चेन्नई: जैसे ही मक्कल नीधि मय्यम (एमएनएम) नेता कमल हासन डीएमके के समर्थन से राज्यसभा में जाने की तैयारी कर रहे हैं, यह देख कर साफ लगता है कि उन्होंने चुपचाप अपना मुख्यमंत्री बनने का बड़ा सपना छोड़ दिया है — वही सपना जिसे उन्होंने 2018 में अपनी पार्टी लॉन्च करते समय जोर-शोर से पेश किया था.
तब से एमएनएम का प्रभाव कम होता गया है, जिससे संकेत मिलता है कि तमिलनाडु की राजनीति में यह पार्टी अब एक प्रभावी ताकत नहीं रह गई है. हालांकि एमएनएम ने राज्य में कोई सीट नहीं जीती, लेकिन उसका थोड़ा वोट शेयर था और यह सिर्फ हासन की लोकप्रियता की वजह से कुछ हद तक मायने रखती थी.
28 मई को, सत्तारूढ़ डीएमके ने 19 जून को होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की घोषणा करते हुए एमएनएम को एक सीट दी, जिससे हासन के उच्च सदन में जाने का रास्ता साफ हुआ.
अब जब हासन केंद्र में भूमिका निभाने जा रहे हैं, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे भले ही इंडिया गठबंधन को फायदा हो, लेकिन तमिलनाडु की राजनीति में उनकी अपनी पार्टी की ताकत और कम हो जाएगी.
“2024 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने डीएमके के कई उम्मीदवारों को प्रचार के जरिए जीत दिलाने में मदद की. हालांकि इससे कोई बड़ा लहर नहीं बना, लेकिन इसने बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्षी गठबंधन को मजबूत करने में मदद की,” राजनीतिक विश्लेषक रवींद्रन दुरईसामी ने दिप्रिंट को बताया.
30 मई को हासन ने डीएमके के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से अन्ना अरिवालयम में मुलाकात की, जब डीएमके ने एमएनएम को राज्यसभा सीट दी.
बाद में हासन ने पत्रकारों से कहा कि यह समय की जरूरत है कि संसद में तमिलों की आवाज उठे. “ऐसा नहीं है कि मैंने तमिलों के लिए पहले आवाज नहीं उठाई, मेरी आवाज हमेशा तमिलों के लिए रही है और अब पहली बार यह संसद में सुनी जाएगी.”
जब उनसे डीएमके के खिलाफ उनके पहले के रुख के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह समय की जरूरत है और जो देश के लिए जरूरी है, वही करने वे यहां आए हैं.
हासन ने 21 फरवरी 2018 को मक्कल नीधि मय्यम की शुरुआत मदुरै जिले से की थी. उन्होंने पार्टी का चुनाव चिन्ह मशाल चुना. अपनी पहली स्पीच में उन्होंने भ्रष्टाचार विरोध, जनकल्याण और विचारधारा से तटस्थ राजनीति की बात की थी.
2019 के लोकसभा चुनाव में हासन ने बिना किसी राजनीतिक पार्टी के साथ गठबंधन किए राज्य की सभी 39 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. उन्होंने खुद किसी सीट से चुनाव नहीं लड़ा. एमएनएम को 3.72 प्रतिशत वोट शेयर मिला.
2021 विधानसभा चुनावों से पहले हासन ने साफ किया कि वे दो बड़ी द्रविड़ पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. उन्होंने जनवरी में धर्मपुरी की रैली में कहा था, “डीएमके और एआईएडीएमके दोनों ही लुटेरे हैं. इसका मतलब यह नहीं कि मैं द्रविड़ विचारधारा के खिलाफ हूं,”
एमएनएम ने अभिनेता से नेता बने शरत कुमार की ऑल इंडिया समथुव मक्कल काच्ची और टी.आर. पचमुथु उर्फ पारिवेन्द्र की इंडिया जननायक काच्ची से गठबंधन किया. बाद में शरत कुमार ने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया.
