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Thursday, 2 May, 2024
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‘एक जैसे लेकिन लिटिल डिफरेंट’- कैसे राहुल से अलग है प्रियंका गांधी की चुनाव प्रचार करने की शैली

पिछले कुछ हफ्तों में प्रियंका की चुनाव प्रचार शैली पर सभी की निगाहें रहीं. भले ही उनकी शैली काफी हद तक राहुल गांधी जैसी है लेकिन कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने दोनों में सूक्ष्म अंतर का उल्लेख किया.

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नई दिल्ली: कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस चुनावी सीजन के दौरान दर्जनों भाषण दिए, असम और केरल में कई रैलियां और रोड शो किए लेकिन पिछले सप्ताह कोरोनावायरस के संपर्क में आने के कारण उन्हें अपने अभियान को रोकना पड़ा.

हालांकि विधानसभा चुनाव प्रचार में इस बार प्रियंका उत्तर प्रदेश से बाहर निकल कर पहली बार असम और केरल में गयीं.

पांच राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए चल रहे विधानसभा चुनावों में केरल और असम में 6 अप्रैल को मतदान संपन्न हो गया.

पिछले कुछ हफ्तों में, प्रियंका की चुनाव प्रचार शैली पर सभी की निगाहें रहीं. भले ही प्रियंका की शैली काफी हद तक उनके भाई राहुल गांधी के समान दिखाई देती है, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने उनके दृष्टिकोण में सूक्ष्म अंतर का उल्लेख किया.


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कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वह आसानी से कनेक्ट कर लेती हैं

कड़क साड़ी और कुर्ता पहने, मुस्कुराते हुए वह लोगों के घरों में भोजन करने जाती हैं या असम में चाय के बागानों में पत्तियां तोड़ने के लिए. फिर चाय बागानों के मजदूरों के साथ हंसी भरे माहौल में ये भी कहती हैं- ‘मुझे बहुत मज़ा आया, लेकिन मुझे पता है कि यह सब रोज़ करना आपके लिए कितना मुश्किल है.’

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अपने भाई की तरह, प्रियंका भी स्थानीय निवासियों के साथ घुलमिल जाती हैं- फिर चाहे वह असम में पारंपरिक लोक नृत्य प्रदर्शन में शामिल होना हो या केरल में ईस्टर लंच के दौरान राहुल गांधी को वीडियो कॉल कर भोजन कर रहे अनाथालय के बच्चों से बात करना हो.

केरल और असम में कांग्रेस नेताओं का कहना है कि आम लोगों से जुड़ना प्रियंका के लिए बड़ा स्वाभाविक है.

कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता और सिलचर की पूर्व सांसद सुष्मिता देव ने दिप्रिंट से कहा, ‘वह काफी अच्छी तरह कनेक्ट करती हैं. वह एक बड़ी रैली को भी अच्छे से संबोधित कर लेती हैं, वहीं सैंकड़ों चाय बागान श्रमिकों से भी सहजता से बात कर लेती हैं. वह लोगों से और यहां तक कि बच्चों के साथ भी आसानी से संवाद कर सकती है. वह बहुमुखी और बहुत सहज हैं.’

केरल में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने कहा कि प्रियंका के चुनाव प्रचार ने केरल में गति पैदा कर दी है, जो पार्टी को ‘बड़े स्तर’ पर मदद करेगा.

चेन्निथला ने कहा, ‘राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के कार्यक्रमों ने लाखों लोगों को आकर्षित किया. पहली बार चुनाव प्रचार के लिए केरल आईं प्रियंका चुनाव प्रचार के दौरान बहुत जीवंत और सक्रिय थीं. चूंकि वह पहली बार आई थी, इसलिए लोगों में भी काफी उत्साह था.’

प्रियंका ने हालांकि अपने भाई के नक्शेकदम पर चलते हुए गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर और केरल के अटुकल मंदिर का भी दौरा किया, जिसे कई लोग कांग्रेस के ‘नरम हिंदुत्व’ की ओर बढ़ते कदमों की तरह देखते है.


