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Friday, 22 November, 2024
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राजा, गुफा और किसान नेता पर रखे गए नाम: MVA सरकार का महाराष्ट्र में नाम बदलने का क्या महत्व है

पूर्व एमवीए सरकार जाते-जाते औरंगाबाद, उस्मानाबाद और नवी मुंबई हवाई अड्डे के नाम बदलने पर सहमत हो गई. यह उद्धव कैबिनेट द्वारा किए गए अंतिम फैसलों में से एक था.

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मुंबई: पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के 29 जून को इस्तीफा देने से पहले पिछली कैबिनेट बैठक में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने नाम बदलने से जुड़े तीन अहम फैसले लिए.

शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के गठबंधन वाली पूर्व एमवीए सरकार ने औरंगाबाद और उस्माबनाद के नाम संभाजीनगर और धाराशिव में बदलने का फैसला किया. साथ ही निर्माणाधीन नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम डी.बी. पाटिल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कर दिया.

राज्य में हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए पहले के दो फैसले शिवसेना के लंबे समय से लंबित चुनावी एजेंडे रहे हैं. तीसरा फैसला नवी मुंबई हवाईअड्डा क्षेत्र में स्थानीय लोगों की जोरदार मांग के जवाब में था और साथ ही शिवसेना-विद्रोही एकनाथ शिंदे और अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री द्वारा लिए गए पहले के फैसले को पलटना भी था.

तत्कालीन शहरी विकास मंत्री शिंदे ने जनवरी 2021 में मांग की थी कि हवाई अड्डे का नाम शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के नाम पर रखा जाए और जून तक हवाईअड्डा परियोजना के प्रभारी सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (सिडको) के एक प्रस्ताव के बाद इस आशय की औपचारिक घोषणा कर दी गई.

दिप्रिंट इन फैसलों के ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व के बारे में बता रहा है.


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संभाजीनगर

17 वीं शताब्दी के मुगल सम्राट औरंगजेब के नाम पर जिले को पहले औरंगाबाद कहा जाता था. उनका अंतिम विश्राम स्थल औरंगाबाद के खुल्दाबाद में भी है.

कहा जाता है कि औरंगजेब ने 1689 में छत्रपति शिवाजी के बेटे संभाजी की बेरहमी से हत्या कर दी थी. इसकी वजह से शिवसेना के नाम बदलने की मांग ने बड़ी संख्या में हिंदुओं को अपने साथ जोड़ लिया और उन्होंने अनौपचारिक रूप से औरंगाबाद को संभाजीनगर के रूप में संदर्भित करना शुरू कर दिया.

यह शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे थे जिन्होंने पहली बार औरंगाबाद शहर के नाम बदलने की मांग की थी. 1988 में औरंगाबाद शहर में शिवसेना ने पहली बार नगर निगम चुनाव लड़ने के बाद जिले का नाम संभाजीनगर में बदलने का मुद्दा उछाला. तब से लेकर अब तक शिवसेना ने यहां लगभग हर चुनाव इसी एजेंडे पर लड़ा है.

1995 में, जब मनोहर जोशी के नेतृत्व वाली शिवसेना-भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार राज्य में शासन कर रही थी – तब औरंगाबाद नगर निगम पर 25 वर्षों तक मजबूत पकड़ रखने वाली शिवसेना ने नाम बदलने के लिए अपना पहला औपचारिक प्रयास किया था. हालांकि, एक कांग्रेस पार्षद ने इसे चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट ने 1996 में यथास्थिति का आदेश दिया.

चूंकि वरिष्ठ ठाकरे ने पहली बार 80 के दशक में इसकी मांग की थी, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और उसके पूर्व सहयोगी बीजेपी ने हमेशा जिले को संभाजीनगर के रूप में संदर्भित किया है.

दोनों दलों के अलग हो जाने और ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए के सत्ता में आने के बाद बीजेपी अक्सर इस मुद्दे का इस्तेमाल शिवसेना को निशाना बनाने के लिए करती रही है. उसके मुताबिक, शिवसेना अब धर्मनिरपेक्ष दलों कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन के चलते हिंदुत्व के लिए प्रतिबद्ध नहीं है.

कांग्रेस परंपरागत रूप से नाम बदलने की मांग का विरोध करती रही है और नेताओं ने आधिकारिक संचार में औरंगाबाद को संभाजीनगर के रूप में संदर्भित करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री ठाकरे पर भी कड़ी आपत्ति जताई थी. हालांकि एमवीए सरकार के कांग्रेस मंत्रियों ने कैबिनेट के इस फैसले का विरोध नहीं किया.

औरंगाबाद, जो अब संभाजीनगर है, के कई पुराने नाम भी रहे हैं. इसकी स्थापना 1610 में अफ्रीकी गुलाम से सैन्य नेता बने मलिक अंबर ने अहमदनगर सल्तनत की नई राजधानी के रूप में की थी और तब इसे खिरकी के नाम से जाना जाता था. 1626 में अंबर की मौत के बाद उसके बेटे फतेह खान ने इसका नाम फतेहनगर रख दिया. यह क्षेत्र 1633 तक मुगलों के हाथ में आ गया और 20 साल बाद औरंगजेब ने इसका नाम बदलकर औरंगाबाद करते हुए इसे अपनी राजधानी बना लिया.


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धाराशिव

औरंगाबाद के लिए सांभाजीनगर की ही तरह, शिवसेना ने हमेशा ही उस्मानाबाद को भी धाराशिव के रूप में संदर्भित किया है. ठाकरे जब मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने अपने आधिकारिक संचार में धाराशिव नाम का इस्तेमाल किया था.

उस्मानाबाद का नाम हैदराबाद के अंतिम शासक मीर उस्मान अली खान के नाम पर पड़ा. कुछ लोग कहते हैं कि उस्मानाबाद बनने से बहुत पहले इस स्थान को धाराशिव कहा जाता था. धाराशिव नाम शहर से 8 किलोमीटर दूर बालाघाट पर्वत में स्थित गुफाओं से लिया गया है.

शहर की लोककथाओं में भी धाराशिव नाम महत्वपूर्ण है. इसमें कहा गया है कि धरसुर नाम का एक राक्षस यहां रहा करता था और माना जाता है कि देवी सरस्वती ने उसे मार डाला, जिसके बाद उन्हें ‘धारासुर मर्दिनी’ की उपाधि मिली थी.

डी.बी. पाटिल

डी.बी. पाटिल के नाम पर नवी मुंबई हवाई अड्डे का नाम रखा गया है. वह एक स्थानीय राजनेता थे जो किसानों के अधिकारों के लिए खड़े होने और 1970 और 1980 के दशक के दौरान विकास के लिए सरकार के भूमि अधिग्रहण अभियान का विरोध करने के लिए जाने जाते थे.

पाटिल 1950 के दशक से नवी मुंबई के एक कस्बे पनवेल से पांच बार विधायक रहे. वह किसान और श्रमिक पार्टी (पीडब्ल्यूपी) से जुड़े थे और उन्होंने संसद सदस्य और विधान परिषद के सदस्य के रूप में भी काम किया. उन्हें शहर और औद्योगिक विकास निगम- नवी मुंबई क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए राज्य सरकार की एजेंसी – के विरोध में कई किसानों और जमींदारों का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है जो विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए अपनी भूमि के अधिग्रहण के लिए उचित मुआवजे की मांग करते रहे थे.

पाटिल के समर्थकों ने सिडको से अपने नेता के नाम पर नए हवाई अड्डे का नाम रखने की जोरदार मांग के लिए कई विरोध और प्रदर्शन किए हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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