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Monday, 6 May, 2024
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कांग्रेस नेताओं की राय, टीम राहुल में कोई ऐसा सशक्त सहयोगी नहीं जैसे सोनिया के साथ अहमद पटेल थे

सोनिया गांधी ने अपने शोक संदेश में उन्हें ‘अद्वितीय कॉमरेड और एक वफादार सहयोगी’ बताया. अहमद पटेल को शीर्ष नेतृत्व का पूरा भरोसा हासिल था और किसी भी मौके पर उनकी कही बातों को पूरा समर्थन मिलता था.

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नई दिल्ली: दिग्गज कांग्रेसी नेता अहमद पटेल के अचानक निधन से पार्टी में गहरी शून्यता की स्थिति आ गई है, कई नेताओं का कहना है कि उनकी कमी ‘अपूरणीय’ है.

पटेल ने केवल पार्टी के मुख्य रणनीतिकार और संकटमोचक की भूमिका ही नहीं निभाई, बल्कि वह कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के सबसे करीबी और विश्वासपात्र सहयोगी थे और उनके दाहिने हाथ के तौर पर जाने जाते थे.

सोनिया गांधी ने अपने शोक संदेश में उन्हें ‘अद्वितीय कॉमरेड और एक वफादार सहयोगी’ बताया. अहमद पटेल को शीर्ष नेतृत्व का पूरा भरोसा हासिल था और किसी भी मौके पर उनकी कही बातों को पूरा समर्थन मिलता था.

कांग्रेस के कई नेताओं के मुताबिक पार्टी नेताओं की मौजूदा पौध को देखते हुए तो ऐसा नहीं लगता कि कोई भी राहुल गांधी के लिए इस तरह की भूमिका निभा सकता है—जिनके सोनिया की जगह पार्टी की कमान संभालने की संभावना है.

दिप्रिंट ने विभिन्न कांग्रेस नेताओं से बात की, जिनमें अधिकांश का मानना था कि निकट भविष्य में राहुल गांधी के लिए ऐसी सशक्त भूमिका निभाने वाला कोई मिलना संभव नहीं लग रहा—कम से कम उनके ‘कोर ग्रुप’ से तो कतई नहीं.

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‘किसी के उनकी जगह लेने की कल्पना भी नहीं कर सकते’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि पार्टी में कोई भी ‘ऐसी भूमिका निभाने की स्थिति में आ सकता है.’

खुर्शीद ने कहा, ‘मैं ऐसा कुछ संभव होने की कल्पना भी नहीं कर सकता, निश्चित तौर पर अपने जीवनकाल में तो नहीं. अहमद भाई एक मौलिक विकास के साथ उस जगह पर पहुंचे थे जो मुझे दोबारा होता नजर नहीं आता.

उन्होंने आगे कहा, ‘जब किसी संगठन के शीर्ष से कोई हटता है तो एक बहुत बड़ी शून्यता आ जाती है…लेकिन ऐसा सिस्टम बना हुआ होता है जिससे कोई न कोई उस खाली जगह को भर देता है. लेकिन अहमद भाई तो अपने आप में ही एक सिस्टम बन चुके थे. आप किसी सिस्टम को कैसे बदल पाएंगे? मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि अब आगे क्या होगा?’

यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकारों के दौरान मंत्री रहे खुर्शीद ने कहा कि पार्टी में बहुत सारे ‘प्रतिभाशाली लोग’ हैं. ‘लेकिन मैं कह नहीं सकता कि क्या इस जगह को कैसे भर पाएंगे. यह तो समय ही बताएगा.’

जम्मू-कश्मीर के कांग्रेसी नेता सैफुद्दीन सोज ने भी कुछ इसी तरह की भावनाएं जताते हुए कहा कि ‘इस समय तो’ कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो ऐसी भूमिका निभा सके.

सोज ने कहा, ‘मुझे तो उनके जैसा कोई नजर नहीं आ रहा. अहमद भाई एकदम विरले ही व्यक्ति थे, वे वफादार थे, और शब्दों को बहुत घुमा-फिराकर इस्तेमाल नहीं करते थे.’

कांग्रेस कार्यसमिति के पूर्व सदस्य और पूर्व मंत्री सोज ने आगे कहा, ‘राहुल के साथ पुरुषों और महिलाओं की एक पूरी टीम है जो लगातार उनके साथ काम कर रही है. हो सकता है कि उन्हें कोई ऐसा मिल जाए जो ऐसी भूमिका निभा सकता हो. देखते हैं क्या होता है.’

‘अपने कोर ग्रुप से बाहर देखना होगा’

राहुल ने पिछले साल 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के लिए जिम्मेदारी लेने की कोशिश के तहत पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.

हालांकि, माना जा रहा है कि अगले साल की शुरुआत में वह फिर पार्टी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल सकते हैं क्योंकि पार्टी के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण को नए पार्टी प्रमुख की नियुक्ति के लिए जनवरी से पहले ही चुनाव कराए जाने की उम्मीद है.

कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा ने कहा कि यह देखते हुए कि राहुल पार्टी अध्यक्ष के रूप में वापसी करेंगे, उन्हें ‘अपने कोर ग्रुप के बाहर’ किसी ऐसे व्यक्ति को खोजना होगा जो उनके लिए वह भूमिका निभा सकता हो.

झा ने कहा कि इस समय में राहुल चार लोगों के करीब हैं—मुख्य कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, संगठन महासचिव के.सी. वेणुगोपाल, राज्यसभा सांसद और गुजरात के पार्टी प्रभारी राजीव सातव और सांसद और सीडब्ल्यूसी सदस्य मणिकम टैगोर.

उन्होंने कहा, ‘अहमद भाई ने पार्टी अध्यक्ष की ओर से तमाम बड़े फैसले लिए. तो उनकी भूमिका लगभग एक अध्यक्ष या वर्चुअल डिसीजन मेकर की रही है. ये चारों लोग न तो इतने साधन सम्पन्न हैं और न ही वैसी राजनीतिक हैसियत रखते हैं और न ही ऐसी बड़ी जिम्मेदारी संभालने की अपनी क्षमता दिखा पाए हैं.’

झा ने कहा, ‘राजीव सातव गुजरात के प्रभारी थे, जहां वह कोई कमाल नहीं दिखा पाए और रणदीप सुरजेवाला बिहार के प्रभारी थे, जहां पर हमने खराब प्रदर्शन ही किया है. इसलिए संदेश स्पष्ट है.’

दिप्रिंट ने फोन कॉल और एसएमएस के जरिये सुरजेवाला, वेणुगोपाल और सातव से संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई थी. इस बीच, दिप्रिंट की तरफ से जब टैगोर को कॉल की गई तो उन्होंने टिप्पणी से इनकार कर दिया.


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अपना नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस के एक सांसद ने दिप्रिंट से कहा, ‘ऐसी भूमिका संभालने के लिए किसी को व्यापक सोच वाला और स्पष्टवादी होना चाहिए. उनके मौजूदा समूह में ऐसा कोई नहीं है, वे पटेल की जगह की भरपाई नहीं कर सकते.’

‘शायद यह भूमिका खत्म ही कर दें’

इस बीच, पार्टी के अन्य नेताओं का कहना है कि हो सकता है कि राहुल किसी को ‘राजनीतिक सचिव’ या ‘राजनीतिक सलाहकार’ की भूमिका में रखना ही न चाहें.

महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता और पूर्व सांसद संजय निरूपम ने दिप्रिंट से कहा, ‘हर नेता के काम करने का अपना मॉडल, अपनी शैली होती है. मुझे नहीं लगता कि वह (राहुल) एक राजनीतिक सलाहकार या सचिव की तलाश कर रहे हैं, हो सकता है कि जब वह अध्यक्ष बने तो इस भूमिका को खत्म ही कर दें.’

राहुल की कोर टीम से अक्सर जुड़ने वाला एक अन्य नाम है एक पूर्व नौकरशाह कोप्पुला राजू, जिन्होंने 2013 से 2018 तक पार्टी के अनुसूचित जाति विभाग का काम संभाला.

काफी हद तक पटेल की ही तरह राजू भी मीडिया की सुर्खियों से दूर और लो-प्रोफाइल रहे है, लेकिन 2018 से राहुल की टीम में एक अहम जगह हासिल कर चुके हैं.

हालांकि, पटेल के विपरीत राजू ने कभी चुनाव नहीं लड़ा है. पटेल गुजरात से आठ बार के सांसद थे, तीन बार लोकसभा और पांच बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए.

निरुपम ने कहा, ‘राहुल की टीम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कुछ लोग है, इसमें वेणुगोपाल और राजू शामिल हैं. क्या इसके बाद भी वह किसी को अलग से राजनीतिक सलाहकार की भूमिका में चाहेंगे? मुझे तो ऐसा नहीं लगता.’

कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा, ‘अभी उस भूमिका के लिए किसी को नहीं चुना जा सकता.’

उदित राज ने कहा, ‘इस धरती पर कोई भी अमर नहीं है. मैं भी आया हूं तो जाऊंगा. लेकिन पार्टी चलती रहेगी. उनकी (पटेल की) जगह भरी नहीं जा सकती, लेकिन राहुल गांधी के लिए ऐसी भूमिका कौन निभाएगा यह समय ही बताएगा. कोई नहीं बता सकता कि किसी के दिमाग में क्या चल रहा है, वह कौन से गुण रखता है, यह सब व्यक्तिगत स्तर पर तय होता है.’

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अजय कुमार लल्लू ने कहा कि ‘अभी तो किसी का नाम नहीं सूझ रहा है.’ उन्होंने कहा, ‘अभी तो हम उनके (पटेल) निधन के शोक से भी नहीं उबरे हैं. इस बारे में तो बाद में ही कुछ सोच पाएंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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