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Tuesday, 18 June, 2024
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‘हमारी पहचान खतरे में’- कांग्रेस MLA ने गैर-पंजाबियों के ज़मीन खरीदने के खिलाफ कानून बनाने की मांग की

अकाल तख्त के जत्थेदार ने भी पिछले महीने युवाओं से विदेश न जाने की अपील करते हुए यह मांग की थी. खैरा ने कानून बनाने के लिए विधानसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश करने की योजना बनाई है.

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चंडीगढ़: पंजाब के भोलथ से कांग्रेस विधायक और विपक्ष के पूर्व नेता सुखपाल सिंह खैरा ने सोमवार को कहा कि वह आगामी विधानसभा सत्र में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश करेंगे, जिसमें गैर-पंजाबियों को राज्य में कृषि भूमि खरीदने पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून बनाने की मांग की जाएगी.

प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, खैरा ने कहा कि उन्होंने सोमवार सुबह पंजाब विधानसभा अध्यक्ष कुलतार सिंह संधवां से मुलाकात की और उन्हें विधानसभा के आगामी सत्र में इस बिल को पेश करने का अनुरोध किया.

उन्होंने कहा कि पंजाब में कानून हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 की धारा-118 के प्रावधानों की तर्ज पर बनाया जाना चाहिए, जो गैर-हिमाचली और गैर-कृषकों को पहाड़ी राज्य में कृषि भूमि खरीदने से रोकता है.

खैरा ने कहा, “हम गैर-पंजाबियों को रोज़गार के अवसरों के लिए हमारे राज्य में आने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हां, हमें उनके पंजाब में स्थायी रूप से बसने, कृषि भूमि के मालिक बनने, स्थायी मतदाता बनने से दिक्कत है, क्योंकि यह हमारी अलग पहचान को खतरे में डालता है.”

उन्होंने कहा, “मैं हक से कह सकता हूं कि अगर इसे जड़ से खत्म नहीं किया गया, तो पंजाब के लोग, खासकर सिख, अगले 20-25 वर्षों में अपनी मातृभूमि में अल्पमत में होंगे.”

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अकाल तख्त ने भी की ऐसी ही मांग

दिलचस्प बात यह है कि पिछले महीने पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में तीन दिवसीय शहीदी जोर मेले के अंतिम दिन अपने भाषण के दौरान सिखों के सर्वोच्च अस्थायी निकाय अकाल तख्त के जत्थेदार ने भी इसी तरह की मांग की थी.

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जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने सिख युवाओं को विदेश न जाने का अपील करते हुए पंजाब में बाहरी लोगों द्वारा ज़मीन खरीदने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया था.

उन्होंने कहा, “आप विदेशों में काम करने के लिए अपना घर और ज़मीन छोड़ देते हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग आएंगे और आपकी ज़मीनों पर कब्जा करेंगे. पंजाब तंबाकू और बीड़ी का देश बनेगा. बाहरी लोगों को पंजाब में ज़मीन खरीदने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. सरकार को इस पर काम करने की ज़रूरत है.”


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पलायन चिंता का विषय

विधानसभा अध्यक्ष को लिखे एक पत्र में खैरा ने कहा कि पंजाबियों का बड़े पैमाने पर दूसरे देशों में पलायन राज्य के जनसांख्यिकीय ढांचे को बदल रहा है.

उन्होंने आगे कहा, “मोटे तौर पर अनुमान के अनुसार पंजाब की कुल आबादी का लगभग छठा हिस्सा यानी 2.75 करोड़, हमारे लगभग 50 लाख लोग विदेश चले गए हैं. दुर्भाग्य से, बीते कुछ साल में यह बढ़ी है. इस कारण, पंजाब ने न केवल अपना सर्वश्रेष्ठ शिक्षित, प्रशिक्षित और कुशल मानव संसाधन खो दिया है, बल्कि इसने हमारे राज्य की अर्थव्यवस्था को भी चौपट कर दिया है.

कांग्रेस विधायक ने कहा कि इतने बड़े पैमाने पर आबादी के पलायन के कारण नकारात्मक वित्तीय प्रभाव के अलावा, जनसांख्यिकीय स्थिति में भी परिवर्तन शुरू हो गया है. उन्होंने कहा कि पंजाबियों की पहचान खतरे में है क्योंकि लाखों गैर-पंजाबी स्थायी रूप से राज्य में बसने लगे हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘यह ठीक इसी कारण से था कि जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान आदि जैसे राज्यों ने अपनी पहचान और अस्तित्व की रक्षा के लिए, बाहरी लोगों को कृषि भूमि खरीदने और अपने राज्यों के स्थायी निवासी बनने से रोकने के लिए कानून पारित किए.’’

खैरा ने विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा और राजा सांसी के विधायक सुखविंदर सिंह सरकारिया के साथ विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात की. बाजवा ने दिप्रिंट को बताया, ‘‘हम वहां एक साथ गए थे, लेकिन खैरा ने जिस मुद्दे को उठाया वह एक निजी सदस्य के रूप में उनकी व्यक्तिगत क्षमता में था.’’

बाजवा ने कहा कि उन्होंने स्पीकर को बजट सत्र के दौरान चर्चा का दायरा बढ़ाने और सदन की पर्याप्त बैठकें सुनिश्चित करने के लिए प्रभावित किया.

बाजवा ने प्रेस को दिए एक बयान में कहा, “मैं संसदीय परंपरा के अनुसार कम से कम एक महीने पहले सरकार द्वारा सत्रों की तारीख की घोषणा की ज़रूरत को दोहराना चाहता हूं ताकि सदस्यों को पंजाब विधानसभा समितियों की रिपोर्टों, बिलों पर चर्चा करने, विभिन्न विभागों की प्रशासनिक रिपोर्ट और सार्वजनिक महत्व के अन्य मुद्दों पर भी तैयारी का समय मिल सके.’’

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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