कोलकाता: गोवा में अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की चुनावी हार और ‘राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा’ को झटका लगने के दस महीने बाद, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सोमवार से मेघालय के तीन दिवसीय दौरे की शुरुआत कर रही हैं. पिछले साल पूर्वोत्तर राज्य के कुल 17 कांग्रेस विधायकों में से 12 के उनकी पार्टी में शामिल होने के बाद ममता का यह पहला दौरा है.
मेघालय में फरवरी 2023 में चुनाव होने हैं.
उनकी यह यात्रा, हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के लिए एक राष्ट्रीय चुनौती के रूप में आगे आने की आम आदमी पार्टी (आप) की महत्वाकांक्षा को गुजरात में जोरदार झटका लगने के कुछ दिनों बाद हो रही है. गौरतलब है कि गुजरात में अरविंद केजरीवाल की पार्टी पांच विधायकों और 13 फीसदी वोट शेयर के साथ तीसरे नंबर पर सिमट कर रह गई. हालांकि गुजरात में इस प्रदर्शन ने AAP को राष्ट्रीय दलों की लीग में शामिल करने में मदद की है.
एक राष्ट्रीय पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के साथ TMC, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) ने 2019 में चुनाव आयोग (EC) से उस साल लोकसभा चुनावों में खराब चुनावी प्रदर्शन के बावजूद टैग को बरकरार रखने का अनुरोध किया था.
ज्यादा से ज्यादा पैर पसारने की अपनी योजना के चलते तृणमूल चुनावी मेघालय और त्रिपुरा में सत्तारूढ़ दलों के लिए प्रमुख चुनौती के रूप में उभरना चाह रही है, जहां क्रमशः एनपीपी-बीजेपी गठबंधन और बीजेपी ने सत्ता संभाली हुई है.
मेघालय में कांग्रेस के बाकि पांच विधायक – जिन्हें पार्टी ने निलंबित कर दिया गया था – भी कॉनराड संगमा के नेतृत्व वाली एनपीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार को समर्थन दे रहे है. इसके बाद से यहां कांग्रेस को एक बड़े संकट का सामना करना पड़ रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक उदयन बंदोपाध्याय के मुताबिक, ‘मेघालय में टीएमसी के लिए जीतना एक ‘असंभव काम’ है. टीएमसी पश्चिम बंगाल की एक राजनीतिक पार्टी है. गोवा की तरह मेघालय या त्रिपुरा में इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा. मेघालय में टीएमसी गुजरात में ‘आप’ की भूमिका निभाएगी जिसने भाजपा को बड़ी जीत दिलाने में मदद की है.’
शिलॉन्ग के नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी की प्रो. सुष्मिता सेनगुप्ता ने इन विचारों से अपनी सहमति जताते हुए मेघालय में टीएमसी के ‘संगठनात्मक आभाव’ को रेखांकित किया.
राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर ने कहा, ‘टीएमसी का इस राज्य में कोई संगठनात्मक वजन नहीं है. इसे एक बाहरी पार्टी के रूप में माना जाता है और इस तरह के आदिवासी राज्य में यह असंगत है. AITC एक राष्ट्रीय पार्टी हो सकती है, लेकिन इसका स्वभाव मेघालय के साथ मेल नहीं खाता है. वैसे पार्टी ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को हथिया लिया है, लेकिन यह शायद ही नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) में सेंध लगा पाएगी.’
उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस के पूरी तरह से खत्म हो जाने के बाद, सत्तारूढ़ गठबंधन का राज्य में कोई बड़ा विरोधी नहीं बचा है. टीएमसी कुछ सीटें जीत सकती है, लेकिन इससे ज्यादा वह एनपीपी को बड़ी जीत दिलाने में मदद करती नजर आ रही है.
अगस्त में एनपीपी ने अकेले राज्य चुनाव लड़ने की घोषणा की है, भले ही उसने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का समर्थन करना जारी रखा हुआ है.
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‘पूर्ण बहुमत हासिल करने के लिए काम किया जा रहा है’
मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा, जो कांग्रेस के 11 मौजूदा विधायकों के साथ पिछले साल नवंबर में तृणमूल में शामिल हुए थे, ने संकेत दिया कि कांग्रेस राज्य में प्रदर्शन करने में सक्षम नहीं है.
संगमा ने दिप्रिंट को बताया,’कांग्रेस विचारधारा की बात करती है, लेकिन क्या जमीन पर पार्टी वास्तव में लड़ रही है? शुरुआत से ही हम ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ को छोड़कर टीएमसी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते थे.
