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Saturday, 21 December, 2024
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‘विविधता को बचाना ज़रूरी’ – लोकसभा चुनाव से पहले राज्य की स्वायत्तता के लिए DMK क्यों डाल रही दबाव?

भाजपा तमिलनाडु में अपना विस्तार करने की कोशिश कर रही है, वहीं द्रमुक संघवाद और राज्य की स्वायत्तता की मांग पर जोर दे रही है और कह रही है कि यह 'सिर्फ चुनावी राजनीति नहीं बल्कि विविधता और बहुलता' से संबंधित है.

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चेन्नई: परिसीमन और “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के खिलाफ संकल्पों के साथ, “फासीवाद” के खिलाफ संसदीय क्षेत्रों में बैठकें, और केंद्र सरकार से तमिलनाडु को “अपना हक नहीं मिलने” पर विरोध प्रदर्शन के साथ, राज्य की सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) इस साल के आम चुनाव से पहले उप-राष्ट्रवाद के अपने सदियों पुराने एजेंडे को लागू करने के लिए बार-बार प्रयास कर रहा है.

जब से पार्टी ने 1962 में चीनी आक्रमण के बाद एक अलग द्रविड़नाडु की मांग छोड़ दी उसके बाद से उप-राष्ट्रवाद और अधिक स्वायत्तता का विषय द्रमुक के राजनीतिक नैरेटिव का हिस्सा रहा है.

लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, जबकि केंद्र में सत्ता पर काबिज़ भाजपा आक्रामक रूप से तमिलनाडु में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रही है, द्रमुक राज्य की स्वायत्तता और संघवाद की अपनी मांग को मजबूत शब्दों में उठा रही है.

राजनीतिक विश्लेषक और चेन्नई की रोजा मुथैया रिसर्च लाइब्रेरी के फेलो ए.एस. पन्नीरसेल्वन ने दिप्रिंट को बताया. “मुख्य पहलू यह है कि जब भी दिल्ली में कोई वास्तविक संकट होता है, तो वह तमिलनाडु ही होता है जिसने स्थिरता प्रदान की है. 1962 में, चीन युद्ध के बाद, DMK ने एक अलग द्रविड़नाडु की मांग छोड़ दी और 1969 से, पार्टी भारत की स्थिरता के लिए राज्य के अधिकारों और संघीय संतुलन पर ध्यान केंद्रित कर रही है.“

पिछले पांच दशकों में, तमिलनाडु की राजनीति में दो द्रविड़ पार्टियों – द्रमुक और अन्नाद्रमुक – का वर्चस्व रहा है, जहां राष्ट्रीय पार्टियों के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए बहुत कम जगह है.

2016 से, पूर्व मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके सुप्रीमो जे. जयललिता के निधन के बाद, भाजपा तमिलनाडु में अपना आधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है. पिछले साल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा तक वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने राज्य का दौरा किया और राष्ट्रवाद के बारे में बात की और बताया कि कैसे केंद्रीय योजनाएं जमीनी स्तर पर बदलाव ला रही हैं.

राज्य में द्रमुक लगातार राज्य को कर हस्तांतरण और शिक्षा जैसे राज्य के विषयों पर केंद्र की कथित दखलंदाजी के मुद्दों को उठाकर उप-राष्ट्रवाद की एक और भी मजबूत लहर के साथ भाजपा के इस राष्ट्रवादी मुद्दे का मुकाबला कर रही है.

डीएमके के प्रवक्ता ए. सरवनन ने दिप्रिंट को बताया, ‘डीएमके पूरी तरह से क्षेत्रीय पहचान को संरक्षित करने के बारे में है. यदि हम उस मुद्दे को त्याग देते हैं, तो समरूपीकरण यानि कि सब कुछ एक जैसा हो जाने का खतरा होता है और यह हमारे देश की अखंडता के लिए महत्वपूर्ण है कि हमारी संस्कृति की विविधता संरक्षित रहे. जब हम एक जैसे होते हैं, तो हर चीज़ में एकता की अवधारणा होती है; तब बहुलवाद को झटका लगेगा और क्षेत्रीय दलों की पहचान खत्म हो जाएगी. प्रत्येक राज्य को उसकी निजता प्रदान की जानी चाहिए.”

DMK के अब तक के अभियान

2023 की शुरुआत से, इंडिया ब्लॉक में खुद को एक मज़बूत ताकत के रूप में स्थापित करने वाली DMK ने तमिलनाडु में दो बार, सबसे पहले DMK प्रमुख एम.के. स्टालिन का जन्मदिन पर और एक महीने बाद ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस के बैनर तले विपक्षी दलों की ताकत का प्रदर्शन किया है. इसके बाद राज्य में एक सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें 19 राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाया गया. सम्मेलन के दौरान, सभी राज्यों में मुख्य मुद्दा एक ही रहा – केंद्र द्वारा राज्यों के खिलाफ “घोर भेदभाव”.

