मुंबई: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे ‘एक हैं, तो सेफ हैं’ ने महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोगियों को नाराज़ कर दिया है. धुले में उनकी यह टिप्पणी तब आई जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अजित पवार ने नारे के मूल संस्करण — ‘बंटेंगे, तो कटेंगे’ पर सार्वजनिक रूप से आपत्ति जताई, जिसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के दौरान दोहराया था. पवार ने कहा कि शिवाजी की धरती पर ऐसी टिप्पणियों की सराहना नहीं की जा सकती है.
शिवसेना भी प्रधानमंत्री की टिप्पणियों को लेकर उतनी ही असहज है. पार्टी सूत्रों ने उपमुख्यमंत्री पवार के तर्कों को दोहराया — कि ‘ध्रुवीकरण की राजनीति’ महाराष्ट्र में काम नहीं करती है और यह सरकार की विकास और कल्याणकारी योजनाओं के केंद्रीय चुनावी मुद्दे को कमज़ोर कर सकती है.
एनसीपी और शिवसेना के कई सूत्रों ने मुंबई में दिप्रिंट को बताया कि मुसलमान कम से कम 30 निर्वाचन क्षेत्रों में नतीजों को बदलने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं और इतने सारे खिलाड़ियों वाले “कड़े चुनाव” में “यह बहुत बड़ी भूमिका है”.
बीजेपी के रणनीतिकारों का एक अलग दृष्टिकोण है, भले ही वे आश्वस्त हैं कि तथाकथित ‘वोट जिहाद’, या विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के लिए सामूहिक मतदान — जिसमें उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी), शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी और कांग्रेस शामिल हैं — 2024 के चुनाव में “कम से कम आठ लोकसभा सीटों” पर उन्हें नुकसान पहुंचाएगा.
उदाहरण के लिए धुले निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार सुभाष भामरे ने छह विधानसभा क्षेत्रों में से पांच में बढ़त हासिल की. उन्होंने इन पांच विधानसभा क्षेत्रों में अपनी कांग्रेस प्रतिद्वंद्वी शोभा बछव से 1.90 लाख वोटों से बढ़त हासिल की. हालांकि, छठे विधानसभा क्षेत्र मालेगांव सेंट्रल में भामरे अपने कांग्रेस प्रतिद्वंद्वी से 1.94 लाख वोटों से पीछे रहे, जिसके कारण लोकसभा सीट पर उनकी हार 3,800 से ज़्यादा वोटों से हुई. मालेगांव सेंट्रल में 80 प्रतिशत से ज़्यादा मुस्लिम मतदाता हैं और भाजपा उम्मीदवार को उस निर्वाचन क्षेत्र में सिर्फ़ 4,542 वोट मिले.
महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आरोप लगाया है कि एमवीए ने “वोट जिहाद” के कारण 48 में से कम से कम 14 लोकसभा सीटें जीती हैं.
चुनावों की निगरानी में शामिल पार्टी के कई नेताओं ने दिप्रिंट को बताया, यह देखते हुए कि भाजपा को मुस्लिम वोटों के एकीकरण से इतना खतरा दिख रहा है, वह ‘एक है, सेफ है’ और ‘बटेंगे, तो कटेंगे’ जैसे ध्रुवीकरण वाले नारे क्यों लगाएगी? क्योंकि वही ‘वोट जिहाद’ महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में भाजपा की संभावनाओं पर विपरीत प्रभाव डालेगा.
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लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा का रुख सुधार
उनके आकलन के अनुसार, महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ चार चीज़ें रहीं. पहली बात, विपक्ष के उस दुष्प्रचार का असर, जिसके अनुसार भाजपा संविधान बदलने की योजना बना रही है, जैसा कि कथित तौर पर उसके ‘400 पार’ नारे में झलकता है. दूसरी बात, आरक्षण आंदोलन को लेकर मराठों की नाराज़गी. तीसरी बात, अजित पवार के सत्तारूढ़ महायुति में शामिल होने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में बेचैनी और अशांति, जिसने उन लोगों की हताशा को और बढ़ा दिया, जो मुख्यमंत्री पद देवेंद्र फडणवीस के बजाय एकनाथ शिंदे को दिए जाने से नाखुश थे और चौथी बात, अल्पसंख्यकों का एमवीए के पक्ष में एकजुट होना, जिसके कारण पार्टी को बहुत कम अंतर से कई सीटें गंवानी पड़ीं.
