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Monday, 4 November, 2024
होमराजनीति'चिन्ह नहीं लेकिन विचारधारा है': शिवसेना की कलह का इस्तेमाल कर MNS को फिर खड़ा करने में जुटे राज ठाकरे

‘चिन्ह नहीं लेकिन विचारधारा है’: शिवसेना की कलह का इस्तेमाल कर MNS को फिर खड़ा करने में जुटे राज ठाकरे

मनसे प्रमुख ने अपनी पार्टी पदाधिकारियों को ‘पार्टी के लिए पर्याप्त नहीं करने’- न तो मनसे का बचाव करने के मामले में और न ही पार्टी का संदेश को लोगों तक ले जाने के लिए, खरी-खरी सुनाई.

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मुंबई: सबसे पहले उन्होंने शिवसेना से वॉकआउट किया. फिर, उन्होंने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) से हाथ मिलाने को लेकर उनकी आलोचना की. इसके बाद जो हुआ वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ प्यार- नफरत के संबंध थे, जो एक राजनीतिक उठापटक के साथ खत्म हुए. अब, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे अपने राजनीतिक फायदे के लिए शिवसेना के भीतर की इस कलह का इस्तेमाल करना चाहते हैं.

मंगलवार को मनसे पदाधिकारियों की एक बैठक में ठाकरे ने ‘सिर्फ सत्ता के लिए गठबंधन बनाने’ के लिए महाराष्ट्र के राजनीतिक दलों की आलोचना की और जोर देकर कहा कि 2005 में उनका शिवसेना से बाहर निकलना ‘पीठ में छुरा घोंपना’ नहीं था.

वह जून में शिवसेना में हुए विभाजन का जिक्र कर रहे थे, जिसकी वजह से पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना पड़ा और उनकी जगह एकनाथ शिंदे कुर्सी पर विराजमान हो गए.

ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर परोक्ष रूप से ताना मारते हुए कहा, ‘मेरा जाना विद्रोह नहीं था. ये सभी लोग सत्ता के लिए गए हैं.’ शिंदे जून में अन्य 39 विधायकों के साथ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार से बाहर हो गए थे. उन्होंने ‘असली’ शिवसेना होने का दावा किया और सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ हाथ मिला लिया था.

एमवीए सरकार में शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस शामिल थीं.

कूल्हे की रिप्लेसमेंट सर्जरी की वजह से दो महीने तक काम से बाहर रहे ठाकरे ने कहा कि उन्होंने ‘किसी की पीठ में छुरा नहीं घोंपा था’ या ‘किसी के साथ विश्वासघात नहीं किया था.’

ठाकरे ने बताया, ‘आपके राज ठाकरे ने बालासाहेब ठाकरे से मुलाकात की और कहा कि मैं पार्टी छोड़ रहा हूं. उस समय मनोहर जोशी वहीं थे. वह कमरे से बाहर चले गए और उसके बाद बालासाहेब ने मुझे अंदर बुलाया. उन्होंने मुझे गले लगाया और कहा ‘अब जाओ’. वह जानते थे.’

बाल ठाकरे ने जब अपने बेटे उद्धव को अपना उत्तराधिकारी चुना तो राज ठाकरे कई अन्य पार्टी नेताओं के साथ शिवसेना से बाहर हो गए. 2006 में उन्होंने मनसे का गठन किया और शिवसेना के मिट्टी के बेटों से आक्रामक रूप से लड़ने के लिए कमान संभाल ली. कुछ त्वरित चुनावी सफलता का स्वाद चखने के बाद मनसे को राजनीतिक रूप से कुछ ज्यादा हासिल नहीं हुआ. 2014 से ही ठाकरे हार मान चुके हैं और अपनी पार्टी को वापस लाने के लिए अलग-अलग फॉर्मूले आजमा रहे हैं.

मनसे प्रमुख ने अपनी पार्टी पदाधिकारियों को ‘पार्टी के लिए पर्याप्त नहीं करने’- न तो मनसे का बचाव करने के मामले में और न ही पार्टी का संदेश को लोगों तक ले जाने के लिए, खरी-खरी सुनाई.