2023 के अंत में डीएमके ने राज्य भर में जो बाइक रैली आयोजित की, उसने लोगों से “फासीवादी ताकतों के खिलाफ लड़ाई” में डीएमके में शामिल होने के लिए पार्टी के अनुरोध को बल दिया.

21 जनवरी को आयोजित किए गए पार्टी के दूसरे युवा सम्मेलन का विषय “राज्य अधिकार पुनर्प्राप्ति” था.

सलेम युवा सम्मेलन से पहले, स्टालिन ने डीएमके कैडरों को लिखे एक पत्र में दोहराया था कि सम्मेलन का इरादा “राज्य अधिकारों और संघवाद की रक्षा करना” होगा.

1970 के त्रिची डीएमके राज्य सम्मेलन में, दिवंगत डीएमके संरक्षक एम. करुणानिधि ने पांच बिंदु रखे थे और पांचवां मुद्दा था “राज्य में स्वायत्तता-केंद्र में संघवाद”.

50 साल से अधिक पुराने सम्मेलन से प्रेरणा लेते हुए, स्टालिन ने कहा था: “यदि बहुआयामी भारतीय संघ को मजबूत बनाना है तो राज्य की स्वायत्तता के सिद्धांत का उद्देश्य राज्यों को अधिक शक्ति देना होना चाहिए. इसके पूरा होने पर ही भारतीय संघ सच्चे संघवाद के अनुसार मजबूती से कार्य कर सकता है.”

बुधवार को, राज्य विधानसभा के पटल पर, स्टालिन ने केंद्र के “एक राष्ट्र, एक चुनाव” प्रस्ताव को “लोकतंत्र के खिलाफ और अव्यावहारिक बताया जो कि भारत के संविधान में निहित नहीं है”.

राज्य विधानसभा ने सर्वसम्मति से दो प्रस्ताव पारित किए – एक, हमारे राज्य को अनुचित परिसीमन की प्रक्रिया से बचाने के लिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमें अपनी सामाजिक-आर्थिक प्रगति और सफल जनसंख्या नियंत्रण उपायों के लिए दंडित नहीं किया जाए; और दूसरा अलोकतांत्रिक एक राष्ट्र, एक चुनावी कल्पना का दृढ़ता से विरोध करता है, जो हमारे विविधतापूर्ण लोकतंत्र के ताने-बाने को खतरे में डालता है. तमिलनाडु का संकल्प अटल है, हमारी भावना अदम्य है.”

जबकि भाजपा विधायक वनाथी श्रीनिवासन ने परिसीमन के संबंध में राज्य की चिंताओं को साझा किया, उन्होंने विधानसभा में अपने भाषण के दौरान कहा कि “एक राष्ट्र, एक चुनाव” पर संकल्प “अनावश्यक” था.


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डीएमके और राज्य स्वायत्तता

जबकि पेरियार की द्रविड़ कड़गम और उससे अलग हुए सी.एन. अन्नादुरई के नेतृत्व वाले गुट डीएमके ने शुरू में द्रविड़नाडु के विचार की वकालत की थी जिसमें कि दक्षिण भारत के तमिल, मलयालम, तेलुगु और कन्नड़ भाषी राज्यों के मिलाकर एक अलग देश बनाने की संकल्पना की गई थी. लेकिन 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद DMK द्वारा इसे छोड़ दिया गया.

अन्नादुरई ने तब कहा था: “जब देश खतरे में हो, तो हमारे लिए अलगाववाद की वकालत करना विदेशियों को रास्ता देना होगा.”

इसके तुरंत बाद, करुणानिधि ने 1969 में पहली बार मुख्यमंत्री का पद संभाला और राज्यों के लिए अधिक स्वायत्तता के लिए अभियान चलाया. अगले वर्ष, उन्होंने “मानिलाथिले सुयाची, मथियिले कूटाची (राज्यों के लिए स्वायत्तता, केंद्र में संघवाद)” विषय पर एक सम्मेलन आयोजित किया.

1969 में, करुणानिधि ने केंद्र-राज्य संबंधों पर राजमन्नार समिति का गठन किया, और उसी वर्ष डीएमके संरक्षक ने राज्यों के लिए अधिक स्वायत्तता के लिए राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया.

