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Saturday, 21 December, 2024
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राजद इस बार बिहार गठबंधन को अपनी शर्तों पर चलाना चाहती है, लेकिन अन्य पार्टियां इसके लिए तैयार नहीं

लालू प्रसाद यादव की अगुवाई वाली पार्टी 2019 के लोकसभा चुनावों में अपने सहयोगियों से ज्यादा सीटें देने की अपनी गलती को 'सुधारना' चाहती है. इस बार वह 243 में से 150 सीटें चाह रही है.

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पटना: 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सहित अपने सहयोगी दलों को 40 में से 21 लोकसभा सीटें देने वाली राजद ने बिहार में इस साल के विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के सहयोगियों के लिए नियमों में फेरबदल किया है.

राजद के सूत्रों ने कहा कि वे 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले की गई गलती को सुधारने के लिए तैयार हैं. राजद ने अपने सभी सहयोगी दलों- कांग्रेस, आरएलएसपी, एचएएम, सीपीआई (एमएल) और विकासशील इंसान पार्टी- से अधिक सीटें जीती थीं जिसके वे हकदार थे.

राजद के पूर्व मंत्री ने दिप्रिंट को बताया कि सहयोगियों द्वारा मैदान में उतारे गए अधिकांश उम्मीदवार अयोग्य थे, जो एनडीए उम्मीदवारों को कोई टक्कर नहीं दे सकते थे. अगर हम विधानसभा चुनाव में वही गलती दोहराते हैं तो हमें पार्टी के भीतर एक विद्रोह का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि राजद के पास पहले से ही विधानसभा की अधिकांश सीटों पर मजबूत उम्मीदवार हैं.’

पूर्व मंत्री ने कहा, ‘2020 के विधानसभा चुनाव में राजद 243 सीटों में से कम से कम 150 सीटों पर लड़ेगी.’

2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडी(यू) और लालू प्रसाद यादव की अगुवाई वाली राजद ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि कांग्रेस 41 सीटों पर चुनाव लड़ी.

एक पूर्व मंत्री ने कहा, ‘महागठबंधन के सहयोगियों के लिए कोई समन्वय समिति नहीं है. राजद बिहार में एक प्रमुख पार्टी है और तेजस्वी यादव को महागठबंधन के नेता के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. उन सहयोगियों के लिए भी रास्ते खुले हैं जो इस वास्तविकता को स्वीकार करने से इनकार करते हैं.’

बिहार में राजनीतिक धुरी दो दलों के इर्द-गिर्द घूमती है- भाजपा और राजद. राजद नेता ने कहा कि अन्य दल दोनों में से किसी एक के सहयोगी हैं.

आरजेडी की राज्य इकाई के प्रमुख जगदानंद सिंह ने कुछ इसी तरह की बात कही और बयान दिया कि लालू प्रसाद जेल से भी गठबंधन के समन्वयक रहे हैं.

सिंह ने दिल्ली में आप के साथ आरजेडी के गठबंधन की संभावना का भी संकेत दिया था, जहां कांग्रेस और भाजपा के प्रतिद्वंद्वी होंगे.

कांग्रेस ने गुस्से से जवाब दिया

आरजेडी की इस स्थिति ने गठबंधन की सहयोगी कांग्रेस से एक मजबूत प्रतिक्रिया पैदा की है. विधानसभा में कांग्रेस के नेता सदानंद सिंह ने कहा, ‘तेजस्वी यादव राजद के नेता हो सकते हैं, लेकिन महागठबंधन के नहीं.’

जगदानंद सिंह के इस कथन को छोड़ दें कि बिहार में भाजपा और राजद ही एकमात्र ताकत हैं. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता हरकू झा ने कहा, ‘महागठबंधन का नेता कौन होगा, यह राजद द्वारा तय नहीं किया जाएगा.’ इसका फैसला महागठबंधन के सभी नेताओं द्वारा किया जाएगा.’

हम पार्टी के प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने सिंह के बयान को ‘अहंकारी और अलोकतांत्रिक’ बताया.

