बालोतरा, राजस्थान: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में फिर से शामिल होने के अपने फैसले का बचाव करते हुए पूर्व सांसद मानवेंद्र सिंह ने दिप्रिंट से कहा है कि कांग्रेस में रहते हुए उनका धैर्य खत्म हो गया था और जैसे ही भाजपा में परिस्थितियां बदलीं, वे पार्टी में लौट आए.
भाजपा के पूर्व मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र 2018 में पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इस महीने की शुरुआत में वे राजस्थान के बाड़मेर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली से पहले फिर से भाजपा में शामिल हो गए, जहां पीएम ने अपने भाषण की शुरुआत राज्य के एक बड़े राजपूत नेता, जो भारत में प्रमुखता से उभरे, दिवंगत जसवंत सिंह को याद करते हुए की.
गुरुवार को एक मंदिर में दिप्रिंट के साथ खास बातचीत में मानवेंद्र ने भाजपा में फिर से शामिल होने के अपने फैसले और पार्टी में अपनी भूमिका के बारे में अपेक्षाओं पर चर्चा की.
उन्होंने कहा, “मूल रूप से तो मैं भाजपा में ही था और ऐसी परिस्थितियां थीं, जिन्होंने कांग्रेस में पांच साल की अवधि के लिए हस्तक्षेप किया, लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं और मैं भाजपा में लौट आया हूं.”
उन्होंने कहा, “जब मैं कांग्रेस के साथ था तो मेरा धैर्य खत्म हो रहा था. मुझे लगा कि मैं अकेला हूं और इसलिए मुझे खुद को और परिवार को बचाने के लिए बाहर निकलना पड़ा. 2018 के बाद से (भाजपा में) रुकावटें दूर हो गई हैं. किसी को बुरा भला कहना मेरे स्वभाव में नहीं है; अतीत तो अतीत है, हमें आगे बढ़ना होगा और मैं जो कर रहा हूं उसका पूरा उद्देश्य जीवन में आगे बढ़ना है.”
मानवेंद्र के अनुसार, भाजपा में शामिल होना एक “पारिवारिक फैसला” है. उन्होंने कहा, “हालांकि, हर कोई एक ही ट्रेंड पर नहीं है, परिवार में हममें से अधिकांश लोग एक ही ट्रेंड पर हैं और हमने फैसला किया है कि अब आगे बढ़ने और उन लोगों के साथ रहने का समय है जिनके साथ हम बड़े हुए हैं और जो बेहद गर्मजोशी से भरे रहे हैं.”
कांग्रेस में शामिल होने के पीछे अपने कारणों के बारे में बताते हुए सिंह ने कहा कि यह “काफी हद तक (वरिष्ठ कांग्रेस नेता) राहुल गांधी के साथ मेरे स्नेह और दोस्ती के कारण था”.
मानवेंद्र ने दिप्रिंट से कहा, “उन्होंने मुझे बहुत कठिन परिस्थितियों में देखा है और (2014 में भाजपा से जसवंत सिंह के निष्कासन के बाद) आप मेरे और परिवार के साथ होने वाले सभी परेशानियों से वाकिफ हैं. राहुल की दयालुता ने उन्हें हस्तक्षेप करने पर मजबूर किया और उन्होंने मुझे (पार्टी की) सदस्यता और स्नेह दिया और इस तरह से मैं उनसे जुड़ गया. इसलिए मैं उनकी वजह से पार्टी में शामिल हुआ.” उन्होंने कहा कि कांग्रेस छोड़ने के बावजूद भी गांधी के साथ उनकी दोस्ती बनी रहेगी.
मानवेंद्र ने आगे कहा कि गांधी की कार्यशैली और कांग्रेस तथा उनकी राजनीति के लिए उनका दृष्टिकोण कुछ स्थापित राज्य समर्थकों को पसंद नहीं आ रहा था और वे उस बदलाव का विरोध कर रहे थे जिसे गांधी स्थापित करना चाहते थे.
उन्होंने कहा, “मैं इसे पीढ़ीगत परिवर्तन कहूंगा, या आप इसे सांस्कृतिक परिवर्तन कह सकते हैं. मुझे लगता है कि वे उनके प्रयासों का विरोध करते हैं और इसीलिए जहां तक उनका सवाल है, चीज़ें ठीक से नहीं हो रही हैं.”
मानवेंद्र ने कहा, “वो स्नेह (मानवेंद्र का गांधी के साथ स्नेह) राजस्थान में ज़मीनी स्तर पर लागू नहीं होता है, विभिन्न नेता और स्थानीय लोग दिल्ली में सीधी दोस्ती से नाराज़ हैं. राजस्थान कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का मानना है कि दिल्ली में कोई भी बात (फैसले) जयपुर से होकर होनी चाहिए. इसलिए पिछले पांच साल में हमेशा कुछ छोटी-मोटी समस्याएं रहीं — नीतिगत मामले और व्यक्तिगत मामले भी और फिर भाजपा के भीतर चीज़ें बदल गईं और बाधाएं दूर हो गईं.
जब मानवेंद्र से बाधाओं को बारे में स्पष्टता से बात करने को कहा गया, तो उन्होंने कहा, “रुकावटें हमेशा राजनीतिक होती हैं और उन बाधाओं को हटा दिया गया है और मैं नाम हटाकर और अधिक विवाद नहीं जोड़ना चाहता.”
जब उनसे आगे पूछा गया कि क्या रुकावटें राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को संदर्भित करती हैं, तो उन्होंने कहा: “आप बाधाओं की व्याख्या किसी भी व्यक्ति या किसी भी समूह के रूप में कर सकते हैं जिसे आप करना चाहते हैं… इसलिए उन्हें हटा दिया गया और जिन लोगों को मैं राजनीति में बड़े पैमाने पर जानता हूं इसी समूह से थे.”
