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Tuesday, 17 September, 2024
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J&K विधानसभा चुनाव: अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार के समीकरण को कैसे प्रभावित कर सकते हैं इंजीनियर रशीद

अवामी इत्तेहाद पार्टी के बड़ी संख्या में सीटें जीतने से मुख्यधारा की क्षेत्रीय पार्टियों की सत्ता वापस पाने की कोशिशें कमज़ोर पड़ सकती हैं, जबकि भाजपा नेता अलगाववादियों के विधानसभा में प्रवेश करने से चिंतित हैं.

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श्रीनगर: जेल में बंद सांसद इंजीनियर रशीद की अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में करीब तीन दर्जन उम्मीदवार उतारने जा रही है, जिससे संभावित रूप से यह चुनाव चार-कोणीय हो सकता है और जनादेश को काफी रोमांचक बना सकता है. दिप्रिंट ने जिन विभिन्न राजनीतिक दलों से बात की, उनका मानना ​​है कि बहुकोणीय मुकाबला खंडित जनादेश की संभावना को बढ़ाता है, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रपति शासन जारी रह सकता है और छह साल बाद भी लोगों को उनके द्वारा निर्वाचित सरकार नहीं मिल सकती.

रशीद ने लोकसभा चुनाव में जिस तरह युवाओं को प्रेरित किया, उसे देखते हुए कश्मीर घाटी में चुनावी मैदान में एआईपी के बड़े पैमाने पर उतरने से नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसी मुख्यधारा की पार्टियों के चुनावी समीकरण बिगड़ने का खतरा है, जिनका पारंपरिक रूप से इस क्षेत्र में दबदबा रहा है. यह जम्मू-केंद्रित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए अनुकूल है, लेकिन इसके नेता इस प्रक्रिया में अलगाववादी तत्वों को चुनावी वैधता मिलने की संभावना से चिंतित हैं.

शेख अब्दुल रशीद, जिन्हें ‘इंजीनियर’ रशीद के नाम से जाना जाता है, 2019 से आतंकी फंडिंग के आरोप में तिहाड़ जेल में हैं. इस साल लोकसभा चुनाव में पूर्व विधायक ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और एनसी उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को बारामूला निर्वाचन क्षेत्र में उनकी अनुपस्थिति में हराया था. उनके 22-वर्षीय बेटे अबरार रशीद, जो एमएससी (वनस्पति विज्ञान) के छात्र हैं, ने “तिहाड़ का बदला, वोट से” के नारे के साथ अभियान का नेतृत्व किया. रशीद ने अब्दुल्ला को 2 लाख से अधिक मतों से हराया, जबकि जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) के नेता सज्जाद लोन तीसरे स्थान पर रहे.

रशीद की एआईपी अब विधानसभा चुनावों में अपने लोकसभा चुनाव की गति को बनाए रखने की कोशिश कर रही है, जबकि निर्दलीय सांसद ज़मानत के इंतज़ार में हैं. उनके भाई शेख खुर्शीद ने सरकारी शिक्षक के पद से इस्तीफा दे दिया है और उनके भी चुनाव लड़ने की संभावना है. पार्टी ने पिछले हफ्ते नौ उम्मीदवारों के नाम तय किए थे.

अबरार रशीद ने दिप्रिंट को बताया, “हम लगभग 30-35 उम्मीदवार मैदान में उतारेंगे, जिनमें ज्यादातर युवा चेहरे होंगे जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं होगी. वे लोगों को एक नया विकल्प देंगे.” अब तक चुने गए नौ चेहरों में डॉक्टर और पीएचडी स्कॉलर शामिल हैं.

अबरार ने कहा, “मेरे पिता की उम्मीदवारी के कारण युवाओं में भारी उत्साह देखने को मिला. युवा चुनाव में हिस्सा लेने के लिए आगे आए. उन्होंने 70 साल की तानाशाही और वंशवादी राजनीति को नकार दिया.” पिता की अनुपस्थिति में वे पार्टी का चेहरा बन गए, लेकिन उनके पास कोई संगठनात्मक पद नहीं है और वे कम उम्र के होने के कारण चुनाव नहीं लड़ सकते. एआईपी मुख्य रूप से घाटी में चुनाव लड़ेगी, जिसमें जम्मू क्षेत्र में दो-तीन उम्मीदवार होंगे.

एआईपी नेताओं को भरोसा है कि पार्टी घाटी की 47 में से 20 से अधिक सीटें जीतेगी. अगर यह सच होता है, तो यह केंद्र शासित प्रदेश में सत्ता हासिल करने के क्षेत्रीय दलों के प्रयास को गंभीर रूप से कमज़ोर कर देगा. नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस — जिन्होंने लोकसभा चुनाव में क्रमश: 36 और सात विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी — ने गठबंधन कर लिया है, जिससे महबूबा मुफ्ती के लिए दरवाज़े बंद हो गए हैं, जिनकी पीडीपी केवल पांच विधानसभा क्षेत्रों में आगे रही.


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‘कई अलगाववादियों के विधायक बनने की संभावना’

पार्टी सूत्रों के अनुसार, इस चुनाव में रशीद की पार्टी का प्रदर्शन जम्मू-कश्मीर में अपना पहला मुख्यमंत्री बनाने की भाजपा की रणनीति पर असर डालेगा. लोकसभा चुनाव में पार्टी ने जम्मू क्षेत्र में 29 विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल की थी और उसे उम्मीद है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में भी यह संख्या बरकरार रहेगी. भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि करीब आठ से नौ निर्दलीय विधायक जीत सकते हैं और भाजपा के साथ जा सकते हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि वह लोन की पार्टी या अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी के विधायकों के बारे में बात नहीं कर रहे हैं. इन दोनों को आमतौर पर भाजपा के संभावित सहयोगी के रूप में देखा जाता है.

इन तीनों पार्टियों ने पिछले लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारे थे, जिससे राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा को बल मिला कि इनके बीच मौन सहमति है. अगर अपनी पार्टी और पीसी आधा दर्जन विधायक भी जीतने में कामयाब हो जाती है, तो भाजपा और निर्दलीय 90-सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के आंकड़े 46 के करीब पहुंच सकते हैं. हालांकि, उक्त भाजपा पदाधिकारी ने माना कि यह पार्टी नेतृत्व का “ख्याली पुलाव” था और ये अंकगणितीय गणना “इच्छाओं पर आधारित थी, वास्तविकता पर नहीं”.

जम्मू-कश्मीर में सक्रिय केंद्र के एक बीजेपी नेता ने कहा, “यह यूं ही नहीं था कि रशीद जेल से अपना नामांकन पत्र दाखिल कर पाए. पार्टी (भाजपा) नेतृत्व को उम्मीद नहीं थी कि सज्जाद लोन को लाभ पहुंचाने के बजाय, वह सांसद बन जाएंगे. अगर हम फिर से यह मानने लगें कि रशीद की पार्टी उमर या महबूबा को नुकसान पहुंचाकर मदद करेगी, तो हमें विधानसभा में कई अलगाववादियों के विधायक बनने की संभावना को भी ध्यान में रखना होगा. इससे बहुत बड़ी समस्या पैदा होगी.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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