जुलाई से ही भाजपा इन मुद्दों को सुलझाने की कोशिश कर रही है. पार्टी का आकलन था कि मराठा आंदोलन के पीछे कृषि संकट था. इसलिए भाजपा ने सोयाबीन, कपास और प्याज से जुड़े मुद्दों को सुलझाने की कोशिश की.
उदाहरण के लिए केंद्र ने कच्चे और परिष्कृत सोयाबीन और अन्य खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क लगाया और बढ़ाया तथा मूल्य समर्थन योजना के तहत 13 लाख मीट्रिक टन सोयाबीन की खरीद को भी मंजूरी दी. प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध हटा दिए गए.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, “इन उपायों ने मराठा आरक्षण के मुद्दे को प्रभावी रूप से कुंद कर दिया है. अब आप उन्हें आंदोलन करते हुए नहीं पाएंगे. मुद्दा आरक्षण नहीं था; यह मुख्य रूप से प्याज, कपास और सोयाबीन के बारे में था और हमने उन किसानों की मदद के लिए कई उपाय किए हैं.”
उन्होंने कहा, “ये बहुत ही संवेदनशील मुद्दे हैं. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि सफेद प्याज का निर्यात, जो इतना छोटा था, यहां (महाराष्ट्र) एक मुद्दा बन गया?” वे गुजरात में उगाए गए 2,000 टन सफेद प्याज के तत्काल निर्यात की सुविधा के लिए प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध को आंशिक रूप से शिथिल करने के केंद्र के अप्रैल के फैसले का जिक्र कर रहे थे.
संविधान में बदलाव के बारे में “प्रोपेगेंडा” के लिए भाजपा जुलाई से ही महाराष्ट्र भर में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) तक बड़े पैमाने पर पहुंच बना रही है. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव ने अनुसूचित जाति श्रेणी के भीतर 57 जातियों और उप-जातियों में से महार, मातंग और अन्य समूहों के प्रमुख प्रतिनिधियों के साथ कई आमने-सामने की बैठकें की हैं. उन्होंने ओबीसी तक भी इसी तरह की पहुंच बनाई है.
दलितों को लुभाने के लिए भाजपा ने पूरे राज्य में रैलियां और यात्राएं कीं. केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू, जो बौद्ध हैं, ने भी दलित बौद्धों से मिलने के लिए राज्य में कई दिन बिताए.
भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “दलित (दलित बौद्ध) जानते हैं कि भाजपा ने आंबेडकर के बाद केवल दूसरे बौद्ध कानून मंत्री को नियुक्त किया है.” एक अन्य ने दावा किया कि संविधान के बारे में ‘प्रोपेगेंडा’ अब कोई मुद्दा नहीं है.
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच बेचैनी के लिए वे मुद्दों की पहचान करने से लेकर उम्मीदवार चयन तक में प्रमुख रूप से शामिल रहे हैं. उदाहरण के लिए राज्य भर के 10,000 कार्यकर्ताओं को उनके निर्वाचन क्षेत्र के लिए दो-तीन उम्मीदवारों के नाम बताने के लिए पर्चियां या चिट दी गईं. भूपेंद्र यादव ने हर जिले की कोर कमेटी के साथ बैठक कर उनकी प्रतिक्रिया ली. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, जो महाराष्ट्र में भाजपा के चुनाव सह-प्रभारी हैं, सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक मुंबई में भाजपा कार्यालय में बैठकर राज्य भर के पार्टी कार्यकर्ताओं की बातें सुनते हैं और उनके सुझावों और मांगों पर अमल करते हैं.
पार्टी के एक रणनीतिकार ने कहा, “जहां तक मुसलमानों का सवाल है, अगर एक विधानसभा क्षेत्र में उनके वोटों ने लोकसभा में पांच अन्य विधानसभा सीटों के लोगों के वोटों को नकार दिया है, तो ऐसा ही हो. उन्हें विधानसभा चुनाव में भी इसी तरह वोट करने दें. वे जिन सीटों को प्रभावित कर सकते हैं, उनकी संख्या को भाजपा के लिए पांच से गुणा कर दें.”
2011 की जनगणना के अनुसार, महाराष्ट्र में मुसलमानों की आबादी 11.54 प्रतिशत है. एनसीपी और शिंदे सेना को चिंता है कि 30 या उससे ज़्यादा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोट एमवीए के पक्ष में जा सकते हैं, वहीं बीजेपी ज़ाहिर तौर पर बाकी सीटों पर महायुति के पक्ष में जवाबी लामबंदी की कोशिश कर रही है. यह महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर काम कर सकता है या नहीं, लेकिन इससे बीजेपी कार्यकर्ताओं और समर्थकों में जोश भरने की उम्मीद है.
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