नई दिल्ली: कर्नाटक मंत्रिमंडल ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्ववर्ती सरकार द्वारा लाए गए धर्मांतरण रोधी कानून को निरस्त करने का फैसला लिया है इसके साथ ही के. बी. हेडगेवार पर पाठ्यक्रम को भी पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया है.
राज्य सरकार आगामी तीन जुलाई से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में इस संबंध में एक विधेयक लाएगी.
कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच के पाटिल ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कहा, ‘‘कैबिनेट ने धर्मांतरण विरोधी विधेयक पर चर्चा की. हमने 2022 में तत्कालीन (भाजपा) सरकार द्वारा किए गए परिवर्तनों को रद्द करने के लिए विधेयक को मंजूरी दे दी है. इसे 3 जुलाई से शुरू होने वाले सत्र में पेश किया जाएगा.”
कांग्रेस के विरोध के बीच कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण कानून (धर्मांतरण रोधी कानून) 2022 में लागू हुआ था.
मौजूदा अधिनियम में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा के साथ ही बलपूर्वक, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या धोखाधड़ी से धर्मांतरण पर रोक का प्रावधान है. इसमें 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ तीन से पांच साल की कैद का प्रावधान है जबकि नाबालिगों, महिलाओं, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के संबंध में प्रावधानों के उल्लंघन पर दोषियों को तीन से 10 साल की जेल और न्यूनतम 50,000 रुपये का जुर्माना होगा.
बता दें कि इसी मीटिंग में कर्नाटक के शिक्षा मंत्री मधु बंगारप्पा ने कहा कि पिछली सरकार ने जो पाठ्यपुस्तकों में बदलाव किए हैं, हमने उन्हें बदल दिया है और मौजूदा सरकार से पहले साल जो कुछ भी था उसे फिर से शुरू कर दिया है.
यही नहीं कर्नाटक सरकार में मंत्री एच.के. पाटिल ने कहा कि राज्य कैबिनेट ने स्कूलों और कॉलेजों में प्रेयर के साथ संविधान की प्रस्तावना को पढ़ना अनिवार्य करने का फैसला किया है.
कर्नाटक मंत्रिमंडल ने पुराने कानून को वापस लाने के लिए राज्य में एपीएमसी अधिनियम में संशोधन करने का भी फैसला लिया गया वहीं पाठ्य पुस्तकों के पुनरीक्षण पर भी चर्चा हुई.
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