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Monday, 23 December, 2024
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हारी हुई बाज़ी के बावजूद कहां-कहां सरकारें बना चुकी है भाजपा

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब भाजपा किसी राज्य की सरकार को गिराने की कोशिश कर रही हो. बीते कुछ सालों के इतिहास को उठाकर देखें तो ऐसा कई बार हो चुका है.

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नई दिल्ली: मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता शिवराज सिंह चौहान ने एक बार कहा था कि वो कमलनाथ सरकार को कभी भी गिरा सकते हैं. इसका जवाब देते हुए मौजूदा मुख्यमंत्री और कांग्रेसी नेता कमलनाथ ने चुनौती देते हुए कहा था कि भाजपा में हिम्मत है तो मेरी सरकार गिरा कर दिखाए.

ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा ज्वॉइन करते ही कमलानथ सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं. एक तरफ भाजपा ने मध्यप्रदेश के अपने विधायकों को हरियाणा में ठहरा रखा है तो कांग्रेस ने अपने विधायक राजस्थान में. पिछले पखवाड़े से कमलनाथ सरकार के गिरने के कयासों वाली खबरों से राष्ट्रीय अखबार भरे पड़े हैं.

इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भाजपा नेताओं पर आरोप लगाते रहे कि वो कांग्रेस के विधायकों और नेताओं की खरीद-फरोख्त में संलिप्त हैं. लेकिन देश के राजनीतिक गलियारों में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. आया राम-गया राम से शुरू हुई होर्स ट्रेडिंग का ये राजनैतिक पैंतरा बड़े स्तर पर हो रहा है. आइए नज़र डालते हैं उन राजनीतिक घटनाओं पर जब भाजपा ने राज्यों में सरकारें गिराईं और बडे़ स्तर पर दूसरी पार्टी के विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल किया.

अरुणाचल प्रदेश

साल 2016 में भाजपा अरुणाचल प्रदेश में कमल खिलाने में कामयाब रही, वो भी तब जब 60 सदस्यीय विधानसभा में उसके पास केवल 11 विधायक थे. दरअसल भाजपा ने मुख्यमंत्री पेमा खांडू के नेतृत्व वाली पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) के 43 में से 33 विधायक तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कर लिए. 44 विधायकों के बहुमत के साथ भाजपा ने प्रदेश में अपनी सरकार बना ली.

लेकिन इसके पीछे भी कई राजनीतिक घटनाक्रम हुए थे. पीपीए अध्यक्ष काहफा बेंगिया ने पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाते हुए पेमा खांडू समेत अन्य पांच विधायकों को पार्टी की सदस्यता रद्द कर दी थी. जिसके बाद भाजपा ने खांडू और बाकी विधायकों को अपने पाले में ले लिया.


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नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस की सरकार में सहयोगी पीपीए ने पहले टकाम पेरियो को मुख्यमंत्री के पद के लिए चुना लेकिन अगले ही दिन राजनीतिक समीकरण बदल गए. विधायकों ने टकाम की जगह खांडूं को मुख्यमंत्री के चेहरा चुन लिया.

गोवा

साल 2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 16 सीटें जीतकर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी. भाजपा को इस चुनाव में केवल 14 सीटें हासिल हुईं लेकिन इसके बावजूद भाजपा निर्दलीय विधायकों की मदद से सरकार बनाने में कामयाब रही. इस बात की चौरतरफा आलोचना हुई कि कायदे से बहुमत मिलने वाली पार्टी को सरकार बनाने का दावा पेश करने दिया जाना था. लेकिन वरिष्ठ भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने पार्टी के कदम को सही ठहराते हुए कहा था, ‘सरकारिया कमीशन के मुताबिक कांग्रेस को पहले क्लेम करना चाहिए था. लेकिन गोवा में कांग्रेस रातभर सोई रही. ‘

गोवा की राजनीति में उथल-पुथल यहीं नहीं थमी. इसके ठीक दो साल बाद कांग्रेस के दो तिहाई विधायक (15 में से 10) भाजपा ने तोड़ लिए. इसके साथ ही भाजपा के विधायकों की संख्या 27 पहुंच गई. भाजपा का ये राजनीतिक पैंतरा सिर्फ गोवा तक ही सीमित नहीं रहा है.

मणिपुर

2017 के मणिपुर विधानसभा चुनावों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं हुआ था. मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 28 सीटें हासिल हुई थीं और भाजपा को 21 सीटें. बहुमत के लिए किसी भी पार्टी को 31 सीटों की जरूरत थी. मगर इसी बीच भाजपा ने 32 विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया.

लेकिन इस पर भी भाजपा नेता रविशंकर ने टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘कांग्रेस ने आजतक मणिपुर में सरकार बनाने का दावा नहीं किया है.’

मणिपुर में एन बीरेन सिंह को मणिपुर के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई गई. गौरतलब है कि वो एक साल पहले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे. मणिपुर, गोवा और अरुणाचल के अलावा सबसे ज्यादा चर्चित अखबारों द्वारा छापी गई ‘कर्नाटक में नाटक’ थी जिसे देश के उदारवादी तबके ने लोकतंत्र का मजाक उड़ाना भी कहा.

कर्नाटक

जुलाई 2019 में राजनीति में चले इस हाई वोलटेज़ ड्रामे के साक्षी पूरे देश की जनता बनी. होर्स ट्रेडिंग के नए आयाम भी छुए. गौरतलब है कि 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा को 104 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. कांग्रेस को 80 सीटें मिली थीं और जेडीएस को 37 सीटें. दूसरे राज्यों में जनमत और बहुमत का उदाहरण देने वाली कांग्रेस पार्टी ने इसबार भाजपा से पहले ही सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. कांग्रेस ने ये जेडीएस के समर्थन से किया.


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हालांकि गवर्नर ने भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रण भेजा था. लेकिन भाजपा बहुमत नहीं साबित कर पाई. इस बीच कांग्रेस और जेडीएस सरकार बनाने में कामयाब रही. गठबंधन ने कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन कुछ दिन के बाद ही विधानसभा के 11 विधायकों (8 कांग्रेस और तीन जेडीएस) ने इस्तीफा दे दिया. कुमारस्वामी इस दौरान लगातार भाजपा पर विधायक खरीदने के आरोप लगाते रहे. आखिरकार कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिराकर भाजपा इस राज्य में भी सरकार बनाने में कामयाब रही.

जहां भाजपा जोड़-तोड़कर सरकार बनाने में नाकामयाब रही वहां पार्टी ने विपक्ष में बैठने के लिए राजनीतिक प्रपंच रचे. जैसे सिक्किम राज्य.

सिक्किम

साल 2019 में सिक्किम में पिछले 25 सालों से शासन चला रही सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ़) के 10 विधायक रातों-रात भाजपा में शामिल करा लिए गए. वो भी तब जब 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा यहां से एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. लेकिन यहां भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी. हालांकि विधायकों के इस दल बदलू कदम की बड़े स्तर पर आलोचना हुई क्योंकि जनता ने भाजपा को केलव 1.62 प्रतिशत वोट देकर नकार दिया था.

मध्यप्रदेश को लेकर फिलहाल राजनीतिक गलियारों में बहस जारी है कि अगर भाजपा मध्य प्रदेश में सरकार गिरा सकती है तो राजस्थान की राजनीति भी इससे प्रभावित होगी. सचिन पायलट के हालिया ट्वीट के बाद नए तरीके के कयास लगने शुरू हो गए हैं.

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