कोलकाता : तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) कार्यकर्ताओं द्वारा की जाने वाली ‘वसूली’ के खिलाफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सख्ती के बाद से, कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर 2011 के बाद से चुकाई गई कट मनी (कमीशन) की वापसी के लिए अनेकों जगह विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं.
पुलिस सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि 18 जून से 14 जुलाई के महीने भर से कम अवधि में राज्य के ग्रामीण इलाकों में ऐसे कम-से-कम 278 विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं, यानि रोज़ाना करीब 10 विरोध प्रदर्शन. और लगता नहीं कि निकट भविष्य में ऐसे विरोध प्रदर्शनों में में कोई कमी आने वाली है.
अब, इस मामले में टीएमसी के एक सांसद के शामिल होने के संदेह के बाद विवाद तूल पकड़ता दिख रहा है, और आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं कि शायद जबरन वसूली को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का संरक्षण प्राप्त रहा हो.
टीएमसी सदस्यों द्वारा कथित जबरन वसूली का मुद्दा 2019 लोकसभा चुनावों के दौरान राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा उठाए गए प्रमुख चुनावी मुद्दों में से था. लोकसभा चुनावों में भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए, 2014 की दो सीटों के मुकाबले, राज्य की कुल 42 में से 18 पर कब्ज़ा किया है.
इससे घबराई ममता बनर्जी ने 18 जून को टीएमसी सदस्यों की बैठक में ‘कट मनी’ लेने वाले टीएमसी कार्यकर्ताओं को जेल भिजवाने की घोषणा की थी, और उन्होंने अब तक वसूली गई रकम संबंधित लोगों को लौटाए जाने का भी आदेश दिया था.
टीएमसी और भाजपा के बीच आमने-सामने की संभावित टक्कर वाले विधानसभा चुनावों से दो वर्ष पहले, ममता की घोषणा के कारण हो रहे विरोध प्रदर्शनों से पार्टी सदस्य परेशान हैं.
विपक्ष इस मुद्दे का इस्तेमाल सरकार पर हमले के लिए कर रहा है, और ग्रामीण इलाकों में लोग इसको लेकर गोलबंद हो रहे हैं.
कट मनी को लेकर सख्ती का उद्देश्य ये साबित करना था कि लोकसभा चुनावों में राज्य में भाजपा के अच्छे प्रदर्शन के बाद टीएमसी अपनी गड़बड़ियों को ठीक कर रही है, पर मामला ममता के हाथों से छूटता दिख रहा है.
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बड़ी मछली?
स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा कथित रूप से मनरेगा और आवास योजनाओं जैसी सरकार की प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं में ही नहीं, बल्कि विधवा पेंशन और अंतिम संस्कार संबंधी अनुदान के लाभार्थियों तक से बतौर कमीशन की जाने वाली वसूली को कट मनी कहा जाता है.
पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार और केंद्र सरकार की लगभग 100 सामाजिक कल्याण योजनाएं लागू हैं: ग्रामीण जनता पंचायतों के ज़रिए इनसे जुड़ती हैं, जबकि शहरी जनता स्थानीय निकायों के माध्यम से इनका लाभ उठाती है.
कट मनी का रिवाज़ टीएमसी से पूर्व की सरकारों के समय से जारी बताया जाता है, और इसमें कमीशन का हिस्सा 20-25 प्रतिशत तक भी हो सकता है, जिसकी चर्चा ममता बनर्जी ने भी अपने भाषण में की थी.
कट मनी रैकेट को वरिष्ठ नेताओं के संरक्षण संबंधी संदेहों को तब हवा मिली, जब कोलकाता के एक ठेकेदार ने टीएमसी के राज्यसभा सांसद शांतनु सेन पर 2012 से अब तक उससे लाखों रुपये की वसूली करने का आरोप लगाया.
पेशे से चिकित्सक सेन ने आरोपों का खंडन करते हुए ठेकेदार पर मानहानि का मुकदमा ठोक दिया है. इसी शुक्रवार को मामले की सुनवाई होनी है.
