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Sunday, 19 May, 2024
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‘BJP में यस बॉस कहने वालों को ही मिलती है जगह’- RSS के पूर्व-प्रचारकों ने MP में लॉन्च की पार्टी

जनहित पार्टी, जिसका अभी तक पंजीकरण नहीं हुआ है, की घोषणा 200 पूर्व आरएसएस कार्यकर्ताओं की बैठक के बाद की गई. संस्थापकों ने भाजपा पर केंद्रीकृत होने और दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांतों को त्यागने का आरोप लगाया.

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भोपाल: इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पांच पूर्व प्रचारकों ने मध्य प्रदेश में अपनी पार्टी बनाई है, उन्होंने आरोप लगाया है कि संघ के प्रति वैचारिक रूप से झुकाव रखने वालों को अब भारतीय जनता पार्टी में जगह नहीं मिल सकती है.

जनहित पार्टी की लॉन्चिंग – जिसका अभी तक पंजीकरण नहीं हुआ है – की घोषणा रविवार को अभय जैन ने की, जिन्होंने 1985 से 2008 तक आरएसएस प्रचारक के रूप में कार्य किया. नई पार्टी से जुड़े अन्य पूर्व प्रचारक हैं महेश काले, विशाल बिंदल, राजा राम , और मनीष काले. वे सभी दशकों से मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में काम कर रहे आरएसएस कार्यकर्ता थे.

जैन के अनुसार, यह घोषणा रविवार को भोपाल में आरएसएस के 200 पूर्व पदाधिकारियों की एक बैठक के बाद हुई, जहां वे पार्टी के संस्थापक सिद्धांतों पर आम सहमति पर पहुंचे.

उन्होंने कहा कि 200 में से अधिकांश मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल और मालवा क्षेत्रों से आए थे. जैन ने कहा कि झारखंड से पांच लोग भी बैठक का हिस्सा थे, जहां उन्होंने पार्टी को अपना समर्थन देने का वादा करते हुए हलफनामा भरा.

संस्थापकों का कहना है कि उनका भाजपा से मोहभंग हो गया है, उनका तर्क है कि वह दिवंगत दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांतों से भटक गई है – जो एक समय भाजपा के अग्रदूत, भारतीय जनसंघ के नेता और अभिन्न मानवतावाद की विचारधारा के समर्थक थे.

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उनका यह भी आरोप है कि भाजपा एक केंद्रीकृत पार्टी बन गई है, जहां जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की कोई आवाज या जगह नहीं है.

जैन ने दिप्रिंट को बताया, “दीनदयाल उपाध्याय ने गवर्नेंस के सिद्धांत बताए, लेकिन भाजपा के पास यह केवल अपने विज़न दस्तावेज़ में है. ज़मीनी तौर पर इसकी कार्यप्रणाली कांग्रेस से अलग नहीं है. इससे एक बड़ा खालीपन पैदा हो गया है, और विशेष रूप से जो लोग वैचारिक रूप से आरएसएस के प्रति झुके हुए हैं, उन्हें अब भाजपा में जगह नहीं मिल रही है,”

जैन के अनुसार, जनहित पार्टी दीन दयाल उपाध्याय द्वारा अपील की गई मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं और सभी के लिए रोजगार के अवसरों के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए काम करेगी.

पार्टी ने अभी तक कोई खास उम्मीदवार तय नहीं किया है. जैन ने कहा, “लेकिन हम निश्चित रूप से उम्मीदवार उतारेंगे – चाहे वह सभी 230 विधानसभा सीटों पर हों, 25 सीटों पर हों या सिर्फ एक सीट पर हों.” उन्होंने कहा कि पार्टी उन स्वतंत्र उम्मीदवारों का भी समर्थन करेगी जो उसके दृष्टिकोण और मूल्यों को साझा करते हैं.

पांच पूर्व प्रचारकों में से एक, महेश काले ने आरोप लगाया कि भाजपा टॉप-डाउन पार्टी बन गई है, जहां विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार भी केंद्रीय नेतृत्व द्वारा तय किए जाते हैं.

“जब कुशाभाऊ ठाकरे 1977 में मध्य प्रदेश में (जनसंघ के) प्रदेश अध्यक्ष थे, तब लोकसभा टिकट भी राज्य इकाई द्वारा तय किए जाते थे. लेकिन अब विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की अधिसूचना भी केंद्र सरकार की मंजूरी से ही जारी की जाती है. केवल उन्हें ही कोई जगह दी जाती है जो ‘यस बॉस’ कह सकते हैं.’

इन आलोचनाओं के बारे में पूछे जाने पर बीजेपी प्रवक्ता यशपाल सिसौदिया ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं इस पर टिप्पणी नहीं कर सकता कि किस वजह से अभय जैन और अन्य लोगों ने बीजेपी के प्रति ऐसी राय बनाई होगी.’

