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Tuesday, 5 November, 2024
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राम, लक्ष्मण, बुद्ध- राहुल की तरह अखिलेश भी मंदिर की शरण में, ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ का लग रहा आरोप

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मंदिरों में दर्शन करने के पीछे एक सोची-समझी रणनीति है. दरअसल, वो बीजेपी द्वारा उनके ऊपर लगाए जा रहे 'मुस्लिम समर्थक' छवि को खत्म करना चाहते हैं.

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नई दिल्ली: ऐसा लग रहा है कि भाजपा की हिंदुत्व की विचारधारा ने विपक्षी पार्टियों को भी इसे अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है.

कांग्रेस पार्टी के भूतपूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के कई मंदिरों में दर्शन के लिए जाने के बाद उनके ऊपर ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की राह पकड़ने का आरोप लगा था और अब समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पर भी इसी तरह के आरोप लग रहे हैं.

वर्ष 2017 में गुजरात के विधानसभा चुनावों और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले जिस तरह से राहुल गांधी मंदिरों में जा रहे थे, उसी तरह अखिलेश यादव भी अब उत्तर भारत के मंदिरों का रुख कर रहे हैं.

पिछले साल 15 दिसंबर को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अयोध्या में जहां राम मंदिर बन रहा है, वहां का दौरा किया और अपनी पार्टी द्वारा किए गए धार्मिक कार्यों को गिनाने की कोशिश की.

उन्होंने कहा, ‘भगवान राम सपा के हैं, हम राम भक्त और कृष्ण भक्त हैं.’ और तब से लेकर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगातार मंदिरों के चक्कर लगा रहे हैं.

इसी साल 8 जनवरी को वे चित्रकूट के लक्ष्मण पहाड़ी मंदिर पहुंचे. उसी दिन वे कामदगिरि मंदिर भी गए. सोशल मीडिया पर कामदगिरि की साढ़े पांच किलोमीटर की परिक्रमा करने वाली फोटोज़ भी सर्कुलेट होती दिखीं. वहीं 10 जनवरी को उन्होंने एक फोटो ट्वीट किया जिसमें कैप्शन था- ‘हरे राम, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे.’ इसके दस दिन बाद सपा अध्यक्ष यूपी के फर्रूखाबाद के विमलनाथ मंदिर गए और 24 जनवरी को श्रावस्ती के बुद्ध मंदिर का दौरा किया.

इसके अलावा वो लगातार संतों से भी मिल रहे हैं और उनका आशीर्वाद ले रहे हैं. संतों के आशीर्वाद लेने वाली फोटोज़ लगातार उनके ट्विटर हैंडल पर पोस्ट की जा रही हैं. 4 जनवरी को उन्होंने ये भी घोषणा की कि अगर अगले साल उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो धार्मिक संस्थानों से किसी भी प्रकार का टैक्स नहीं लिया जाएगा.

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मंदिरों में दर्शन करने के पीछे एक सोची-समझी रणनीति है. दरअसल, वो बीजेपी द्वारा उनके ऊपर लगाए जा रहे ‘मुस्लिम समर्थक’ छवि को खत्म करना चाहते हैं.


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सॉफ्ट-हिंदुत्वः राजनीतिक मजबूरी

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के हिंदुत्व मॉडल ने अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेताओं को भी हिंदुत्व की राजनीति करने के लिए मजबूर किया है.

प्रयागराज के गोविंद वल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर बद्री नारायण का कहना है कि बीजेपी लगातार नए-नए शब्दों का प्रयोग कर रही है. बीजेपी एक दिन राम के बारे में बात करती है और अगले ही दिन सुहेलदेव के बारे में. इसके जवाब में सॉफ्ट हिंदुत्व की बात करना राजनीतिक पार्टियों की मजबूरी बन चुकी है. यह यूपी और बिहार जैसे राज्यों में काफी दिखता है.

लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और उत्तर प्रदेश योजना आयोग के पूर्व सदस्य सुधीर पंवार का कहना है कि यह ‘पोलिटिकल कंपल्शन’ के बजाय ‘पोलिटिकल कंज़ंप्शन’ है.

