लखनऊ: यह कहते हुए कि सपा को किसी की सलाह की जरूरत नहीं है, समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने मंगलवार को अपनी सहयोगी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के इस सुझाव को खारिज कर दिया कि उन्हें अगले लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नेता मायावती के साथ गठबंधन के लिए तैयार रहना चाहिए.
अखिलेश ने मंगलवार को अपनी पार्टी की सदस्यता अभियान के शुभारंभ पर सुभासपा के साथ उभरे मतभेदों के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘आजकल की राजनीति वह नहीं है जो आपको दिखाई देती है. कई बार, राजनीति पर्दे के पीछे से भी संचालित होती है.’
साथ ही, उन्होंने बसपा के साथ किसी भी संभावित गठबंधन पर टिप्पणी करने से परहेज करते हुए कहा, ‘(ऐसा) कुछ भी हानिकारक हो सकता है … भाजपा ने इस बात (राष्ट्रपति चुनाव) को अपने चुनाव अभियान में शामिल किया था कि बसपा का कोई व्यक्ति राष्ट्रपति बनेगा. अब, तो राष्ट्रपति चुनाव भी समाप्त हो गया है.’
दिप्रिंट द्वारा सुभासपा प्रमुख ओ.पी. राजभर के असंतुष्ट होने के बारे में सवाल पूछे जाने पर अखिलेश ने चुटकी ली कि वह किसी के नाराज होने के बारे में कुछ नहीं कर सकते.
राजभर, जिनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में सपा के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन का हिस्सा है, ने 29 जून को कहा था कि अखिलेश अपने पिता, पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की कृपा से ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे और उनकी पार्टी ने 2014 के बाद से उनके नेतृत्व में कोई चुनाव नहीं जीता है.
सुभासपा प्रमुख ने आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव के लिए प्रचार नहीं करने को लेकर भी अखिलेश की आलोचना की है.
दिप्रिंट के साथ बात करते हुए राजभर ने कहा कि उन्होंने अपने लगभग 300 कार्यकर्ताओं के साथ आजमगढ़ में खूब प्रचार किया लेकिन सपा की सेना बिना किसी सेनापति के लड़ रही थी.
उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, ‘मैं वहां 12 दिन रहा… हम लड़ते रहे लेकिन हमारा गठबंधन सहयोगी बिना किसी सेनापति के लड़ रहा था. ऐसी लड़ाई भला कौन जीत पाएगा?’
उन्होंने आगे कहा, ‘अगर वह हमारे सुझावों को सुन हीं नहीं रहे हैं, तो यह उनके ऊपर निर्भर है. हमने जमीन पर कुछ चीज़ें महसूस की और कहा कि यह (सपा-बसपा गठबंधन) होना चाहिए. जब दोनों दल (सपा-बसपा) एक ही तरह की बात कह रहे हैं तो आप (सपा-बसपा) पिछड़ों और दलितों को गुमराह क्यों कर रहे हैं?’
यह पूछे जाने पर कि क्या अखिलेश और मायावती 2019 के आम चुनाव में अनुकूल परिणाम देने में विफल रहने के बाद फिर से एक साथ आ सकते हैं, राजभर ने कहा कि राजनीति में कुछ भी संभव है. उनका कहना था, ‘2019 में, जब सपा-बसपा एक साथ आए, तो किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि मुलायम सिंह और मायावती की पार्टियां आपस में हाथ मिला सकती हैं.’
उन्होंने कहा, ‘वक्त और हालात लोगों को ऐसे फैसले लेने के लिए मजबूर कर देते हैं. जब उन्होंने (अखिलेश) बसपा के साथ-साथ कांग्रेस के साथ भी समझौता किया, तो क्या उस समय पीछे से कोई काम कर रहा था?’
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नाराज हैं लेकिन अलग नहीं
हालांकि, सपा और सुभासपा दोनों में से किसी को भी गठबंधन खत्म करने की जल्दी नहीं हैं. हालांकि अखिलेश ने इस साझेदारी के भविष्य के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की, राजभर ने माना कि उनकी पार्टी सपा के साथ ही अगला आम चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है.
राजभर ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम सपा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘यह अखिलेश पर निर्भर करता है. जब तक वह चाहते हैं तब तक यह गठबंधन जारी रहेगा यदि वह हमें नहीं चाहते हैं, तो हम गठबंधन में नहीं रहेंगे. हमने अखिलेश को अपना नेता समझकर, उन्हें अपना सेनापति मानकर ही उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए लड़ाई लड़ी थी.’
इस बीच, अखिलेश ने आजमगढ़ और रामपुर में पार्टी की हार के पीछे गड़बड़ी किए जाने का दावा किया. उनका कहना था , ‘एक बार, हम भी मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के क्षेत्र में चुनाव जीते थे. यह कैसे हुआ यह महत्वपूर्ण नहीं है. प्रशासन की शक्ति, डीएम को दी गई खुली छूट, प्रधानों को किए गये फोन कॉल, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्यों को किए गए फोन कॉल. क्या आप नहीं जानते कि उन्होंने (भाजपा ने ) एमएलसी का चुनाव कैसे जीता है?’
सपा प्रमुख ने एक बार फिर से कहा कि उनकी पार्टी के नेताओं ने उन्हें फीडबैक दिया था कि उपचुनाव में प्रचार अभियान के लिए उनकी मौजूदगी की कोई आवश्यकता नहीं है. उन्होने कहा, ‘हमें अपने संगठन और जनता पर पूरा भरोसा था, लेकिन हमें यह नहीं पता था कि अधिकारी हमारे मतदाताओं को मतदान के लिए बाहर नहीं आने देंगे … कि वे उन्हें प्रलोभन देंगे.. पैसे बांटे जाएंगे, शराब से भरे ट्रक भेजे जाएंगे और अगर वे वोट देते हैं, तो कुछ हो जाएगा.’
उन्होंने दावा किया, ‘अगर आज हम कहते हैं कि हमारे वोट कट गए, तो चुनाव आयोग कहेगा कि यह हमारी जिम्मेदारी थी. लेकिन सपा के मतदाताओं को खास तौर पर चिह्नित किया गया था और बड़े पैमाने पर उनके वोट काटे गए थे. भाजपा द्वारा इन संस्थाओं (एजेंसियों) का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है.’
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