scorecardresearch
Saturday, 23 November, 2024
होमराजनीतिपिता की सार्वजनिक तौर पर कड़ी निंदा करने वाली पहली राजनीतिक वंशज नहीं है शर्मिष्ठा

पिता की सार्वजनिक तौर पर कड़ी निंदा करने वाली पहली राजनीतिक वंशज नहीं है शर्मिष्ठा

Text Size:

पिछले एक दशक में कई राजनीतिक परिवारों ने गठबंधन, चुनावी क्षेत्र और उत्तराधिकार को लेकर मतभेद दर्शाये हैं।

नई दिल्ली: शर्मिष्ठा मुखर्जी ने तब खूब सुर्खियां बटोरी जब उन्होंने अपने पिता की राष्ट्रीय सेवा संघ के एक इवेंट में  सम्मिलित होने पर ट्विटर पर सवाल उठाए।

हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी नेता के वंशजों – जिनमें से कई अपने लॉन्च और सफलता का श्रेय अपने पिता को भी दे चुके हैं- ने अपने पिता के उन कारनामों पर विरोध दर्ज किया हो जिसमें उन्होंने अपने रूख बदले हों ।

यह हैं कुछ उदाहरण

देव गौड़ा और एच डी कुमारस्वामी : एक कठिन गठबंधन

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने हाल ही में कहा कि कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का उनका यह फैसला उनके पिता देवगौड़ा की मर्ज़ी के खिलाफ था जो भाजपा का साथ देना चाहते थे ।

उन्होंने कहा, “राजनीति में 2006 तक मैं एक कच्चा खिलाड़ी था। मैं आज भी उन राजनीतिक फैसलों के लिए अपने आप को दोषी मानता हूँ जिसने मेरे पिता (देव गौड़ा) को तकलीफ पहुंचाई”।

2006 में जेडी(एस) कांग्रेस के साथ गठबंधन में थी और तब गौड़ा धरम सिंह को मुख्यमंत्री के पद के लिए समर्थन दे रहे थे। तब कुमारस्वामी ने चुपके से भाजपा के विधायकों से बात करी और अपने विधायकों को इस्तीफ़ा देने के लिए राज़ी भी किया। सिंह को मजबूरन इस्तीफ़ा देना पड़ा और इससे कुमारस्वामी के भाजपा समर्थन के साथ मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ़ हो गया ।

गुस्साए पिता देव गौड़ा कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में भी नहीं गए और उनसे मुँह फेर लिया ।

गौड़ा ने तब कहा,” मैंने अपनी बात उन तक सीधे-सीधे पंहुचा दी है कि मैं अपने सिद्धांतों  को नहीं छोड़ने वाला । मैंने उनसे कहा कि उनके निर्णय को स्वीकारने के लिए मुझे मजबूर न करें। मैंने उन्हें अपनी बात कह दी है, वे अपने रास्ते जा सकते हैं और मैं अपने”।

यशवंत और जयंत : सिन्हाओं की भिड़ंत

इस साल अप्रैल में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने भाजपा से अपना इस्तीफ़ा दिया और कहा कि वे अब लोकतंत्र को बचाने के लिए एक अखिल भारतीय कैंपेन चलाने वाले हैं। पिछले कुछ समय में वे मोदी सरकार के काफी बड़े आलोचक बन गए हैं ।

और दूसरी और उनके पुत्र जयंत सिन्हा हैं जो नागरिक उड्डयन मंत्रालय में राज्य मंत्री हैं ।

पिछले साल इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख में यशवंत सिन्हा ने एनडीए सरकार द्वारा आर्थिक कुप्रबंधन की कड़ी निंदा की।

इस लेख का खंडन जयंत सिन्हा ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया  में अपनी बात रख कर किया

“भारतीय अर्थव्यवस्था द्वारा झेली जा रही परेशानियों पर काफी लेख लिखे जा चुके हैं । दुर्भाग्यवश इन सभी लेखों के ‘साफ़ निष्कर्ष’ बहुत ही संकुचित तथ्यों के आधार पर निकले हैं जो सरकार द्वारा उठाये गए क़दमों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर देते हैं”।

इस साल जब उनसे उनके पुत्र के साथ बिगड़ते संबंधों पर प्रश्न किये गए तो यशवंत ने कहा,”फ़िलहाल हमारे रिश्तों में दरार है “.

