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Saturday, 14 December, 2024
होमराजनीति‘यह संविधान है, संघ-विधान नहीं’ — प्रियंका गांधी ने अपने पहले भाषण में BJP और RSS पर बोला हमला

‘यह संविधान है, संघ-विधान नहीं’ — प्रियंका गांधी ने अपने पहले भाषण में BJP और RSS पर बोला हमला

वायनाड सांसद ने कहा कि देश में ‘डर का माहौल’ इतना बढ़ गया है कि अब सत्ताधारी पार्टी भी इससे प्रभावित हो गई है, जिसके कारण वह संसद में सवालों के जवाब देने से ‘भागने’ लगी है.

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नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने शुक्रवार को लोकसभा में अपने पहले भाषण में कहा कि भारतीय संविधान संवाद और चर्चा की सभ्यतागत परंपराओं से उभरा है, ऐसे सिद्धांत जिनसे सत्तारूढ़ दल “घृणा” करता है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह समझने में विफल रहे कि संविधान ‘संघ का विधान’ नहीं है.

लगभग 40 मिनट तक चले अपने भाषण में प्रियंका ने कहा कि पिछले एक दशक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शासन में देश में भय की चादर छाई हुई है, लेकिन “भय की प्रकृति” ऐसी है कि इसने अब सत्तारूढ़ दल को भी प्रभावित कर दिया है, जिससे वह संसद में सवालों के जवाब देने से “भागने” को मजबूर हो गया है.

वायनाड सांसद शुक्रवार से शुरू हुई दो दिवसीय चर्चा, ‘संविधान के 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा’ में विपक्ष की ओर से पहली वक्ता थीं.

प्रियंका ने दावा किया कि अगर 2024 के आम चुनाव में भाजपा की सीटें कम नहीं होतीं, तो “वह संविधान बदल देते”.

उन्होंने अपने काफी हद तक संयमित भाषण में कहा, “संविधान न्याय, सद्भाव, एकता, समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांतों के लिए एक ‘सुरक्षा कवच’ है, लेकिन सत्ता पक्ष उस सुरक्षा कवच को कमजोर कर रहा है.” हालांकि, इसमें कुछ आक्रामक लम्हे थे जिसके कारण सत्ता पक्ष की ओर से कुछ व्यवधान भी आए.

उन्होंने कहा, “अगर लोकसभा चुनावों में ये आंकड़े नहीं होते, तो वह संविधान बदल देते. लगभग हारने के बाद ही उन्हें एहसास हुआ कि यह देश संविधान बदलने की किसी भी बात को स्वीकार नहीं करेगा.”

जब प्रियंका बोल रही थीं, तब गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ सदन में मौजूद थे. हालांकि, प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति प्रियंका के ध्यान से नहीं बच पाई.

उन्होंने बिना मोदी का नाम लिए कहा, “मैं इस सदन में नई हूं, लेकिन मैं पिछले 15 दिनों में उन्हें 10 मिनट से ज़्यादा नहीं देख पाई…बचपन में हम सबने एक कहानी सुनी थी कि एक राजा आम आदमी का वेश धारण करके लोगों से घुलमिल जाता था. आज का राजा ज़रूर कपड़े बदलता है, यह ऐसी चीज़ है जिसमें उसे बहुत दिलचस्पी है, लेकिन आलोचना सुनने या लोगों के पास जाने की हिम्मत नहीं है.”

“घृणा और वैमनस्य” फैलाना एक और मुद्दा है जिस पर प्रियंका ने सीधे प्रधानमंत्री पर निशाना साधा.

गांधी ने कहा, “संविधान एकता और सद्भाव के लिए सुरक्षा कवच के रूप में है. यहीं पर घृणा और संदेह के बीज बोए जा रहे हैं, जो उस कवच को चकनाचूर कर रहे हैं. प्रधानमंत्री जी संसद में संविधान की किताब को माथे से लगाते हैं, लेकिन संभल, हाथरस और मणिपुर में जब न्याय की गुहार उठती है, तो उनके माथे पर शिकन तक नहीं आती. शायद ये समझ नहीं पाए हैं कि ‘भारत का संविधान, संघ का विधान नहीं है’.”

