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Sunday, 22 December, 2024
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‘संसदीय परंपरा का उपहास है’- कांग्रेस ने आपातकाल पर ओम बिरला की टिप्पणी की निंदा की

18वीं लोकसभा के पहले दिन बिरला ने इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में आपातकाल लगाए जाने की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पढ़ा, जिससे विपक्ष भड़क गया. प्रधानमंत्री मोदी ने बिरला की टिप्पणी की सराहना की.

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नई दिल्ली: कांग्रेस ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर कहा है कि बुधवार को सदन की कार्यवाही के दौरान उनके द्वारा आपातकाल पर किए गए “राजनीतिक संदर्भ” “बेहद चौंकाने वाले” और “संसद के इतिहास में अभूतपूर्व” थे.

कांग्रेस महासचिव (संगठन) के.सी. वेणुगोपाल ने बिरला को लिखे पत्र में पार्टी की आपत्तियों को उठाया. बिरला बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव के ध्वनिमत से पारित होने के बाद लोकसभा अध्यक्ष के पद पर एक बार फिर से चुने गए.

केरल के अलप्पुझा से लोकसभा के लिए चुने गए वेणुगोपाल ने कहा कि इस मुद्दे का “संसद जैसी संस्था की विश्वसनीयता” पर काफी असर पड़ा है. बिड़ला ने 1975 में प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाए जाने की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पढ़ा था.

वेणुगोपाल ने लिखा, “मैं यह बात संसद जैसी संस्था की विश्वसनीयता पर असर डालने वाले एक बहुत गंभीर मामले के संदर्भ में लिख रहा हूं. कल… लोकसभा अध्यक्ष के तौर पर आपके चुनाव पर बधाई देने के समय सदन में एक सामान्य सौहार्दपूर्ण माहौल था, जैसा कि ऐसे मौकों पर होता है, हालांकि, उसके बाद जो हुआ, यानी आधी सदी पहले आपातकाल की घोषणा के संबंध में आपके स्वीकृति भाषण के बाद अध्यक्ष की ओर से दिया गया संदर्भ, बेहद चौंकाने वाला है.”

उन्होंने आगे लिखा कि 2014 और 2019 की तुलना में सुधार करते हुए 2024 के आम चुनावों में 99 सीटें जीतने वाली कांग्रेस, बिरला की टिप्पणी को “संसदीय परंपराओं का उपहास” मानती है.

वेणुगोपाल ने कहा, “संसद के इतिहास में अध्यक्ष की ओर से इस तरह का राजनीतिक संदर्भ कभी नहीं दिया गया. नवनिर्वाचित अध्यक्ष के ‘प्रथम कर्तव्यों’ में से एक के रूप में अध्यक्ष की ओर से यह बात और भी गंभीर हो जाती है. मैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से संसदीय परंपराओं के इस उपहास पर अपनी गहरी चिंता और पीड़ा व्यक्त करता हूं.”

बिरला द्वारा पढ़े गए प्रस्ताव में कहा गया कि भारत “इंदिरा गांधी की तानाशाही के अधीन” था, जिसके कारण देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को “कुचल दिया गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबा दिया गया”.

बिरला ने आगे कहा, “यह सदन 1975 में आपातकाल लगाने के फैसले की कड़ी निंदा करता है. हम उन सभी लोगों के दृढ़ संकल्प की सराहना करते हैं जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया, संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र के रक्षा की जिम्मेदारी निभाई. 25 जून, 1975 को हमेशा भारत के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा.”

18वीं लोकसभा के पहले सत्र से अपने पहले वक्तव्य में आपातकाल की निंदा करने वाले मोदी ने विपक्ष को नाराज़ करने वाली बिड़ला की टिप्पणियों के लिए उनकी सराहना की.

प्रधानमंत्री ने एक्स पर लिखा, “मुझे खुशी है कि माननीय अध्यक्ष ने आपातकाल की कड़ी निंदा की, उस दौरान की गई ज्यादतियों को उजागर किया और यह भी बताया कि किस तरह से लोकतंत्र का गला घोंटा गया. उन दिनों में पीड़ित सभी लोगों के सम्मान में मौन खड़े होना भी काफी अद्भुत था.”

गुरुवार को भी लोकसभा में स्पीकर और विपक्ष के बीच तनाव की स्थिति देखने को मिली. जब बिड़ला ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर द्वारा शपथ लेने के बाद ‘जय संविधान’ का नारा लगाने पर आपत्ति जताई, तो पार्टी नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने पलटवार करते हुए कहा कि स्पीकर को नारे से कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.

बिड़ला ने जवाब दिया, “मुझे सलाह मत दीजिए कि क्या आपत्तिजनक है और क्या नहीं, बैठ जाइए.”

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक्स पर एक पोस्ट में इस घटना पर टिप्पणी करते हुए कहा: “क्या संसद में ‘जय संविधान’ का नारा नहीं लगाया जा सकता? सत्ता में बैठे लोगों को असंसदीय और असंवैधानिक नारे लगाने से नहीं रोका गया, लेकिन जब एक विपक्षी सांसद ने ‘जय संविधान’ का नारा लगाया तो आपत्ति जताई गई. चुनावों के दौरान उभरी संविधान विरोधी भावना ने अब एक नया रूप ले लिया है, जो हमारे संविधान को कमजोर करने की कोशिश कर रही है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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