सेन ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने इस व्यक्ति पर 10 करोड़ रुपये की मानहानि का दीवानी और फौजदारी का दावा किया है. मामले की अगली सुनवाई 19 जुलाई को है.’ उन्होंने कहा, ‘मेरी लड़ाई राजनीति से प्रेरित उन लोगों के खिलाफ है जो कुछ सुस्थापित लोगों को बदनाम कर ममता बनर्जी के ईमानदार प्रयासों को कलंकित करना चाहते हैं.’
‘तृणमूल तोलाबाजी टैक्स’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 जुलाई 2018 को मिदनापुर में भाजपा किसान कल्याण रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि तृणमूल कांग्रेस समर्थित ‘सिंडिकेट’ पश्चिम बंगाल को चला रहे हैं.
मोदी ने आगे कहा कि इन सिंडिकेटों की अनुमति के बिना बंगाल में कुछ भी करना लगभग नामुमकिन है, बात कॉलेज में प्रवेश की हो या स्थानीय बाज़ारों में कृषि उपज बेचने की या फिर घर बनाने की.
उस भाषण के बाद, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने सिंडिकेटों की कथित भूमिका को अपने प्रचार अभियान का मुख्य मुद्दा बना लिया था. खुद मोदी ने इसके लिए एक संक्षेपाक्षर गढ़ा था: टीटीटी– यानि तृणमूल तोलाबाजी टैक्स (तृणमूल वसूली कर).
ये शायद पहला मौका था जब पश्चिम बंगाल में विपक्ष ने सिंडिकेट और कट मनी को प्रमुख चुनावी मुद्दों के रूप में उछाला हो. टीएमसी ने पहले तो इसकी अनदेखी करने की कोशिश की, लेकिन लोकसभा चुनाव परिणामों ने उसे इस पर कदम उठाने को बाध्य कर दिया.
चुनाव परिणामों के महीने भर के भीतर ममता बनर्जी ने न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं को कथित रूप से वसूली गई कट मनी वापस करने के निर्देश दिए, बल्कि उन्होंने इस संबंध में अपने ऑफिस में एक जन शिकायत केंद्र भी स्थापित किया और पुलिस को दोषियों के खिलाफ मामले दर्ज करने के निर्देश दिए.
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ग्रामीण इलाकों में उबाल
उसके बाद से, पुलिस सूत्रों के अनुसार पूर्वी बर्दवान, बीरभूम, उत्तर 24 परगना और जलपाईगुड़ी समेत विभिन्न जिलों में 15 मामलों में करीब 25 लाख रुपये संबंधित लोगों को लौटाए जा चुके हैं.
उदाहरण के लिए, 8 जुलाई को पूर्वी बर्दवान जिले के एक गांव में पंचायत प्रधान और टीएमसी के एक कार्यकर्ता ने 142 ग्रामीणों को कुल करीब चार लाख रुपये लौटाए, जो कि उनके 100 दिनों की पगार से काटे गए थे.
इस बीच, सरकारी योजनाओं के अन्य लाभार्थी अपने पैसे वापस लेने के लिए विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं, और निकट भविष्य में ऐसे प्रदर्शनों में कमी आने की संभावना नहीं दिखती है.
पुलिस सूत्रों के अनुसार 18 जून से 14 जुलाई के बीच इस तरह के 278 विरोध प्रदर्शन आयोजित हो चुके हैं. इनमें से करीब 50 विरोध प्रदर्शन पूर्वी बर्दवान में और 42 हुगली जिले में हुए हैं. सूत्रों के अनुसार बांकुड़ा और बीरभूम में करीब 30 विरोध प्रदर्शन हुए हैं.
हुगली से भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी ने कट मनी मामले को संसद में उठाया था, जिसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव से इस मामले में रिपोर्ट मांगी है.
बंगाल के लिए नया नहीं
पश्चिम बंगाल में विपक्षी नेताओं का कहना है कि कट मनी की व्यवस्था यों तो टीएमसी की बनाई हुई नहीं है, पर निश्चय ही पार्टी ने ‘इसे संस्थागत रूप देने का काम किया है’.