मुलायम सिंह और अखिलेश यादव: मुसीबतों की दास्तान

दिसंबर 2016 में मुलायम सिंह यादव ने अपने ही बेटे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी से ‘घोर दुर्व्यवहार’ के चलते बर्खास्त कर दिया था।

अखिलेश ने 2017 के विधानसभा चुनावों के अपने उम्मीदवारों की घोषणा उसी वक्त कर दी जब पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह घोषणा कर रहे थे ।

मुलायम ने कहा कि पार्टी अब किसी और व्यक्ति को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाएगी और अखिलेश इस रेस में शामिल नहीं होंगे ।

मुलायम ने कहा, “सपा को बचाने के लिए मैं सबसे कठिन कदम उठाऊंगा। हमारे लिए पार्टी ही प्राथमिक है । हमें पदों का कोई लालच नहीं है । अब हमें बस अपनी पार्टी बचानी है।”

इसके बाद अखिलेश जबरन पार्टी में आये और अपने पिता की मर्ज़ी के खिलाफ अपने आप को पार्टी का चेयरमैन बनाने के लिए समर्थन भी हासिल किया । मुलायम ने इस चाल को गैर-संवैधानिक बताया और कहा की इसके खिलाफ वे निर्वाचन आयोग के पास जाएंगे, जिसने बाद में फैसला अखिलेश के पक्ष में दिया।

“अपने पिता के खिलाफ प्राप्त हुई कोई भी जीत मेरे लिए गर्व की बात नहीं है.. पर लड़ना भी ज़रूरी है”, अखिलेश ने एनडीटीवी को बताया था।

अनुप्रिया और कृष्णा पटेल: माँ के साथ वैर

2015 में अनुप्रिया पटेल, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की राज्यमंत्री, को उनकी मां ने ‘अपना दल’ पार्टी से बेदखल कर दिया था, जिसके संस्थापक उनके पिता थे ।

कृष्णा पटेल ने अपनी पुत्री को अनुशासनहीनता के चलते पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया, यह कहते हुए कि उनकी बेटी पार्टी की मीटिंगों में भाग नहीं ले रही थीं और अपनी महत्वाकांक्षाओं पर काबू खो चुकी थीं ।

यह झगड़ा और भी गंभीर तब हो गया जब एनडीए सरकार ने अनुप्रिया को 2016 में मंत्री बनाया और इसके तीन दिन बाद ही ‘अपना दल’ ने भाजपा के साथ सारे नाते तोड़ दिए क्योंकि पार्टी ‘गठबंधन धर्म’ का सम्मान नहीं कर रही थी ।

करूणानिधि और उनके बेटे

2013 में द्रमुक के चीफ एम करूणानिधि ने अपने पुत्र एम के स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया । इससे उनके बड़े बेटे एम के अलागिरी ने सार्वजनिक रूप से इस पर आपत्ति जताई ।

मार्च 2014 में अलागिरी को पार्टी से निकाल दिया गया क्योंकि उनके खिलाफ पार्टी के विरुद्ध कार्य करने के आरोप थे। अलागिरी ने पिता के ऊपर भेदभाव करने का आरोप लगाया और कहा कि अब वे न्याय के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएंगे ।

स्टालिन अभी भी करूणानिधि के उत्तराधिकारी हैं ।

अर्जुन और वीणा सिंह: एक विभाजित परिवार

2009 में जब पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह की बेटी को मध्य प्रदेश में ‘सीधी’ क्षेत्र से कांग्रेस का टिकट नहीं मिला तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा ।

इस ज़बरदस्त कैंपेन में वीणा और उनकी माँ एक तरफ और अर्जुन सिंह और उनके बेटे अजय एक तरफ हो गए जिसमें बाप-बेटे की जोड़ी ने कांग्रेस का साथ दिया। खैर इस चुनाव को भाजपा जीत गयी।

अजय ने कहा “वीणा के निर्णय ने अवश्य ही परिवार को संकट में डाल दिया है।”

वीणा बाद में कांग्रेस में लौट गयीं।

share & View comments