उन्होंने कहा, “डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय के दृष्टिकोण पर चलते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार अंतिम व्यक्ति के विकास के लिए काम कर रही है, चाहे वह राज्य में हो या केंद्र में.”


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संस्थापक कौन हैं?

जैन ने कहा कि वह नौ साल की उम्र में आरएसएस में शामिल हो गए जब उन्होंने शाखाओं में भाग लेना शुरू किया और भोपाल के मौलाना आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएएनआईटी) से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद 1985 में इंदौर में प्रचारक बन गए.

उन्होंने 10 वर्षों तक इंदौर में काम किया और फिर इंदौर शहर और बाद में इंदौर संभाग के प्रभारी बने, जिसमें इंदौर, धार, देवास और झाबुआ सहित तमाम ज़िले शामिल थे. इस दौरान उन्होंने झाबुआ और धार जिलों में आदिवासी लोगों के बीच काम किया.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि मध्य प्रदेश में आरएसएस के प्रांत सेवा प्रमुख और 2005 में बौद्धिक शाखा (इसकी बौद्धिक शाखा) के रूप में कार्य करने के बाद, जैन ने 2007 में संघ में अपना आधिकारिक पद छोड़ दिया और 2008 में भारत हितरक्षक अभियान नामक एक सामाजिक संगठन शुरू किया.

महेश काले दूसरी पीढ़ी के आरएसएस कार्यकर्ता हैं, जो 1991 में 22 साल की उम्र में प्रचारक बने. उन्होंने कहा, 2008 में पद छोड़ने से पहले उन्होंने ग्वालियर-चंबल और रीवा क्षेत्रों में काम किया.

उन्होंने कहा, “मेरा परिवार 1940 के दशक से आरएसएस का हिस्सा रहा है, लेकिन अब पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं के बीच अलगाव होता दिख रहा है.”

विशाल बिंदल ने झारखंड जाने से पहले भोपाल में प्रचारक के रूप में काम किया, जहां वह वर्तमान में देवगढ़ और गोड्डा जिलों में काम कर रहे हैं. राजा राम और मनीष काले ने मध्य प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में प्रचारक के रूप में भी काम किया.

ये चारों व्यक्ति 2008 में भारत हितरक्षक अभियान का हिस्सा बनने के लिए जैन से जुड़े.

जैन और काले ने कहा कि पिछले 15 वर्षों में, भारत हितरक्षक अभियान ने इंदौर में 2008 के दंगों में आरोपी हिंदुओं और 2008 के मालेगांव बम विस्फोट के संबंध में आरोपियों के लिए लड़ने सहित मुद्दों पर काम किया है.

उन्होंने मध्य प्रदेश को हिलाकर रख देने वाले व्यापम् घोटाले की उच्च न्यायालय से जांच कराने की मांग को लेकर प्रदर्शन भी किया. पूर्व प्रचारकों के अनुसार, COVID-19-प्रेरित लॉकडाउन के दौरान, सामाजिक संगठन ने स्ट्रीट वेंडरों के अधिकारों और आजीविका के लिए लड़ाई लड़ी.

पिछले साल, संगठन ने ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की 108 फुट ऊंची प्रतिमा बनाने की राज्य सरकार की योजना का विरोध किया था, जिसे एकता की प्रतिमा के रूप में जाना जाता है. पूर्व आरएसएस सदस्यों ने कहा कि उन्होंने एक हस्ताक्षर अभियान चलाया था और पेड़ों की कटाई और पवित्र मंधाता पहाड़ी को नुकसान पहुंचाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था, जहां प्रतिमा स्थापित करने का प्रस्ताव था.

एक राजनीतिक पार्टी बनाने की आवश्यकता के बारे में बात करते हुए, महेश काले ने कहा कि जब वे ओंकारेश्वर में पेड़ों की कटाई के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने के लिए भोपाल आए थे, तो उन्हें विरोध प्रदर्शन करने के लिए जगह नहीं दी गई थी.

उन्होंने कहा,“कांग्रेस सरकार की तरह काम करते हुए, भाजपा भी विपरीत विचार रखने वाले लोगों को कोई जगह नहीं देना चाहती है. जनहित पार्टी उन्हें शासन का रास्ता दिखाएगी.”

कांग्रेस के कामकाज पर की गई टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर, पार्टी के राज्य मीडिया प्रभारी के.के. मिश्रा ने कहा, ”यह समूह और यह पार्टी और कुछ नहीं बल्कि सिर्फ संघ परिवार की बी-टीम है. अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के बीच बढ़ते असंतोष को देखते हुए, यह सुनिश्चित करने के लिए एक रणनीतिक कदम है कि जो लोग भाजपा से नाखुश हैं वे कांग्रेस में न जाएं, बल्कि उनके साथ जुड़ें.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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