राजनीतिक विश्लेषक प्रियन श्रीनिवासन ने कहा, “आपातकाल के दौरान, DMK ने 1974 में कोयंबटूर में एक राज्य स्वायत्तता सम्मेलन आयोजित किया था, जिसमें राज्य के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग की गई थी. केंद्र-राज्य संबंधों का अध्ययन करने के लिए राज्य और केंद्र ने अलग-अलग आयोगों का गठन किया है और सभी ने केंद्र को राज्यों को अधिक अधिकार देने की सलाह दी है. लेकिन ये सिफारिशें केवल कागजों पर हैं और लागू नहीं की गईं.”

प्रियन ने कहा कि “केंद्र राज्य की मौजूदा शक्तियों को छीन रहा है.”

प्रियन ने कहा, “उदाहरण के लिए, वस्तु एवं सेवा कर के कार्यान्वयन ने सुनिश्चित किया है कि केंद्र के पास कर तय करने की शक्ति है, और वह यह भी नियंत्रित करता है कि कर का पैसा कैसे वितरित किया जाता है, आदि. केवल केंद्र सरकार की पसंद को लागू किया जा रहा है.”

जुलाई 2022 में, डीएमके सांसद ए. राजा ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि अगर राज्य को उसकी स्वायत्तता से वंचित किया गया तो अलग तमिलनाडु की मांग फिर से शुरू हो जाएगी.

राजा ने कहा, “हमारे सीएम अब तक अन्ना (अन्नादुरई) के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं, हमें पेरियार के रास्ते (अलग राष्ट्र के लिए) पर चलने के लिए मजबूर न करें. हमें अलग राज्य की मांग फिर से शुरू करने पर मजबूर न करें. हमें राज्य की स्वायत्तता दीजिए.”

सामाजिक न्याय सम्मेलन से लेकर इस महीने कार्यकर्ताओं को लिखे स्टालिन के पत्र तक, जिसमें किसानों के चल रहे विरोध को रोकने के लिए केंद्र के “युद्ध जैसे उपायों” की आलोचना की गई है, स्टालिन केंद्र में भाजपा सरकार की लगातार आलोचना करते रहे हैं.

अक्टूबर 2023 में, सीएम ने कहा था कि राज्य की स्वायत्तता DMK के प्रमुख मुद्दों में से एक थी और “भाजपा शासन के तहत, राज्य के अधिकारों को कुचल दिया गया.”

पन्नीरसेल्वन ने कहा, राज्य की स्वायत्तता के लिए द्रमुक का रोना, “अंधराष्ट्रवादी उप-राष्ट्रवाद नहीं है”.

उन्होंने कहा, “यह राज्यों की गरिमा और सम्मान के बारे में है. यह भारतीय संविधान के पहले वाक्य के बारे में है जो कहता है कि भारत राज्यों का एक संघ है. द्रमुक का कदम अनिवार्य रूप से संवैधानिक मूल्यों की पुष्टि कर रहा है क्योंकि उनमें से बहुत से लोग गंभीर तनाव में हैं.”

‘परिसीमन तमिलनाडु के सिर पर तलवार’

बुधवार को विधानसभा में अपने भाषण में स्टालिन ने कहा कि परिसीमन तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों से संसदीय सीटों की संख्या कम करने की साजिश हो सकती है, जो सामाजिक-आर्थिक विकास कार्यक्रमों और कल्याणकारी योजनाएं लागू करके दशकों से अपनी जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में कामयाब रहा हैं.

उन्होंने कहा, “परिसीमन तमिलनाडु के सिर पर लटकी हुई तलवार है. संविधान के अनुच्छेद 88 और 170 के अनुसार, राज्य विधानसभाओं और लोकसभा में जनसंख्या के आधार पर नए निर्वाचन क्षेत्र बनाए जाते हैं.”

केंद्र ने 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोग का गठन किया था. जबकि 2026 तक परिसीमन की प्रक्रिया पर रोक है, 2026 के बाद जनगणना के आधार पर राज्य विधानसभाओं और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों को बदल दिया जाएगा.

बिहार और तमिलनाडु की जनसंख्या की तुलना करते हुए, स्टालिन ने कहा कि हालांकि दोनों राज्यों में लोकसभा सीटों की संख्या समान थी, लेकिन आज बिहार की जनसंख्या तमिलनाडु की तुलना में 1.5 गुना बढ़ गई है. इसका मतलब यह होगा कि बिहार को अधिक सीटें मिलेंगी.

