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Wednesday, 20 November, 2024
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‘सरकार चाहे तो संकट का समाधान कर सकती है’, मैतेई और कुकी सिविल सोसाइटी ग्रुप के लोगों का CM बीरेन सिंह को संदेश

दोनों समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले सिविल सोसाइटी ग्रुप ने राज्य में 'बहुत सारे' ऐसे संगठनों के अस्तित्व की ओर इशारा करने के लिए एन बीरेन सिंह की आलोचना की है, जो 'बिना समान आकांक्षा'काम कर रहे हैं.

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इंफाल/गुवाहाटी: मणिपुर जातीय संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है, राज्य की एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की हर योजना सामान्य स्थिति बहाल करने में विफल होती दिख रही है.

नई रणनीतियां चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अपर्याप्त लगने लगी हैं, दोनों तरफ के लोग और नागरिक समाज संगठन (सीएसओ) अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं – कुकी-ज़ोमी आदिवासी राज्य में एक अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं, और बहुसंख्यक मैतेई ‘मणिपुर के क्षेत्र की सुरक्षा और अखंडता’ की मांग कर रहे हैं.

पिछले महीने, सीएम बीरेन सिंह ने राज्य में “बहुत सारे” सीएसओ के अस्तित्व पर प्रकाश डाला था, जो विभिन्न स्तरों पर और “बिना किसी आम महत्वकांक्षा” के काम कर रहे हैं.

सिंह ने 31 अगस्त को इंफाल में ‘मेरी माटी मेरा देश’ कार्यक्रम में कहा था, “राज्य में कोई भ्रम न रहे. लोगों की एक आवाज बनें. सीएसओ और समूहों की संख्या बहुत अधिक है,” उन्होंने कहा था, “आइए हम चुनौतियों से सामूहिक रूप से लड़ें क्योंकि हमारा आंतरिक कलह या संघर्ष केवल प्रतिद्वंद्वी के हित में ही काम आएगा.”

दिप्रिंट से बात करते हुए, मैतेई समुदाय की शीर्ष संस्था, मणिपुर इंटीग्रिटी पर समन्वय समिति (COCOMI) के मीडिया समन्वयक, सोमोरेंड्रो थोकचोम ने सीएसओ पर सीएम की टिप्पणी को “निरर्थक” बताया.

थोकचोम ने कहा, “उन्हें सीएसओ की मांगों के अनुरूप संकट को सुलझाने और मणिपुर की रक्षा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.”

यह स्वीकार करते हुए कि मणिपुर में कई सीएसओ मौजूद हैं, थोकचोम ने साफ किया कि संख्या की परवाह किए बिना, सभी “एक ही लक्ष्य का पीछा कर रहे थे”.

उन्होंने आगे कहा, “मौजूदा संदर्भ में, सभी मैतेई सीएसओ मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता और सीमा की रक्षा कर रहे हैं. इसके अलावा, वे अन्य बातों के अलावा, संकट का स्थायी समाधान लाने के लिए नार्को-आतंकवादियों को जड़ से खत्म करने और कुकी उग्रवादियों के साथ एसओओ (संचालन निलंबन समझौते) को रद्द करने की मांग कर रहे हैं.”

उन्होंने बताया कि COCOMI का गठन 2019 में किया गया था और इसमें लगभग 50 मौजूदा CSO और संगठन शामिल हैं.

इस बीच, ‘लाम्का’ (चुरचांदपुर जिला) में मान्यता प्राप्त जनजातियों के समूह, इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) के प्रवक्ता गिन्ज़ा वुअलज़ोंग ने कहा कि सभी कुकी सीएसओ की एक मांग है – एक अलग प्रशासन.

उन्होंने कहा, “वास्तव में, कई सीएसओ हैं, लेकिन हमारी मांग एक है. जिस तरह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई राजनीतिक समूह थे, उसी तरह हमारे पास भी कई संगठन हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि हम अपनी राजनीतिक मांग को लेकर एकजुट हैं. अभी तक प्रत्येक सीएसओ एक हितधारक है.”


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‘सभी मोर्चों पर अक्षमता और निराशाजनक विफलता’

अन्य मैतेई और कुकी संगठनों ने भी समाधान खोजने में मणिपुर सरकार की असमर्थता की ओर इशारा किया था.

मैतेई इरेइचा कम्बा अथौबा सलाई (MIKAS 7) के महासचिव साइमन मंगांग ने दिप्रिंट को बताया कि संघर्ष के पहले तीन महीनों में लगभग 30 नए सीएसओ का गठन किया गया था, मुख्यतः क्योंकि राज्य सरकार “लोगों के किसी भी मुद्दे और जरूरतों को पूरा करने में विफल रही” है.

MIKAS 7 का गठन मणिपुर में जातीय संघर्ष भड़कने के एक दिन बाद 4 मई को किया गया था. नए समूह की पहचान मणिपुर युवा विकास संगठन के एक शीर्ष निकाय के रूप में की गई है जिसे 2020 में स्थापित किया गया था.

