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Thursday, 2 May, 2024
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BJP ने जम्मू में मेहरचंद महाजन की मुूर्ति लगाई, चुनावी हद करना या ‘राष्ट्रवादी नायक’ को सम्मान

अमूमन मेहरचंद महाजन को जम्मू-कश्मीर रियासत के भारत में विलय का सूत्रधार बताया जाता है, बीजेपी अब उन्हें नए सिरे से सम्मान दे रही.

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नई दिल्ली: भारत की आजादी के चंद दिनों बाद ही लाहौर के जज मेहरचंद महाजन शिमला में नए बने पूर्वी पंजाब हाइकोर्ट में नई पारी शुरू करने जा रहे थे. उसी वक्त उन्हें कश्मीर की महारानी तारा देवी का खत मिला. महारानी ने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने उनके पति महाराजा हरि सिंह से जम्मू-कश्मीर रियासत के प्रधानमंत्री पद के लिए इंटरव्यू के खातिर मिलने का वादा किया था.

कुछ हफ्ते बाद महाजन इंटरव्यू के लिए गए और उन्हें पद की पेशकश की गई और गृह मंत्री सरदार पटेल ने ‘दो-टूक आदेश’ दिया कि श्रीनगर जाइए. वे अक्टूबर 1947 में वहां गए. महाजन की नियुक्ति के एक पखवाड़े के भीतर पाकिस्तान की शह से कबीलाई हमले के बीच डोगरा महाराजा ने भारत में विलय-संधि पर दस्तखत कर दिए. दुविधा में फंसे महाराजा को आखिर फैसला लेने के लिए राजी करने का श्रेय महाजन को दिया जाता है.

अब करीब 75 साल बाद महाजन के योगदान को बीजेपी से नई-नई सराहना मिल रही है, जो बाद में देश के तीसरे प्रधान न्यायाधीश बने.

पिछली शनिवार को बीजेपी नेता तथा जम्मू के मेयर चंदर मोहन गुप्ता ने जम्मू के जानीपार चौक पर महाजन की मूर्ति का अनावरण किया. गुप्ता ने दिप्रिंट से कहा, ‘वे सामाजिक कार्यकर्ता, चर्चित न्यायविद थे और हमारे देश को एक करने में महान भूमिका निभाई थी.’

जम्मू-कश्मीर के पूर्व उप-मुख्यमंत्री, बीजेपी नेता निर्मल सिंह ने कहा कि महाजन ‘राष्ट्रवादी नायक’ हैं, इसलिए मूर्ति लगाई गई.

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यह पहल ऐसे वक्त हुई है, जब संकेत हैं कि जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में भी इस साल के आखिर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के साथ चुनाव हो सकते हैं. इसी राज्य में महाजन का जन्मस्थान भी है. यह 2019 में अनुच्छेद 370 और 35ए हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा का पहला चुनाव होगा.

सिंह ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर के विलय में मेहर चंद महाजन की बड़ी भूमिका थी. उन्होंने पूरी कोशिश की जम्मू-कश्मीर भारत में बना रहे, जो पाकिस्तान में जा सकता था. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए का हटाया जाना उसी प्रक्रिया का हिस्सा था, जिसे महाराजा हरि सिंह और मेहरचंद महाजन ने शुरू किया था, इसलिए हम उनके प्रति आभारी हैं.’

The day Kashmir acceded to India in 1947 | Commons
1947 में जिस दिन कश्मीर का भारत में विलय हुआ था/ Commons

महाराजा हरि सिंह ने जिस विलय-संधि पर दस्तखत किया, उसमें यह प्रावधान शामिल था कि भारतीय संसद को सिर्फ रक्षा, विदेश और संचार के मामलों में कानून बनाने का अधिकार है. 1949 में अनुच्छेद 370 संविधान में ‘अल्पकालिक’ प्रावधान के रूप में लाया गया कि जम्मू-कश्मीर में संसद के सीमित अधिकार हैं. 1954 में अनुच्छेद 35ए जोड़ा गया, जो जम्मू-कश्मीर विधायिका को अपने स्थायी निवासियों और उनके विशेष अधिकारों/विशेषाधिकारों की व्याख्या करने को अधिकार दिया गया.

जम्मू में राजनैतिक विश्लेषकों के मुताबिक, चुनावों के पहले बीजेपी अपने ‘नायकों’ को स्थापित करना चाहती है और महाजन एक अच्छी शख्सियत हैं.