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‘बस फोटो-ऑप्स’

भाजपा नेताओं ने इसे इन भाई-बहनों का ‘फोटो ऑप्स’ करार दिया. दिप्रिंट से बात करते हुए, बीजेपी नेता और सिलचर के सांसद राजदीप रॉय ने प्रियंका की चाय बागानों की यात्रा पर कहा कि यह पत्तियों को तोड़ने का सही समय नहीं था.

उन्होंने कहा, ‘यह एक वर्ष में दो बार किया जाता है लेकिन प्रचार से ठीक पहले ऐसा करना दिखाता है कि वे अपने देश में सिर्फ आगंतुक हैं. असम के लोग इस प्रकार के फोटो ऑप्स से बहुत नाराज हैं. एक दिन के लिए आना और एक गरीब व्यक्ति को गले लगाना- ऐसा कांग्रेस में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के दिनों से चलता आ रहा है. लोगों को इस नौटंकी का भान है वे इन्हें गांधी परिवार से जोड़ते हैं.’

लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के संजय कुमार का विचार थोड़ा अलग है.

कुमार ने कहा, ‘गांधी परिवार के चारों ओर एक आभा पैदा की गई है कि ये बड़े लोग हैं, वे एक बहुत बड़े परिवार से हैं, अपने मुंह में चांदी के चम्मच के साथ पैदा हुए और पीढ़ियों से सत्ता संभाल रहे हैं. आप इस छवि से कैसे बाहर आ सकते हैं? वे आम लोगों के साथ मिल कर यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे उनमें से एक हैं.’


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प्रियंका के भाषण

दोनों राज्यों में अपने भाषणों में, प्रियंका ने कई क्षेत्रीय तत्वों को उजागर कर स्थानीय भावनाओं को साधने की कोशिश की.

असम में, उन्होंने ‘जोइ आई एखोम ‘ (मां असम की महिमा) के तीन मंत्रों के साथ गमोसा पहनकर अपने संबोधन की शुरुआत की. और, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृह मंत्री अमित शाह की तरह, उन्होंने श्रीमंत शंकर देव जैसे स्थानीय नायकों का भी उल्लेख किया और भूपेन हजारिका के ‘अमि अंखोमिया नोहि दुखिया ‘ (हम आसामी हैं, गरीब नहीं हैं) का हवाला दिया.

राज्य में उनके भाषण असम समझौते और सीएए आंदोलन के इर्द-गिर्द रहे, साथ ही चाय मजदूरों के लिए 365 रुपए प्रति दिन की मजदूरी और पांच लाख सरकारी नौकरियों के वादों का भी उन्होंने उल्लेख किया, जो कांग्रेस के घोषणापत्र का हिस्सा हैं.

केरल में, जब पीएम मोदी ने बाइबिल का हवाला दिया, तो उन्होंने जवाब दिया: ‘मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि केरल में चुनाव हैं… क्योंकि मैंने उन बहनों के बारे में एक भी शब्द नहीं सुना, जिन्हें झांसी में परेशान किया गया था.’

प्रियंका ने दोनों राज्यों में महिला मतदाताओं से भी अपील की. असम में एक रैली के दौरान, उन्होंने बड़े पैमाने पर महिलाओं से कहा: ‘आप मेरी बहनें हैं. इसलिए, कृपया अपने भविष्य के लिए सावधानीपूर्वक निर्णय लें.’

केरल में एक एलडीएफ नेता द्वारा आपत्तिजनक टिप्पणी पर उन्होंने मंच से कहा- ‘आप महिलाओं को नहीं बता सकते कि क्या पहनना है और किस से प्रेम करना है’.


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राहुल से कैसे थोड़ी अलग हैं प्रियंका गांधी

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रियंका और राहुल गांधी की चुनाव प्रचार शैली काफी हद तक समान है, लेकिन दृष्टिकोण में कुछ अंतर अभी भी मौजूद हैं.

जहां राहुल अपने भाषणों में कुछ ज्यादा ही आक्रामक नज़र आते हैं, वहीं प्रियंका एक नरम रवैये और कटाक्षों का इस्तेमाल करती हैं. प्रियंका आम लोगों के बीच भी ज्यादा देखी जाती हैं.