स्टालिन ने कहा, “तमिलनाडु में, 39 लोकसभा सीटें हैं. अगर 2026 के बाद परिसीमन हुआ तो राज्य में सीटों की संख्या कम हो जाएगी. 39 लोकसभा सीटों के साथ भी हम केंद्र सरकार से भीख मांग रहे हैं. अगर सीटों की संख्या और घटी तो तमिलनाडु अपना हक खो देगा और पिछड़ जाएगा. इसलिए हमारा आग्रह है कि जनसंख्या वृद्धि के आधार पर किसी भी परिस्थिति में सीटों की संख्या में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए. तमिलनाडु और दक्षिणी राज्य कमजोर हो जायेंगे. जब जनसंख्या के आधार पर राजस्व-बंटवारे की बात आती है तो इस प्रकार का भेदभाव तमिलनाडु और दक्षिणी राज्यों द्वारा अनुभव किया जाता है.”

इसी तरह, “एक राष्ट्र, एक चुनाव” प्रस्ताव को मनमाना बताते हुए स्टालिन ने कहा: “यदि चुनाव एक ही समय पर होते हैं तो इसके लिए लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राज्य विधान सभाओं को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग करना आवश्यक होगा.”

उन्होंने आगे सवाल किया कि अगर केंद्र सरकार अपना बहुमत खो देती है तो क्या पूरे भारत में सभी राज्य विधानसभाएं भंग कर दी जाएंगी.

स्टालिन ने पूछा, “यदि किसी राज्य में सरकार गिर जाती है, तो क्या केंद्र में सत्ता में बैठे लोग चुनाव कराने के लिए आगे आएंगे? क्या इससे अधिक हास्यास्पद कुछ और है? सिर्फ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव ही नहीं, क्या स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक साथ कराना संभव है?”

जहां तक द्रमुक के आलोचकों की बात है, तो वे स्टालिन पर हमला करने के लिए 1971 के विधानसभा चुनावों का हवाला देते हैं. उस वर्ष, करुणानिधि ने लोकसभा चुनावों के साथ-साथ शीघ्र चुनाव कराने का आह्वान किया था, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चौथी लोकसभा के विघटन के बाद कराया था.

राजनीतिक विश्लेषक जे.वी.सी. श्रीराम ने दिप्रिंट को बताया, ‘द्रमुक के पास 1972 तक सत्ता थी, लेकिन 1971 में पार्टी की सामान्य परिषद की बैठक में करुणानिधि ने सरकारी खजाने की बचत का हवाला देते हुए केंद्र के साथ मिलकर समय से पहले चुनाव कराने का फैसला किया.’

इस पर पलटवार करते हुए प्रियन ने कहा कि तब परिस्थितियां अलग थीं. “उस समय, एक राष्ट्र, एक चुनाव की कोई अवधारणा नहीं थी. 1971 के चुनाव कांग्रेस में विभाजन के बाद इंदिरा गांधी के जनादेश को साबित करने के लिए थे. उसी समय, द्रमुक चुनाव में शामिल हुई क्योंकि पार्टी ने श्रीमती गांधी की प्रगतिशील राजनीति का समर्थन किया था.

प्रियन ने कहा, “एक राष्ट्र, एक चुनाव” का मौजूदा सुझाव मतदाताओं के हितों के खिलाफ है, जिन्हें केंद्र और राज्य के मुद्दों के बीच चयन करने की दुविधा होगी, जिसमें सिर्फ एक नेता को चुनाव के चेहरे के रूप में पेश किया जाएगा. .

‘DMK बहुत से वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है’

प्रियन ने कहा कि द्रमुक द्वारा राज्य की स्वायत्तता का आह्वान एक अवधारणा है जिसके बारे में देश भर के हर राज्य को सोचना चाहिए और लड़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे केंद्र में शक्तिशाली सरकारें बनती जाती हैं, राज्य के अधिकाधिक अधिकार छीन लिए जाते हैं.

द्रमुक राज्यों के लिए अधिक स्वायत्तता के सबसे मुखर समर्थकों में से एक बनकर उभरी है.

पन्नीरसेल्वन ने कहा: “2024 बताएगा कि क्या हम ज्यादा से ज्यादा एकरूपता या भारत के वैविध्य और बहुलता का समर्थन करने जा रहे हैं. द्रमुक वैविध्य और बहुलता का प्रतिनिधित्व करती है जबकि भाजपा एकरूपता का प्रतिनिधित्व करती है.”

उन्होंने कहा कि वैविध्य और बहुलता के विचार के कारण तमाम आंतरिक विरोधाभासों के बावजूद इंडिया ब्लॉक अभी भी बरकरार है.

सरवनन ने भी कहा, “यह केवल चुनावी राजनीति से संबंधित नहीं है.”

“यही कारण है जिसकी वजह से द्रमुक का गठन हुआ. चुनावी लाभ के बावजूद, द्रमुक राज्य की स्वायत्तता और संघवाद के लिए अपनी आवाज उठाती रखेगी.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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