नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने बीते बुधवार को प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री और कद्दावर नेता टीएस सिंहदेव (त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव) को राज्य का उपमुख्यमंत्री बनाया है. अपना पदभार ग्रहण करते ही टीएस सिंहदेव का नाम इतिहास में दर्ज हो गया. टीएस सिंहदेव राज्य के पहले उपमुख्यमंत्री बने. राज्य में ‘बाबा’ के नाम से मशहूर टीएस का राज्य की राजनीति में काफी दबदबा माना जाता है. 2018 से पहले रमण सिंह सरकार के विरोध में सबसे मजबूत आवाजों में टीएस सिंहदेव रहे हैं. माना जा रहा है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की अंदरुनी कलह को कम करने और चुनाव में कांग्रेस की वापसी सुनिश्चित करने की यह एक कोशिश है.
कांग्रेस नेताओं का मानना है कि पार्टी राज्य में चुनाव से पहले राजस्थान वाली स्थिति नहीं चाहती थी जिसके कारण यह फैसला लिया गया. बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बंपर जीत के बाद पार्टी ने ढाई-ढाई साल वाले फॉर्म्युले पर मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया था. इस फॉर्म्युले के अनुसार शुरू के ढ़ाई साल भूपेश बघेल राज्य के मुखिया रहते और अगले ढाई साल टीएस सिंह देव. हालांकि, टीएस सिंहदेव का यह सपना कभी पूरा नहीं हुआ. इसके कारण टीएस सिंह देव काफी दिनों से पार्टी से नाखुश चल रहे थे. कई बार टीएस सिंह देव अपनी सरकार की ही आलोचना कर चुके हैं.
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 68 पर जीत मिली थी जिसमें टीएस सिंह की बड़ी भूमिका थी.
प्रदेश कांग्रेस का बड़ा चेहरा
टीएस सिंहदेव की गिनती पार्टी के प्रदेश इकाई के बड़े नेताओं में होती रही है. वह सरगुजा राजघराने से ताल्लुक रखते हैं. टीएस सिंह देव के पिता एमएस सिंह देव मध्यप्रदेश राज्य के मुख्य सचिव और योजना आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके थे. उनकी मां देवेंद्र कुमारी सिंहदेव मध्यप्रदेश सरकार में दो बार मंत्री रह चुकी थीं. हालांकि, जब मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ अलग हुआ तो सरगुजा राजपरिवार की स्थिति धीरे धीरे खराब होने लगी. छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी से राजपरिवार की टशन चलती थी, जिसके कारण राजपरिवार का दबदबा धीरे-धीरे कम होने लगा था.
टीएस सिंह सरगुजा राजपरिवार के अंतिम और 118वें राजा हैं.
अपनी राजनीति की शुरुआत नगर पालिका अध्यक्ष के रूप में करने वाले टीएस सिंह देव ने साल 2008 में परिसीमन के बाद छत्तीसगढ़ की अंबिकापुर सीट से अपना पहला विधानसभा 980 वोट के मामूली अंतर से जीता और पहली बार विधानसभा पहुंचे. उसके बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने 19400 वोट से जीत दर्ज की और विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष बने. उस वक्त टीएस सिंह देव को विपक्ष के नेता के रूप में काफी सराहना मिली थी. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने लगभग 40 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी.
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है. उस चुनाव में वह मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदारों में से एक थे. टीएस सिंह राज्य के सबसे अमीर विधायक भी हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपनी संपत्ति 500 करोड़ से भी अधिक बताई थी.
अपनी सरकार पर करते रहें हैं सवाल
टीएस सिंहदेव को चुनाव के बाद स्वास्थ्य मंत्री के साथ साथ पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग मंत्री का पद भी दिया गया था, लेकिन जुलाई 2022 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था. उस वक्त उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में इस बात के संकेत दिए थे कि उन्हें सरकार से दरकिनार किया जा रहा है और उनकी फाइलों पर काम नहीं हो रहा है.
मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में उन्होंने कहा था कि वह सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं. उन्होंने लिखा था कि अफसर भी उनकी बात नहीं सुनते हैं.
उसके कुछ दिनों बाद ही टीएस सिंह देव का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वह कह रहे थे कि “राज्य सरकार की कर्मचारियों के भत्ते बढ़ाने की ‘औकात’ नहीं है”. इस वीडियो के वायरल होने के बाद विपक्षी पार्टी बीजेपी ने उनपर जमकर निशाना साधा था. बाद में टीएस सिंह देव ने सफाई देते हुए कहा था उन्होंने शब्दों के चयन में गलती की.
दिसंबर 2022 में उन्होंने एक बयान देकर राज्य की राजनीति को फिर से गरमा दिया था. उन्होंने कहा था, “मैं चुनाव से पहले अपने भविष्य के बारे में फैसला लूंगा.”
बीते महीने टीएस सिंह देव ने खुलासा करते हुए कहा था उन्हें बीजेपी से ऑफर आया था. उन्होंने कहा था, “मुझे बीजेपी सहित कई पार्टियों से ऑफर आ रहे हैं, लेकिन मैं कांग्रेस छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा.”
उन्होंने कहा था, “मेरी और बीजेपी की विचारधारा बिल्कुल अलग है. मैं कभी बीजेपी में शामिल नहीं हो पाऊंगा.”
उससे कुछ समय पहले यह चर्चा भी काफी गर्म थी कि टीएस सिंहदेव अपनी पार्टी बनाकर राज्य की राजनीति करेंगे. हालांकि, उन्होंने उस मुद्दे पर भी विराम दे दिया था. जब उनसे इस बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा था, “एक पार्टी बनाने के लिए बहुत पैसे की जरूरत होती है. मेरे पास उतने पैसे नहीं है. मैं कोई पार्टी नहीं बनाऊंगा. मेरी राजनीति क्या रास्ता अपनाती है यह भविष्य तय करेगा.”
यह भी पढ़ें: विपक्षी दलों की बैठक के बाद आज बिहार में होंगे अमित शाह, JDU बोलीं- गृहमंत्री हैं, कहीं भी जा सकते हैं