नई दिल्ली: ‘ब्रांड मोदी’ का जलवा अब भी बरकरार है. गुरुवार को जारी चुनाव परिणाम इसकी तस्दीक करते हैं. चाहे कोविड-19 जैसी सार्वजनिक स्वास्थ्य का आपातकाल हो, आर्थिक संकट हो या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं, मोदी मतदाताओं की पसंद बने हुए हैं.
संकट के गहराने के साथ ही ब्रांड मोदी की वैल्यू बढ़ जाती है.
लेकिन, इस बार के विधानसभा चुनाव के नतीजों से तीन और सबक मिले हैं:
कांग्रेस के लिए आप ज़्यादा बड़ा खतरा, बीजेपी नहीं
आम आदमी पार्टी के विधायक सोमनाथ भारती ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को ‘घमंडी’ और ‘छोटा मोदी’ बताया.
हालांकि, इस गुस्से की कोई स्पष्ट वजह नहीं थी. चाहे, ऐसा हो भी सकता है. केसीआर गैर कांग्रेस और गैर बीजेपी मोर्चा बनाने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों के मुख्यमंत्री और उनके नेताओं से मिल रहे हैं. हालांकि, उन्होंने इस परामर्श की कवायद से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अलग रखा है.
इसी तरह से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी उनके साथ रेस में हैं. उन्होंने तृणमूल कांग्रेस को गोवा में तीसरे विकल्प के तौर पर पेश करने की बात कही है. इस बात से बेपरवाह कि यहां पर केजरीवाल की पार्टी आप ने भी दावेदारी की है.
आप विधायक का हमला केसीआर पर था. लेकिन, इसमें ममता बनर्जी, एम.के. स्टालिन, शरद पवार और अन्य विपक्षी खेमे के लिए भी एक संदेश छिपा था. वह संदेश था: केजरीवाल आ गए हैं, झुक जाओ.
एग्जिट पोल में पंजाब में आप के ऐतिहासिक जीत का अनुमान लगने के बाद भारती ने यह बात कही. पहले दिल्ली में और अब पंजाब में सरकार बनाने के बाद, केजरीवाल गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस पार्टियों में पहले नंबर पर आ गए हैं. अब पार्टियों के पास इनमें से कोई एक ही विकल्प बचता है- या तो उनके साथ चलें या अलग हो जाएं.
लेकिन, राहुल गांधी को इस संदेश को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है. मोदी बनाम राहुल के बहस का दौर थम चुका है. हालांकि, कांग्रेस नेता मोदी युग के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं. यह सच है कि राहुल गांधी ने खुद को मोदी के एकमात्र चुनौती देने वाले राजनेता की छवि बनाई है. चाहे कितना भी इंतजार करना पड़े वह सर्वोच्च पद पाने का इंतजार करेंगे. विपक्ष के दूसरे नेता अपने राज्य तक सीमित हैं और राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य विरोधी को मामूली चुनौती दे रहे हैं.
पंजाब में आप को मिली जीत ने पूरे सियासी माहौल को बदल दिया है. यकीन मानिए, केजरीवाल इस अवसर को हाथ से जाने न देंगे. आगे बढ़ने से पहले, वह गुजरात और हिमाचल प्रदेश पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे, जहां पर नवंबर-दिसंबर में चुनाव होने वाले हैं. मौजूदा स्थिति में आप का लक्ष्य बीजेपी के कोर वोटर नहीं होंगे.
2019 लोकसभा चुनाव में 62 फीसदी मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया था. केजरीवाल की नजर इन वोटर पर होगी. केंद्र और कई राज्यों में बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर पाने में बार-बार नाकाम रहने की वजह से निश्चित तौर पर इन वोटर का अपने नेताओं से मोहभंग हुआ होगा. इसका उदाहरण गुजरात है. ऐसे वोटर के सामने केजरीवाल खुद को बेहतर विकल्प के तौर पर पेश कर सकते हैं. केजरीवाल की पार्टी अब दो राज्यों में सत्ता में होगी और उनके पास दिखाने के लिए दिल्ली मॉडल भी है. यही वजह है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के लिए बड़ा खतरा बन सकती है.
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बीजेपी में नंबर तीन का उदय
सितंबर 2013 में मोदी को बीजेपी के पीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश करने के बाद से सत्ताधारी पार्टी में शीर्ष दो पद आरक्षित हो गए थे, चाहे आधिकारिक तौर कोई भी पद पर रहे. गुरुवार को चुनाव परिणाम आने के बाद, फिलहाल योगी आदित्यनाथ शीर्ष के तीन नेताओं में शामिल हो गए हैं.
80 लोकसभा सीट वाले सबसे बड़े राज्य में में दो बार मुख्यमंत्री बनना और सबसे लंबे समय तक राज्य का बीजेपी मुख्यमंत्री बनने से योगी का राजनीतिक महत्व बढ़ गया है. हो सकता है कि योगी ऑर्गेनाइजेशन मैन न हो, लेकिन उनकी लोकप्रियता यूपी के बाहर भी है. दक्षिण के बीजेपी सांसद भी इस बात को मानते हैं.
सबसे मुख्य बात है कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के चहेते बन गए हैं. योगी को एक महत्वाकांक्षी नेता के रूप में जाना जाता है. याद कीजिए कि कैसे उन्होंने अपने समर्थकों को लखनऊ में उस जगह के बाहर अपने पक्ष में नारे लगाने के लिए कहा था, जहां बीजेपी विधायक 2017 में सीएम उम्मीदवार चुनने के लिए बैठक कर रहे थे. मौजूदा स्थितियों में हो सकता है कि वह तीसरे नंबर का दर्जा पाने के बाद संतुष्ट न हों
बीएसपी की दलित राजनीति का अंत
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का निराशाजनक प्रदर्शन दलित राजनीति पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है. इन राज्यों में अनुसूचित जाति की अच्छी खासी संख्या है. हालांकि, नतीजों की पूरी जानकारी आनी अभी बाकी है. लेकिन, यह स्पष्ट है कि बसपा का जाटव वोट बैंक उससे दूर हो गया है और बीजेपी को इसका सबसे ज़्यादा फायदा मिला है.
वैसे भी दूसरे राज्यों के चुनावों में बसपा का वजूद खत्म हो चला था. उत्तर प्रदेश में, हर चुनाव में बसपा का वोट शेयर घटा है. यह साल 2007 में 30 प्रतिशत, 2012 में 26 प्रतिशत और 2017 में घटकर 22 प्रतिशत रह गया था. इस चुनाव में यह और नीचे जाता दिख रहा है.
विकल्प और लोगों को साथ जोड़ने की रणनीति के अभाव के कारण आखिरकार, दलितों का झुकाव बीजेपी की ओर बढ़ रहा है. इसका भविष्य में यूपी की राजनीति पर एक महत्वपूर्ण और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा. इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा.
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