गुवाहाटी: असम में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में पहुंचने के पीछे कई कारण माने जाते हैं—दिल्ली में नरेंद्र मोदी के सत्ता आने के साथ बदलाव की देशव्यापी बयार, एक राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में अमित शाह की कुशाग्रता, एक महत्वाकांक्षी कांग्रेसी हिमंत बिस्वा सरमा के रूप में उनकी खोज और बदलावों का मुकाबला करने में कांग्रेस की अक्षमता. लेकिन, ये सारे पहलू मिलकर भी पूरी कहानी बयां नहीं करते हैं.
असम में हिंदुत्व के प्रसार का बीज तो बहुत पहले जड़ें जमाने लगा था—शाह का जन्म होने से 20 साल पहले और सरमा के पैदा होने से करीब 25 साल पहले ही इसकी शुरुआत हो गई थी. यह तो 1944 की बात है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक राम सिंह ठाकुर ने असम में कदम रखा था. दो साल बाद महाराष्ट्र से प्रचारकों का एक और जत्था वहां पहुंचा. इसके बाद से विभिन्न राज्यों से और जत्थे समय-समय पर पहुंचते रहे.
अगले सात दशक जातीय, भाषाई तौर पर विविधता पूर्ण आबादी के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा को प्रचारित करने के अविश्वसनीय, कठिन प्रयासों की एक लंबी कहानी के रूप में सामने हैं.
गुवाहाटी से लगभग 35 किमी पूर्व में कोलुंगपुर स्थित घास-फूस की छत वाला 10 कमरों का स्कूल भवन शंकरदेवा शिशु निकेतन बुनियादी स्तर पर आरएसएस की कड़ी मेहनत की गवाही देता है. 15वीं शताब्दी के सुधारक संत श्रीमंत शंकरदेवा के नाम पर इसका नामकरण किया गया है, जो असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक बेहद प्रतिष्ठित व्यक्ति रहे हैं.
स्कूल की स्थापना 1994 में आरएसएस से जुड़ी विद्या भारती ने की थी. विभिन्न कक्षाओं के बाहर लगी तख्तियां विविध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को अपनाने का प्रयास नजर आती हैं. श्रीकृष्ण खंड, कक्षा 1; हनुमान खंड, कक्षा 2; कनकलता खंड (एक असमिया स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर है, जिनकी ब्रिटिश पुलिस ने राष्ट्रीय ध्वज लेकर जुलूस का नेतृत्व करते समय गोली मारकर हत्या कर दी थी) कक्षा 5; और, ऐसे के तमाम अन्य नाम की बीच बिष्णु प्रसाद राभा खंड (असमिया सांस्कृतिक के एक आइकन) कक्षा 7.
स्कूल के प्रिंसिपल रिंकू मोनीदास बताते हैं कि उनके 182 छात्र कार्बी, बोडो और बंगाली हिंदू आदि सभी समुदायों से आते हैं. यहां 14 शिक्षक हैं जिनका मासिक वेतन 2,200 रुपये से 2,400 रुपये है.
राजनीति विज्ञान में स्नातक कर रही छात्रा और वकालत सीखने की आकांक्षी सिम्पी दास का कहना है कि उनके पड़ोस के लोग रामायण और महाभारत के बारे में नहीं जानते थे, जिसे उसने पूरी शिद्दत से इस स्कूल में पढ़ा-जाना है.
गायत्री मंत्र और सरस्वती वंदना यहां प्रार्थना का हिस्सा है जो वंदे मातरम् गाने के साथ पूरी होती है. शनिवार को वे जन गण मन गाते हैं. 15 और 5 दिनों की आरएसएस की दो कार्यशालाओं में हिस्सा ले चुकी सिम्पी बताती है कि यहां से कुछ ही किलोमीटर दूर एक अन्य शंकर देवा स्कूल में कई मुस्लिम छात्र भी भर्ती हुए हैं.
