चंडीगढ़: सुखबीर बादल को शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के अध्यक्ष पद से हटाने की अपनी कोशिशों को आगे बढ़ाते हुए विद्रोही पार्टी के नेता सोमवार को अकाल तख्त के जत्थेदार के सामने पेश हुए और पंजाब में अपनी पार्टी के सत्ता में रहने के दौरान की गई “गलतियों” के लिए माफी मांगी.
पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा, पूर्व एसजीपीसी प्रमुख बीबी जागीर कौर, पूर्व विधायक गुरप्रताप सिंह वडाला, पूर्व मंत्री परमिंदर सिंह ढींडसा और पार्टी नेता सुच्चा सिंह छोटेपुर समेत विद्रोही नेताओं ने पार्टी की “गलतियों” के लिए प्रायश्चित की मांग की. इन “गलतियों” को उन्होंने अमृतसर में सिखों के सर्वोच्च धार्मिक स्थल स्वर्ण मंदिर में स्थित अकाल तख्त सचिवालय में जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह को सौंपे गए पत्र में बताया.
एक हफ्ते पहले इन नेताओं ने जालंधर में मुलाकात की थी और पार्टी के खराब चुनावी प्रदर्शन को लेकर सुखबीर को शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रमुख पद से हटाने के लिए अभियान चलाया था.
भेजे गए पत्र जिसे दिप्रिंट ने भी देखा है, विद्रोही नेताओं ने अकाल तख्त से 2007 से 2017 तक पंजाब में सत्ता में रहने के दौरान अकाली दल द्वारा की गई चार बड़ी “गलतियों” के लिए माफी मांगी. इनमें 2015 की बेअदबी की घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित करने में तत्कालीन सरकार की विफलता और सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह के जैसी पोशाक पहनने के लिए उनके खिलाफ दर्ज 2007 के ईशनिंदा मामले में गुरमीत राम रहीम को विवादास्पद रूप से माफ करना शामिल है. पत्र में फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए युवाओं के परिवारों को न्याय दिलाने में विफलता और ज्यादती करने के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को पुरस्कृत करने का भी उल्लेख है.
विद्रोहियों के पत्र के अनुसार, अकाली दल सरकार ने राम रहीम के खिलाफ मामला रद्द कर दिया था, जो वर्तमान में अपनी दो शिष्याओं के साथ बलात्कार के लिए 20 साल की जेल की सज़ा काट रहा है.
विद्रोहियों ने सुखबीर पर ईशनिंदा मामले में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को माफी दिलाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया, लेकिन बाद में समुदाय के दबाव के कारण इस फैसले को वापस ले लिया गया. 2015 में अकाल तख्त ने लिखित माफी के आधार पर गुरमीत राम रहीम को माफ कर दिया था, लेकिन सिख समुदाय की ओर से विरोध के बाद इस फैसले को रद्द कर दिया था.
विद्रोहियों ने कहा कि इन कार्रवाइयों के कारण सिख समुदाय और पंजाब के लोगों का अकाली दल से मोहभंग हो गया और वे पार्टी से दूरी बनाने लगे.
जत्थेदार को पत्र सौंपने के बाद मीडियाकर्मियों से बात करते हुए बीबी जागीर कौर ने कहा कि विद्रोहियों ने उनसे कहा था कि वे इसकी सामग्री को पढ़ने के बाद उनसे बात करेंगे. अपने पत्र में उन्होंने सिख सिद्धांतों के अनुसार किसी भी सज़ा को स्वीकार करने की इच्छा व्यक्त की है.
कौर ने कहा, “हमने उनसे कहा कि हमें दी गई सज़ा के बारे में हमें पहले ही सूचित करें क्योंकि हमारे दिल पर बोझ है.”
सोमवार को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में अकाली दल ने कहा कि उसकी महिला शाखा, स्त्री अकाली दल और पार्टी की अनुसूचित जाति शाखा ने सुखबीर बादल के नेतृत्व में अपना विश्वास व्यक्त किया है.
वह चार ‘गलतिया’
पत्र में जिन मामलों का उल्लेख किया गया है, उनमें से एक गुरमीत राम रहीम का मामला है, जिसने 2007 में गुरु गोविंद सिंह की तरह पोशाक पहनकर सिखों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई थी. पत्र में कहा गया है कि राम रहीम के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, लेकिन तत्कालीन अकाली दल सरकार ने उसे वापस ले लिया.
दूसरी गलती, डेरा प्रमुख के खिलाफ ‘दुराचार’ के लिए कार्रवाई करते हुए अकाल तख्त ने कड़ी कार्रवाई की और राम रहीम को सिख धर्म से बहिष्कृत कर दिया. हालांकि, अकाली दल प्रमुख के रूप में सुखबीर बादल ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उसे माफी दिलवाई और जनता की तीखी प्रतिक्रिया के बाद ही यह फैसला वापस लिया गया.
तीसरी ‘गलती’ 2015 में हुई बेअदबी की घटनाओं से संबंधित है. 1 जून 2015 को फरीदकोट जिले के एक गुरुद्वारे से गुरु ग्रंथ साहिब की कुछ बीरें चोरी हो गईं और उसी साल 12 अक्टूबर को बरगारी में एक गुरुद्वारे के सामने गुरु ग्रंथ साहिब के 110 पृष्ठ पाए गए. इन घटनाओं के कारण पंजाब में सिखों में व्यापक आक्रोश फैल गया. विद्रोहियों ने अपने पत्र में कहा है कि अकाली सरकार जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराने में विफल रही और स्थिति बिगड़ गई, जिसके कारण पुलिस को कोटकपूरा और बहबल कलां में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलानी पड़ीं.
विद्रोहियों के अनुसार चौथी ‘गलती’ यह थी कि अकाली दल उग्रवाद के दौरान पुलिस द्वारा मारे गए निर्दोष युवकों को न्याय दिलाने में विफल रहा. बल्कि, इस संबंध में आरोपों का सामना करने वाले सुमेध सिंह सैनी को अकाली सरकार ने पंजाब के डीजीपी के रूप में पदोन्नत किया.
पत्र में यह भी कहा गया है कि मोहम्मद इज़हार आलम, एक पुलिस अधिकारी जिसने ‘आलम सेना’ की स्थापना की थी, जिसके बारे में कहा गया था कि वह सिख युवकों पर अत्याचार करने के लिए जिम्मेदार है, उसे शिअद ने पुरस्कृत किया, क्योंकि पार्टी ने उसकी पत्नी फरजाना नेसारा खातून को 2012 में मलेरकोटला से पार्टी का टिकट दिया और उन्हें सरकार में संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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