मुंबई: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मुंबई की अंधेरी (ईस्ट) विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए नाम वापसी के आखिरी दिन अपने प्रत्याशी को मैदान से हटा लिया. राजनीतिक विरोधियों और विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने यह कदम इसलिए उठाया कि कहीं यहां हार की वजह से अगले साल के शुरू में होने वाले बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के चुनावों में कोई गलत संदेश न जाए.
अंधेरी उपचुनाव पार्टी टूटने के बाद से शिवसेना के दोनों गुटों के बीच पहली शक्ति परीक्षा है. गौरलतब है कि शिवसेना में विभाजन के कारण ही पिछली महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन सरकार गिरी थी. एकनाथ शिंदे गुट, जिसे अब बालासाहेबंची शिवसेना के नाम से जाना जाता है, फिलहाल भाजपा के साथ गठबंधन करके सत्तासीन है. भाजपा प्रत्याशी के हटने के बाद अब उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट की उम्मीदवार रुतुजा लटके की अंधेरी से निर्विरोध जीत लगभग तय हो गई है.
अपने प्रत्याशी मुर्जी पटेल को मैदान से हटाने का भाजपा का फैसला व्यापक राजनीतिक अपील के बाद आया है, जो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के राज ठाकरे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार से लेकर बालासाहेबंची शिवसेना के प्रताप सरनाइक तक की तरफ से की गई थी. कारण, किसी मृत विधायक के परिवार के सदस्य के चुनाव लड़ने पर निर्विरोध जीत सुनिश्चित करना महाराष्ट्रियन ‘संस्कृति और परंपरा’ का हिस्सा है.
3 नवंबर को होने वाला अंधेरी उपचुनाव शिवसेना विधायक रमेश लटके—रुतुजा के पति—की मई में मृत्यु के कारण ही कराया जा रहा है.
महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने मीडिया को बताया, ‘हम मुर्जी पटेल की उम्मीदवारी वापस ले रहे हैं. हम उपचुनाव जीतने की स्थिति में थे लेकिन महाराष्ट्र की संस्कृति और परंपरा बनाए रखने के लिए हम निर्विरोध चुनाव होने दे रहे हैं क्योंकि रुतुजा लटके, रमेश लटके की पत्नी हैं. इसके अलावा, अगले विधानसभा चुनाव से पहले नए विधायक को बमुश्किल एक साल या डेढ़ साल का समय मिलेगा. इसलिए केंद्रीय और राज्य नेतृत्व ने उपचुनाव से हटने का फैसला किया है.’
हालांकि, हर कोई इसे ही असली वजह नहीं मान रहा है. मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता सुषमा अंधारे ने कहा कि भाजपा को हार का डर था लेकिन वह इसे ‘संवेदनशीलता के मुखौटे’ से ढकने की कोशिश कर रही है.
उनके मुताबिक, अगर भाजपा परंपरा की इतनी ही परवाह करती है तो वह पूर्व में कोल्हापुर या पंढरपुर उपचुनावों में उम्मीदवार नहीं उतारती, जो दोनों ही एमवीए विधायकों की मृत्यु के बाद हुए थे.
उन्होंने कहा, ‘अंधेरी उपचुनाव में भाजपा ने पटेल के नामांकन के दौरान पैसा खर्च नहीं किया होगा. भाजपा और संवेदनशीलता के बीच कोई संबंध नहीं है. उन्हें लगा कि हार का सामना करना पड़ेगा और उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए.’
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तर्क में दम है और भाजपा ने उद्धव ठाकरे के लिए सहानुभूति की लहर के बीच चुनाव में हार की आशंका देखते हुए काफी सोच-समझकर यह फैसला लिया है. प्रतिष्ठा का सवाल बने शहर के नगर निकाय बीएमसी के चुनाव से ठीक पहले मुंबई में हार का प्रतिकूल असर भी पड़ सकता था.
