नई दिल्ली: जब से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले दिसंबर में कांग्रेस से राजस्थान छीना है, तब से राज्य में जिला स्तर पर भी प्रशासनिक अधिकारियों के बड़े पैमाने पर तबादलों ने नौकरशाही को नाराज़ कर दिया है, यहां तक कि मामला प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के दरवाजे तक भी पहुंच गया है.
जिस बात पर विशेष रूप से आपत्ति जताई गई है वो है कुछ अधिकारियों का बार-बार तबादला, जिनमें से कुछ को केवल दो से तीन महीनों के भीतर कई बार स्थानांतरित किया गया है. एक उदाहरण में अधिकारियों को मात्र 10 दिनों की अवधि के भीतर एक ही पद के लिए दो बार पुन: नियुक्त किया गया.
सीएम भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार ने अब तक भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारियों की 13 सूचियां, राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) अधिकारियों की 11 सूचियां और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारियों की स्थानांतरण और पोस्टिंग की सात लिस्ट जारी की हैं.
पिछले 11 दिनों में 221 आरएएस अधिकारियों और 50 आईएएस अधिकारियों का तबादला किया गया है, जबकि पिछले दो महीनों में लगभग 700 आरएएस अधिकारियों का तबादला किया गया है. सरकार ने जिला स्तर पर भी अधिकारियों में फेरबदल किया है.
इसके अलावा, नवनिर्वाचित विधायकों पर अधिकारियों के तबादले और पोस्टिंग की सिफारिश करने के भी आरोप लगे हैं. एक जिले में कई अधिकारियों के तबादले से विवाद पैदा हो गया है, विपक्षी कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि एक विशेष जाति के अधिकारियों को निशाना बनाया जा रहा है.
दिप्रिंट से बात करते हुए बीजेपी के राज्य महासचिव मोतीलाल मीणा ने कहा कि तबादले “सामान्य नियमित प्रक्रिया के तहत हो रहे हैं और कार्मिक विभाग ये फैसले ले रहा है. इसमें कुछ भी नया नहीं है.”
हालांकि, नाम न छापने की शर्त पर भाजपा के एक नेता ने कहा, “राजनीतिक छवि वाले अधिकारियों को राजधानी से दूर भेजा जा रहा है और नए लोगों को मौके मिल रहे हैं.”
विवाद अब पीएमओ तक पहुंच गया है, राज्य सरकार के सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) ने पीएमओ को अवगत कराने के लिए पिछले तीन महीनों में स्थानांतरित किए गए सभी अधिकारियों की सूची मांगी है.
भाजपा सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 जनवरी को नवनिर्वाचित विधायकों के साथ बैठक में अधिकारियों के तबादले करते समय एक उचित नीति की वकालत की थी और पार्टी कार्यकर्ताओं से तबादलों और पोस्टिंग की सिफारिश करने से परहेज करने को कहा था.
पीएम ने कहा था, “अधिकारी किसी सरकार के नहीं होते और निर्वाचित प्रतिनिधियों को बेहतर आउटपुट के लिए नौकरशाहों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहिए.” उन्होंने बीजेपी विधायकों को याद दिलाते हुए कहा कि राजस्थान के तीन बार के पूर्व सीएम भैरों सिंह शेखावत अपने समय में कभी भी नौकरशाहों के तबादले की राजनीति में शामिल नहीं हुए थे.
दिप्रिंट फोन कॉल के जरिए राजस्थान सीएमओ से संपर्क की कोशिश की थी. उनसे प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
राजस्थान प्रशासन में काम कर चुके अधिकारी भी इस तरह के बड़े पैमाने पर तबादलों की कवायद को राज्य और नौकरशाही के मनोबल के लिए अच्छा नहीं मानते हैं.
राज्य के एक पूर्व मुख्य सचिव ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “तबादले इसलिए किए जाते हैं ताकि किसी की पसंद के अधिकारी को लाया जा सके और काम उसकी इच्छा के मुताबिक किया जा सके. इससे सिस्टम एक जैसी सोच के साथ काम करने लगता है. यह एक राजनीतिक परंपरा बन गई है और हर सरकार ऐसा ही करती है.” लेकिन जिस तरह से वर्तमान सरकार जिला स्तर पर भी चीज़ों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है, वे लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमज़ोर करेगी.
राजस्थान-कैडर के एक अन्य नौकरशाह ने कहा कि “चूंकि सीएम प्रशासन में नए हैं, इसलिए उन पर प्रदर्शन करने और अपनी टीम बनाने का दबाव है”.
उन्होंने कहा, “अक्सर, वे अपने ही सहयोगियों के दबाव में रहते हैं जिसके कारण कई स्थानांतरण और पोस्टिंग होती हैं. हालांकि, यह अब राज्य में एक मज़ाक बन गया है, जिसमें एक अधिकारी का बार-बार स्थानांतरण किया जाता है या एक ही महीने में एक पद पर तीन अलग-अलग अधिकारी हो जाते हैं. सरकार का कामकाज प्रभावित हो रहा है.”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजस्थान में जो कुछ भी हो रहा है उस पर बीजेपी के दिल्ली नेतृत्व की छाप है.
विश्लेषक ओम सैनी ने दिप्रिंट को बताया कि “राजस्थान को अपना मुख्यमंत्री एक पर्ची से मिल गया है (दिल्ली में बीजेपी आलाकमान द्वारा भजनलाल शर्मा के चयन का ज़िक्र करते हुए). यहां मोदी के नौकरशाही मॉडल को कॉपी-पेस्ट किया जा रहा है.”