मंगांग ने कहा, “मैतेई-कुकी जातीय तनाव कोई नई बात नहीं है, यह एक दशक से भी अधिक समय से चल रहा मुद्दा है. हां, मणिपुर में कई सीएसओ हैं, लेकिन सरकार को समस्या का समाधान करने की जरूरत है न कि सीएसओ को इंतजार कराने की. उस स्थिति में, किसी भी सीएसओ से संपर्क किया जा सकता है, और संगठनों से बात किए बिना भी, सरकार चाहे तो संकट का समाधान कर सकती है.”

दूसरी ओर, कुकी जनजातियों की शीर्ष संस्था कुकी इनपी मणिपुर (केआईएम) के सचिव खाइकोहाउह गंगटे ने कहा कि सीएसओ पर सीएम सिंह का बयान “सभी मोर्चों पर उनकी अक्षमता और निराशाजनक विफलता को दिखाता है”.

गंगटे ने कहा, “यह कहकर कि मणिपुर में बहुत सारे समूह हैं, एन. बीरेन सिंह मैतेई नागरिक समाज संगठनों का जिक्र कर रहे हैं, न कि कुकी का.” “संकट से निपटने में अपनी सरकार की विफलता के कारण मैतेई समुदाय के अत्यधिक दबाव का सामना करते हुए, उन्होंने बस अपने लोगों पर आरोप लगाया और निष्कर्ष निकाला कि मणिपुर में बहुत सारे सीएसओ समूह हैं.”

उन्होंने “पूरे समुदाय को निशाना बनाने वाली कहानियों” के लिए भी सीएम की आलोचना की.

उन्होंने कहा, “आश्चर्यजनक रूप से, जैसे-जैसे संकट गहराता है, उनकी कहानी बदलती रहती है. शुरुआती चरण में उन्होंने ‘अवैध अप्रवासियों के विरुद्ध युद्ध’ को प्रचारित और लोकप्रिय बनाया. बीच में, उन्होंने एसओओ (संचालन निलंबन समझौते) के तहत ‘कुकी उग्रवादियों के खिलाफ युद्ध’ शुरू करने का आह्वान किया. हाल ही में, उन्होंने ‘चिन-कुकी नार्को-आतंकवादियों पर युद्ध’ की कहानी गढ़ी है,”

गंगटे ने आगे कहा, “उनकी सारी बातें कुकियों के खिलाफ उनके नरसंहार को छुपाने की एक शरारती चाल के अलावा और कुछ नहीं हैं.”

गंगटे ने बताया कि केआईएम, “सभी कुकी जनजातियों” का प्रतिनिधित्व करता है और यह कुकी शासन के पारंपरिक स्वरूप से लिया गया है.

उन्होंने कहा, “1990 के दशक की शुरुआत में कुकी इंपी का कायाकल्प हुआ और इसने गति पकड़ी. प्रत्येक कुकी गांव को एक सामाजिक-राजनीतिक इकाई के तहत प्रशासित किया गया था, जिसे कुकी इंपी कहा जाता था. और इसका संरचनात्मक पदानुक्रम ग्राम स्तर से ब्लॉक स्तर तक, ब्लॉक स्तर से जिला स्तर तक, जिला स्तर से राज्य स्तर तक होता है. कुकी इंपी एकीकृत कमांड है जो उन सभी को एक साथ लाती है. ”

मणिपुर की कई चुनौतियों के लिए सीएसओ

अनसुलझे संघर्ष, असुरक्षा, उग्रवाद, ड्रग्स, भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों का उल्लंघन कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं, जिनसे मणिपुर जूझ रहा है. एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने लंबे समय से समय और धन के भारी व्यय के साथ इन मुद्दों से निपटने की कोशिश की है, लेकिन शायद ही कभी सफल रही हों.

राज्य में सीएसओ का जन्म हुआ जो पूरी तरह से विशेष मांगों को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित थे – जैसे कि मणिपुर पीपुल्स अगेंस्ट सिटिजनशिप (संशोधन) विधेयक (अब अधिनियम) या एमएएनपीएसी जो पूरी तरह से मणिपुर में कानून का विरोध करने के लिए बनाई गई थी. इसी तरह, अन्य निकाय जैसे इनर लाइन परमिट सिस्टम पर संयुक्त समिति (जेसीआईएलपीएस) और मणिपुर की अनुसूचित जनजाति मांग समिति (एसटीडीसीएम) का गठन किया गया.

जब सीएसओ की मांगों की बात आती है, तो मणिपुर में नागाओं की सर्वोच्च संस्था, यूनाइटेड नागा काउंसिल (यूएनसी), साथ ही COCOMI ने भी मणिपुर में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को लागू करने की मांग बार-बार उठाई थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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