लखनऊ: पिछले कई साल से यूपी में बेहद कमजोर दिख रही कांग्रेस में प्रियंका गांधी की सक्रिय एंट्री के बाद भी कोई खास असर नजर नहीं आ रहा है. हाल ही में 7 सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों की 4 सीटों पर जमानत जब्त हो गई. वहीं 2 सीटें (बांगरमऊ व घाटमपुर) पर वह नंबर 2 पर रहे और एक सीट (टूंडला) पर उनके प्रत्याशी का पर्चा ही खारिज हो गया. इस उपचुनाव में उनका वोट प्रतिशत महज़ 7.53% रहा.
कांग्रेस की यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी इन उपचुनावों में प्रचार करती नहीं दिखीं. वहीं दिसंबर 2019 के बाद से वे लखनऊ पार्टी प्रदेश हेडक्वॉर्टर्स भी नहीं आईं. कुछ महीने पहले उनके लखनऊ स्थित मकान में शिफ्ट होने की खबरें भी आई थीं लेकिन वह अभी तक उस मकान में शिफ्ट नहीं हुई हैं. ऐसे में उपचुनाव के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में मायूसी छाई है. नाम न छापने की शर्त पर यूपी कांग्रेस के तमाम नेता कह रहे हैं कि पार्टी आलाकमान की यूपी में सक्रियता कम होने के कारण अजीब सी स्थिति बनी हुई है.
नाम न छापने की शर्त पर यूपी कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पार्टी के भीतर कार्यकर्ता व आलाकमान में कम्यूनिकेशन बढ़ने के बजाय कम होता जा रहा है. दिसबंर 2019 के बाद प्रियंका गांधी 2 बार यूपी आईं. एक बार वे फरवरी में सीएए-एनआरसी के विरोध में हुए प्रोटेस्ट में घायल लोगों से मिलने आजमगढ़ गईं और दूसरी बार अक्टूबर में रेप पीड़िता के परिवार से मिलने हाथरस. लखनऊ स्थित पार्टी हेडक्वॉर्टर्स आए हुए उन्हें लगभग 11 महीना होने वाला है. कोरोना काल में उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कुछ पदाधिकारियों से संवाद किया लेकिन आम कार्यकर्ता से कोई संवाद नहीं हो पाया. अगर पार्टी का हाल 2019 लोकसभा चुनाव जैसा होने से बचाना है तो अब समय आ गया है कि वर्क फ्रॉम मोड से बाहर आना पड़ेगा.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू के मुताबिक, ‘उपचुनाव में हम दो सीटों पर नंबर 2 पर रहे और एक सीट पर नंबर 3 पर. हमारा वोट पर्सेंटेज भी बढ़ा. मुख्य विपक्षी के तौर पर हम ही एक्टिव दिख रहे हैं. ऐसे में ये कहना कि प्रियंका जी के आने के बाद से कांग्रेस मजबूत नहीं हुई है ये गलत है. बीजेपी सरकार के खिलाफ लगातार कांग्रेस पार्टी संघर्ष कर रही है. हम उपचुनाव के नतीजे से सबक लेते हुए आगे और मेहनत से प्लानिंग करेंगे.’
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ट्विटर पर सक्रिय लेकिन जमीन से गायब
कोविड फेज के दौरान भी प्रियंका गांधी वर्क फ्रॉम होम मोड में नजर आईं. प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए उन्होंने सरकार को चिट्ठी लिखकर ऑफर भी किया जिसके बाद पूरी ‘बस कंट्रोवर्सी’ हुई. इस दौरान प्रियंगा गांधी दिल्ली से ही पूरे विवाद को हैंडल करती रहीं. इस विवाद में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू व प्रियंका के निजी सचिव संदीप सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई जिसके बाद लल्लू को 26 दिन जेल में काटने पड़े.
प्रियंका गांधी कोविड के दौरान कम टेस्टिंग से लेकर यूपी की कानून व्यवस्था के मुद्दे पर भी लगातार सवाल उठाईं लेकिन ये सभी सवाल केवल ट्विटर पर नजर आए.
बीजेपी प्रवक्ता डॉ. चंद्रमोहन का कहना है कि ‘प्रियंका गांधी व अखिलेश यादव केवल ट्विटर के नेता बनकर रह गए हैं. यही कारण है कि बीजेपी सबसे आगे है. मोदी जी व योगी जी हम जमीन से लेकर सोशल मीडिया पर हर जगह मजबूत हैं.’
