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Saturday, 11 October, 2025
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पंजाब में सत्ता की राह खेतों से होकर जाती है — 2027 में अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी में बीजेपी

चुनावों में अकेले उतरने की तैयारी में बीजेपी तीन कृषि कानूनों से नाराज़ किसानों का भरोसा वापस जीतने और पंजाब में अपने पारंपरिक शहरी गढ़ों से बाहर पैठ बनाने में जुटी है.

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चंडीगढ़: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की पंजाब इकाई ने मंगलवार को भगवंत मान के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ हालिया बाढ़ से निपटने में “शासन, तैयारी और जवाबदेही की भारी नाकामी” को लेकर एक “चार्जशीट” दाखिल की.

यह अनोखी “चार्जशीट” कोई कानूनी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि पार्टी की व्यापक “ग्रामीण संपर्क” रणनीति का हिस्सा है जिसके ज़रिए वह उन इलाकों में अपनी राजनीतिक पकड़ बढ़ाना चाहती है, जहां उसका लगभग कोई आधार नहीं है या विरोध का माहौल है.

शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और बीजेपी 2027 के विधानसभा चुनाव में साथ आएंगे या नहीं, इस पर स्थिति साफ नहीं है. ऐसे में बीजेपी ने अपनी चुनावी रणनीति इस मानकर बनानी शुरू कर दी है कि वह अकेले मैदान में उतरेगी. पिछले कुछ महीनों में पार्टी की राज्य इकाई ने अपना फोकस पंजाब के गांवों पर रखा है जिन पर पहले उसके सहयोगी अकाली दल की पकड़ थी.

10 पन्नों की इस कथित “चार्जशीट” को जारी करते हुए राज्य के कार्यकारी अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने आम आदमी पार्टी (आप) सरकार पर तीखा हमला बोला. उन्होंने आरोप लगाया कि बार-बार चेतावनियों, विशेषज्ञों की रिपोर्ट और संसाधनों के बावजूद पंजाब सरकार अपने लोगों की सुरक्षा करने और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने में बुरी तरह नाकाम रही.

शर्मा ने कहा कि 2023 की बाढ़ से सबक नहीं लिया गया.

उन्होंने कहा, स“कोई जांच पूरी नहीं हुई और अहम सिफारिशों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया. मौसम विभाग की शुरुआती चेतावनियों के बावजूद AAP सरकार की प्रतिक्रिया सक्रिय होने के बजाय सिर्फ प्रतिक्रियात्मक रही. मुख्यमंत्री भगवंत मान उस समय राज्य के बाहर दौरे पर थे, जब पंजाब मुश्किल में डूबा हुआ था.”

पिछले महीने राज्य बीजेपी अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने सरकार पर आरोप लगाया था कि मान और उनके अधिकारी केंद्र के 12,000 करोड़ रुपये के राहत फंड को लेकर लोगों से झूठ बोल रहे हैं. राज्य के वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने केंद्र के दावे को ख़ारिज करते हुए कहा था कि ऐसा कोई फंड नहीं है, जबकि मुख्य सचिव के.ए.पी. सिन्हा ने कहा था कि ये रकम सिर्फ बैंक एंट्री के रूप में मौजूद है.

पिछले महीने बाढ़ पर चर्चा के लिए बुलाए गए विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान बीजेपी ने चंडीगढ़ स्थित अपने दफ़्तर में समानांतर सत्र किया और आपदा के लिए तैयार न होने पर सरकार को पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराया.

डीएवी कॉलेज सेक्टर 10, चंडीगढ़ के राजनीति विज्ञान विभाग की डॉ. कंवलप्रीत कौर ने कहा, “बीजेपी बाढ़ से सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाकों में अपनी मौजूदगी दिखाने की कोशिश कर रही है. यह किसानों से रिश्ते सुधारने की उसकी व्यापक कोशिश का हिस्सा है.”

उन्होंने आगे कहा, “दिल्ली-सिंघु बॉर्डर आंदोलन के दौरान पंजाब के किसानों के साथ बीजेपी का रिश्ता बेहद बिगड़ गया था. अब तीन साल बाद पार्टी उस नुकसान की भरपाई करने की कोशिश कर रही है.”

ग्रामीण चुनौती से सीधा मुकाबला

बीजेपी नेताओं का कहना है कि पार्टी ने पंजाब की ग्रामीण चुनौती से सीधे निपटने का फैसला किया है.

बीजेपी प्रवक्ता विनीत जोशी ने दिप्रिंट से कहा, “बीजेपी की शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में पहले से ही एक मज़बूत पकड़ है. इन इलाकों को और मज़बूत करने के साथ-साथ हम अब गांवों में काम कर रहे हैं. यह सिर्फ बातों तक सीमित नहीं है — हमारे नेता बाढ़ के दौरान ज़मीन पर उतरकर मदद कर रहे थे. मैं खुद उन इलाकों में गया हूं जहां गांववाले चेक डैम बना रहे थे.”

इस साल मई में पार्टी ने गांवों में छह महीने लंबा एक अभियान शुरू किया, “बीजेपी दे सेवादार आ गए तुहाडे द्वार” (बीजेपी के कार्यकर्ता आपके दरवाज़े पर आ गए हैं). इसके तहत गांवों में विशेष कैंप लगाकर केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों का पंजीकरण किया गया.

अभियान के तहत पार्टी का लक्ष्य 50 विधानसभा क्षेत्रों को कवर करने और 1.57 लाख लोगों तक पहुंचने का था, जो केंद्र की योजनाओं — जैसे किसान सम्मान निधि, आयुष्मान भारत और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ में पंजीकृत हैं. पार्टी न केवल यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि लाभार्थियों को सीधे केंद्र सरकार से आर्थिक मदद मिले, बल्कि नए लोगों को भी योजनाओं में जोड़ा जाए.

