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Monday, 25 November, 2024
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जाटों की BJP से बढ़ती नाराजगी RLD के लिए बड़ी उम्मीद, गांव-गांव जाकर अभियान चलाएंगे जयंत चौधरी

किसान आंदोलन से जाटों की बीजेपी सरकार से बढ़ती नाराजगी ने आरएलडी को न सिर्फ जाटों का सबसे बड़ा हमदर्द बनने का मौका दिया है बल्कि पार्टी को यूपी की राजनीति के केंद्र में ला दिया है.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) की पहचान पश्चिम उत्तर प्रदेश के अहम दल के तौर पर रही है लेकिन 2014 से पार्टी का प्रदर्शन लगातार गिरा है. इसका कारण जाटों का पार्टी से रूठ जाना माना जाता रहा है. लेकिन अब किसान आंदोलन से जाटों की बीजेपी सरकार से बढ़ती नाराजगी ने आरएलडी को न सिर्फ जाटों का सबसे बड़ा हमदर्द बनने का मौका दिया है बल्कि पार्टी को यूपी की राजनीति के केंद्र में ला दिया है.

यही कारण है कि किसान आंदोलन के सहारे आरएलडी रिवाइवल प्रोग्राम भी तैयार कर रही है. जयंत चौधरी जिले-जिले घूमकर महपंचायतों को संबोधित कर रहे हैं. ये वो महापंचायते हैं जो कि किसान आंदोलन व भारतीय किसान यूनियन नेता राकेश टिकैत के समर्थन में हो रही है.

टिकैत के गाजीपुर बॉर्डर पर रोने के बाद पश्चिम यूपी के गांवों में उनके प्रति सहानुभूति की लहर है. वहीं सहानुभूति ने आरएलडी को भी पश्चिम यूपी के किसानों की आवाज उठाने वाले दल के तौर पर खुद को री-इस्टैब्लिश करने का मौका दिया है.


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आरएलडी चलाएगी ‘चलो गांव की ओर’ अभियान

अगामी 12 फरवरी को चौधरी अजीत सिंह का जन्मदिन है. इस दिन से आरएलडी ‘चलो गांव की ओर ‘ अभियान की शुरुआत करने जा रही है.

जयंत चौधरी 12 फरवरी से आगरा व अलीगढ़ मंडल के गांव में 7 रातें गुजारेंगे. इस दौरान वह मथुरा, अलीगढ़, आगरा व हाथरस के गांव में रुककर पंचायत करेंगे. सुबह दोपहर व शाम तीन शिफ्ट में वे लोगों से संवाद करेंगे. इससे पहले 5 फरवरी से 10 फरवरी के बीच शामली, बुलंदशहर व अमरोहा में किसानों को संबोधित करेंगे.

जयंत चौधरी ने इससे पहले गाजीपुर बॉर्डर जाकर राकेश टिकैत से मुलाकात की. इसके बाद मुज़फ़्फरनगर में आयोजित नरेश टिकैत द्वारा बुलाई गई महापंचायत में शिरकत की. इसके बाद बागपत, मथुरा और बिजनौर में महापंचायत को संबोधित किया. यही नहीं जयंत अभी पश्चिम यूपी के दूसरे जिलों में भी महापंचायतों को संबोधित करेंगे.

जयंत ने जनसभा में कहा, ‘राकेश टिकैत के आंसू क्यों आ गए इसकी हकीकत यूपी में बच्चे-बच्चे को पता चलनी चाहिए. चुनाव में बीजेपी हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेलेगी इससे सतर्क करने की बेहद आवश्यकता है.’

पार्टी से जुड़े एक नेता ने बताया कि हम जाट बनाम मुस्लिम नैरेटिव नहीं बनने देना चाहते. वह इसे जाट व मुस्लिम व बीजेपी बनाने की कोशिश करेंगे. मुज़फ़्फरनगर दंगों के बाद जाट बनाम मुस्लिम नैरेटिव बन गया जिसका फायदा बीजेपी को मिला लेकिन इस बार ऐसा न हो इसकी कोशिश है.

जयंत पार्टी को फ्रंट से लीड करेंगे वहीं चौधरी साहब (अजीत चौधरी) भी बीच-बीच में रैलियां करते रहेंगे.

दिप्रिंट से बातचीत में जयंत ने बताया, ‘चलो गांव की ओर अभियान में गांव-गांव जाकर लोगों को फार्म बिल्स के बारे में जागरूक करेंगे. साथ ही किस तरह से किसान नेताओं व जाट समाज के लोगों पर गाजीपुर बॉर्डर समेत तमाम जगहों पर सरकार द्वारा अत्याचार करवाया गया इस बारे में भी चर्चा की जाएगी.’

संगठन को 10 जोन में बांटा

जयंत के मुताबिक, पश्चिम यूपी के किसानों की एकता का अंदाजा सरकार को तब होगा जब राजनीतिक रूप से उनके पास मजबूत विकल्प होगा ऐसा विकल्प आरएलडी ही बन सकती है. यही कारण है कि संगठन को मजबूत करने की तैयारी है.