अपने भाई राहुल गांधी के भाषणों के विपरीत, जिसमें प्रधानमंत्री की कथित चूक और कमियों का व्यापक रूप से उल्लेख किया गया था, प्रियंका ने एक व्यापक कैनवास को चित्रित करने और अत्याचारों के पीड़ितों के साथ अपनी बातचीत के अंशों को उजागर करके अपने बिंदुओं को स्पष्ट करने का प्रयास किया, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में, एक ऐसा राज्य जहां वे कांग्रेस के भाग्य को पुनर्जीवित करने के लिए राजनीतिक रूप से सक्रिय रही हैं.

उन्होंने उन्नाव बलात्कार पीड़िता के परिवार, आगरा में पुलिस हिरासत में मरने वाले दलित सफाई कर्मचारी अरुण वाल्मीकि की विधवा और संभल में हिंसा से पीड़ित परिवारों के साथ अपनी हाल की बातचीत का ज़िक्र किया, जिसमें दो मुस्लिम बच्चे भी शामिल थे.

प्रियंका ने कहा कि इन सभी बातचीत में उन्होंने पाया कि संविधान आम लोगों के लिए शक्ति के स्रोत के रूप में कार्य करता है.

इसे अनिवार्य रूप से सदन के पटल से हाशिए के समुदायों तक प्रियंका की रणनीतिक पहुंच के रूप में देखा गया, जो अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) — ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यक — के नैरेटिव को प्रतिध्वनित करता है.

प्रियंका ने कहा कि मौजूदा सरकार अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए वर्तमान के बजाय अतीत की बात करती है. उन्होंने कहा, “क्या जवाहरलाल नेहरू हर चीज़ के लिए जिम्मेदार हैं?” उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भारत के पहले प्रधानमंत्री के योगदान और एक युवा राष्ट्र के निर्माण की प्रशंसा की.

पहली बार सांसद बनीं प्रियंका ने कहा, “वे (बीजेपी) अक्सर 75 वर्षों के बारे में बात करते हैं, लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि संविधान में निहित आशा और आकांक्षाओं की ज्योत इन सभी वर्षों में लोगों के दिलों से कभी नहीं बुझी, संवाद कभी बंद नहीं हुआ, लेकिन आज, लोगों को धमकाया जा रहा है और चुप रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है. यह सरकार राष्ट्र-विरोधियों की तलाश के नाम पर अपने आलोचकों के पीछे पड़ गई है. ब्रिटिश राज के दौरान इस तरह का भय का माहौल था.”

आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों का भाजपा द्वारा बार-बार ज़िक्र किए जाने पर प्रिंयका ने कहा, “आप इससे क्यों नहीं सीखते? आप राजनीतिक न्याय की बात करते हैं और महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, गोवा में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को गिराने की होड़ में लगे रहते हैं. क्या तब संविधान लागू नहीं था? आप (भाजपा) एक वॉशिंग मशीन बनकर रह गए हैं और लोग इस पर हंसते हैं.”

कांग्रेस सांसद ने यह भी कहा कि अगर भाजपा में हिम्मत है तो उसे चुनावों में मतपत्रों का इस्तेमाल फिर से शुरू करना चाहिए. उन्होंने नवंबर में कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में भी यह मांग रखी थी.

उनके भाषण में कांग्रेस के पसंदीदा विषयों जैसे राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की मांग और केंद्र द्वारा अडानी व्यवसाय समूह को दिए गए कथित पक्षपात का भी ज़िक्र था.

उन्होंने कहा, “बंदरगाहों, रेलवे, कारखानों, सड़कों से लेकर सरकारी कंपनियों और खदानों तक, सब कुछ एक व्यक्ति को सौंपा जा रहा है. यह धारणा बढ़ती जा रही है कि सरकार केवल अडाणी के लिए काम करती है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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