हालांकि, पार्टी के इस प्रयास को राज्य सरकार से कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा. सरकार ने बीजेपी नेताओं से प्रशासनिक कामकाज में हस्तक्षेप न करने को कहा. अगस्त में सरकार के आदेश के बाद फाज़िल्का में बीजेपी अध्यक्ष सुनील जाखड़ को हिरासत में लिया गया और अभियान बंद करवा दिया गया.

पंजाब बीजेपी प्रवक्ता अनिल सरीन ने बुधवार को दिप्रिंट से कहा, “मान सरकार ने हमें कार्यक्रम बंद करने के लिए इसलिए मजबूर किया क्योंकि यह बेहद सफल था. हमने 39 विधानसभा क्षेत्रों के 1,443 से ज़्यादा गांवों में कैंप पूरे किए. हर गांव में 150-200 लोगों को इन कैंपों से फायदा मिला. जैसे ही बाढ़ से जुड़ा काम थोड़ा कम होगा, हम दोबारा कैंप शुरू करेंगे.”

उन्होंने कहा, “सरकार ने यह कहकर हमें रोका कि हम डेटा इकट्ठा कर रहे थे, जबकि हम तो सिर्फ पात्र लाभार्थियों को उनका हक दिलाने में मदद कर रहे थे.”

बीजेपी के लिए पंजाब के कृषि-प्रधान ग्रामीण इलाकों में पैठ बनाना हमेशा एक मुश्किल चुनौती रहा है. शिअद के साथ गठबंधन के दौरान भी पार्टी की पकड़ पठानकोट, लुधियाना, जालंधर, अमृतसर और होशियारपुर जैसे कुछ शहरी इलाकों तक ही सीमित थी.

गठबंधन में अकाली दल ग्रामीण सिख जाट किसानों पर केंद्रित था, जबकि बीजेपी का प्रभाव मुख्य रूप से शहरी हिंदू वोटरों पर था. गांवों में पार्टी की कोई मज़बूत संगठनात्मक संरचना नहीं थी यहां तक कि ब्लॉक स्तर पर भी प्रतिनिधित्व नहीं था.

जब 2021 में तीन कृषि कानूनों को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार और किसानों के बीच टकराव हुआ, तो अकाली दल और बीजेपी का गठबंधन टूट गया. इसके बाद किसान यूनियनों ने बीजेपी को ‘दुश्मन नंबर वन’ घोषित कर दिया.

बीजेपी नेताओं को गांवों से खदेड़ा गया और 2022 के विधानसभा चुनावों में उनके लिए प्रचार करना लगभग असंभव हो गया. 2024 के लोकसभा चुनावों तक स्थिति मुश्किल बनी रही, लेकिन अब हालात बदल गए हैं. पार्टी नेताओं का कहना है कि अब उन्हें पहले जैसी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ता और स्थानीय संगठनात्मक ढांचा मज़बूत हुआ है.

सरीन ने कहा, “वो दिन अब पीछे छूट गए जब गांववाले हमारे नेताओं को भगा देते थे. हमारे हालिया कैंपों में प्रधानमंत्री की तस्वीरों वाले पोस्टर और बैनर लगाए गए और किसी ने विरोध नहीं किया, जब हमें कैंप रोकने पड़े, तब भी हमारे पास 100 से ज़्यादा गांवों की सूची थी, जिन्होंने खुद हमसे कैंप लगाने की मांग की थी.”

उन्होंने आगे कहा, “ये सिर्फ गांव में रुककर बीजेपी की मौजूदगी दिखाने तक सीमित नहीं था. गांववाले सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे थे. गुरुद्वारों से एलान किए जा रहे थे, सरपंच लोगों को जागरूक कर रहे थे.”

सरीन ने बताया, “हमारे पास अब बूथ स्तर तक नेटवर्क है. कुछ गांव मिलकर एक शक्ति केंद्र बनाते हैं, जिसका एक प्रमुख होता है. इसके अलावा 615 से ज़्यादा मंडल हैं, हर एक का एक प्रमुख और उसके अधीन 30 सदस्य हैं. मंडलों को आधा दर्जन मोर्चे सहायता देते हैं. पंजाब में हमारी संगठनात्मक संरचना अब पूरी तरह तैयार है.”

पंजाब में बीजेपी को असली बढ़त 2024 के लोकसभा चुनावों में वोट शेयर बढ़ने से मिली. 2019 के 9.63 प्रतिशत के मुकाबले पार्टी ने इस बार अपना वोट शेयर बढ़ाकर 18.5 प्रतिशत कर लिया — यानी लगभग दोगुना.

डीएवी कॉलेज की डॉ. कंवलप्रीत कौर ने कहा, “बीजेपी को लगता है कि वह पंजाब में भी वैसा ही कर सकती है जैसा उसने 2014 में हरियाणा में किया था. लोकसभा चुनाव के नतीजों ने दिखा दिया है कि उन्हें बस अपनी रणनीति पर टिके रहना है.”

उन्होंने कहा, “केंद्र की किसान हितैषी योजनाओं और एजेंडे को सामने रखकर बीजेपी लगातार काम कर रही है. पार्टी के नेता गांव-गांव जाकर लोगों से मिल रहे हैं, स्थानीय कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं और सबसे अहम — गांवों में पार्टी के चेहरे के तौर पर स्थानीय लोगों को आगे ला रहे हैं, बाहरी नहीं.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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