विद्या भारती पूरे असम में 115 ऐसे मिडिल स्कूल चलाती है. यह 121 प्राथमिक और 341 माध्यमिक स्कूलों के अलावा एक सीनियर सेकेंडरी संस्थान भी चलाती है. इनमें 1.7 लाख छात्र पंजीकृत हैं. फिर 540 एकल स्कूल या एकल शिक्षक वाले स्कूल भी है.
आरएसएस से जुड़े अन्य सहयोगी संगठन जैसे वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) भी यहां पर दशकों से जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं.
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स्कूल, सामूहिक विवाह और चिकित्सा सहायता
विहिप की तरफ से भी 3,200 एकल स्कूलों के अलावा दर्जनों स्कूल और हॉस्टल संचालित किए जा रहे हैं. 1975 में उत्तर प्रदेश से असम पहुंचे विहिप के एक पदाधिकारी रामानंद शर्मा कहते हैं, जब वह पहली बार यहां पहुंचे तो लोगों की सिर्फ दो श्रेणियां थीं—’ईसाई और गैर-ईसाई’. लेकिन अब तस्वीर बदल गई है.
विहिप ने छात्रों के लिए अपना पहला हॉस्टल 1970 के दशक में दीमा हसाओ जिले के हाफलोंग में खोला था. अगले चार दशकों में इसने दिमासा जनजाति बहुल इस जिले में चार और स्कूल और हॉस्टल शुरू किए, और राज्य के अन्य हिस्सों में भी कई स्कूल शुरू किए.
असम में विहिप के क्षेत्रीय संयोजक दिनेश तिवारी ने दिप्रिंट को बताया कि 1985 के बाद विहिप ने ‘बांसवाड़ा परियोजना’ शुरू की, जिसके तहत पूर्वोत्तर के छात्रों को राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित इसके आवासीय स्कूल में भेजा जाता है.
सबसे पहले तो छात्रों को विहिप और आरएसएस के अन्य सहयोगी संगठनों द्वारा संचालित गांव के स्कूलों में पढ़ाया जाता है और फिर उनमें से कई को राज्य से बाहर भेजे जाने से पहले जिला मुख्यालय स्थित आवासीय स्कूलों में पढ़ाया जाता है. तिवारी बताते हैं कि असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के करीब 5,000 बच्चों को राजस्थान, यूपी और अन्य राज्यों के स्कूलों में भेजा गया है. उनमें से कई अपने स्कूल खोलने के लिए घर वापस लौटे हैं.
गुवाहाटी स्थित शोध संस्थान ओकेडी इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल चेंज एंड डेवलपमेंट के पूर्व निदेशक प्रोफेसर भूपेन सरमाह ने कहा, ‘हर नुक्कड़-चौराहे पर स्कूलों का यह विशाल नेटवर्क आरएसएस के लिए अपनी विचारधारा फैलाने और भाजपा की चुनावी राजनीति के लिए जगह बनाने में मददगार बना है. यहां पर आरएसएस की पैठ वास्तव में असम आंदोलन के दौरान बढ़ी थी.’
उन्होंने आगे कहा, ‘असम में मुसलमानों को लेकर अवैध आव्रजन का मुद्दा बांग्लादेशियों जैसा ही है. ऐसे में असमिया सांस्कृतिक पहचान बचाने के नाम पर मुसलमानों को एक खतरे के तौर पर प्रोजेक्ट करना आरएसएस के लिए मुश्किल नहीं था.’
वहीं, दिल्ली स्थित थिंक टैंक नॉर्थ ईस्ट सेंटर के एक सदस्य ने असम आंदोलन (1979-85) के दौरान विदेशियों के खिलाफ अभियान में आरएसएस की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की तरफ से सक्रिय भूमिका निभाए जाने की पुष्टि की. एबीवीपी ने देशभर में आंदोलन की अगुवाई कर रहे ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के नेताओं के लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया था.