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस बारे में कहा, ‘वाम दल संगठित तरीके से कट मनी की उगाही करते थे. सिंडिकेट वामपंथी शासन के दौरान भी थे. पर तृणमूल ने जनता के धन की चोरी को संस्थागत रूप दे दिया है.’
उन्होंने कहा, ‘पार्टी का अपने कैडरों पर नियंत्रण नहीं रह गया है. अब, ममता बनर्जी एक सुधारक बनने की कोशिश कर रही हैं. यदि चुनाव परिणाम तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में आते, तो फिर टीएमसी सुप्रीमो का ऐसा सख्त भाषण सुनने को नहीं मिलता.’
हालांकि, तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि ममता का भाषण देश में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार से निपटने के प्रयासों के तहत था.
बंगाल के संसदीय कार्य राज्य मंत्री तपस रॉय ने कहा, ‘हमारी नेता ममता बनर्जी के पास सार्वजनिक रूप से ये कहने और भ्रष्टाचारियों को खुली चेतावनी देने का साहस है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘भ्रष्टाचार एक बीमारी है और किसी को तो इसका इलाज करना पड़ेगा. उन्होंने ऐसा कहते हुए किसी की परवाह नहीं की. ये भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जंग है. पर प्रतिशोध की भावना वाले विपक्षी दलों के कुछ नेता इसका अनुचित लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं. भाजपा ने भी तो चुनावों में 27,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. कहां से आया था ये पैसा?’
ममता के 2011 में मुख्यमंत्री बनने से पूर्व 34 वर्षों तक राज्य में सत्ता में रही माकपा ने उस पर आरोप लगाए जाने को विषयांतर का प्रयास करार दिया है.
वरिष्ठ माकपा नेता और कोलकाता के पूर्व मेयर विकास भट्टाचार्य ने कहा, ‘ममता बनर्जी को शर्मिंदगी और बदनामी से बचाने के लिए कुछ लोग मौजूदा मामले को अतीत से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘तृणमूल कांग्रेस दरअसल चोरों की पार्टी है… मेयर रहने के दौरान, मैंने पूजा कमेटियों पर टैक्स लगाने की कोशिश की थी, जो कि तृणमूल कांग्रेस के नियंत्रण में हैं. ये बड़े स्तर पर पैसे के लेन-देन का मौका होता है, अधिकतर अवैध लेन-देन. इसलिए टीएमसी के पार्षदों ने मेरा घेराव किया था. कई मामलों में तो, पार्षदों ने कोलकाता नगर निगम की स्वीकृति के बिना केबल बिछाने की अनुमति दी थी और बदले में घूस लिए थे. ये उनके लिए रोज़मर्रा की बात थी.’
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क्या इसका विपरीत असर होगा?
लोकसभा चुनावों के बाद, अब टीएमसी की 2021 विधानसभा चुनावों की तैयारियों में मार्गदर्शन के लिए ममता बनर्जी ने प्रसिद्ध राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सेवाएं ली हैं.
पार्टी के अंदरूनी हलकों में ऐसी चर्चा है कि ममता को अपनी साफ-सुथरी छवि निर्मित करने के लिए कट मनी रैकेट को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने की सलाह दी गई थी. पर, टीएमसी कैडर इससे खुश नहीं हैं. अचानक ग्रामीणों के भारी विरोध से भौंचक्के रह गए पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि बेहतर होता यदि ममता सबको एक समान भ्रष्ट नहीं बतातीं.
बर्दवान के जिला स्तर के एक नेता ने कहा, ‘दीदी ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया, और हमें बड़ी मुसीबत में फंसा दिया है.’ टीएमसी के इस नेता ने कहा, ‘हम ज़मीनी स्तर पर लोगों को संगठित करते हैं. अब, लोग हम पर भरोसा नहीं कर रहे. वे हमें चोर कहते हैं.’
हुगली के एक टीएमसी नेता ने कहा, ‘हम उनके फैसले का सम्मान करते हैं, पर वह अलग तरीके से भी ऐसा कर सकती थीं. तब हम इस सार्वजनिक अपमान से बच सकते थे.’
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