जम्मू विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र की पूर्व प्रोफेसर रेखा चौधरी कहती हैं, ‘विलय के दौरान उन्होंने (महाजन ने) एक विशेष भूमिका निभाई और भारत के पक्ष में दिखे थे, इसलिए इस पहल का आने वाले चुनावों में बीजेपी के लिए राजनैतिक फायदे की तरह देखा जा रहा है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इस संदर्भ में महाजन को एक नायक के रूप में पेश किया जा सकता है. शेख अब्दुल्ला (नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक) को कश्मीर के लोगों के नायक के मुकाबले महाराजा हरि सिंह को एक नायक की तरह पहले ही देखा जाता है. महाजन राष्ट्रवादी नेताओं की कतार का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनकी मूर्ति स्थापित करने की पहल को राजनैतिक कदम की तरह देखा जा सकता है.’


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‘विरासत’ पर दावा

बीजेपी नेता निर्मल सिंह ने दावा किया कि महाजन की मूर्ति का ‘चुनाव के दौरान राजनैतिक असर’ हो सकता है, मगर मकसद तो युवा पीढ़ी में ‘राष्ट्रवाद की भावना भरना और प्रेरणा जगाना’ है.

उन्होंने आगे कहा कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर के पहले महाराजा बने डोगरा सिपहसालार के नाम एक चौक और उनके जनरल जोरावर सिंह की मूर्ति स्थापित करके दूसरे क्षेत्रीय ‘राष्ट्रवादी नायकों’ की ओर ध्यान खींचने भी कोशिश कर रही है.
शनिवार को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के पास मूर्ति का अनावरण करने वाले जम्मू के मेयर चंद्र मोहन गुप्ता ने कहा कि मूर्ति का प्रस्ताव 2019 में किया गया.

उन्होंने कहा, ‘जम्मू नगर निगम का गठन हुआ, तो हम उनकी मूर्ति स्थापित करना चाहते थे. हमारी पार्टी की यह परंपरा रही है कि देश के लिए जिन लोगों ने महान काम किया, उन्हें सम्मानित किया जाए. इसमें शक नहीं कि कांग्रेस ने उनकी विरासत और राष्ट्र के सच्चे नायकों को भुला दिया है.’

जम्मू प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रमन भल्ला ने कहा कि कांग्रेस ने भी जम्मू के गांधी नगर में महाजन के नाम एक पार्क को समर्पित किया था. उन्होंने कहा, ‘हम अपने देश के लिए उन्होंने जो कुछ किया, उसका काफी आदर करते हैं. हमारे लिए वे किसी तरह की दलगत राजनीति से काफी ऊपर हैं. उनके नाम एक पार्क भी है, जिसमें उनकी मूर्ति लगी है. ऐसी चीजें अतीत में सभी पार्टियां कर चुकी हैं.’

भल्ला के मुताबिक, बीजेपी का मकसद राजनैतिक है और उनकी नजर चुनाव पर है. उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस जम्मू में महाराजा हरि सिंह की एक मूर्ति सथापित कर चुकी है, ‘इसलिए यह आरोप सही नहीं है कि हमने अपने नायकों को भुला दिया है.’

कांग्रेस कार्याकारिणी की सदस्य, हिमाचल प्रदेश की नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह ने कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है और इसलिए कोई टिप्पणी नहीं करेंगी.

हालांकि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के अध्यापक, राजनैतिक विश्लेषक रमेश के. चौहान ने कहा कि इस पहल को राजनैतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि महाजन बिरादरी हिमाचल प्रदेश में कोई खास महत्व का वोट बैंक नहीं है.

मूर्ति पर परिवार को ‘गर्व’

महाजन की बेटी रमा टंडन ने दिप्रिंट से कहा कि परिवार मूर्ति को लेकर काफी खुश है, भले उनसे पूछा नहीं गया या अनावरण के वक्त बुलाया नहीं गया.

उन्होंने कहा, ‘हमें गर्व है कि मूर्ति आखिरकार स्थापित की गई, जिसकी लंबे समय से प्रतिक्षा थी. उनके सभी पार्टियों के लोगों से हार्दिक रिश्ते थे.’

दिवंगत न्यायाधीश के बेटे प्रबोध महाजन ने कहा कि परिवार को मूर्ति की जानकारी एक प्रेस विज्ञप्ति से मिली, लेकिन वे काफी ‘गौरवान्वित’ हैं और जम्मू नगर निगम और मेयर के प्रति ‘काफी कृतज्ञ’ हैं.

