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Friday, 22 November, 2024
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पिछड़ों को साधने के लिए मुलायम सिंह फिर बन सकते हैं सपा के पोस्टर ब्वाॅय, बड़े फेरबदल जल्द

किसी दौर में यूपी में मुलायम सिंह यादव को पिछड़े वर्ग का सबसे बड़ा नेता माना जाता था. केवल यादव ही नहीं बल्कि दूसरे ओबीसी समाज के लोग भी उन्हें नेता मानते थे.

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लखनऊ: लोकसभा चुनाव में सपा के खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी नेतृत्व पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. ऐसे में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव अचानक एक्टिव मोड में आ गए हैं. पार्टी दफ्तर में पिछले तीन दिन से समीक्षा बैठकों का दौर जारी है. मुलायम सिंह यादव अब खुद हर सीट की समीक्षा कर रहे हैं. सूत्रों की मानें तो आने वाले दिनों में वह फिर अहम भूमिका में दिखेंगे.

हार पर अखिलेश चुप, मुलायम एक्टिव

23 मई को नतीजे आने के बाद से अखिलेश यादव साइलेंट मोड में हैं. उन्होंने ट्वीट कर नतीजों को स्वीकारा ज़रूर है. लेकिन, मीडिया से बातचीत करने से लगातार बच रहे हैं. वहीं पार्टी प्रवक्ताओं को भी टीवी डिबेट्स में जाने से रोक दिया गया है. वहीं, मुलायम सिंह यादव पार्टी कार्यालय में लगातार पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं. उनकी ये सक्रियता यूपी की सियासत में नए संकेतों की ओर इशारा कर रही है. ऐसे में माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान खाली हुईं विधायकों की सीटों पर समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह के चेहरे पर चुनाव लड़ सकती है. पोस्टर व स्लोगन मुलायम के दौर के फिर से तैयार किए जाएंगे.

अब पिछड़ों को जोड़ने की होगी कवायद

किसी दौर में यूपी में मुलायम सिंह यादव को पिछड़े वर्ग का सबसे बड़ा नेता माना जाता था. केवल यादव ही नहीं बल्कि दूसरे ओबीसी समाज के लोग भी उन्हें अपना नेता मानते थे. लेकिन अखिलेश के हाथ में पार्टी की कमान आने के बाद सपा की पिछड़े वर्ग से लगातार कनेक्ट कम होता गया. दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी ने खुद को पिछड़ा बताकर सपा के ओबीसी वोटर्स में ज़बर्दस्त सेंधमारी की. समीक्षा बैठक में सपा के नेताओं द्वारा भी ये मुद्दा उठाया गया. जिन वोटर्स को वे अपना मानकर चल रहे थे उनका भी वोट नहीं मिला.

बसपा का वोट क्यों नहीं हुआ ट्रांसफर

सपा नेताओं में चर्चा ये भी है कि बसपा की तो 10 सीटें आ गईं लेकिन सपा 5 पर ही कैसे रह गई. परिवार के सदस्य धर्मेंद्र यादव व डिंपल यादव कैसे हार गए. यानि बसपा का वोट क्यों ट्रांसफर नहीं हो पाया. फूलपुर से सपा कैंडिडेट रहे पंधारी यादव कहते हैं- ‘हम लोगों को उपचुनाव के बाद उम्मीद थी कि इस चुनाव में भी फूलपुर में गठबंधन की जीत होगी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. बसपा का वोट हमें ट्रांसफर हुआ या नहीं इसकी समीक्षा करेंगे. उनके नेताओं ने तो हमें पूरा समर्थन दिया था. संदेह ईवीएम को लेकर भी है लेकिन एक बार हम हार की पूरी समीक्षा करेंगे.’

कई नेताओं पर हो सकती है कार्रवाई

सूत्रों की मानें तो प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कई पदाधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है. सपा के चारों फ्रंटल संगठन के प्रभारी भी उनके निशाने पर हैं. कभी भी चारों को हटाया जा सकता है, इसमें समाजवादी युवजन सभा, समाजवादी छात्रसभा, समाजवादी लोहिया वाहिनी और मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड शामिल हैं. यही नहीं संगठन में लंबे समय से सत्तासीन बड़े नेताओं पर भी गाज गिरनी तय मानी जा रही है.

अखिलेश बदलना चाहते थे तौर-तरीके

सपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अखिलेश यादव प्रोफेशनल तरीके से पार्टी को चलाना चाहते थे जो कि पुराने समाजवादियों को रास नहीं आता था. चाचा शिवपाल के अलग होने का भी यही कारण था. उनके अलग होने से संगठन पर असर पड़ा. कई पुराने समाजवादी अखिलेश का साथ छोड़ गए. इन नेताओं को चुनावी गणित की काफी समझ थी. नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ सपा नेता बताते हैं कि हार का कारण अखिलेश के इर्द -गिर्द दिखने वाले लोग हैं जिन्हें ज़रूरत से ज्यादा तवज्जो मिली. वह इन्हें ‘जवानी कुर्बान’ गैंग कहते हैं. वह इसे भी हार की वजह मानते हैं और ‘नेताजी’ (मुलायम) को दोबारा से पार्टी की कमान संभालते देखना चाहते हैं.

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