नई दिल्ली: बारामूला लोकसभा सीट पर इंजीनियर रशीद से चुनाव हारने के महीनों बाद, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला गांदरबल और बडगाम दोनों विधानसभा सीटों से चुनाव जीत गए हैं. इन दोनों सीटों को नेशनल कॉन्फ्रेंस का गढ़ माना जाता है. दोनों सीटों पर उन्होंने पीडीपी के कैंडीडेट को ही हराकर जीत हासिल की है.
बड़गाम में वह 18,485 वोटों से पीडीपी के आगा मुंतज़िर मेंहदी से जबकि गांदरबल में 10574 वोटों से बशीर अहमद मीर से जीत गए हैं.
प्रमुख शिया मौलवी और हुर्रियत नेता आगा सैयद हसन मोसावी के बेटे मेंहदी घाटी के तीन प्रमुख शिया मौलवी परिवारों में से एक से ताल्लुक रखते हैं. इस निर्वाचन क्षेत्र में शिया वोट महत्वपूर्ण हैं. मेंहदी को उनके चचेरे भाई आगा रूहुल्लाह के एनसी सांसद बनने के बाद महबूबा मुफ़्ती के नेतृत्व वाली पार्टी ने मैदान में उतारा था.
उमर ने अगस्त की शुरुआत में कहा था कि वे क्षेत्र का राज्य का दर्जा बहाल होने तक जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन बाद में उन्होंने घोषणा की कि वे दो सीटों पर चुनाव लड़ेंगे.
पूर्व मुख्यमंत्री के लिए दोनों सीटें की चुनौतीपूर्ण थीं क्योंकि लोकसभा चुनाव हारने के बाद खोई हुई प्रतिष्ठा को पाने के लिए यह काफी बड़ी चुनौती थी.
बड़गाम विधानसभा क्षेत्र बारामूला संसदीय सीट के अंतर्गत आता है — जहां उमर एआईपी के संस्थापक इंजीनियर अब्दुल राशिद शेख से 204,142 मतों से हार गए थे — और यह एनसी का गढ़ रहा है. इस सीट पर एनसी नौ में से आठ बार जीतने में सफल रही.
गांदरबल में अब्दुल्ला के गृह क्षेत्र में, अपने नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया के दौरान, एनसी नेता ने वोटों की अपील करते हुए कश्मीरी में कहा, “मेरा सम्मान आपके हाथों में है.”
गांदरबल से चुनाव लड़ने का उनका फैसला इस निर्वाचन क्षेत्र में उनकी वापसी को दर्शाता है, जिसका उन्होंने 2008 और 2014 के बीच तत्कालीन राज्य की एनसी-कांग्रेस गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में प्रतिनिधित्व किया था.
बाद में, 2014 में उन्होंने मध्य कश्मीर के बड़गाम जिले में बीरवाह विधानसभा सीट जीती और गांदरबल सीट अपने तत्कालीन पार्टी सहयोगी इश्फाक जब्बार के लिए छोड़ दी.
अबदुल्ला परिवार तीन पीढ़ियों— एनसी संस्थापक शेख मुहम्मद अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला और उमर अबदुल्ला – से गांदरबल का प्रतिनिधित्व करता रहा है . हालांकि, उमर अबदुल्ला ने 2002 में अपना पहला चुनाव लड़ा तो वे पीडीपी से सीट हार गए. इसके बाद उन्होंने 2008 में गांदरबल से जीत दर्ज की, लेकिन 2014 में बीरवाह विधानसभा सीट पर चले गए.
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