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Sunday, 16 June, 2024
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पंजाब में आम आदमी पार्टी भारी जीत की ओर, कांग्रेस और अकाली दल रुझानों में बहुत पीछे

117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी 83 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि अकाली दल और कांग्रेस क्रमश: 8 और 18 सीटों पर आगे चल रहे हैं.

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चंडीगढ़: चुनाव आयोग की वेबसाइट पर विधानसभा चुनाव परिणामों के शुरुआती रुझानों के अनुसार, आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब में शानदार जीत की ओर बढ़ रही है, जबकि राज्य की पारंपरिक पार्टियां – कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) काफी पीछे चल रही हैं.

117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी 83 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि अकाली दल और कांग्रेस क्रमश: 8 और 18 सीटों पर आगे चल रहे हैं.

अगर आप को विधानसभा में बहुमत मिला तो संगरूर से सांसद भगवंत मान पंजाब के नए मुख्यमंत्री होंगे. लेकिन अगर यह बहुमत के आंकड़े से पीछे रही, तो राज्य में सियासी अनिश्चितता की स्थिति आ सकती है. खासकर परंपरागत पार्टियों के क्षेत्रवादी रुख को देखते हुए पार्टी के लिए आवश्यक आंकड़ा जुटाना चुनौतीपूर्ण होगा.

इस बीच, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 1 सीट पर आगे चल रही है, जबकि उसके सहयोगी पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस (पीएलसी) को एक भी सीट नहीं मिली हैं .

कांग्रेस से बाहर निकलने के बाद अमरिंदर ने अपनी पार्टी बनाई और भाजपा और सुखदेव सिंह ढींडसा के नेतृत्व वाली एसएडी (संयुक्त) के साथ गठबंधन किया. भाजपा ने 65 सीटों पर, पीएलसी ने 37 सीटों पर और एसएडी (संयुक्त) ने 15 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे.

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अकाली दल ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन किया था, और उसे 20 सीटें दी थीं.


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अंदरूनी कलह, कृषि कानूनों ने परंपरागत दलों को नुकसान पहुंचाया

चुनाव में आप ने ‘शासन के दिल्ली मॉडल’ को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया था और इसने राष्ट्रीय राजधानी में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में आप शासन की कल्याणकारी योजनाओं और उपलब्धियों को यहां प्रचारित किया.

अब निरस्त हो चुके कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर चले किसान आंदोलन के मद्देनजर सहज स्थिति में नजर आती रही कांग्रेस ने पिछले साल सितंबर में अमरिंदर को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने को बाध्य करके अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है.

2017 में 20 सीटों के साथ प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरी आप उस समय तक राज्य में लड़ाई में नजर नहीं आ रही थी. यह लंबे समय से अंदरूनी कलह से प्रभावित थी और कई प्रमुख नेता पार्टी छोड़ चुके थे.

अकाली दल भी खुद को राजनीतिक हाशिये पर पा रहा था क्योंकि केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार, जिसमें एसएडी एक घटक था, की तरफ से घोषित विवादास्पद कृषि कानूनों ने जाट सिख किसानों के बीच उसका जनाधार घटा दिया था. हालांकि, अकाली दल ने बाद में कृषि कानूनों को लेकर एनडीए से नाता तोड़ लिया था, लेकिन यह पूरी तरह स्पष्ट होना अभी बाकी है कि कहीं उसने ऐसा करने में थोड़ी देर तो नहीं कर दी थी.

उस समय अमरिंदर के नेतृत्व वाली कांग्रेस और आप ने किसानों के आंदोलन का समर्थन किया था. चुनावों से कुछ महीनों पहले कांग्रेस यहां एक मजबूत स्थिति में नजर आ रही थी, लेकिन कैप्टन के विरोधी नवजोत सिंह सिद्धू के कहने पर मुख्यमंत्री को बाहर का रास्ता दिखाने के गांधी परिवार के फैसले ने पार्टी में उथल-पुथल मचा दी, जो पार्टी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ.

अनुसूचित जाति (एससी) की 32 फीसदी आबादी वाले राज्य में एक दलित सिख चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का कांग्रेस का दांव मतदाताओं को खास प्रभावित करता नजर नहीं आया, और सिद्धू भी लगातार नए सीएम पर कटाक्ष करते रहे. कांग्रेस पूरी तरह बंटी हुई और अव्यवस्थित नजर आई जिसने मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को पार्टी से दूर कर दिया.

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