2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महागठबंधन में 42 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. कांग्रेस पार्टी ने 64 प्रतिशत स्ट्राइक रेट के साथ अच्छा प्रदर्शन किया. लालू प्रसाद कांग्रेस को 25 से ज्यादा सीटें नहीं देना चाहते थे.

नीतीश कुमार जो तब बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाने से पहले गठबंधन के साथ थे, ने कांग्रेस के लिए सौदेबाजी की और 41 सीटें दीं. नीतीश की अनुपस्थिति में, कांग्रेस नेताओं को डर है कि लालू इसे कम सीटें देंगे.

एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि हमने 2015 में 41 सीटों पर चुनाव लड़ा और हम 2020 के विधानसभा चुनावों के लिए 80 सीटों की मांग कर सकते हैं. हमारा अपना सामाजिक आधार नहीं हो सकता है लेकिन राजद की तुलना में कांग्रेस उच्च जाति के लिए अधिक स्वीकार्य है.

‘हमारे अधिकांश विधायक उच्च जातियों से हैं. कांग्रेस की मुस्लिम आबादी में अभी भी पकड़ है. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार की उपस्थिति के कारण ही महागठबंधन की साझेदारी फलदायी थी.

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘2010 में, राजद के साथ गठबंधन में हमने 60 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सिर्फ चार सीटें जीतने में कामयाब रहे. उन्होंने कहा सीटों की संख्या कम करने के मामले में भले ही यह अन्य सहयोगियों की कीमत पर होगा तो कांग्रेस आरजेडी के सामने नहीं झुकेगी.’

अन्य सहयोगी

लोकसभा चुनाव में राजद ने गठबंधन के सहयोगियों के माध्यम से विभिन्न जातियों को लुभाने का प्रयास किया था- जैसे कुशवाहा (आरएलएसपी), दलितों का एक वर्ग (जीतन राम मांझी) और मल्लाह (मुकेश सहनी) लेकिन पार्टी असफल रही. हालांकि, पार्टी पूरी तरह से साझेदारी तोड़ने को तैयार नहीं है.

पूर्व राजद मंत्री ने कहा, ‘उन्हें पूरी तरह से अलग करने का मतलब होगा कि हमारे द्वारा प्रयास (सामाजिक आधार बढ़ाने के लिए) भी नहीं किए गए. हम चाहते हैं कि सहयोगी अपनी वास्तविक ताकत को समझें और उसी के अनुसार मांग करें.’

उन्होंने जोर देकर कहा कि इस बार, राजद सहयोगी दलों को ज्यादा सीटें देने के बजाय अपनी शर्तों पर गठबंधन बनाने का प्रयास करेगी, जैसा कि लोकसभा चुनावों में हुआ था.

‘केवल हताशा को बढ़ा रहा है’

जगदानंद सिंह ने अपने बयान में जेडी (यू) पर भी अप्रत्यक्ष रूप से हमला किया, यह घोषणा करते हुए कि जेडीयू सिर्फ ‘बीजेपी का साथी’ था और आरजेडी ने 2015 के विधानसभा चुनावों में महागठबंधन में छोटी पार्टी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नेतृत्व देकर गलती की थी.

इसने जेडीयू में बिखराव पैदा कर दिया है, जो कि भाजपा के बराबर का भागीदार बनने का प्रयास कर रहा है.

जेडीयू के प्रवक्ता संजय सिंह ने पूछा, ‘जगदानंद सिंह केवल महागठबंधन पर अपनी निराशा प्रकट कर रहे हैं. अगर जेडी (यू) एक मामूली पार्टी थी, तो महागठबंधन 2015 के विधानसभा चुनाव में किस तरह से चुनाव जीतने में कामयाब रहा और नीतीश कुमार के बाहर निकलने के बाद लोकसभा चुनावों में कैसे आरजेडी का सफाया हो गया ? सिंह ने जोर देकर कहा कि नीतीश बिहार में राजा हैं और किंगमेकर बनाने वाले हैं.

हालांकि, राजद की तरह ही एनडीए में भी रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) भी अगले चुनाव में एक बड़ी भूमिका निभाना चाहती है. कहा जा रहा है कि वह 43 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जिसमें सुझाव दिया गया है कि भाजपा और जद(यू) को 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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