टंडन और महाजन दोनों ने कहा कि उनकी राय में, कांग्रेस ने अपने दिग्गजों को दरकिनार कर दिया.

टंडन ने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी की हालत इन दिनों काफी दुखद है, और इसकी शुरुआत इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद हुई. मेरे भाई (विक्रम महाजन, 1970 और 1980 के दशक में तीन बार के सांसद) के गुजर जाने के बाद, मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस में किसी ने परिवार को पूछा.’

प्रबोध महाजन ने कहा, ‘मेरे भाई विक्रम महाजन कांग्रेस से जुड़े थे, इसका मतलब यह तो नहीं कि पूरा परिवार कांग्रेस की विचारधारा से जुड़ा है. हम राजनैतिक परिवार हैं और मेरे पिता के राष्ट्र के प्रति योगदान को राजनीति से अलग देखा जाना चाहिए.’

हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि बीजेपी ने उनके पिता को सम्मानित करने में कांग्रेस से बेहतर काम किया है, 2018 में उनके नाम एक डाक टिकट भी जारी किया गया.

एक डाक टिकट जो 2018 में मेहर चंद महाजन के सम्मान में जारी किया गया था | Commons

उन्होंने कहा, ‘बीजेपी उन लोगों को सम्मानित करके बड़ा काम कर रही है, जिन्हें कांग्रेस ने दरकिनार कर दिया. हालांकि मेरे पिता को किसी ने दरकिनार नहीं किया, क्योंकि रानीति में नहीं, न्यायपालिका में थे. हम बीजेपी या कांग्रेस किसी पार्टी के संपर्क में नहीं हैं.’

परिवार को अनावरण के मौके पर क्यों नहीं बुलाया गया? मेयर का जवाब था कि ‘बरसात’ हो रही थी और कार्यक्रम एक ‘व्यस्त चौक’ पर ‘छोटा’ था. उन्होंने कहा कि परिवार को आगे के कार्यक्रमों में बुलाया जाएगा.

मेहर चंद महाजन ने जम्मू-कश्मीर के विलय में कैसे मदद की

हिमाचल के कांगड़ा इलाके (तब पंजाब का हिस्सा) के टीका नगरोटा में 1889 में जन्मे मेहर चंद महाजन ने अपनी कानूनी प्रतिष्ठा गुरदासपुर और लाहौर में कायम की, जहां वे 1938 से 1943 तक हाइकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष थे.

उनके संस्मरण लुकिंग बैक के मुताबिक, आजादी के पहले वे पंजाब हाईकोर्ट में जज थे, जब मई 1947 में महारानी तारा देवी ने लाहौर के एक रेस्तरां में उनसे जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री पद के लिए इंटरव्यू देने की पेशकश की. तब उन्होंने वह पेशकश ठुकरा दी, लेकिन कहा कि वे बाद में इस पर विचार करेंगे.

हिंदू महाराजा और मुस्लिम बहुल रियासत कश्मीर जब मुश्किल हालत में था तो तारा देवी ने महाजन को उनके वादे की याद दिलाई. कई ऐतिहासिक संदर्भों के मुताबिक, हरि सिंह और उनके सलाहकार तीन संभावनाओं पर झूल रहे थे कि भारत में विलय, पाकिस्तान में विलय, या ‘स्वतंत्र’ रहा जाए.

ऐसे मोड़ पर हरि सिंह ने अपने प्रधानमंत्री रामचंद्र काक को अभी-अभी हटाया ही था. महाजन के मुताबिक, काक ‘पाकिस्तान के पक्ष में झुकाव’ रखते थे और ‘पाकिस्तान के कुछ नेताओं के साथ कश्मीर को सौंपने के लिए खुसुर-पुसुर कर रहे थे.’ (अपने लिखे के मुताबिक, काका का मानना था कि रियासत को किसी में विलय नहीं करना चाहिए).
निर्मल सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘काक का झुकाव थोड़ा अलग था. शायद वे ज्यादा स्वायत्तता चाहते थे. इसके विपरीत मेहर चंद महाजन भारत के पक्ष में थे.’

शायद ऐसा ही नजरिया सरदार पटेल का था. लुकिंग बैक में महाजन ने लिखा है कि महाराज की पेशकश मंजूर करने के लिए उन्होंने अनुमति मांगी थी.