उनका कहना है कि सामान्य हिंदू मतदाता चाहता है कि उनके नेता उनकी आस्था का प्रदर्शन करें. इसके पहले अखिलेश यादव जैसे नेताओं ने अपनी आस्था को व्यक्तिगत स्तर तक सीमित रखा था. जिसकी वजह से बीजेपी उनके ऊपर ‘हिंदू-विरोधी’ होने का आरोप लगाती रही. लेकिन उनके मंदिरों में जाने के बाद बीजेपी के पास ‘कौन हिंदू है और कौन हिंदू-विरोधी है’ की राजनीति करने का कोई आधार नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि सॉफ्ट हिंदुत्व और मुस्लिम-समर्थक होने का रंग बीजेपी द्वारा गैर-बीजेपी हिंदू नेताओं को दिया गया है ताकि उन्हें अपने से कमतर दिखाया जा सके.’ हालांकि, बीजेपी अखिलेश यादव पर दिखावे की राजनीति का आरोप लगाती रही है. लेकिन बीजेपी यह कहकर इसे अपनी जीत भी बताती है कि उन्होंने समाजवादी को हिंदुत्व की राजनीति करने पर मजबूर कर दिया.

अखिलेश यादव के दिसंबर में दिए गए बयान के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘जो लोग पहले कहा करते थे कि राम काल्पनिक हैं वे अब कह रहे हैं कि राम सब के हैं.’

नाम न बताए जाने की शर्त पर एक बीजेपी नेता ने कहा कि सपा यादव वोटों का नुकसान सहन नहीं कर सकती. अहीरों (जिसमें यादव भी शामिल हैं) का झुकाव अब हिंदुत्व की तरफ ज्यादा है और ये बात चुनावों में दिख भी रही है.

‘वर्ष 2012 में 224 सीटों से वर्ष 2017 में सपा सिमटकर 47 सीटों पर आ गई. यही नहीं उनका वोट शेयर भी घट गया है. इसके अलावा सपा के गढ़ एटा, फिरोज़ाबाद, बदायूं और कन्नौज में भी वे तमाम सीटें हार गए.’


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बीजेपी किसी को हिंदू विरोधी नहीं कह सकती

सपा ने हालांकि भाजपा के आरोपों को खारिज किया.

अखिलेश यादव के एक नजदीकी सहयोगी ने दिप्रिंट को बताया कि सॉफ्ट-हिंदुत्व बीजेपी द्वारा गढ़ा गया शब्द है क्योंकि पार्टी किसी भी राजनेता को हिंदू-विरोधी नहीं कह सकती.

उन्होंने आगे कहा कि क्या अखिलेश यादव ने ईद की मुबारकबाद देना छोड़ दिया है या कि अजमेर शरीफ पर चादर चढ़ाना छोड़ दिया है? नहीं, वे अपनी हाल के दौरे में सभी सांस्कृतिक स्थानों पर जाते रहे हैं.

आगे उन्होंने कहा समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के चित्रकूट के दौरे के बाद इस पर ज्यादा चर्चा होने लगी. आखिर बीजेपी इसको लेकर क्यों परेशान है? क्या इसलिए कि अब वह राजनीति नहीं कर सकती है कि कौन हिंदू है और कौन नहीं. यह सब चित्रकूट के दौरे के बाद शुरू हुआ लेकिन यह पहली बार नहीं है. वे इसके पहले भी कई बार वहां जाते रहे हैं.

यूपी कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘हम लोगों पर सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति करने का आरोप लगाया जाता है. हर कोई जानता है कि अखिलेश और उनके पिता धार्मिक हैं. फर्क केवल इस बात का है कि पहले मंदिर जाने की फोटोज़ इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं थीं. न ही बीजेपी के लिए और न हीं मीडिया के लिए.’

नाम न बताने की शर्त पर समाजवादी पार्टी के एक नेता ने कहा, ‘इस बारे में ज्यादा काम किए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि हम लोगों ने इन फोटोज़ को हाल ही में पब्लिश करना शुरू किया है जबकि बीजेपी इस काम को दशकों से कर रही है. उनके नाटक का जवाब देना आसान नहीं है. मंदिर जाना दिखावे से परे होना चाहिए. लेकिन इस वक्त ये सब प्रतीकात्मक है चाहे वो अखिलेश यादव हों या प्रियंका गांधी.’


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