जयंत ने बताया कि संगठन को पहले चार जोन में बांटा था, अब 10 सब-जोन (कार्य-जोन) में बांटे हैं- अवध, ब्रज, रुहेलखंड जोन आदि, इस तरह से संगठन को पूरे प्रदेश में बांटा गया है. पंचायत चुनाव के बाद राज्य की कमेटी घोषित करने की प्लानिंग है. वहीं महिलाओं की भागीदारी संगठन में बढ़ाने के लिए आरएलडी ‘नारी शक्ति सभा’ नाम का कार्यक्रम चलाएगी जिसमें महिलाओं को पार्टी के कार्यक्रमों से जोड़ने की कोशिश रहेगी.

जयंत के मुताबिक, मार्च में होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर ये तय नहीं हुआ है कि पार्टी सिंबल पर लड़ेगी या नहीं. अगर नहीं लड़ेगी तो पंचायत चुनाव में समर्थित उम्मीदवारों को उतारेंगे. वहीं विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए पार्टी का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन आज भी बरकरार है.

किसानों के सरकार के प्रति बढ़ते विरोध पर जयंत का कहना है कि आज बीजेपी के सांसद-विधायक गांव में जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं. बीजेपी सरकार इसके लिए खुद जिम्मेदार है. डेडलॉक की स्थिति पैदा हो गई है. यही कारण है कि वे गांव-गांव जाकर लोगों को बीजेपी के झूठ के बारे में बताना चाहते हैं ताकि अपनी आईटी सेल के जरिए बीजेपी फिर से कोई झूठ फैलाने में सफल न हो.

जयंत ने कहा कि ये वक्त सबको एकजुट करने का है जिसके लिए वे अभियान चलाएंगे.

यूपी में जाट वोटर्स की अहमियत?

यूपी में जाटों की आबादी 6 से 7% मानी जाती है. पश्चिम यूपी में ऐसी 18 लोकसभा सीटें हैं: सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, गौतम बुद्धनगर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, नगीना, फतेहपुर सीकरी और फिरोजाबाद जहां जाट वोट बैंक चुनावी नतीजों पर सीधा असर डालता है. यहां लगभग 17% जाट वोटर्स है.

अगर विधानसभा की बात करें तो 120 सीटें ऐसी हैं जहां जाट वोट बैंक असर रखता है.

आरएलडी से जुड़े एक सूत्र के मुताबिक अगर जाट वोट बैंक मुस्लिम (जो कि पश्चिम यूपी में 25% से अधिक आबादी में है) के साथ मिल जाए तो कई सीटों पर जीत के समीकरण तय कर सकता है. इसी समीकरण पर पार्टी की नज़र है.

आरएलडी का परफॉर्मेंस- कैसे लगातार गिरा ग्राफ

मुज़फ़्फरनगर दंगों के बाद हुए 2014 लोकसभा में आरएलडी ने कांग्रेस के साथ मिलकर यूपी में 8 सीटों पर चुनाव लड़ा. वह आठों सीट पर हार गई. अजीत सिंह बागपत से तो जयंत मथुरा से हार गए.

2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 150 सीटों पर चुनाव लड़ी जिसमें महज एक सीट पर सफलता हासिल कर पाई. वहीं 2019 लोकसभा में आरएलडी सपा+बसपा महागठबंधन में शामिल हो गई जिसमें उसे 2 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला लेकिन वे दोनों सीटों पर हार गई. जयंत बागपत से तो वहीं अजीत सिंह मुज़फ़्फरनगर से हार गए.

इससे पहले 2012 विधानसभा में आरएलडी 9 तो 2007 में 10 विधानसभा सीटें जीती थी. 2009 लोकसभा चुनाव में RLD ने पांच सीटें हासिल की थीं. वही 2011 में आरएलडी यूपीए का हिस्सा बनी थी लेकिन मुज़फ़्फरनगर दंगों के बाद से पार्टी के समीकरण बिगड़ गए.

मेरठ के चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के पाॅलिटिकल साइंस के प्रोफेसर राजेंद्र पांडे का कहना है, ‘पश्चिम यूपी में अब आरएलडी काफी कमजोर हो चुकी है. जब तक अजीत सिंह खुद काफी एक्टिव थे तब फिर भी संगठन में दम दिखता था लेकिन अभी इतना नहीं दिखता.’

‘वहीं जातीय समीकरणों की बात करें तो जाट व मुस्लिमों को एक साथ एक पार्टी के पक्ष में लाना इतना आसान नहीं है. इसके लिए जयंत चौधरी को अभी बहुत मेहनत करनी होगी.’

पांडे ने कहा, ‘किसान आंदोलन आज हो रहा है लेकिन चुनाव के वक्त क्या माहौल होगा या उस वक्त क्या समीकरण होंगे ये कहना आसान नहीं. हां, जयंत कोशिश जरूर करेंगे कि समीकरण अपने पक्ष में बनाए जाएं क्योंकि ये आंदोलन उनको राजनीति में खुद को स्थापित करने का मौका तो दे ही रहा है लेकिन आगे की राह मुझे अभी भी कठिन दिखती है.’


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