प्रियंका के यूपी प्रभारी बनन के बाद यूपी में कांग्रेस का हाल
प्रियंका गांधी को 2019 लोकसभा चुनाव से पहले यूपी का इंचार्ज बनाया गया था. उनके नेतृत्व में कांग्रेस महज एक सीट पर सिमट पर रह गई. हालांकि इन खराब नतीजों के कुछ महीने बाद यूपी कांग्रेस की पूरी टीम ही बदल दी गई. राज बब्बर को हटाकर तत्कालीन सीएलपी लीडर अजय लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. लल्लू की पहचान एक जुझारू नेता के तौर पर रही है. उन्होंने अध्यक्ष बनते ही योगी सरकार के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन किए. लॉकडाउन के दौरान बीते अप्रैल में हुई बस कंट्रोवर्सी के दौरान लल्लू 26 दिन तक जेल में भी रहे. सड़क पर तो कांग्रेस पार्टी एक्टिव दिखी लेकिन यूपी में ‘ओल्ड बनाम न्यू’ कंट्रोवर्सी शुरू हो गई.
यूपी कांग्रेस की सीनियर लीडर व पूर्व सांसद अन्नू टंडन ने संगठन में बढ़ते कम्यूनिकेशन गैप और निराशाजनक माहौल का हवाला देते हुए पार्टी छोड़ दी. वहीं गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाली रायबरेली से विधायक अदिति सिंह ने बागी तेवर अपना लिये.
हाल ही में अन्नू टंडन के साथ ही पार्टी छोड़ने वाले वरिष्ठ नेता शशांक शुक्ला ने बताया, ‘कम्यूनिकेशन गैप का आलम ये है कि वह बांगरमऊ सीट से लगभग एक साल से चुनाव की तैयारी कर रहे थे लेकिन मेरा टिकट काट दिया गया और काटने का कारण भी नहीं बताया गया.’ पार्टी के लिए उन्होंने कई ‘शक्ति प्रोजेक्ट’ समेत कई कैंपेन देखें है लेकिन ऐसा लगता है जो लोग यूपी कांग्रेस चला रहे हैं उन्हें डेडेकेटेड लोग चाहिए ही नहीं.
इसके अलावा अमेठी के राजा संजय सिंह, प्रतापगढ़ की पूर्व सांसद रानी रत्ना सिंह समेत तमाम पुराने कांग्रेसी नेता भी पार्टी छोड़कर चले गए. वहीं लोकसभा चुनाव से पहले दूसरी पार्टियों से आए पूर्व सांसद बालकुमार पटेल, कैसर जहां, सावित्री बाई फुले, रमाकांत यादव समेत तमाम नेताओं ने चुनाव के बाद पार्टी को अलविदा कह दिया. सबने पार्टी छोड़ने का कारण कांग्रेस की यूपी में मौजूदा स्थिति को बताया.
हाल ही में समाजवादी पार्टी में शामिल हुए यूथ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अंकित परिहार के मुताबिक, यूपी कांग्रेस में जो माहौल है उसमें काम करना मुश्किल था. मुझे महासचिव का पद भी दिया गया लेकिन मैंने पार्टी छो़ड़ दी क्योंकि संगठन में लेफ्टिस्टों का कब्जा है. आम कार्यकर्ता की कोई सुनवाई ही नहीं है. प्रियंका गांधी तक हर कार्यकर्ता की आवाज नहीं पहुंचती. कोई सुनवाई नहीं है. इस कारण पार्टी छोड़नी पड़ी.
यूपी कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो प्रियंका गांधी के सामने इस उपचुनाव के नतीजों की समीक्षा होनी चाहिए. कहां गलती हुई उस पर चर्चा होनी चाहिए. अगर पार्टी अभी भी नहीं जागी तो 2022 में 2017 जैसे ही परिणाम होंगे. हमारे पास अभी भी 14 महीने का समय है. संगठन में स्थानीय स्तर के मजबूत नेताओं को तवज्जों देनी होगी और प्रियंका गांधी जी को खुद को पूरे कैंपेन की लखनऊ में रहकर मॉनिटरिंग करनी होगी वरना कांग्रेस के ‘अच्छे दिन’ यूपी में कभी नहीं आएंगे.
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