नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति को संबोधित एक पत्र में उन्होंने कहा कि वे “स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और डॉक्टरी सलाह का पालन करने” के लिए तुरंत प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं. यह इस्तीफा संविधान के अनुच्छेद 67(क) के तहत दिया गया है.
अपने पत्र में उन्होंने लिखा, “स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सकीय सलाह का पालन करने के लिए मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद से तुरंत प्रभाव से, संविधान के अनुच्छेद 67(क) के अनुसार, इस्तीफा देता हूं.”
धनखड़ ने 11 अगस्त 2022 को उपराष्ट्रपति पद का कार्यभार संभाला था.
अपने कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति के “निरंतर सहयोग और मधुर कार्य संबंधों” के लिए उन्होंने आभार जताया. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मंत्रिपरिषद को भी धन्यवाद दिया और कहा कि प्रधानमंत्री का सहयोग “अमूल्य” रहा और उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान “बहुत कुछ सीखने को मिला”.
उन्होंने लिखा, “माननीय प्रधानमंत्री और आदरणीय मंत्रिपरिषद का मैं गहरा आभार व्यक्त करता हूं. प्रधानमंत्री का सहयोग और समर्थन अमूल्य रहा है और मैंने अपने कार्यकाल के दौरान बहुत कुछ सीखा है.”
धनखड़ ने आगे कहा कि “सभी माननीय सांसदों से मिला स्नेह, भरोसा और अपनापन हमेशा मेरी स्मृतियों में बसा रहेगा. भारत के इस महान लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में मुझे जो अनुभव और समझ मिली, उसके लिए मैं अत्यंत आभारी हूं.”
उन्होंने इसे “सौभाग्य” और “संतोष” की बात बताते हुए कहा कि उन्हें इस अहम दौर में भारत की शानदार आर्थिक प्रगति और ऐतिहासिक विकास को देखने और उसका हिस्सा बनने का अवसर मिला.
उन्होंने कहा, “हमारे देश के इस परिवर्तनकारी दौर में सेवा देना मेरे लिए सच्चा सम्मान रहा है. जब मैं इस गरिमामयी पद को छोड़ रहा हूं, तो मुझे भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा और शानदार उपलब्धियों पर गर्व है और उसके उज्ज्वल भविष्य पर पूरा भरोसा है.”
इससे पहले सोमवार को, राज्यसभा के पदेन सभापति होने के नाते धनखड़ ने सभी राजनीतिक दलों से आपसी सम्मान बनाए रखने और “लगातार टकराव” से बचने की अपील की. उन्होंने चेताया कि निरंतर शत्रुता के माहौल में लोकतंत्र फल-फूल नहीं सकता.
राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होने पर अपने प्रारंभिक संबोधन में उन्होंने कहा कि भारत की ऐतिहासिक ताकत विचार-विमर्श, संवाद और चर्चा में रही है और संसद को भी उसी भावना से काम करना चाहिए.
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