नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने संबोधन में अशफाकउल्लाह खान और बेगम हजरत महल समेत विभिन्न धर्मों के स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों के योगदान को याद किया.
इससे एक दिन पहले ही ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वह इस बात को लेकर पर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं कि आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री अशफाकउल्ला खान और अन्य मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों के नाम का उल्लेख करेंगे या नहीं.
ओवैसी ने रविवार को एक जनसभा में कहा था कि मुसलमानों ने भी आजादी की जंग में समान योगदान दिया लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों के नामों में उनका कभी खास उल्लेख नहीं होता. हैदराबाद के सांसद ने कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि पीएम मोदी अपने भाषण में अशफाकुल्लाह खान और अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ने वाले अन्य मुसलमानों के नाम शामिल करेंगे.
प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में कहा, ‘देश मंगल पांडे, तात्या टोपे, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकउल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल और असंख्य क्रांतिकारियों का आभारी है जिन्होंने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी.’
उन्होंने कहा, ‘भारतीय महिलाओं के जज्बे को याद करके हर भारतीय गर्व से भर जाता है, चाहे वो रानी लक्ष्मीबाई हों, या झलकारीबाई, चेन्नम्मा अथवा बेगम हजरत महल.’
अशफाकुल्ला खान ने अपने क्रांतिकारी साथी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत को आजाद कराना था.
कम्युनिस्ट विचारधारा वाले कवि अशफाकउल्लाह खान अगस्त 1925 में काकोरी एक्सप्रेस में सशस्त्र डकैती के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों में शामिल थे. उन्हें अप्रैल 1927 में फांसी की सजा सुनाई गई थी.
मोदी ने अशफाकउल्लाह खान के अलावा स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में बेगम हजरत महल का भी जिक्र किया. माना जाता है कि अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह की दूसरी पत्नी ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ 1857 के विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
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मुस्लिम आउटरीच
प्रधानमंत्री के भाषण में मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों का जिक्र ऐसे समय आया है जबकि जुलाई में हैदराबाद में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मोदी की तरफ से दी गई सलाह के मुताबिक भाजपा मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ संपर्क बढ़ाने का प्रयास कर रही है.
प्रधानमंत्री की टिप्पणी को पार्टी सहयोगियों के लिए पसमांदा का समर्थन जुटाने के निर्देश के रूप में देखा गया. भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) दोनों ही पसमांदा या ओबीसी मुसलमानों सहित गैर-हिंदुओं के बीच वंचित वर्गों के बीच पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.
आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने पिछले माह दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि आरएसएस वर्षों से समाज के सभी वर्गों तक पहुंच रहा है, चाहे वह किसी भी धर्म और जाति का हो.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी जून में एक भाषण में कहा था कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ‘संघर्ष को बढ़ाने’ की कोई आवश्यकता नहीं है.
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में ‘शिवलिंग’ मिलने के दावों को लेकर विवाद के बीच उन्होंने कहा था, ‘हर मस्जिद में शिवलिंग देखने की कोई जरूरत नहीं है. उनकी (मुसलमानों की) पूजा का तरीका अलग है लेकिन वे यहीं के हैं. इनके पूर्वज हिन्दू थे. हम किसी और की पूजा-पद्धति का कोई विरोध नहीं करते हैं.’
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