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Thursday, 21 November, 2024
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नवाब मलिक- UP में जन्मे महाराष्ट्र के मंत्री आर्यन खान मामले में सवाल उठाकर घर-घर में चर्चित नाम बने

एनसीबी के समीर वानखेड़े के खिलाफ मलिक के आरोपों और उनकी तरफ से किए जाने वाले खंडन ने आर्यन खान मामले से ध्यान कुछ हटाया है और एक दूसरे ही पहलू को उभारा है.

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मुंबई: अक्टूबर की शुरुआत में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता नवाब मलिक ने नियमित तौर पर—पिछले हफ्ते हर दिन एक पोस्ट—कुछ ट्वीट किए, जो सीधे तौर पर नॉरकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) और मुंबई में इसके क्षेत्रीय प्रमुख समीर वानखेड़े के संबंध में थे.

इसके बाद मुंबई के सघन उपनगर कुर्ला में स्थित एनसीपी नेता के घर और कार्यालय पर रिपोर्टर और टेलीविजन कैमरों का जमावड़ा लग गया, ताकि वानखेड़े के नेतृत्व में पिछले एक साल के दौरान एनसीबी के विवादास्पद कथित ड्रग बस्ट मामलों में कुछ सनसनीखेज अपडेट मिल सके. इनमें 2 अक्टूबर को गोवा स्थित एक क्रूज पर कथित छापेमारी—जिसके दौरान अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को गिरफ्तार किया गया—के अलावा मलिक के दामाद समीर खान से जुड़ा एक अन्य मामला भी शामिल था.

इस सबके बीच आर्यन खान मामले को लेकर प्रेस कान्फ्रेंस करना रोज की बात हो गई.

वानखेड़े के खिलाफ मलिक के आरोपों और इस पर वानखेड़ के खंडन ने आर्यन खान मामले से ध्यान कुछ हटाया और पांच बार के विधायक को एक नायक बनाकर इस मामले में एक दूसरे ही पहलू को उभारा.

एनसीपी नेताओं और राजनीति पर बारीक नजर रखने वालों का कहना है कि हालांकि, मलिक एनसीपी के मुख्य प्रवक्ता हैं, पार्टी की मुंबई इकाई के अध्यक्ष और महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार में एक कैबिनेट मंत्री (अल्पसंख्यक मामलों और कौशल विकास विभाग संभाल रहे) भी हैं, लेकिन उनका राजनीतिक प्रभाव अब तक काफी हद तक उनके गृह क्षेत्र कुर्ला और उनके निर्वाचन क्षेत्र अणुशक्ति नगर तक ही सीमित था.

लेकिन, मलिक-बनाम-वानखेड़े के नैरेटिव ने एनसीपी नेता को घर-घर में चर्चित नाम बना दिया है, जो हर दिन ड्राइंग रूम में होने वाली चर्चाओं का हिस्सा बने हुए हैं.

पहली बार मलिक ने ही आर्यन खान मामले में कुछ संदेहास्पद होने को लेकर अंगुली उठाई थीं, जब उन्होंने 6 अक्टूबर को एक प्रेस कांफ्रेंस में सवाल किया कि छापेमारी वाली जगह पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ता मनीष भानुशाली और किरण गोसावी, जो कि एनसीबी से जुड़ा नहीं है, की मौजूदगी की वजह क्या थी.

उन्होंने इस पर भी सवाल उठाया कि छापे के बाद वायरल हो रहे वीडियो में गोसावी को आर्यन को एनसीबी कार्यालय ले जाते कैसे देखा गया.

राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई कहते हैं, ‘कुल मिलाकर नवाब मलिक का राजनीतिक कद इस वजह से बढ़ा है. इससे एनसीपी को मुंबई में अपना आधार बनाने में मदद मिलेगी. और अगर उनके आरोप किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं तो मलिक और भी ज्यादा अहमियत हासिल करेंगे.’

उन्होंने एमवीए सरकार के नेताओं के खिलाफ कथित तौर पर आपत्तिजनक दस्तावेज जारी करने के लिए जाने जाने वाले भाजपा नेता का जिक्र करते हुए कहा, ‘एक तरह से वह एमवीए के किरीट सोमैया बन गए हैं, दस्तावेजों को सामने ला रहे हैं और घोटालों के आरोप लगा रहे हैं. यहां तक कि उनकी हर रोज होने वाली प्रेस कांफ्रेंस ने कुछ समय के लिए ही सही पर सोमैया के हमलों को मौन करा दिया है.’

दिप्रिंट ने इस पर टिप्पणी के लिए फोन कॉल के जरिये मलिक से संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.