एमएनएम ने 142 सीटों पर चुनाव लड़ा, और उसके सहयोगी दलों ने 73 सीटों पर. इस बार हासन ने खुद कोयंबटूर साउथ से चुनाव लड़ा लेकिन बीजेपी की वनाथी श्रीनिवासन से 1,728 वोटों से हार गए. एमएनएम को 2.62 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन कोई सीट नहीं मिली.
2024 लोकसभा चुनाव के लिए हासन ने डीएमके के नेतृत्व वाले सेक्युलर प्रोग्रेसिव अलायंस से हाथ मिलाया.
हालांकि शुरुआत में यह चर्चा थी कि कांग्रेस के हिस्से से एमएनएम को सीट दी जाएगी, लेकिन एमएनएम के सूत्रों ने बताया कि वे कांग्रेस के चिन्ह पर नहीं, बल्कि अपने खुद के चुनाव चिन्ह पर लड़ना चाहते थे.
एमएनएम के एक पदाधिकारी ने कहा, “एमएनएम को जो राज्यसभा सीट अब दी गई है, वह 2024 के लोकसभा चुनाव में डीएमके और एमएनएम के बीच हुए समझौते का हिस्सा थी.”
हासन को जनता का समर्थन क्यों नहीं मिला?
तमिलनाडु में फिल्मी सितारों का राजनीति में आना कोई नई बात नहीं है. द्रविड़ आंदोलन के नेता, डीएमके के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुरै और उनके उत्तराधिकारी एम. करुणानिधि दोनों ही तमिल फिल्म इंडस्ट्री में स्क्रिप्ट राइटर थे. एआईएडीएमके के संस्थापक एम.जी. रामचंद्रन (एमजीआर), जिन्हें लोग प्यार से एमजीआर कहते हैं, और उनकी उत्तराधिकारी जे. जयललिता भी कोलीवुड से थीं.
अन्नादुरै ने 1949 में डीएमके की स्थापना की, जबकि एमजीआर ने 1972 में एआईएडीएमके की शुरुआत की.
दिप्रिंट से बात करने वाले राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा कि द्रविड़ पार्टियों में जो लोग फिल्म इंडस्ट्री से आए, वे केवल अभिनेता या लेखक नहीं थे, बल्कि लंबे समय से राजनीतिक आंदोलनों से जुड़े हुए थे — जो कि कमल हासन के मामले में नहीं है.
राजनीतिक विश्लेषक सुनील कुमार ने कहा कि जो अभिनेता राजनीति में आ रहे हैं, वे एमजीआर के 1977 में मुख्यमंत्री बनने की कहानी को दोहराने की कोशिश कर रहे हैं.
हिंदुस्तान यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर ने कहा, “लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि एमजीआर ने 1972 में अपनी पार्टी शुरू करने से पहले डीएमके में काम किया था और अपने शुरुआती फिल्मी दिनों से ही द्रविड़ आंदोलन से जुड़े हुए थे. सभी द्रविड़ नेता राजनीति में औपचारिक रूप से आने से बहुत पहले ही राजनीतिक गतिविधियों में शामिल थे.”
दुरईसामी ने बताया कि 2021 में सभी 234 विधानसभा सीटों पर चुनाव न लड़ना हासन की पहली बड़ी गलती थी. “भले ही उन्होंने सीमित सीटों पर चुनाव लड़ा, फिर भी उन्हें 2-3 प्रतिशत वोट मिले. अगर वे सभी सीटों पर चुनाव लड़ते, तो शायद 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें बेहतर सौदेबाजी का मौका मिल सकता था.”
सुनील कुमार ने कहा कि हासन अपनी लोकप्रियता को भुना नहीं पाए. “कमल के पास एक ऐसा सपोर्ट बेस था जो शहरी और पढ़ा-लिखा था, लेकिन राज्य की सामाजिक संरचना की समझ नहीं रखता था. एक राजनीतिक पार्टी के नेता के तौर पर कमल उन लोगों को राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं कर पाए, और अब इसका नुकसान उन्हें हुआ है — मुख्यमंत्री बनने का सपना खो बैठना.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ें: सोशल मीडिया जांच के चलते अमेरिका ने वीज़ा इंटरव्यू रोके, भारतीय छात्रों ने कहा ‘सब कुछ दांव पर लगा’