उन्होंने कहा, ‘हम मेघालय में ममता बनर्जी का स्वागत करने के लिए काफी उत्साहित हैं. हम पिछले साल से तारीख तय करने की कोशिशों में जुटे हुए थे. यहां का टीएमसी परिवार उनका बेसब्री से इंतजार कर रहा है. हमने पहले सोचा था कि सिर्फ कार्यकारिणी ही बैठक करेगी, लेकिन ब्लॉक स्तर के नेता भी उनसे मिलने के लिए उत्सुक हैं और उनका आना उत्सुकता का प्रतीक है. हमें उम्मीद है कि उनकी यात्रा जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए एक बड़ी प्रेरणा बनेगी.’
टीएमसी के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों के बारे में पूछे जाने पर संगमा ने बताया कि मेघालय ने सिर्फ एक बार पूर्ण बहुमत के लिए मतदान किया है. वरना यहां हमेशा ही खंडित जनादेश मिला है. उन्होंने कहा, ‘हमने कारणों की पहचान कर ली है और पूर्ण बहुमत हासिल करने के लिए काम कर रहे हैं. राज्य में एक नई पार्टी के रूप में कई अप्रत्याशित चुनौतियां और तार्किक मुद्दे हैं. यह समय, फोकस और संसाधनों की मांग करता है. हम सावधानीपूर्वक चुनावी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं. टीएमसी लोकतंत्र में एक राजनीतिक दल की समग्र जिम्मेदारी को समझती है.
पूर्व मंत्री और कांग्रेस से निलंबित विधायक मजेल अंपारीन लिंगदोह ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेघालय में चार दशकों से प्रभावशाली ताकत बनी रही कांग्रेस अब यहां नहीं बची है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘कांग्रेस के सफाए के बाद अब मेघालय के लोग एक विकल्प के लिए मतदान करेंगे. तृणमूल कांग्रेस के बारे में यहां कोई ठीक से नहीं जानता. इसलिए जनादेश मौजूदा भाजपा-एनपीपी गठबंधन के पक्ष में जाएगा. निलंबित नेता यह भी तय नहीं कर पाए हैं कि चुनाव से पहले उन्हें किस पार्टी में शामिल होना है. इससे कांग्रेस को और नुकसान होगा. आज की स्थिति में टीएमसी यहां एक राजनीतिक खिलाड़ी नहीं है और उसे एक बड़ी छाप छोड़ने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ रही है.’
मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय ने मेघालय में तृणमूल कांग्रेस के किसी भी महत्वपूर्ण कदम की बात को खारिज कर दिया.
बीजेपी ने कहा, ‘मेघालय में कांग्रेस और आदिवासी पार्टियां, जैसे नेशनल पीपुल्स पार्टी बड़े दल हैं. एनपीपी सत्ता में हैं. कुछ आदिवासी दबाव समूह भी हैं जो चुनावी युद्ध के मैदान के बाहर से काम करते हैं.’ पार्टी ने आगे बताया, ‘टीएमसी के लिए मेघालय में सेंध लगाना असंभव है. टीएमसी की पहचान बंगाली पार्टी के तौर पर है. देश में कहीं और उनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. ममता अखिल भारतीय छवि पर बुरी तरह नजर गड़ाए हुए हैं लेकिन मेघालय से उनका कोई फायदा नहीं होने वाला है’
टीएमसी प्रमुख 12 दिसंबर को शिलॉन्ग पहुंचेंगी. अगले दिन कई बैठकें और आउटरीच कार्यक्रम आयोजित करेंगी और 14 दिसंबर को कोलकाता लौट आएंगी.
मेघालय में तृणमूल की राजनीतिक रणनीति को देख रही इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आईपीएसी) के सूत्रों ने कहा कि कोई सार्वजनिक रैली होना तय नहीं है, लेकिन क्रिसमस से पहले ममता की पार्टी कार्यकर्ताओं से छोटी बातचीत करने की संभावना है.
वह अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी और टीएमसी के मेघालय प्रभारी मानस भुनिया के साथ शिलांग के स्टेट सेंट्रल लाइब्रेरी में पार्टी कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन की अध्यक्षता करेंगी, ताकि आगामी चुनाव के लिए रणनीति बनाई जा सके. उन्होंने कहा कि अगर तृणमूल सत्ता में आती है तो ममता मेघालय के लोगों के लिए एक बड़ी घोषणा कर सकती हैं.
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(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य)
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