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मलिक कहते हैं कि उन्हें धर्म पर राजनीति करना पसंद नहीं

मूलत: उत्तर प्रदेश के बलरामपुर के रहने वाले 62 वर्षीय मलिक शहर के बुरहानी कालेज में पढ़ाई के दौरान शुरुआती वर्षों में ही मुंबई चले गए थे. मलिक ने अपना राजनीतिक जीवन मुंबई में समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ शुरू किया, और 1995 में तत्कालीन नेहरू नगर विधानसभा सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा. मलिक यह चुनाव तो हार गए लेकिन जल्द ही उन्हें दूसरा मौका मिल गया.

1996 में सुप्रीम कोर्ट ने नेहरू नगर से शिवसेना विधायक सूर्यकांत महादिक के निर्वाचन को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि ‘उन्होंने, उनके चुनाव एजेंट और कार्यकर्ताओं ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण किया है.’ महादिक पर आरोप था कि उन्होंने धार्मिक आधार पर चुनाव प्रचार किया था.

मलिक ने इसके बाद उपचुनाव में जीत हासिल की. उन्होंने तब से हर चुनाव जीता है, 2014 के राज्य विधानसभा चुनाव को छोड़कर, जिसमें वह हार गए थे. हालांकि, मोदी लहर के बावजूद उनकी हार का अंतर महज 1,007 वोट था.

नाम जाहिर न करने की शर्त पर एनसीपी के एक नेता ने कहा, ‘नवाब मलिक और मैंने लगभग एक ही समय एनसीपी ज्वाइन की थी. मुझे याद है कि समाजवादी पार्टी के विधायक के रूप में अपने शुरुआती दिनों के दौरान मैंने उन्हें कई बार सड़कों पर उतरते और विरोध प्रदर्शन करते देखा है. उन्होंने एक बार सदन के बाहर तत्कालीन शिवसेना-भाजपा सरकार की तरफ से 1993 के दंगों पर पेश की गई कार्रवाई रिपोर्ट को आग लगाते भी देखा है.’

1999 में जब कांग्रेस और एनसीपी ने शिवसेना-भाजपा सरकार को हराया और गठबंधन सरकार बनाई, तो सपा के सहयोगी के रूप में मलिक को राज्य मंत्री के तौर पर शामिल किया गया.

मलिक ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के लिए सपा से निष्कासित किए जाने के एक महीने बाद नवंबर 2001 में एनसीपी में शामिल हो गए. पार्टी के प्रवक्ता मजीद मेमन ने तब संवाददाताओं से कहा था कि मलिक कथित तौर पर पार्टी के निर्देशों का पालन नहीं कर रहे थे और उन्होंने शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने के लिए सपा के राज्य प्रमुख अबू आजमी पर दबाव बनाने का भी प्रयास किया था. मजीद ने तीन साल बाद खुद सपा से इस्तीफा दे दिया और इस समय एनसीपी के राज्यसभा सांसद हैं.

हालांकि, मलिक ने इसे कुछ अलग ही तरह से पेश किया. मई 2019 में मलिक ने अपने फेसबुक पेज पर साझा किए गए एक वीडियो में कहा, ‘उस दौरान मुंबई में समाजवादी पार्टी के अन्य नेताओं के साथ मेरे वैचारिक मतभेद थे. मैं धर्म आधारित राजनीति के खिलाफ था. कुछ नेता समाजवादी पार्टी को मुस्लिम लीग की तरह चलाने की कोशिश कर रहे थे और मैंने इसका विरोध किया.’

अब आईआरएस अधिकारी समीर वानखेड़े को मूलरूप से मुस्लिम साबित करने के अपने निरंतर प्रयासों की वजह से इस नेता को सांप्रदायिक आधार पर राजनीति करने को लेकर प्रतिद्वंद्वी भाजपा के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है.

उन्होंने वानखेड़े के खिलाफ जो आरोप लगाए हैं उनमें एक यह भी है कि उन्होंने सिविल सेवा अनुसूचित जाति कोटे के तहत ज्वाइन की जो कि एक तरह से धोखाधड़ी है क्योंकि वह मुस्लिम हैं. दलित मुसलमान आरक्षण के तहत लाभ के पात्र नहीं हैं.

अब तक, मलिक ने वानखेड़े के कथित जन्म प्रमाणपत्र, जिसमें उसके पिता का नाम दाऊद वानखेड़े दिखाया गया है और एक मुस्लिम महिला से उसकी पहली शादी का निकाहनामा सामने रखा है. (जबकि वानखेड़े ने खंडन करते हुए कहा है कि वह एक ‘बहु-धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष’ परिवार से आते हैं और उन्होंने मलिक के धोखाधड़ी के आरोपों को खारिज किया है)

हालांकि, मलिक का कहना है कि उनके ये आरोप धार्मिक भेदभाव पैदा करने या वानखेड़े की मुस्लिम आस्था पर सवाल उठाने के लिए नहीं हैं.

नवाब मलिक बनाम अन्ना हजारे

एनसीपी में शामिल होने के बाद मलिक को राज्य कैबिनेट में आवास मंत्री बनाया गया, लेकिन 2005 में एक परियोजना में भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. सामाजिक कार्यकर्ता और भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की मांग को लेकर एक आंदोलन का नेतृत्व किया था.