उन्होंने मनसे के 2015 के टोल संग्रह के विरोध के साथ-साथ मस्जिदों में लाउडस्पीकर के खिलाफ उनकी पार्टी के सबसे हालिया आंदोलन के बाद कई टोल बूथों को बंद करने का हवाला देते हुए कहा, ‘बहुत से लोग हमारे बारे में बहुत सी बातें कहते हैं और आप सभी को जवाब नहीं दे सकते हैं. लोगों ने कहा कि राज ठाकरे और मनसे ने अपना ‘आंदोलन’ बीच में ही छोड़ दिया. मुझे आप किसी भी एक ‘आंदोलन’ के बारे में बताएं जिसे हमने बीच में छोड़ा हो.’


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‘चिन्ह की परवाह नहीं’

राज ठाकरे की नई पिच ऐसे समय में आई है जब शिवसेना के शिंदे और ठाकरे गुटों में इस बात को लेकर रस्साकशी चल रही है कि असली शिवसेना कौन है और किस गुट को चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का धनुष-बाण का चिन्ह मिलना चाहिए. पार्टी का विभाजन महाराष्ट्र के निकाय चुनावों से पहले हुआ है, जो इस साल मुंबई सहित प्रमुख शहरों में होने की संभावना है. यह शिवसेना का गढ़ और सत्ता का केंद्र है.

ठाकरे ने कहा, ‘मैं अपने दादा (प्रबोधनकर ठाकरे) की विचारधारा को आगे ले जाना चाहता हूं. मुझे परवाह नहीं है कि मेरे पास पार्टी का चिन्ह है या नहीं. मेरा नाम है या नहीं. मेरे पास विचारधारा है. यह सबसे कीमती है.’

शिंदे पर एक और कटाक्ष करते हुए मनसे प्रमुख ने कहा कि शिवसेना से इस्तीफा देने के बाद वह किसी भी पार्टी में शामिल नहीं हुए, बल्कि बालासाहेब की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए अपना खुद का संगठन बनाया.

ठाकरे ने कहा, ‘पिछले ढाई साल से महाराष्ट्र में जो राजनीति चल रही है, वह अच्छी नहीं है. महाराष्ट्र में ऐसा कभी नहीं हुआ. 2019 में वोट करने वालों को पता भी नहीं होगा कि उन्होंने किसे वोट दिया. कौन किसके साथ गया और कौन किसके साथ बंट गया, उलझन हो गई है. आपको लगता है कि यह राजनीति है? नहीं. यह सत्ता के लिए सिर्फ एक लेन-देन वाला समझौता है.’


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‘पार्टी ने आपको जो पद दिया है, उसका सम्मान करें’

पार्टी पदाधिकारियों के साथ बैठक में ठाकरे ने कहा कि उन्होंने मनसे पदाधिकारियों को लाउडस्पीकरों पर कार्रवाई के संबंध में एक पत्र दिया था.

ठाकरे ने बताया, ‘मैं चाहता तो अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर उस पत्र को डाल सकता था. लेकिन मैंने वह पत्र उन तक पहुंचाया. मैं देखना चाहता था कि वो इसे लेकर क्या करते हैं. कई मनसे कार्यकर्ताओं ने मुझसे कहा कि ‘हमें अपने पदाधिकारियों से पत्र नहीं मिला’ या कि ‘हम इसे जनता के बीच ले जाना चाहिए था.’

उनके मुताबिक, पार्टी पदाधिकारियों को उन्हें दिए गए पद का सम्मान करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘कुछ ने बड़े पैमाने पर लापरवाही दिखाई है. सब ठंडे पड़ चुके हैं. हर कोई अब चुनाव के बारे में सोच रहा है, पार्टी या प्रशासन के बारे में नहीं.’

मनसे प्रमुख ने अपनी पार्टी के सदस्यों को सोशल मीडिया पर आंतरिक मतभेदों के बारे में बात करने के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसा करने पर उन्हें तत्काल पार्टी से बर्खास्त कर दिया जाएगा.

ठाकरे ने यह कहते हुए कि उन्हें ‘हर जगह मनसे के होर्डिंग दिखने’ चाहिए, कहा, ‘इन चुनावों को अपनी पूरी ताकत के साथ लड़ना जरूरी है…. जहां भी संभव होगा मैं ‘सभाएं (बैठकें) करुंगा’. मनसे प्रमुख ने अपनी पार्टी के सदस्यों से बड़े पैमाने पर पंजीकरण अभियान शुरू करने का भी आग्रह किया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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