हावी थे, यह पूर्वांचली हैं जो राजनीतिक दलों के लिए सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे हैं.
तिवारी एक पूर्वांचली हैं, जबकि कांग्रेस कन्हैया के बिहारी वंश को भुनाने की उम्मीद कर रही है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सबसे लोकप्रिय विधायकों में से एक हैं संजीव झा, जो एक पूर्वांचली हैं, जो पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र के बुराड़ी विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं.
कन्हैया के मार्ग में बाधाएं
जबकि विधानसभा चुनाव झा के लिए बहुत आसान है, जिन्होंने लगातार तीन बार बड़े अंतर से सीट जीती है, वही संगठनात्मक मशीनरी जो उनके लिए काम करती है, उसे न केवल मोदी की लोकप्रियता के कारण, बल्कि कन्हैया के लिए एक आसान रास्ता सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण लग रहा है. साथ ही छात्र नेता का अतीत, खासकर उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला.
वरिष्ठ कांग्रेस नेता सचिन पायलट, जिन्हें उत्तरपूर्वी-दिल्ली सीट का पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है, ने पिछले हफ्ते एक इंटरव्यू में दिप्रिंट को बताया था कि एक “कठिन युवा” कन्हैया भाजपा से सीट छीन लेंगे.
पायलट ने कहा, “वो भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) के प्रभारी रहे हैं. वे पार्टी के साथ काम करते रहे हैं. बेशक उन्होंने चुनाव किसी अन्य राज्य में लड़ा हो, किसी अन्य पार्टी से, लेकिन वो पुरानी बात है. पिछले कुछ साल में उन्होंने (कांग्रेस के लिए) समर्पित रूप से काम किया है. वे कई मुद्दों पर मुखर रहे हैं और बहुत से युवा उनकी बात सुनते हैं. भाजपा ने हमेशा उन पर निशाना साधा है, लेकिन असल बात यह है कि वे एक मजबूत वक्ता हैं, वे सख्त युवा व्यक्ति हैं. गठबंधन के साथ, समर्थन आधार और हमारे द्वारा की गई कड़ी मेहनत के बूते, हमें सीट जीतेंगे.”
2020 में .री बार सत्ता हासिल करने के तुरंत बाद, यह केजरीवाल सरकार ही थी जिसने 2016 में जेएनयू में एक कार्यक्रम में कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाने के लिए कन्हैया और दो अन्य के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए दिल्ली पुलिस को मंजूरी दी थी. तब सीपीआई ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा था कि वे मीडिया ट्रायल के बजाय त्वरित न्यायिक सुनवाई की उम्मीद कर रहे हैं.
इसके अलावा, आप कार्यकर्ताओं के एक वर्ग के बीच यह धारणा है कि चुनाव को स्थानीय बनाने के बजाय, कन्हैया अपने भाषणों में मोदी पर निशाना साध कर उनका काम मुश्किल कर रहे हैं. अपने हालिया भाषणों में से एक में कन्हैया ने मोदी की शास्त्री पार्क रैली का ज़िक्र करते हुए कहा, “मैं सिर्फ एक सांसद उम्मीदवार हूं और पीएम को यहां आना था. मुझे अपना आशीर्वाद दीजिए, मैं पूरी सरकार को यमुना के इस पार ले आऊंगा.”
अब, AAP कार्यकर्ताओं को भाजपा द्वारा कन्हैया को “राष्ट्र-विरोधी” करार दिए जाने से बचाना पड़ रहा है.
कन्हैया के लिए प्रचार कर रहे एक आप कार्यकर्ता ने कहा, “हम लोगों को बता रहे हैं कि ये उनके खिलाफ महज़ आरोप थे और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट दे दी है.” जैसी स्थिति है, शीर्ष अदालत तो क्या, निचली अदालत में भी मामला किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाया है.
“हमारे पास क्या विकल्प है?” बुराड़ी के संत नगर बाज़ार के एक सुनार अजेश कुमार ने कहा, “कहीं पे तो वोट खराब करना ही है.” इसलिए, हम मोदी को वोट देना ज्यादा पसंद करेंगे. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस महंगाई से निपट सकती है और जादुई तरीके से नौकरियां पैदा कर सकती है. वो (मुसलमान) कहते हैं हम मोदी वाले हैं. तो ऐसा ही होगा.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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