नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गुरुवार को आए नतीजों में चार राज्यों में अपनी सत्ता बरकरार रखी है और इसके साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अभी 17 राज्यों पर शासन कर रहा है, जिसमें भारत का 44 फीसदी क्षेत्रफल और 49 फीसदी आबादी कवर होती है.
मार्च 2018 में अपने चरम पर होने के दौरान एनडीए 21 राज्यों पर शासन कर रहा था, जिसमें देश की 70 फीसदी आबादी बसती है और 76 फीसदी क्षेत्रफल कवर होता है.
नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखने के साथ ही भाजपा या एनडीए का विस्तार तेज़ हो गया. सितंबर 2013 में भाजपा ने उन्हें 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किया और अगले कुछ वर्षों तक पार्टी मुख्य तौर पर कांग्रेस की कीमत पर विभिन्न राज्यों में जीत हासिल करती रही.
हालांकि, 2018 के बाद से कुछ राज्यों में एनडीए की पकड़ भले ही कमजोर हुई है लेकिन ही राष्ट्रीय स्तर पर इसका एकाधिकार लगभग वैसा ही बना हुआ है.
वहीं, बीजेपी ने पूर्वोत्तर में अपने कदम मजबूती से जमा रखे हैं, लेकिन पिछले चार वर्षों में उसने कुछ बड़े राज्य गंवा दिए, जिसकी शुरुआत 2018 के विधानसभा चुनाव में कर्नाटक से हुई थी. उस वर्ष के अंत तक, भाजपा ने तीन और राज्यों—राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सत्ता भी गंवा दी.
पार्टी बाद में कर्नाटक और मध्य प्रदेश में फिर से सत्ता हासिल करने में कामयाब रही, जिसका श्रेय दलबदलु विधायकों को जाता है. वहीं कई राज्यों में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का नतीजा उसकी चुनावी हार के तौर पर सामने आया.
राज्यों में पार्टी की घटती पैठ के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अलग-अलग वोट देने के प्रति लोगों के झुकाव को भी जिम्मेदार माना जाता है.
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मोदी के लिए वोट देने से लेकर राज्य सरकारों का प्रदर्शन आंकने तक
मोदी के राष्ट्रीय क्षितिज में छाने के बाद शुरुआती वर्षों में लोग मुख्य तौर पर उनके नाम पर ही वोट दे रहे थे, यहां तक कि विधानसभा चुनावों में भी, चाहे भाजपा ने किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया हो या फिर कोई सीएम चेहरा सामने रखा ही नहीं गया हो.
उस अवधि में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य प्रशासन चलाने में बहुत कम अनुभव वाले मुख्यमंत्रियों को चुनकर सबको हैरत में डाल दिया. पार्टी ने महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, और झारखंड में रघुबर दास आदि को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना.
लेकिन जब लोगों को अगली बार विधानसभा चुनाव में मतदान का मौका मिला तो उन्होंने राज्य सरकारों के प्रदर्शन को आंकना शुरू कर दिया.
पीएम मोदी की लोकप्रियता तो वैसी ही बनी रही जो कि 2019 के लोकसभा चुनाव से स्पष्ट है, लेकिन भाजपा के कई मुख्यमंत्रियों को खराब प्रदर्शन की कीमत चुकानी पड़ी.
फडणवीस 2019 में महाराष्ट्र में सत्ता बरकरार नहीं रख सके, जिसका मुख्य कारण सहयोगी दल शिवसेना का चुनाव के बाद कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लेना रहा. 2019 के चुनाव में मतदाताओं ने रघुवर दास को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया, जबकि खट्टर 2019 के विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल करने के लिए दुष्यंत चौटाला की जेजेपी के समर्थन पर निर्भर हो गए.
इस साल विधानसभा चुनाव में भी पीएम मोदी फिर सबसे बड़ा फैक्टर रहे. भाजपा के चार मौजूदा मुख्यमंत्रियों—यूपी में योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी, गोवा में प्रमोद सावंत और मणिपुर में एन. बीरेन सिंह—में से केवल यूपी के मुख्यमंत्री ही कुछ बड़े जनाधार वाले नेता के तौर पर उभर पाए हैं.
लेकिन यूपी में भी मोदी फैक्टर ने आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को मात देने में निर्णायक भूमिका निभाई है.
विशेषज्ञों की राय
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो नीलांजन सरकार के मुताबिक, एनडीए को नुकसान की एक बड़ी वजह पुरानी पीढ़ी के सीएम हैं, जिन्होंने हर राज्य के मोदी के चुनावी चेहरा बनने के बाद अपनी अपील खो दी है.
सरकार ने दिप्रिंट से कहा, ‘आपको एनडीए के खोते नेतृत्व को देखना होगा. 2018 के बाद से हारने वाले ज्यादातर मुख्यमंत्री मोदी से पहले के हैं. जबसे मोदी कल्याणकारी योजनाएं लागू करने में प्रमुख चेहरा बने हैं, राज्य के मुख्यमंत्रियों ने अपनी अपील खो दी है.
भाजपा के राष्ट्रीय सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग के प्रभारी अमित मालवीय ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी और उसके सहयोगी जल्द ही अपनी पीक पोजीशन में आ जाएंगे.
उन्होंने कहा, ‘2018 से अब तक का एकमात्र बदलाव महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में आया है, जो भाजपा के पाले से बाहर हो गए हैं. अब जब इन राज्यों में चुनाव होंगे तो हम अपनी पीक वाली स्थिति में फिर पहुंच जाएंगे.’
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