मुंबई: महाराष्ट्र की महा विकास अघाडी (एमवीए) सरकार ने राज्य में तमाम स्थानीय इलाकों और बस्तियों के जाति आधारित नामों को बदलने की व्यापक कवायद शुरू करने की योजना बनाई हैं जिन्हें बदलकर ऐतिहासिक हस्तियों पर या ऐसा कुछ किया जाएगा जो उपयुक्त हो.
राज्य मंत्रिमंडल ने बुधवार को सर्वसम्मति से इस फैसले को मंजूरी दी और राज्य शहरी विकास और ग्रामीण विकास विभागों को निर्देश दिया कि वे ऐसे सभी क्षेत्रों और बस्तियों की पहचान करें जिनका नाम किसी जाति पर आधारित है.
राज्य के एक अधिकारी ने कहा कि सरकार जल्द ही इस संबंध में एक प्रस्ताव जारी करेगी.
सामाजिक न्याय मंत्री धनंजय मुंडे ने एक बयान जारी कर कहा, ‘महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों और गांवों में कुछ इलाकों के नाम जाति-आधारित हैं जैसे महारवाड़ा, मंगवाड़ा, ब्राह्मणवाड़ा आदि. इस तरह के जाति विभाजन पर आधारित नाम हमारे प्रगतिशील राज्य के अनुकूल नहीं हैं. यही सोचकर सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता की भावना बढ़ाने के उद्देश्य से सामाजिक न्याय विभाग ने राज्य मंत्रिमंडल को ऐसे सभी नामों को बदलने का प्रस्ताव भेजा. इसमें कहा गया कि इन्हें महान हस्तियों या अन्य उपयुक्त नामों से बदला जा सकता है जैसे समतानगर, भीमनगर, ज्योतिनगर, क्रांतिनगर आदि’
उन्होंने आगे कहा कि एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने कुछ दिनों पहले ही ऐसे जाति-आधारित नामों पर नाखुशी जताते हुए कहा था कि मौजूदा समय में ये अनुचित हैं, जिसके बाद मुंडे ने अपने विभाग को इन्हें बदलने का प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया.
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अंबेडकर की पुण्यतिथि से पहले फैसला
यह फैसला डॉ. बी.आर. अंबेडकर की पुण्यतिथि 6 दिसंबर से ऐन पहले आया है. हर साल महाराष्ट्र भर से उनके लाखों अनुयायी चैत्यभूमि में अपने नेता को श्रद्धांजलि देने के लिए मुंबई पहुंचते हैं, जहां उनकी अस्थियों को रखा गया था. यह स्थान दादर में शिवाजी पार्क के पास ही है.
इस वर्ष, चूंकि राज्य अभी कोविड-19 की चपेट में हैं, ऐसे में राज्य सरकार ने किसी को चैत्यभूमि जाने की अनुमति नहीं दी है और आगंतुकों के लिए शिवाजी पार्क में भी कोई व्यवस्था नहीं की जा रही. इसके बजाये श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए लोगों को एक फेसबुक लाइव लिंक भेजा जाएगा.
जाति आधारित स्थानीय नामों को बदलने का फैसला सितंबर 2019 में पिछली सरकार के लिए एक अन्य फैसले की ही अगली कड़ी है जिसके तहत हर तरह के सरकारी पत्राचार से ‘दलित’ शब्द हटाने और उसकी जगह ‘अनुसूचित जाति’ या ‘नव-बौद्ध’ इस्तेमाल किया जाना तय किया गया था.
उक्त फैसला सरकारी पत्र-व्यवहार, रिकॉर्ड और प्रमाणपत्रों में दलित शब्द की जगह ‘अनुसूचित जाति’ और ‘नव-बौद्ध’ का इस्तेमाल करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की तरफ से जारी दिशानिर्देश के अनुरूप एक सरकारी प्रस्ताव के माध्यम से लागू किया गया था.
इससे पहले, 2011 में तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने ‘दलित बस्ती सुधार योजना’ का नाम बदलकर ‘अनुसूचित जाति और नव-बौद्ध बस्ती सुधार योजना’ करने का फैसला किया था. इसी तरह 2012 में राज्य सरकार ने डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर दलित मित्र पुरस्कार का नाम बदलकर डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर समाज भूषण पुरस्कार करने का निर्णय लिया था.
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