मराठी लेखक और राजनीतिक टिप्पणीकार प्रकाश अकोलकर ने कहा, ‘सत्ता में बदलाव के बाद यह पहला बड़ा चुनाव था और यह शिवसेना के गढ़ मुंबई में होने वाला था. अगर भाजपा उम्मीदवार हार जाते तो इससे पूरे राज्य में कड़ा संदेश जाता कि मुंबई में सत्ता का यह हस्तांतरण स्वीकार नहीं किया गया है.’
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‘संस्कृति नहीं, सुविधा की राजनीति’
अंधेरी उपचुनाव से अपना उम्मीदवार हटाकर भाजपा ने किसी मौजूदा विधायक की मृत्यु के बाद उसके प्रति सम्मान दर्शाते हुए उसके परिवार के सदस्य को निर्विरोध जिताने की महाराष्ट्र की ‘परंपरा’ का पालन किया है.
यह ऐसी परंपरा है जिसका महाराष्ट्र के अधिकांश नेताओं ने पालन किया. उदाहरण के तौर पर, रविवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में शरद पवार ने भाजपा को याद दिलाया कि 2014 में भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु के बाद एनसीपी ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था ताकि उनकी बेटी को चुना जा सके.
हालांकि, शिवसेना के उद्धव ठाकरे खेमे के कुछ नेताओं को इस पर संदेह है कि भाजपा के फैसले का यहां की संस्कृति या फिर इससे पूर्व अन्य पार्टियों की तरफ से की गई अपील से कोई लेना-देना है.
वे इस तथ्य की ओर भी इशारा करते हैं कि लटके चुनाव लड़ सकें, इसलिए बीएमसी से अपना इस्तीफा मंजूर कराने के लिए उन्हें बांबे हाईकोर्ट का दरवाजा तक खटखटाना पड़ा था, जहां वह बतौर क्लर्क काम करती थीं. कोर्ट ने बीएमसी को पिछले गुरुवार को उनका इस्तीफा स्वीकार करने का निर्देश दिया और आखिरी दिन वह अपना नामांकन दाखिल कर पाईं.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई कहते हैं, ‘उस समय तक राज ठाकरे ने एक शब्द भी नहीं कहा. शायद उन्होंने (बाद में) सोचा कि मराठी मतदाताओं के बीच यह सहानुभूति लहर उनके खिलाफ जाएगी और दिलचस्प बात यह है कि राज ठाकरे ने 2014 में रमेश लटके के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा किया था.’
अकोलकर के मुताबिक, भाजपा महाराष्ट्रियन संस्कृति का हवाला दे रही है लेकिन वास्तविकता यही है कि वो ‘सुविधा की राजनीति’ कर रही है.
अकोलकर ने कहा, ‘कोल्हापुर और पंढरपुर के दौरान यह संस्कृति और परंपरा कहां थी? खासकर कोल्हापुर, क्योंकि यहां विधायक की विधवा को टिकट दिया गया था और जीत सुनिश्चित करने के लिए राज्य भाजपा के सभी नेता वहां प्रचार करने पहुंचे थे, इसलिए यह सिर्फ एक दिखावा है.’
मई 2021 में पंढरपुर-मंगलवेधा विधानसभा क्षेत्र में एनसीपी नेता भरत भालके के निधन के बाद उपचुनाव हुए. एमवीए ने उनके बेटे भगीरथ भालके को मैदान में उतारा था, लेकिन भाजपा के समाधान औताड़े ने 3,700 से अधिक मतों से चुनाव जीता.
हालांकि, दो अन्य विधानसभा उपचुनावों में भाजपा को इसी तरह सफलता नहीं मिली.
पिछले साल नवंबर में देगलुर-बिलोली विधानसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार सुभाष सबने एमवीए उम्मीदवार जितेश अंतापुरकर से 40,000 मतों से हार गए थे, जो मृतक कांग्रेसी विधायक रावसाहेब अंतापुरकर के बेटे हैं. माना जाता है कि जितेश के लिए ‘सहानुभूति की लहर’ ही भाजपा की हार का कारण बनी.
फिर, अप्रैल में कोल्हापुर विधानसभा उपचुनाव में एमवीए उम्मीदवार जयश्री जाधव—दिवंगत कांग्रेस विधायक चंद्रकांत जाधव की विधवा—ने भाजपा के सत्यजीत कदम को 18,000 से अधिक मतों से हराया.