उन्होंने दिप्रिंट को आगे बताया कि उन्होंने पहले ही बीजेपी के लिए प्रचार शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा, “(राजस्थान के) सीएम (भजनलाल शर्मा) ने मुझे यह बताने के लिए काफी स्पष्टता दी थी कि मेरे पास एक सीट से भी बड़ी जिम्मेदारी है.”
मानवेंद्र ने यह भी स्पष्ट किया कि हालांकि, उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतारने के बारे में कई अटकलें थीं, लेकिन वे “चुनावी चुनौती लेने के लिए भावनात्मक और शारीरिक रूप से तैयार नहीं हैं क्योंकि उन्हें हाल ही में अस्पताल में भर्ती कराया गया था और वे अभी भी फिजियोथेरेपी पर निर्भर हैं.”
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‘शासन की एक नई संस्कृति’
नौ बार सांसद रहे, जसवंत सिंह का जन्म राजस्थान के जसोल गांव (बाड़मेर जिले के एक हिस्सा) में हुआ था और उन्होंने राज्य से तीन लोकसभा चुनाव जीते. वे भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और भारत के वित्त, रक्षा और विदेश मंत्री भी रहे.
दस साल पहले, 2014 के लोकसभा चुनाव में बाड़मेर से निर्दलीय चुनाव लड़ने के बाद भाजपा ने जसवंत सिंह को निष्कासित कर दिया था. उस साल वसुंधरा राजे से प्रतिद्वंद्विता के कारण जसवंत को इस सीट से टिकट नहीं दिया गया. हालांकि, वे कांग्रेस के दलबदलू सोना राम से हार गए, जो भाजपा के टिकट पर जीते थे.
2004 में बीजेपी के लिए बाड़मेर से जीत हासिल करने वाले मानवेंद्र ने 2018 में पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्होंने 2019 में कांग्रेस के टिकट पर फिर से सीट पर दावा करने की कोशिश की, लेकिन कैलाश चौधरी से हार गए, जिन्हें भाजपा ने फिर से उम्मीदवार घोषित किया है. पिछले साल मानवेंद्र राजस्थान विधानसभा चुनाव भी हार गए थे और कहा जा रहा था कि वे कांग्रेस में नाखुश हैं.
माना जा रहा है कि अब भाजपा ने बाड़मेर सहित राजपूत बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी संभावनाएं बेहतर करने के लिए मानवेंद्र को फिर से शामिल किया है.
मानवेंद्र ने कहा, “आप उस दौर को जानते हैं जब उन्हें (जसवंत सिंह) आश्वासन दिए जाने के बाद भी टिकट नहीं दिया गया था और आखिरी बार बिना किसी उम्मीद के चुनाव लड़ने की उनकी इच्छा थी. मेरे पिता के कदम को विफल किया गया और इसके पीछे के लोगों की एक संस्कृति थी, जो अब (भाजपा में) नहीं है.”
भजनलाल शर्मा के बारे में उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा यकीन है कि राजस्थान का मुख्यमंत्री एक आश्चर्यजनक चयन होगा. उन्होंने कहा, “यह विचार शासन की एक नई संस्कृति पर मुहर लगाने का था. मुझे लगता है कि राजस्थान राजनीतिक रूप से शांत राज्य है.”
जब मानवेंद्र से पूछा गया कि राजे को भाजपा द्वारा दरकिनार कर दिया गया है, जैसा कि उनके समर्थकों द्वारा दावा किया जा रहा है, तो उन्होंने पूछा: “आप किसी ऐसे व्यक्ति को प्रमुख भूमिका कैसे दे सकते हैं जो राज्य में मुख्यमंत्री रहा हो?”
‘हर चुनाव एक चुनौती है’
भाजपा उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी को बाड़मेर में कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है, इस पर मानवेंद्र ने कहा, “हर चुनाव किसी भी उम्मीदवार के लिए एक चुनौती है और खासकर यदि आप एक मौजूदा (सांसद) और मंत्री हैं.”
जब उनसे कांग्रेस और अन्य दलों के हज़ारों कार्यकर्ताओं और नेताओं के भाजपा में शामिल होने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि पिछले 10 साल में प्रौद्योगिकी ने वैश्विक स्तर पर राजनीति को बदल दिया है.
मानवेंद्र ने कहा, “सोशल मीडिया की विचारधारा के मूल्य को कम करने में भूमिका रही है और सोशल मीडिया का सरासर तमाशा एक आभा बनाता है, जो उस एक विशेष व्यक्ति या उस व्यक्ति के समूह को सम्मोहक बनाता है. चुनावी राजनीति के खेल में जहां उद्देश्य चुनाव जीतना है, आप सर्वोत्तम संभव स्थिति की तलाश करते हैं और, मुझे लगता है, आप जानते हैं, कुछ लोगों में अपनी पार्टी को बनाए रखने के लिए धैर्य की कमी है.”
केंद्र में मोदी के कार्यकाल पर उन्होंने कहा कि मोदी के नेतृत्व में भारत की छवि बहुत बदल गई है और यह पीएम द्वारा हासिल की गई अंतरराष्ट्रीय प्रशंसा में स्पष्ट है.
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि 1947 के बाद से भारत में जो सबसे बड़ा बदलाव हुआ, वह 1998 का परमाणु परीक्षण था, जिसके बाद भारत ने खुद को परमाणु शक्ति घोषित कर दिया. विदेश नीति, सुरक्षा नीति, अर्थशास्त्र और किसी भी अन्य नीति के संदर्भ में यह सबसे बड़ा बदलाव था, जिसके बारे में आप सोच सकते हैं.”
(इस इंटरव्यू को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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