सीएसडीएस के संजय कुमार कहते हैं, ‘वे दोनों लगभग एक जैसी ही तकनीक का उपयोग करते हैं- वे आम लोगों में से एक दिखना चाहते हैं. हालांकि, प्रियंका गांधी यह राहुल गांधी की तुलना में ज्यादा करती हैं.’

24 अकबर रोड एंड सोनिया- ए बायोग्राफी  किताब के लेखक और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं, ‘प्रियंका काफी मिलनसार हैं. वह अवसर के हिसाब से अच्छे कपड़े पहनती हैं, तुरंत लोगों से रिश्ते बना लेती हैं. अगर पार्टी के भीतर पूछा जाए, तो मुझे लगता है कि प्रियंका के लिए अधिक कांग्रेसी लोग आगे आएंगे.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन यह चुनावी सफलता है जो सब कुछ परिभाषित करती है, आप एक करिश्माई व्यक्तित्व के साथ एक बहुत प्रभावी प्रचारक हो सकते हैं लेकिन अगर यह चुनावी वोटों में तब्दील नहीं होता है तो आपको असफल माना जाता है.’

‘इन चुनावों के नतीजे प्रियंका गांधी के सामने एक चुनौती बनने जा रहे हैं. उन्हें कांग्रेस को जीत दिलाने की क्षमता रखने वाले व्यक्ति के रूप में देखा गया. लोगों ने इंदिरा गांधी के साथ समानता देखी, उनकी वक्तृत्व शैली उनके भाई से बहुत अलग है. वो सभी पैमानों पर खरी उतरती हैं.’

उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के लिए, केरल में अगर यूडीएफ गठबंधन वामपंथी सरकार से सत्ता नहीं छीन पाई तो ये उनकी विफलता के रूप में देखा जाएगा क्योंकि राजनीति में कोई सिल्वर मेडल नहीं होता है.’

वहीं संजय कुमार के अनुसार, राहुल अब सालों से पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं लेकिन प्रियंका बाद में शामिल हुईं, इसलिए नयेपन का एक निश्चित तत्व है जो लोगों को आकर्षित करता है.

उन्होंने कहा, ‘एक और कारक है उनका महिला होना, वह मृदुभाषी हैं, सभी तरह के लोगों के साथ आसानी से घुल-मिल जाती हैं. यदि आप एक महिला हैं तो लोग आपके साथ अधिक आक्रामक नहीं होंगे. इस प्रकार, यह जनता के साथ एक बेहतर संबंध स्थापित करने में मदद करता है …’

गांधी परिवार के एक करीबी सहयोगी और राहुल गांधी के एक पूर्व सहयोगी ने, हालांकि, भाई-बहनों के अभियान शैली को ‘नार्थ पोल और साउथ पोल’ के रूप में बताया.

राहुल के एक पूर्व सहयोगी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘यहां तक कि असम और केरल के उम्मीदवारों ने भी प्रियंका गांधी के अधिक कार्यक्रमों के लिए पूछना शुरू कर दिया. यह 2007-08 से शुरू हुआ है, वह रायबरेली में भी लोगों के साथ अच्छी तरह से जुड़ती रही हैं. वह स्वाभाविक नेता हैं लेकिन राहुल 2004 से असफल साबित हो रहे हैं.’

‘उदाहरण के लिए, ईस्टर पर राहुल ने केरल में एक मंदिर का दौरा किया, जिसमें एक महत्वपूर्ण ईसाई आबादी है. राजनीति में आपको सब कुछ ध्यान में रखना होगा और आप एक कमजोर विपक्ष से नहीं लड़ रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि यूपी के शुरुआती दिनों के मुकाबले प्रियंका की शैली में बहुत बदलाव नहीं आया है. ‘अगर वह एक महिला से मिलती है, तो वह इस बारे में बात करेंगी कि वह अपने परिवार के लिए खाना कैसे बनाती हैं. यह एक तालमेल स्थापित करने का उनका तरीका है. यदि आप अच्छी तरह से कनेक्ट नहीं हो सकते हैं तो आप राजनेता नहीं हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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