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कुछ विवादास्पद स्थानांतरण
उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी के तीन स्टाफ सदस्यों और दूसरे डिप्टी सीएम प्रेम चंद बैरवा के दो स्टाफ सदस्यों का तीन महीने के भीतर तबादला कर दिया गया है.
16 दिसंबर को दीया कुमारी द्वारा अपना पद संभालने के बाद, राजस्थान-कैडर के अधिकारी गोपाल सिंह को उनका विशेष सहायक नियुक्त किया गया था. हालांकि, फरवरी में उनकी जगह जगवीर सिंह को ले लिया गया और बाद में उनकी जगह फिर से 22 फरवरी को ललित कुमार को कर दिया गया, जो तत्कालीन अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे सीएमओ में अधिकारी रहे हैं.
इसी तरह, बैरवा का प्रशासनिक अमला 10 दिनों के भीतर दो बार बदला गया — पहले आरएएस अधिकारी राजेंद्र सिंह राठौड़ को विशेष सहायक का प्रभार दिया गया, लेकिन फिर भगत सिंह राठौड़ ने नौ दिनों के भीतर उनसे पदभार ले लिया.
तबादला सूची के मुताबिक, पिछले दो महीने में कुछ आईएएस अधिकारियों का दो बार तबादला किया गया है. इनमें पृथ्वी राज, शक्ति सिंह राठौड़, ओमप्रकाश बुनकर, जसमीत संधू, गौरव गोयल, सुरेश ओला और वासुदेव मालावत शामिल हैं.
13 फरवरी, 2006 बैच के आईएएस अधिकारी वी. सरवना को राज्य के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में सचिव बनाया गया था, लेकिन 2 मार्च को उन्हें विभाग में सचिव और आयुक्त तैनात कर दिया गया.
आईएएस अधिकारी भवानी सिंह देथा का एक महीने में दो बार तबादला किया गया, जबकि आईएएस अधिकारी कृष्ण कुणाल और महेंद्र सोनी का भी दो बार तबादला किया गया. कुणाल ने शिक्षा सचिव नवीन जैन का स्थान लिया, जिन्हें दूसरे पद पर स्थानांतरित कर दिया गया.
राज्य शिक्षा विभाग से जुड़े एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि पूर्व सचिव एक डायनमिक अधिकारी और कुशल प्रशासक थे. उन्होंने कहा, “उनका तबादला सिर्फ इसलिए किया गया क्योंकि उनकी नियुक्ति गहलोत सरकार के दौरान हुई थी.”
15 साल तक गहलोत के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) रहे आरएएस अधिकारी देवाराम सैनी का भी एक महीने में दो बार तबादला कर दिया गया. 2 फरवरी की तबादला सूची में उन्हें बांसवाड़ा में अतिरिक्त संभागीय आयुक्त का पद मिला, जबकि फरवरी के अंत में आई सूची में उन्हें स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार बनाया गया.
आईपीएस अधिकारी श्याम सिंह को एक माह में अलग-अलग पोस्टिंग दी गई. इसी तरह, भुवन भूषण यादव को पूर्वी जोधपुर के डीसीपी के रूप में नियुक्त किया गया था, लेकिन छह दिनों के भीतर उन्हें सीकर के पुलिस अधीक्षक के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया.
बांसवाड़ा में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) पद के लिए, पिछले 12 दिनों में तीन अधिकारियों का तबादला किया गया है — प्रभु दयाल धानिया ने 2 मार्च को एएसपी का पद संभाला, लेकिन 4 मार्च को उनका तबादला कर दिया गया और बनवारीलाल मीणा ने एएसपी का पदभार संभाला. इसके बाद सरकार ने बनवारीलाल का तबादला कर दिया और उनकी जगह राजेश भारद्वाज को तैनात कर दिया.
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‘जाति देखकर अधिकारियों का तबादला’
चूरू जिले में तबादलों की एक सूची भी सुर्खियों में रही. इधर, पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ पिछले साल तारानगर सीट से विधानसभा चुनाव हार गए थे. अब आरोप लगाया गया है कि राठौड़ की हार के पीछे चूरू सीट से बीजेपी सांसद जाट नेता राहुल कस्वां का हाथ है और अब कई जगहों पर जाट जाति के अधिकारियों को बदला जा रहा है.
बीजेपी के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि कुछ अधिकारियों ने विपक्ष के (पूर्व) नेता की हार के कारण एक जिले में एक विशेष समुदाय (जाति) के अधिकारियों को निशाना बनाने की शिकायत की थी.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने आरोप लगाया कि “भाजपा सरकार के दौरान अधिकारियों के तबादले और पोस्टिंग उनकी जाति देखकर हुई हैं और जाट समुदाय के अधिकारियों के तबादले का स्पष्ट चलन दिख रहा है..”
कांग्रेस की पूर्व विधायक कृष्णा पूनिया ने भी कहा, “चूरू जिले में चुनाव हारने वाले राजेंद्र राठौड़ के प्रभाव के कारण अधिकारियों का तबादला किया गया और उन्होंने तबादलों के लिए अपनी सूची भेजी..”
तारानगर में, आरएएस अधिकारी संदीप चौधरी को उप-विभागीय मजिस्ट्रेट बनाया गया और 10 अन्य अधिकारी कथित तौर पर पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं.
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, “चुनाव हारने वाले बीजेपी नेता अधिकारियों से बदला ले रहे हैं.”
आरोपों के बारे में, भाजपा नेता मीना ने कहा: “कांग्रेस ने अपने कार्यकाल के दौरान चपरासियों और ड्राइवरों का भी स्थानांतरण किया. हमारी सरकार ने जातिगत आधार पर अधिकारियों का तबादला नहीं किया है. उन्हें प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए स्थानांतरित किया गया है.”
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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