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Wednesday, 20 November, 2024
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दिल्ली आएंगे नीतीश, बिहार के CM होंगे तेजस्वी- जदयू से फिर गठबंधन के बाद क्या है RJD की योजना

राजद नेताओं का मानना है कि सीएम नीतीश के डिप्टी के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल में तेजस्वी पिछली बार की तुलना में ज्यादा मुखर होंगे. पिछली बार उनके पिता लालू प्रसाद सभी निर्णय ले रहे थे.

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नई दिल्ली: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के बारे में भले ही गोलमोल जवाब दिया हो, लेकिन ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) राज्य में हुए नए सिरे से गठबंधन को तेजस्वी यादव के लिए एक बेहतरीन कदम के तौर पर देख रहा है और नीतीश कुमार के दिल्ली आने की उम्मीद पाले बैठा है.

राजद नेताओं का मानना है कि सीएम नीतीश के डिप्टी के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल में तेजस्वी पिछली बार की तुलना में ज्यादा मुखर होंगे. पिछली बार उनके पिता लालू प्रसाद सभी निर्णय ले रहे थे. राजद सूत्रों का कहना है कि लालू पहले ही पार्टी के सलाहकार की भूमिका में आ चुके हैं.

राजद के विधान परिषद सदस्य सुनील सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम 2024 में तेजस्वी को भावी सीएम के तौर पर देखते हैं. नीतीश दिल्ली की राजनीति में चले जाएंगे, जबकि वह बिहार पर शासन करेंगे. इसका मतलब यह नहीं है कि राजद राष्ट्रीय राजनीति से पूरी तरह अलग रहेगा. यह भाजपा विरोधी खेमे में एक खिलाड़ी बनना चाहता है.’

राजनीतिक जानकार और राजद नेता दोनों इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ताजा घटनाक्रम—जनता दल (यूनाइटेड) का भाजपा से नाता तोड़ना और राजद से हाथ मिलाना—नीतीश से ज्यादा तेजस्वी के लिए फायदेमंद साबित होगा.

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने तेजस्वी को ‘डी-फैक्टो सीएम’ करार दिया था.

तेजस्वी यादव ने घोषणा की है कि बिहार सरकार 10 लाख नौकरियां देने का वादा पूरा करेगी जो उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान किया था.

राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘राजद का भविष्य तेजस्वी के साथ जुड़ा है, और कोई भी यह नहीं कह सकता कि यह उज्ज्वल नहीं है. वह भविष्य में किसी भी चुनाव में सीएम पद के लिए सबसे आगे रहेंगे.’ साथ ही इस बात पर जोर दिया कि ‘अतीत की राजनीति कोई मायने नहीं रखती.’

पिछले पांच वर्षों में—जब नीतीश भाजपा के साथ थे तेजस्वी ने शासन के सभी मोर्चों पर राज्य सरकार पर हमला बोला, चाहे वह कानून-व्यवस्था का मामला हो या स्वास्थ्य और शिक्षा का खराब बुनियादी ढांचा. वह 2020 के बिहार चुनाव में काफी भीड़ जुटाने वाले साबित हुए और भाजपा-जदयू के लिए मुकाबला कड़ा बना दिया.

लेकिन अब तेजस्वी नीतीश के नेतृत्व में काम करेंगे, जो उनकी आक्रामकता की धार कुंद कर सकता है. बदले परिदृश्य में खासकर अगर 2025 में अगले विधानसभा चुनाव तक राजद-जदयू गठबंधन जारी रहता है, तो तेजस्वी को नीतीश कुमार सरकार के प्रदर्शन का बचाव करना होगा. वहीं भाजपा सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का लाभ उठाने की कोशिश करेगी.

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक डी.एम. दिवाकर का मानना है कि राजद नेता के लिए सत्ता विरोधी लहर भारी पड़ने के आसार कम ही हैं.

ए.एन. सिन्हा, सामाजिक अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेशक दिवाकर ने कहा, ‘भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया होता तो ऐसा होता. लेकिन 2020 के चुनावों के बाद भाजपा के मंत्रियों का प्रदर्शन कमजोर रहा है. लोग हमेशा इस सरकार के प्रदर्शन की तुलना उस समय की सरकार से करेंगे जब भाजपा सत्ता में थी.’

दिवाकर ने कहा कि इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम ने तेजस्वी को नीतीश कुमार के सियासी कौशल से सीखने का एक दुर्लभ मौका दिया है कि कैसे वह स्थितियों को अपने पक्ष में करते हैं.


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पिछले कार्यकाल से सबक सीखा

राजद नेताओं का मानना है कि तेजस्वी 2019 के लोकसभा चुनावों में नाकाम साबित हुए, जब 2014 की तुलना में पार्टी की सीटें चार से घटकर शून्य हो गई थीं. लेकिन वे बताते हैं कि कैसे उन्होंने राजद को 2020 के चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के लिए प्रेरित किया.

इस पर जोर देते हुए कि बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान के अलावा भाजपा का कोई अन्य सहयोगी नहीं है. राजद के एक विधायक ने कहा, ‘अब राजद और जदयू का संयुक्त वोट भाजपा की पहुंच से बाहर हो जाएगा. 2020 में भी महागठबंधन और एनडीए के बीच करीब 16,000 वोटों का ही अंतर था. हमने बोछा विधानसभा सीट 35,000 से अधिक मतों के अंतर से भाजपा से छीन ली थी.’

उन्होंने कहा, ‘इसलिए तेजस्वी 2019 की तुलना में बहुत अधिक बेहतर स्थिति में होंगे, जब राजद अपना खाता खोलने में नाकाम रहा था.’

243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में जदयू के 45 विधायक हैं, जबकि राजद के पास 79 हैं. कांग्रेस और वाम दलों के साथ, महागठबंधन के पास 122 के आवश्यक बहुमत से अधिक है. भाजपा के पास 77 विधायक हैं.

राजद विधायक ने कहा कि महागठबंधन को सिर्फ यह सुनिश्चित करना है कि यादव, मुस्लिम, कुर्मी, कुशवाहा और अति पिछड़ा वर्ग को मिलाकर बना उसका सामाजिक जनाधार बरकरार रहे.

2015 की महागठबंधन सरकार—जब नीतीश कुमार ने कुछ समय के लिए राजद और कांग्रेस से हाथ मिलाया था—आपसी विरोधों से घिरी हुई क्योंकि दो मुख्य साझेदार अलग-अलग दिशाओं में चल रहे थे.

बताया जाता है कि उस समय राजद के मंत्रियों ने सीएम नीतीश कुमार के प्रति कोई जवाबदेही नहीं दिखाई, कई मंत्री उनके जनता दरबार में भी नहीं आते थे और इसके बजाय सीधे लालू को रिपोर्ट करते थे.

सीवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन और नवादा के पूर्व विधायक राज बल्लभ यादव जैसे ‘बाहुबली’ भी एक चुनौती बन गए थे. आपराधिक मामलों के बावजूद राजद को उनकी गिरफ्तारी का विरोध करते देखा गया.

रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे वरिष्ठ राजद नेताओं की तरफ से नीतीश की सार्वजनिक आलोचना ने भी दोनों सहयोगियों के बीच कड़वाहट बढ़ा दी थी. नीतीश ने जहां भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए लालू से हाथ मिलाया था, वहीं दोनों सहयोगी दलों के लक्ष्य परस्पर विरोधी थे. राजद एमएलसी सुनील सिंह ने कहा, ‘तेजस्वी अब अधिक समझदार हो गए हैं, हम सुनिश्चित करेंगे कि पुरानी गलतियों को दोहराया न जाए.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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