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BMC चुनाव पर संभावित असर
सरकार में बदलाव और शिवसेना में दो-फाड़ के बाद अंधेरी (ईस्ट) विधानसभा सीट का मुकाबला बीएमसी चुनावों से पहले सत्तारूढ़ और विपक्षी गठबंधनों के बीच पहला सीधा मुकाबला है.
मुर्जी पटेल की उम्मीदवारी की घोषणा मुंबई भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार ने 3 अक्टूबर को की थी, लेकिन वापस लेने के निर्णय की घोषणा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने नागपुर में की.
शेलार ने सोमवार को कहा था, ‘यह फैसला देवेंद्र फडणवीस और बावनकुले ने उच्च पदाधिकारियों और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ विचार-विमर्श के बाद लिया है, तो मेरे पास इस पर कहने के लिए और कुछ नहीं है. मैं भाजपा के मुंबई कार्यकर्ताओं से यही कहना चाहता हूं कि अगले दो-तीन महीनों में घोषित होने वाले बीएमसी चुनाव के लिए अपनी ऊर्जा बचाकर रखे…इस ऊर्जा का उपयोग तब किया जाएगा.’
उन्होंने पटेल की उम्मीदवारी वापस लिए जाने की जानकारी ट्विटर पर भी दी और पार्टी कार्यकर्ताओं से ‘अनुशासन बनाए रखने’ को कहा.
पक्षाचा आदेश तात्काळ मान्य करून समर्थक कार्यकर्त्यांची समजूत काढून भाजपाचे अंधेरी पूर्वचे उमेदवार मुरजी पटेल यांनी उमेदवारी अर्ज मागे घेतला. पक्ष शिस्त मान्य करणाऱ्या सर्व पदाधिकारी कार्यकर्ते आणि उमेदवारांचे कौतुक!
अंधेरी पूर्वच्या जनतेच्या सेवेचे व्रत यापुढे सुरु ठेवू! pic.twitter.com/bpQpP52A4g— Adv. Ashish Shelar – ॲड. आशिष शेलार (@ShelarAshish) October 17, 2022
देसाई ने कहा, आम तौर पर भाजपा में संवाद की कमी नहीं है.
राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, ‘अगर भाजपा यह चुनाव नहीं लड़ना चाहती थी तो उन्हें इसके बारे में पहले सोचना चाहिए था. आशीष शेलार खुद मुर्जी पटेल के नामांकन दाखिल करने के दौरान जुलूस में शामिल हुए थे. तो, पिछले दो-तीन दिनों में क्या हुआ? यह भ्रम है जो भाजपा खेमे की तरफ से खुलकर सामने आया है, जो आमतौर पर नहीं होता है.’
अकोलकर ने दावा किया कि यदि भाजपा यह चुनाव हार जाती तो बीएमसी चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन पर भी असर पड़ता. उन्होंने कहा, ‘बीएमसी चुनावों से पहले भाजपा यह नहीं चाहती कि किसी भी तरह यह संदेश जाए कि मुंबई ने एकनाथ शिंदे का सत्ता में आना लोगों ने स्वीकार नहीं किया है.’
देसाई ने कहा कि इससे उद्धव ठाकरे को एक अच्छी बढ़त और आत्मविश्वास मिलेगा. उन्होंने आगे कहा, ‘अगर एमवीए उचित रणनीति बनाता है और फिर बीएमसी चुनावों में उतरता है तो यह फायदेमंद हो सकता है जैसा इस उपचुनाव में देखा गया, साथ ही कुछ ग्राम पंचायत चुनावों में भी नजर आया. लहर फिलहाल उद्धव ठाकरे के पक्ष में है.’
बीएमसी पर पिछले 25 सालों से शिवसेना का दबदबा है. शिवसेना में दो-फाड़ के बाद भाजपा को सत्ता अपने हाथ में आने का मौका नजर आ रहा है. 2017 के बीएमसी चुनावों में शिवसेना ने 84 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा ने 82 सीटों पर जीत हासिल की थी.
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