हजारे ने तीन अन्य मंत्रियों सुरेश जैन, पदमसिंह पाटिल और विजयकुमार गावित के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, जो उस समय एनसीपी में थे.

मलिक ने आरोपों की जांच कर रहे जस्टिस सावंत आयोग की तरफ से उन पर अभियोग लगाए जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, नेता ने कहा था कि यह पिछली शिवसेना-भाजपा सरकार थी जिसने जरीवाला चॉल हाउसिंग प्रोजेक्ट में ‘गैरकानूनी फैसले’ लिए थे.

मई 2019 के एक फेसबुक वीडियो में एनसीपी में अपनी यात्रा का ब्योरा देते हुए मलिक ने बताया, ‘बहुत हंगामा हुआ और मैंने अपना इस्तीफा दे दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 12 साल बाद फैसला सुनाया कि मंत्री द्वारा लिया गया निर्णय सही था… अंतरिम तौर पर मुझे 2008 में फिर से मंत्री बनाया गया. मैंने श्रम मंत्री के रूप में काम किया, और परिसीमन के बाद अणुशक्ति नगर से 2009 का चुनाव जीता.’

मलिक और हजारे के बीच 2019 में एक बार फिर टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई जब मलिक ने बुजुर्ग कार्यकर्ता को भ्रष्ट करार दिया. मलिक ने आरोप लगाया कि विरोध प्रदर्शन और भूख हड़ताल पर बैठने के लिए हजारे अधिवक्ताओं से पैसे लेते हैं. हजारे ने ऐसी टिप्पणियों पर मलिक के खिलाफ कानूनी नोटिस भेजा.

बाद में यह पता चलने पर कि हजारे को एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार बहुत सम्मान देते हैं, मलिक ने एक लिखित माफीनामा जारी किया. उन्होंने लिखा, ‘मैं आपकी भावनाओं को आहत नहीं करना चाहता था. आपके द्वारा टेलीविजन समाचार चैनलों को यह बताए जाने के बाद कि आप यह वाक् युद्ध लंबा नहीं खींचना चाहते, मेरी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने इस घटना पर खेद जताया है. आप पिता तुल्य हैं और अगर किसी बयान से आपको ठेस पहुंची हो तो कृपया मेरी हार्दिक क्षमायाचना स्वीकार करें.’


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एनसीपी में आगे बढ़े

पिछले एक दशक से मलिक एनसीपी में एक प्रमुख चेहरा रहे हैं. उन्हें 2012 में पार्टी का मुख्य प्रवक्ता नियुक्त किया गया था.

2019 में मलिक को और बड़ी जिम्मेदारी मिली. सचिन अहीर के शिवसेना में शामिल होने के लिए एनसीपी छोड़ देने के बाद उन्हें पार्टी की मुंबई इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.

हालांकि, एनसीपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि पार्टी की मुंबई इकाई के अध्यक्ष के तौर पर मलिक अभी तक कोई बड़ा प्रभाव नहीं डाल पाए हैं.

उन्होंने कहा, ‘एनसीपी मुंबई के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने बहुत कुछ नहीं किया लेकिन वास्तव में इसके लिए उन्हें कोई अवसर भी नहीं मिला था. पद संभालने के तुरंत बाद उनका ध्यान 2019 के विधानसभा चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने पर केंद्रित था क्योंकि वह 2014 में हार गए थे. इसलिए उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र पर फोकस किया. फिर वे इस सरकार में मंत्री बने, यह एक ऐसा काम है जिसमें उनका काफी समय लगता है.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन अब जिस तरह वह एनसीबी और समीर वानखेड़े को निशाना बनाने की राह पर चल रहे हैं, वह आगे चलकर 2022 के मुंबई निकाय चुनावों से पहले पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है और एक मजबूत नेता के तौर पर उनकी छवि भी मजबूत हो रही है.’

ऐसा लगता है कि मलिक यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि इस मामले में ऐसे आरोप लगाने से उनके राजनीतिक कद पर क्या असर पड़ सकता है.

बाम्बे हाईकोर्ट से आर्यन खान को जमानत मिलने के एक दिन बाद शुक्रवार को मलिक ने अपनी नियमित प्रेस कांफ्रेंस में कथित धोखाधड़ी के मामले में पुणे पुलिस द्वारा गोसावी की गिरफ्तारी और वानखेड़े के संभावित गिरफ्तारी से बचने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाए जाने का जिक्र किया.

उन्होंने कहा, ‘यदि आप देखें तो स्थिति पूरी तरह बदल गई है. जिस शख्स को आर्यन खान को एनसीबी दफ्तर ले जाते देखा गया था, वह अब सलाखों के पीछे है. और वह आदमी जो यह सुनिश्चित करने में जुटा था कि आर्यन खान को जमानत न मिले वह अब खुद अदालत का दरवाजा खटखटा रहा है.’


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