महाजन ने लिखा, ‘मैं 19 सितंबर को गृह मंत्री सरदार पटेल से मिला. उन्होंने मुझे प्रोत्साहित ही नहीं किया, बल्कि सीधे आदेश दिया कि पेशकश मंजूर करो और फौरन श्रीनगर कूच करो. उन्होंने कहा कि वे मुझे (हाईकोर्ट से) आठ महीने की छूट्टी मंजूर करते हैं. मुझे कश्मीर राज्य में सेवा लेने की भी इजाजत दी गई, जिसे सरदार उपजे हालात में भारत के हित में मानते थे.’

महाजन ने औपचारिक तौर पर 15 अक्टूबर 1947 को पद की शपथ ली. वह बड़ा उथल-पुथल भरा दौर था, सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा था. महाजन ने लिखा, ‘पूर्वी पंजाब और पश्चिमी पंजाब में जो हुआ, वही अब जम्मू में हो रहा था.’ इस बीच, पाकिस्तान के कबिलाई ‘उत्पात, लूट और हत्या’ करते हुए श्रीनगर की ओर बढने लगे थे.

Tribal fighters in Jammu and Kashmir | Commons
जम्मू और कश्मीर में जनजातीय लड़ाके | Commons

उसी महीने 26 तारीख को महाजन और सरदार पटेल के खासमखास वी.पी. मेनन जम्मू से दिल्ली के लिए विमान पकड़ा और पंडित नेहरू से मिले. महाजन ने लिखा, उन्होंने फौरन मिलिट्री मदद पर जोर दिया, मगर नेहरू हिचक रहे थे. महाजन ने तब आखिरी पत्ता चला: ‘आज शाम श्रीनगर को बचाने के लिए सेना जरूर कूच करे, वरना मैं लाहौर जाऊंगा और जिन्ना से शर्तों पर बात करूंगा.’

नेहरू भन्ना गए, लेकिन पटेल और तब प्रधानमंत्री के करीबी दोस्त नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता शेख अब्दुल्ला ने महाजन का समर्थन किया और भारतीय सेना रवाना की गई.

अगले दिन 27 अक्टूबर 1947 को महाजन ने नेहरू से ‘उन शर्तों’ को लिखने का आग्रह किया ‘जिन पर महाराजा को सेना की मदद दी गई.’ नेहरू ने शर्तें लिखीं: भारत में विलय, पूरे प्रशासन का लोकतंत्रीकरण, और सत्ता में शेख अब्दुल्ला की हिस्सेदारी. आखिरकार हरि सिंह ने उसी दिन विलय-संधि पर दस्तखत कर दिए. महाजन मार्च 1948 तक राज्य के प्रधानमंत्री बने रहे.

महाजन को रेडक्लीफ कमीशन का सदस्य बनाया गया, जिसे धार्मिक आबादी, रणनीतिक सडक़ों, सिंचाई के तरीकों और दूसरे कारकों को ध्यान में रखकर भारत-पाकिस्तान की सीमा खींचने का जिम्मा सौंपा गया था. महाजन ने आयोग को राजी किया कि गुरदासपुर को पाकिस्तान के बदले भारत को दिया जाए.

उनके बेटे कारोबारी और डीएवी कॉलेज प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष प्रबोध महाजन ने कहा, ‘वह महत्वपूर्ण काम था, क्योंकि कश्मीर की सडक़ गुरदासपुर से ही जाती है. अगर बुरदासपुर पाकिस्तान में चला गया होता तो भारत के रास्ते जम्मू-कश्मीर पहुंचने का कोई रास्ता नहीं रहता. इस उपलब्धि का जिक्र डाक विभाग के जारी दस्तावेज में भी है, जब उसने 2018 में महाजन पर डाक टिकट जारी किया.

उसके बाद महाजन 1950 से 1954 तक देश के तीसरे प्रधान न्यायाधीश बने. सुप्रीम कोर्ट में उनकी पीठ ने चर्चित रमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में फैसला सुनाया कि बोली और अभिव्यक्ति की आजादी पर तभी अंकुश लगाया जा सकता है, जब उससे राज्य की सुरक्षा प्रभावित होती हो.

ब्रिज भूषण बनाम दिल्ली राज्य मामले में उनकी पीठ ने फैसला सुनाया कि आरएसएस के मुखपत्र आर्गेनाइजर के खिलाफ पहले सेंसरशिप का आदेश असंवैधानिक है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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