विहिप के दिनेश तिवारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारा भाजपा या राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. इस तरह से मीडिया समाज के प्रति संघ के योगदान को लेकर गलतबयानी करता है. हां, अगर कुछ मुसलमान किसी की जमीन कब्जा लेते हैं तो हम जरूर हस्तक्षेप करते हैं. अब अगर कोई मुस्लिम किसी की पत्नी या बेटी का अपहरण कर ले और प्रशासन चुप्पी साधे रहे तो हमें उन्हें बताना ही होगा कि संविधान के दायरे में रहकर क्या किया जा सकता है.’
विहिप की युवा शाखा, बजरंग दल का भी असम में व्यापक नेटवर्क है, जिसकी समितियों में शामिल युवाओं की संख्या करीब 8,000 है.
वनवासी कल्याण आश्रम आदिवासी क्षेत्रों में काम करने वाला आरएसएस से जुड़ा एक अन्य संगठन है जो 1978 से असम में सक्रिय है. यह दीमा हसाओ, सिलचर, हैलाकांडी और अन्य स्थानों में लड़कों और लड़कियों के 26 हॉस्टल चलाता है. यही नहीं बाल संस्कार केंद्र भी संचालित करता है, जो खेल, प्रार्थना और भजन आदि के जरिये बच्चों को स्कूलों के लिए ‘तैयार’ करते हैं, और उन्हें सिखाते हैं कि ‘अच्छा इंसान कैसे बना जाता है.’
यह करीब तीन दशकों से असम के चाय बागानों में सक्रिय है. कल्याण आश्रम के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि कैसे वे आदिवासियों के बीच सामूहिक विवाह का आयोजन करते हैं. उन्होंने कहा, ‘चाय बागानों में यहां एक अनोखा प्रचलन है. कुछ पुरुष और महिलाएं साथ रहते हैं और यहां तक कि उनके बच्चे भी होते हैं लेकिन उन्हें सामाजिक स्वीकार्यता नहीं मिलती है. हम उनके लिए सामूहिक विवाह का आयोजन करते हैं और इनमें से प्रत्येक जोड़े को 25,000 रुपये तक का घरेलू सामान आदि मुहैया कराते हैं.’
आरएसएस का एक अन्य सहयोगी संगठन सेवा भारती 1998 से असम में स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहा है. इसके तहत 3,500 गांवों में संगठन द्वारा प्रशिक्षित ‘आरोग्य मित्र’ या स्वास्थ्य पेशेवर हैं.
सेवा भारती ने पिछले वर्ष फरवरी-मार्च में कोविड-19 की ‘रोकथाम और उपचार’ के लिए एक लाख लोगों के बीच होम्योपैथी दवा आर्सेनिक एल्बम बांटी थी. 1998 में असम में काम करने के लिए हुगली में लेक्चरर की नौकरी छोड़कर आए सेवा भारती के एक पदाधिकारी डॉ. अरुण कुमार बनर्जी ने कहा, ‘हमने जिन लोगों को यह दवा दी थी, उनमें से 98 फीसदी कोरोना की चपेट में नहीं आए.’
यह संगठन असम में धन्वंतरि सेवा यात्रा भी आयोजित करता है, जिसके तहत लोगों को देशभर के डॉक्टरों की सेवाएं अपने घर पर ही मिल पाती हैं.
आरएसएस की साख
असम के किसी भी गांव का दौरा करें तो अन्य तमाम स्वरूपों में भी आरएसएस की मौजूदगी साफ नजर आएगी, जैसे योग केंद्र और सिलाई व बांस के फर्नीचर बनाने कौशल विकास कार्यक्रम चलाना, 4-14 साल के बच्चों और किशोर लड़कियों के लिए ‘चरित्र-निर्माण’ कक्षाएं आयोजित करना, और घरों में पेड़-पौधे लगाने आदि में भी.
अमित शाह ने 2014 में जब भाजपा की बागडोर संभाली और पूर्व की तरफ विस्तार की संभावनाएं खंगालनी शुरू कीं तो बस उन्हें इतना ही करना था कि भाजपा को यहां आरएसएस की तरफ से दशकों में कमाई गई साख के वास्तविक राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में प्रोजेक्ट करें.
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