हैदराबाद: आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी द्वारा, सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस एनवी रमना और हाईकोर्ट के जजों पर लगाए गए आरोप ही, अकेली क़ानूनी गुत्थी नहीं है, जो उनके और उनकी सरकार के सामने है.
जगन की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधियों ने दिप्रिंट को बताया, कि जब से उन्होंने एन चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी को सत्ता से बेदख़ल किया था, तब से 16 महीनों में, हाईकोर्ट राज्य सरकार के फैसलों के खिलाफ, लगभग 100 आदेश जारी कर चुका है. प्रतिनिधियों ने कहा कि सबसे हालिया आदेश वो है, जिसमें पिछले टीडीपी शासन के दौरान कथित अनियमितताओं, ख़ासकर अमरावती राजधानी क्षेत्र में ज़मीन के सौदों की, जांच पर रोक लगाई गई है.
पहले से चल रहे इस टकराव ने, शनिवार को एक अभूतपूर्व मोड़ ले लिया, जब जगन की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी सरकार ने, जस्टिस रमना पर भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोप लगा दिए.
भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े को लिखे एक धमाकेदार पत्र में, जो 6 अक्तूबर को लिखा गया, और शनिवार को सार्वजनिक किया गया, सीएम जगन ने जस्टिस रामना और पूर्व सीएम नायडू पर भ्रष्टाचार, राजनीतिक पक्षपात, और सरकार को गिराने की कोशिश के आरोप लगा दिए.
पत्र में ये आरोप भी लगाया गया, कि टीडीपी को बचाने के लिए, जस्टिस रमना राज्य की न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे थे. साथ ही उनकी नायडू से कथित ‘निकटता’ का भी हवाला दिया गया.
पिछले महीने, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने मीडिया पर, कथित ज़मीन घोटाले में राज्य सरकार की दायर की हुई, एफआईआर से जुड़ी ख़बरें छापने पर पाबंदी लगा दी थी, जिसमें जस्टिस रमना के रिश्तेदार, और टीडीपी शासन में काम कर चुके, एक पूर्व सरकारी अधिकारी को नामज़द किया गया था.
3 राजधानियों की योजना और अनिवार्य अंग्रेज़ी माध्यम पर रोक
आंध्र प्रदेश के लिए जगन सरकार की ‘तीन राजधानियों’ की योजना- कार्यकारी राजधानी विशाखापटनम में, न्यायिक राजधानी कुर्नूल में, और विधायी राजधानी अमरावती में- भी ज़मीन पर आ गई, जब हाईकोर्ट ने प्रशासन के विकेंद्रीकरण पर रोक लगा दी.
तीन राजधानियां रखने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने के लिए, हाईकोर्ट में क़रीब 90 याचिकाएं दायर की गई हैं. कई किसान संघ समूहों और कुछ टीडीपी नेताओं ने भी, राज्य सरकार के प्रस्ताव के ख़िलाफ याचिकाएं दायर की हैं.
इसी साल के शुरू में हाईकोर्ट ने सरकार को, एन रमेश कुमार को बतौर राज्य चुनाव आयुक्त बहाल करने का निर्देश दिया था, जिसके बाद राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय का रुख़ किया, जिसने हाईकोर्ट के निर्देश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. कुमार ने, जिन्हें नायडू शासन में नियुक्त किया गया था, कोविड-19 महामारी का हवाला देते हुए, स्थानीय निकायों के चुनाव टालने का फैसला किया था.
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राज्य सरकार के उस फैसले को भी हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया, जिसमें स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों का कोटा, 27 प्रतिशत से बढ़ाकर 34 प्रतिशत कर दिया गया था. पिछड़े वर्गों के कोटे में इस बढ़ोतरी का मतलब होता, कि पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण 60 प्रतिशत हो जाता, जो सभी वर्गों के आरक्षण के लिए, सुप्रीम की तय सीमा- 50 प्रतिशत से अधिक हो जाता.
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस आदेश को भी ख़ारिज कर दिया, जिसके तहत सभी सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 6 तक, अंग्रेज़ी माध्यम को अनिवार्य कर दिया गया था. कोर्ट ने जगन सरकार के फैसले को असंवैधानिक, और कई क़ानूनों का उल्लंघन क़रार दिया था, जिनमें शिक्षा का अधिकार शामिल था. आंध्र प्रदेश सरकार बाद में सुप्रीम कोर्ट गई, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगवा पाई.
प्रदेश सरकार के प्रतिनिधियों के अनुसार, मौजूदा सरकार के खिलाफ अधिकांश याचिकाएं, विपक्षी दलों के नेताओं और उनके समर्थकों की ओर से दायर की गई हैं.
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