scorecardresearch
Saturday, 2 November, 2024
होमराजनीतिपूर्व सहयोगी SP या BJP किसी को नहीं छोड़ रहीं मायावती, वो चाहती हैं 2022 में एकमात्र पसंद रहे BSP

पूर्व सहयोगी SP या BJP किसी को नहीं छोड़ रहीं मायावती, वो चाहती हैं 2022 में एकमात्र पसंद रहे BSP

पिछले एक हफ्ते में मायावती BJP और SP दोनों पर हमले बोलती रही हैं, और उन्होंने साफ कर दिया है कि अगले UP चुनावों में BSP अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी. चुनाव उनके लिए ये साबित करने का मौक़ा है, कि वो अभी भी राजनीतिक रूप से प्रासंगिक हैं.

Text Size:

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती, जो 2019 लोकसभा चुनावों के बाद से नजरों से लगभग ओझल चल रहीं थीं, ऐसा लगता है कि अब फिर से सक्रिय हो रही हैं, जब उत्तर प्रदेश के अगले असेम्बली चुनावों में क़रीब 8 महीने बचे हैं.

मायावती के राजनीतिक विरोधी उन पर आरोप लगा रहे थे कि वो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रति नर्म रुख़ अपनाए हुए हैं और कांग्रेस को निशाने पर ले रही हैं जो कि सूबे में राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक हो चुकी है. लेकिन अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए पिछले हफ्ते मायावती, भगवा पार्टी और समाजवादी पार्टी (एसपी) पर हमलावर हो गईं, जो लोकसभा चुनावों में उनकी गठबंधन सहयोगी थीं.

शुक्रवार को जहां उन्होंने ‘असहाय’ एसपी को निशाने पर लिया और दावा किया कि उसे ‘मजबूरन छोटी पार्टियों से हाथ मिलाना पड़ रहा है’, वहीं एक दिन पहले उन्होंने बीजेपी पर भी ये कहते हुए हमला किया कि उनकी सरकार के राज में पढ़े-लिखे युवाओं को ‘मजबूरन पकौड़े बेचने पड़ रहे हैं’.

कई बीएसपी पदाधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि ये बदलाव पार्टी की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें आगामी विधान सभा चुनावों में मायावती को एक मज़बूत प्रतियोगी के रूप में आगे बढ़ाया जाएगा. वरिष्ठ नेताओं से ये भी कहा गया है कि सार्वजनिक सभाओं में, एसपी और बीजेपी के खिलाफ ज़्यादा मुखर रवैया इख़्तियार करें. एक पदाधिकारी ने कहा, ‘हम दोनों पार्टियों पर ऐसे और हमले करेंगे, चूंकि वो (मायावती) ख़ुद को एक मज़बूत और एकमात्र विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही हैं’.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगला चुनाव उत्तर प्रदेश में मायावती की राजनीतिक प्रासंगिकता तय करेगा. उस दिशा में उनका अन्य पार्टियों के खिलाफ खुलकर सामने आना, ये साबित करने का प्रयास है कि फिलहाल बीजेपी-शासित राज्य में, वो अभी भी एक मज़बूत ताक़त हैं.


यह भी पढ़ें: ‘खेला होई’: सपा ने यूपी चुनाव के लिए गीतों और नारों की पूरी तैयारी की—कुछ मौलिक, कुछ ‘प्रेरित’


‘दलित-विरोधी’ समाजवादी पार्टी

शुक्रवार सुबह सिलसिलेवार ट्वीट करते हुए मायावती ने अपने पूर्व गठबंधन सहयोगी, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खेल दिया और कहा कि उनके ‘दलित-विरोधी’ रवैये की वजह से बड़ी राजनीतिक पार्टियां उनके साथ आने से बचती रही हैं.

हिंदी में पोस्ट किए गए एक ट्वीट में कहा गया, ‘इसकी घोर स्वार्थी, संकीर्ण व ख़ासकर दलित विरोधी सोच एवं कार्यशैली के कारण देश की अधिकतर बड़ी व प्रमुख पार्टियां चुनाव में इससे किनारा करना ही ज़्यादा बेहतर समझती हैं, जो सर्वविदित है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘इसीलिए आगामी यूपी विधानसभा आम चुनाव अब ये पार्टी किसी भी बड़ी पार्टी के साथ नहीं बल्कि छोटी पार्टियों के गठबंधन के सहारे ही लड़ेगी. ऐसा कहना व करना सपा की महालाचारी नहीं है तो और क्या है’.

एक बीएसपी नेता के अनुसार ये पार्टी का इस बात को ज़ाहिर करने का तरीक़ा है कि बीजेपी के खिलाफ वही एकमात्र विकल्प है.

बीएसपी नेता ने कहा, ‘ज़्यादा मज़बूती से चुनाव लड़ने के लिए हमें एसपी को लेकर ज़्यादा मुखर होना है और अपने आप को प्रमुख विपक्ष के तौर पर साबित करना है. बहनजी (मायावती) यही कर रही हैं. हमें अपने मतदाताओं को बताना है कि एसपी की अब कोई अहमियत नहीं है. अकेले हम हैं जो बीजेपी के खिलाफ लड़ सकते हैं, लेकिन हमें अपनी रणनीति बदलनी होगी’.

एक अन्य बीएपसी नेता ने आगे कहा, ‘हमें साबित करना है कि यूपी में हम बीजेपी के प्रमुख विरोधी हैं. उसके लिए सत्ताधारी सरकार के खिलाफ ज़्यादा मुखर बनना होगा. हम उसी पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं’.

BJP के खिलाफ बढ़ा रही दांव

सिर्फ एसपी ही नहीं, अपने ट्वीट्स में मायावती बीजेपी को भी निशाने पर ले रही हैं. शासन से जुड़े मुद्दों को लेकर उन्होंने एक सप्ताह के भीतर तीन मरतबा सत्ताधारी पार्टी पर हमले किए.

बृहस्पतिवार को उन्होंने हिंदी में ट्वीट किया, ‘पूरे यूपी तथा देशभर में लाखों की संख्या में पढ़े-लिखे बेरोज़गार युवक, गुज़र-बसर के लिए सड़क किनारे पकौड़े बेचने या मज़दूरी करने को विवश हो गए हैं. परिवार जिस पीड़ा से गुज़र रहे हैं, मैं उसे समझ सकती हूं. ये स्थिति बेहद चिंताजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है’.

उन्होंने आगे कहा कि यदि बीजेपी कांग्रेस के क़दमों पर चलती रही, तो इसका हाल भी वही होगा, जो उसका हुआ है. उन्होंने ये भी कहा, ‘बीजेपी को इस बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए, चूंकि उसकी मौजूदा नीतियों और कार्यों के अंतर्गत, जन कल्याण और आत्म-निर्भरता कुछ भी संभव नहीं है’.

इसी हफ्ते मंगलवार को मायावती ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर हमला करते हुए, लखनऊ में आम्बेडकर सांस्कृतिक केंद्र के निर्माण को नाटकबाज़ी क़रार दिया. यूपी कैबिनेट ने राज्य के सांस्कृतिक विभाग के एक प्रस्ताव को स्वीकृति दी थी, जिसके तहत ये केंद्र बनाया जाना है जिसमें आम्बेडकर की एक 25 फीट ऊंची प्रतिमा भी स्थापित की जाएगी.

एक अन्य ट्वीट में उन्होने बीजेपी पर आरोप लगाया कि वो सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करके, ज़िला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित कर रही है, जो शनिवार को चल रहे थे. उन्होंने कहा कि ये ‘चालें’ पिछली एसपी सरकार के तरीक़ों जैसी ही हैं, और यही कारण है कि कोई बीएसपी उम्मीदवार चुनावों में हिस्सा नहीं ले रहा था.

लेकिन मायावती के ये हमले उनके पिछले बयानों से मेल नहीं खाते. अक्तूबर 2020 में, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बीएसपी सुप्रीमो का एक वीडियो शेयर किया था, जिसमें कहा गया था कि भविष्य के चुनावों में एसपी उम्मीदवारों की हार सुनिश्चित करने के लिए, उनकी पार्टी बीजेपी या किसी भी अन्य पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन दे देगी.

मायावती पर कटाक्ष करते हुए वीडियो के साथ गांधी ने पोस्ट किया था, ‘क्या अब कुछ और कहना बाक़ी रह गया है?’


यह भी पढ़ें: सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य यूपी में चुनाव से पहले दो-बच्चा नीति की तैयारी, तैयार हो रहा मसौदा


एक नया अभियान

एक यूपी स्थित राजनीतिक विश्लेषक और लखनऊ के गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़ में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शिल्पा सिखा सिंह का कहना है कि आगामी चुनाव मायावती के लिए ये साबित करने का अवसर हैं कि यूपी की सियासत में वो अभी भी प्रासंगिक हैं.

सिंह ने कहा, ‘ये चुनाव मायावती के करिअर को तय करने वाला है. मैं अपेक्षा कर रही हूं कि चुनावों के निकट आते-आते, वो अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ ज़्यादा मुखर दिखाई देंगी. यही कारण है कि उनकी रणनीति में एक तरह का बदलाव देखने में आ रहा है’.

मायावती का मूल जनाधार दलित रहे हैं, जो यूपी के कुल मतदाताओं का क़रीब 20 प्रतिशत हैं. लेकिन सिंह का कहना है कि ‘ग़ैर-जाटवों’ के बल पर बीजेपी कुछ ज़िलों में, मायावती के क़िले में सेंध लगाने में कामयाब हो गई है, जबकि अल्पसंख्यकों का एक बड़ा वर्ग समाजवादी पार्टी का समर्थन करता है.

सभी जातियों पर बराबर ज़ोर देने की बात करते हुए, मायावती के नए नारे में कहा गया है: ‘यूपी को बचाना है, बचाना है. सर्वजन को बचाना है, बचाना है. बीएसपी को सत्ता में लाना है व ज़रूर लाना है’.

लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कविराज, जो राज्य में दलित राजनीति में विशेषज्ञता रखते हैं, ने कहा, ‘मायावती के नए नारे में कई दिलचस्प बिंदु हैं. ‘यूपी को बचाना है’ का इस्तेमाल करके वो इशारा कर रही हैं कि सभी पार्टियां राज्य को नुक़सान पहुंचा रही हैं. इसीलिए वो आजकल एसपी, बीजेपी और कांग्रेस को लेकर ज़्यादा मुखर हैं’.

उन्होंने आगे कहा कि मायावती जानती हैं ‘कि मुख्य विरोधी दिखने के लिए उन्हें योगी सरकार को प्रति ज़्यादा मुखर होना है’, जिनसे बीजेपी पर उनके हमले समझ में आ जाते हैं.

सिंह ने आगे कहा कि जब आप मायावती के नारे की मूल बातों को देखते हैं, तो संदेश साफ है- ‘सबका साथ’. सिंह ने कहा, ‘राजनीतिक मायनों में वो अब हर जाति और धर्म पर ज़ोर दे रही हैं. वो सिर्फ दलितों की नेता नहीं बने रहना चाहतीं’.

कोई गठबंधन नहीं, ‘सर्वजन’ के नारे पर काम करती है पार्टी

बीएसपी के चुनावी एजेंडे के अनुरूप मायावती ने स्पष्ट कर दिया कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के साथ हाथ नहीं मिलाएगी. उन्होंने ये भी कहा कि पार्टी अकेले दम पर उत्तराखंड का चुनाव लड़ेगी.

पिछले साल बिहार चुनाव के बाद ऐसी कुछ अटकलें थीं कि यूपी चुनावों के लिए बीएसपी और एआईएमआईएम के बीच गठबंधन हो गया था.

एक अन्य बीएसपी पदाधिकारी ने कहा कि उन अटकलों पर विराम लगाने के लिए पार्टी ‘नए नारे को प्रचलित करने, बहन जी की ब्रांडिंग करने, और जनसभाओं तथा सोशल मीडिया में बीजेपी के प्रति मुखर होने पर ध्यान लगा रही है.

बीएसपी के एक सूत्र ने कहा, ‘बिहार चुनावों के बाद ऐसी बातें चल रहीं थीं कि यूपी चुनावों के लिए बीएसपी ओवैसी की एआईएमआईएम के साथ गठबंधन कर सकती है, चूंकि दोनों ने आरएलएसपी के साथ एक महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था. लेकिन मायावती राज़ी नहीं हुईं. उन पर पहले ही कई मोर्चों पर बीजेपी के प्रति नर्म रुख़ रखने के आरोप लग रहे थे, और इसी तरह ओवैसी पर भी आरोप थे कि वो बीजेपी की सहायता कर रहे थे. इसलिए बहनजी इस सब से बाहर आना चाहतीं थीं’.

बीएसपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया ने समझाया: ‘मीडिया का एक वर्ग लगातार लिखता रहता है कि बीएसपी एआईएमआईएम के साथ हाथ मिला सकती है, लेकिन बहन जी के बयान के बाद अब स्पष्ट हो गया है कि ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है. ये सिर्फ मीडिया की कहानी है. इस बारे में कोई मीटिंग तक नहीं हुई है’.

उन्होंने इस ओर ध्यान आकर्षित कराया कि पार्टी ने पिछले तीन विधान सभा चुनाव अकेले लड़े थे, और उसकी मंशा ‘आगे भी इसी रणनीति पर चलने की है’.

‘हम ओवैसी के साथ नहीं जाना चाहते. हमारे पास पहले ही कई अल्पसंख्यक नेता मौजूद हैं. बल्कि हमारे यहां हर जाति के नेता हैं, चाहे वो दलित हों, ओबीसी हों या ब्रह्मण आदि हों. हमें किसी पार्टी का सहारा नहीं चाहिए. हम अकेले चुनाव लड़ेंगे. हमारे यहां कोई नर्मी नहीं है, न बीजेपी के लिए, न एसपी के लिए और न ही कांग्रेस के लिए’.

एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि पार्टी कई ज़िलों में जातीय नेताओं के साथ छोटी-छोटी बैठकें करने जा रही है. ‘आने वाले दिनों में हम समाज के हर वर्ग लोगों को अपनी जनसभाओं में आमंत्रित करेंगे. हमारा प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी है और हमारे पास अन्य ओबीसी नेता भी हैं. ब्रह्मणों का समर्थन मांगने के लिए हमारे पास सतीश मिश्रा और रितेश पाण्डेय आदि हैं. इस प्रकार से हम नेताओं का एक पूल बनाएंगे, जो सभी जातियों के बीच पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे, तभी हम ‘सर्वजन’ के अपने नारे को साकार कर सकते हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: यूपी में BJP और योगी के लिए मुश्किल भरी हो सकती है राह, लस्त पस्त विपक्ष को पता चल गई हैं कमजोरियां


 

share & View comments